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बुधवार, 26 मई 2010

इनकी रामायण, उनका पारायण : हमारे नारायण ! अजित वडनेरकर के लिये सस्नेह समर्पित पोस्ट

हमेशा की तरह आज भी अजित भाई के ब्लाग शब्दों का सफर में पहुंचा  !  वहां उनकी ताज़ा तरीन प्रविष्टि "इनकी रामायण, उनका पारायण"  देखते ही दिमाग मे एक ख्याल बिजली की तरह से कौंधा कि... " आपने जो भी लिखा वो तो सब ठीक है अजित भाई पर इस आलेख से "हमारे नारायण" कहां गुम हो गये ? फिर सोचा कि टिप्पणी करूं और एक 'मुस्कारहट फेंकू संकेत' डाल कर आगे बढ लूं ...पर ...पर वे भाषाई संस्कार सम्पन्न व्यक्तित्व हैं सो दिल नही माना कि टरकाऊ टिप्पणी से काम चलाया जाये !  हुआ ये कि उनकी आज की प्रविष्टि मे मुझे कुछ कमी सी महसूस हो रही थी इसलिये नेट बन्द किया और बाद मे फुर्सत से टिपियाने का ख्याल दिल मे लिये घर से निकल लिया... लेकिन जहां भी जाऊं ...बस एक ही ख्याल कि "हमारे नारायण" कहां गये और अगर अजित भाई रामायण और पारायण की तर्ज़ पर नारायण लिखते तो अर्थ क्या होता ? चैन नही मिला तो तुरत फुरत घर वापसी और फिर से नेट कनेकशन आन हो गया ...ओह नारायण !

यूं तो शब्दों का सफर एक शानदार ब्लाग है पर उससे अपना जुडाव केवल प्रतिक्रिया देने वाले पाठक जितना ही है ...अब हम पाठक कैसे हैं ये तो ब्लाग स्वामी जाने पर खुद से सोचें तो लगता है कि ठीक ठाक ही होंगे  :) ... हाँ  तो बहुत मशक्कत के बाद भी आलेख की तर्ज़ पर 'नारायण' के अर्थ निकालने का जतन किया पर संतुष्टि नही हुई थक हार कर सोचा कि अगर मै ज्योतिषी होता तो क्या करता  ? ...बस कमाल हो गया ...यक़ीन जानिये  रास्ते  खुद ब खुद  खुल गये !

ख्याल आया कि हिन्दू समय मापक बतौर अक्सर "अयन" शब्द प्रयुक्त होता है  !  एक वर्ष यानि कि दो अयन  और एक अयन बराबर तीन ऋतुओं का काल ... अब 'काल' बोले तो क्षण की बडी इकाई माने समय भी और देवता भी !

एक पल को लगा 'नर के रूप मे देवता'  नारायण शब्द के सबसे निकट है (  नर + अयन  /  नर + काल  /  नर +  देवता  )  अब ज़रा आगे गौर फर्माइये राम + अयन  बराबर राम का समय / राम का युग / राम का कल्प सही है कि नहीं ...मेरे विचार से  राम कथा /  वृत्तांत  के लिये सबसे उपयोगी शीर्षक "रामायण" ही हो सकता था और यही हुआ भी होगा  !  इसी तरह से 'पार' यानि  कि   'दूसरे किनारे' जाने मे लगने वाले समय के लिये पारायण सबसे बेह्तर शब्द है !  किसी स्थान को छोड भी दीजिये तो ग्रंथ के प्रथम श्लोक / सर्ग / अध्याय  से अंत ( पार ) तक ...आद्योपांत वही भाव है ! अजित जी के आलेख मे  अयनम / अयणम शब्द का एक अर्थ गति के साथ अवधि भी बताया गया है किंतु उसे राम और पार के साथ जोड्कर नही देखा गया है और ना ही काल रूप देवता के तौर पर नर से ही इसे जोडा गया !

मै नही जानता कि मुझे ऐसा क्यों लगता है कि अयन के बिना....  इनकी रामायण ,  उनका पारायण : हमारे नारायण अधूरे से हैं  !  मुमकिन है कि मेरी  दृष्टि  भाषा शास्त्र  के लिहाज़  से किसी भी लायक ना हो तो भी   "एक दृष्टि " ....सोचने का एक नज़रिया  तो है  ! 

अजित जी भाषा शास्त्र के उदभट विद्वान हैं ...वे वर्ष तो हम अयन भी नहीं ...वे अयन तो हम क्षण भी नहीं !  इस  यथार्थ का ज्ञान हमें भली भांति  है किन्तु उम्र का तकाज़ा है सो पोस्ट उन्हें सस्नेह समर्पित है !