शनिवार, 26 जुलाई 2025

पुटेरी गुनुंग लेदांग

मुद्दतों पहले मलक्का की धन सम्पन्न सल्तनत का सुल्तान महमूद शाह बेहद अहंकारी और महत्वाकांक्षी व्यक्ति था उसे अपनी सत्ता के विस्तार के साथ ही साथ इस बात का ख्याल था कि उसकी नई पत्नि, इतनी खूबसूरत होना चाहिए जो कि उसकी सल्तनत के वैभव से साम्यता रखे । उन दिनों पुटेरी गुनुंग लेदांग नामक अनिंद्य सुंदरी की चर्चा आम थी, कहते हैं कि वो अपने नाम के ही पवित्र पर्वत पर निवास करती थी लेकिन सभी मलक्का वासियों को यह विश्वास था कि जो भी उस युवती से ब्याह की हसरत लेकर पहाड़ पर गया कभी वापस ही नहीं लौटा । सुल्तान का ख्याल था कि पुटेरी गुनुंग लेदांग उसकी पत्नि बनने के लिए सर्वाधिक सुयोग्य युवती है ।  वो स्वयं ही उस पहाड़ पर चढ़ कर उस युवती को अपनी अर्धांगिनी बनाने का इच्छुक था पर उसके मंत्री सतर्क थे । उनका अभिमत था कि यह कार्य जोखिम भरा है, सो तय हुआ कि योद्धा हंग तुआह के नेतृत्व में एक दल युवती के पास जाएगा और सुल्तान का विवाह प्रस्ताव सौंपेगा ।

हंग तुआह और उसके साथी घने जंगल और रहस्यमय पहाड़ की ऊंचाइयों को नापते हुए बमुश्किल आगे बढ़ पर रहे थे दरख्तों की सरसराहट यूं , गोया वो किसी गुप्त भाषा में संवाद कर रहे हों । नदियां कहीं शुरू होतीं और कहीं पर खत्म हो जाती, कितने ही झरने । हंग तुआह को डर तो लग रहा था पर वो सुल्तान का विश्वस्त दरबारी था, सो आगे बढ़ता रहा । आखिरकार वे  सभी पहाड़ की चोटी पर जा पहुंचे जहां एक गुफा में पुटेरी गुनुंग लेदांग रहती थी । हंग तुआह ने सम्मान सहित उस युवती को अपने आने का प्रयोजन बतलाया तो वो थोड़ी देर खामोश रही और फिर उसने सुल्तान से ब्याह के लिए सात शर्ते रख दीं । उसने कहा अगर सुल्तान इन शर्तों को पूरा कर पाएगा तो वो उससे ब्याह कर लेगी । अब  हंग तुआह शर्तें सुनने के इंतजार में था ।

पुटेरी गुनुंग लेदांग ने बोलना शुरू किया । उसकी आवाज हवा में गूंज रही थी । उसने कहा सुल्तान के महल से पहाड़ की चोटी तक सोने का पुल और सुल्तान के अंतःपुर से मेरे आवास तक चांदी का पुल बनवाया जाए । सात थालों में भर कर मच्छरों के दिल और सात थालों में जूओं के दिल भर कर मुझे दिए जाएं । कुआंरी लड़कियों के आंसुओं से भरा एक घड़ा, सुल्तान के बेटे का एक कटोरा खून और खुद सुल्तान का एक कटोरा खून मुझे दिया जाए । हंग तुआह अवाक और निराश था पर उसके सामने और कोई विकल्प शेष नहीं था । वो दल सहित पहाड़ से नीचे उतरा और सुल्तान से मिलकर इन असंभव शर्तों का किस्सा बयान किया । यह सुनकर सुल्तान किंचित निराश हुआ पर वो अब भी दृढ़  संकल्पित था कि उसे  पुटेरी गुनुंग लेदांग से ब्याह करना ही है ।

दरबारियों में से कुछ का ख्याल था कि पुटेरी गुनुंग लेदांग ने सुल्तान के वैभव, धन संपन्नता और ब्याह की आकांक्षा का मजाक उड़ाया है हालांकि कुछ दरबारियों का मानना था कि कोशिश करना चाहिए । सुल्तान के वास्तुकार पुलों की डिजाइन बनाने में लग गए । मच्छरों और जुओं के दिल खोजने के साथ ही साथ, कुआंरी लड़कियों के आंसू एकत्रित करने के लिए हजारों लोग तैनात कर दिए गए । दिन, हफ्तों और महीनों में बदलने लगे पर हर दिशा में सिर्फ नाकामियां ही नाकामियां दिख रही थीं । सुल्तान बेचैन होने लगा था । उसे अपना और अपने प्यारे बेटे का खून निकालना एक दुःस्वप्न सा लग रहा था । एक रात जब वो अपने महल के गलियारे में टहल रहा तो उसने देखा कि पहाड़ चांदनी मे नहाया हुआ था ।  उसे महसूस हुआ कि पहाड़ की अलौकिक आभा, दमकते हुए हुस्न के आगे उसकी जिस्मानी आकांक्षाएं , बेमानी और माटी के मोल हैं ।

वो समझ गया कि पहाड़ की लड़की अनमोल है । उसकी निज कामनायें, पहाड़ के अद्भुत सौन्दर्य का पासंग भर भी नहीं हैं । वो राज्य विस्तार कर सकता है । धन दौलत जुटा सकता है पर अपनी ताकत के दम पर कुदरत  पर अधिसत्ता कायम नहीं कर सकता । अगली सुबह सुल्तान ने अपने दरबार में घोषणा की, कि वो पहाड़ की लड़की से ब्याह का अपना दावा छोड़ रहा है । उसने कहा पहाड़ का सौन्दर्य अप्रतिम है । वो बोल कि मैं इंसानों का शासक हूं  लेकिन कुदरत के आगे सामर्थ्य हीन ।  पुटेरी गुनुंग लेदांग का हुस्न अछूता रहेगा, सदा सर्वदा, अपने ही स्थान पर ।

दक्षिणी पूर्वी एशियाई मूल की ये कथा अनेकों प्रतीकात्मक निहितार्थ लिए हुए है । सुल्तान बेहद अहंकारी और सत्ता विस्तार का भूखा है । उसे लगता है कि वो दुनिया की हर शय का मालिक हो सकता है । वो पहले से शादी शुदा है पर उसे अपनी, ऐश्वर्यशाली ज़िंदगी के लिए, नवब्याहता चाहिए, उसे ख्यातनाम पुटेरी गुनुंग लेदांग की जरूरत है ।  मिथक में इस युवती को ऊंचे और पवित्र पर्वत में रहने वाला बताया गया है । वो अनिंद्य सौन्दर्य की स्वामिनी कही गई है कदाचित देवी तुल्य स्त्री, जोकि निवास और सुंदरता के उच्चतम मानदंडों पर स्थापित है । अगर हम समस्त वैश्विक धर्मों और उनके उपासना स्थलों का इतिहास देखें तो पाएंगे कि ज्यादातर आराध्य, समतल भूमि की तुलना में पर्वतों की उच्चता में निवास करते हैं । अस्तु देवत्व की, मनुष्यों पर श्रेष्ठता के प्रातीतिक अर्थों का उद्घोष इस कथा की नायिका के संदर्भ में भी स्वीकरणीय होना चाहिए ।

उल्लेखनीय है कि आख्यान मे उल्लिखित सुल्तान स्वयं को वैभवशाली राज्य का मालिक समझता है ।  उसे पूर्व ब्याहता की तुलना में पुटेरी गुनुंग लेदांग चाहिए । वो युवती जो कि देवत्व की प्रतिनिधि है और पर्वत की ऊंचाई में स्थापित है । सुल्तान को अपनी शक्तिमत्ता पर अभिमान है और उसे आख्यान की नायिका पर आधिपत्य चाहिए जैसे कि भूभाग, धन सम्पदा पर उसका निरंकुश अधिकार है वो नायिका को, देवत्व सहित अपनी पत्नि के तौर पर अपने स्वामित्व में देखना चाहता है । सुल्तान की खोज इहलोक के स्वामित्व और देवलोक के मध्य कोई अंतर नहीं करती । मिथक कहता है कि वो प्रयास करता है और असफल हो जाता है । महल के गलियारे में टहलते हुए चांदनी में नहाए हुए पर्वत की अलौकिकता उसका भ्रम तोड़ देती है । उसे यह एहसास हो जाता है कि उसकी खोज सर्वथा अनुचित है । उसे भौतिकता और अलौकिकता की समतुल्यता के भ्रम से बाहर आना ही चाहिए ।

उसका भ्रम टूटता है और वो यह स्वीकार करता है कि पर्वत की देवीय शक्ति ने उसकी परीक्षा लेने के लिए ही ऐसी शर्ते रखी हैं जिससे यह सिद्ध हो कि देवत्व के सम्मुख, सुल्तान का वैभव और सामर्थ्य गौण है ।  वो यह मान लेता है कि इंसानी महत्वाकांक्षाओं की सीमाएं हैं । उसने एक सबक सीखा कि दुनियादारी और पारलौकिकता को एक ही तराजू में तौलना, तार्किक और बौद्धिक निर्णय नहीं है और असंभव को पाने के लिए अपनों का खून नहीं बहाया जा सकता है । अगली सुबह , बौद्धिकता  के आलोक में वो, अपने दरबार में यह घोषणा करता है कि उसने पुटेरी गुनुंग लेदांग को पत्नि स्वरूप पाने की अपनी कामना का परित्याग कर दिया है और अब वो अपने सामर्थ्य, अनुभव और ज्ञान का उपयोग अपने राज्य के संचालन के लिए करेगा । वो जान गया था कि पुटेरी गुनुंग लेदांग पहाड़ की, कुदरत की, शास्वत संरक्षक है और वो सौन्दर्य, स्वतंत्रता और पुरुषों की इच्छाओं पर प्रकृति के वर्चस्व, की प्रतीक है ।