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रविवार, 11 नवंबर 2018

आदमखोर के आर्तनाद

ग्रीक-रोमन मिथकों में स्ट्रिज को निशाचर परिंदा माना गया है, कदाचित उल्लू स्वयं या फिर उल्लू के जैसा परिंदा जो कि अपनी पैशाचिक प्रकृति के लिए कुख्यात है ! उसे अक्सर बच्चों को वश में करके, उनका खून चूसने वाले, परिंदे की तरह से उद्धृत किया जाता है ! इस के समानान्तर लोक विश्वास यह भी है कि बच्चों के गले में लहसुन की कंठी / माला पहनाने से, बच्चे, इस रक्त चूसक पिशाच से सुरक्षित बने रहते हैं ! एक किंवदंती यह भी है कि ये शैतान का सेवक है ! 

गल्प कहते हैं कि असल में यह उन दो भाइयों की कथा है जो कि अन्य मनुष्यों को मार कर खा डालने के दंड स्वरूप / श्राप-वश, वनैले प्राणियों में बदल गए थे और उनमें से एक भाई ख़ास तौर पर स्ट्रिज / उल्लू में तब्दील हो गया था ! बहरहाल अपनी करनी का फल उसे, यह मिला कि वो, भोजन और पानी के बिना उलटा लटके हुए, अपनी ज़िंदगी गुज़ारता है, उसके निराशा भरे आर्तनाद हम रातों में, अब भी सुनते हैं...

बुधवार, 7 नवंबर 2018

मानुष पुत्रियां

कहते हैं कि स्टिम्फ़ेलियन परिंदे, आर्केडिया की स्टिमफेलिस झील में मौजूद आतंक का पर्याय थे ! जिन्हें हरक्यूलिस (हेराक्लेस) द्वारा मारा गया थाप्रचलित दन्त-कथा के अनुसार जब हरक्यूलिस, झील के किनारे पहुंचा तो उसने पाया कि झील में स्टिम्फ़ेलियन परिंदों के अनेकों झुण्ड / घोंसले  मौजूद हैं लेकिन भीषण दलदल और गहरे जल क्षेत्र में उतरे बगैर उन तक पहुंचना असंभव है ! अस्तु देवी एथेना ने हरक्यूलिस को एक खड़खड़ बाजा / वाद्ययंत्र दिया, जिसके शोर से स्टिम्फ़ेलियन परिंदेझील की सतह को छोड़ कर आकाश की ओर उड़ने लगे, उनमें से अधिकांश को हरक्यूलिस ने मार डाला और जो परिंदे बच गए, वे सुदूर टापू में जा बसेकालांतर में उन्हें, एक नये नाम से जाना गया, आर्निथेस आरियोई यानि कि एरेस की चिड़ियां !

एक मान्यता यह भी है कि युद्ध के देवता एरेस इनके पंखों का इस्तेमालतीरों को दिशा प्रदान करने वाले उपस्कर के तौर पर किया करते थे ! बहरहाल टापू में बसे इन परिंदों का शिकारग्रीक नाविकों के द्वारा किये जाने के उल्लेख भी मिलते हैं ! ग्रीक गल्पों में इन्हें मांसाहारी और निरंतर भुक्खड़ बने रहने वाले परिंदों के रूप में वर्णित किया गया है जो कि मनुष्यों पर हमला करकेउन्हें खा जाया करते थे !  मिथक का एक अन्य संस्करण कहता है कि वे आर्टिमिस के मंदिर के रखवाले थे और उनके पैर मात्र ही परिंदों के जैसे थे अन्यथा वे, स्टिमफालुस की मानुष पुत्रियां माने गए हैं ! विश्वास किया जाता है कि हरक्यूलिस ने उन्हें इसलिए मार डाला था क्योंकिउन्होंने अपने घर मेंहरक्यूलिस का प्रतिष्ठापूर्ण / गरिमामय स्वागत नहीं किया था... 

रविवार, 4 नवंबर 2018

सुंदर चिड़िया

एक समय की बात है जबकि लिम्पोपो नदी के पास एक बूढ़ा व्यक्ति और उसकी पत्नि रहते थे ! हरेक सुबह बूढ़ी स्त्री, नदी तक जाती और घड़े में पानी भर कर लाया करती, चूंकि उसकी उम्र अधिक हो चली थी, सो उसके लिए पानी से भरा हुआ घड़ा लेकर वापस घर लौटना कठिन हो चला था ! बूढ़े ने अपनी पत्नि से कहाअगर तुम सहमत हो जाओ तो मैं किसी युवा और ताकतवर स्त्री से दूसरा ब्याह कर लूं जो कि लकड़ियां काटने और नदी से पानी लाने में तुम्हारी मदद कर सके ! बूढ़ी पत्नि ने इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी ! इसके बाद बूढ़े ने लिम्पोपो नदी के दूसरी ओरसघन जंगल मेंजहां अंजीर के बड़े बड़े वृक्ष थे और रात में हाथियों के चिंघाड़ने की आवाज़ें आया करती थींस्थित किसी छोटे से टोले में रहने वाली युवती से ब्याह कर लिया ! बूढ़े की युवा पत्नि अपने साथ मिट्टी का एक घड़ा लाई थी जिसे वो अपने शयन कक्ष के दरवाजे के पीछे रखा करती थी ! बहरहाल कुछेक दिनों के बाद बूढ़ी और युवा पत्नि के बीच का तनाव, खुलकर सामने आने लगा ! 

एक दिन बूढ़ी ने उस युवती से कहा कि जब मैं तुम्हें पानी लाने के लिए भेजती हूं तो तुम नदी में इतनी देर तक क्या करती रहती हो ? युवती यह सुनकर मुस्कराई और वहां से अलग हट गयी ! इस पर बूढ़ी और उसका पति सलाह मांगने के लिए गुनिया के पास गए ! गुनिया को देने के लिए उनके पासएक मुर्गा भी था पर गुनिया ने कहा, यह प्रकरण जटिल हैमुर्गे से काम नहीं चलेगा, तुम एक बकरा लाओ ! अगले दिन वृद्ध पति और पत्नि, गुनिया के पास एक बकरा लेकर पहुंचे तो उसने कहातुम सुबह जल्दी उठकर नदी के पास झाड़ियों में छुप जाना और सावधानीपूर्वक देखना कि वो युवती अपने घड़े में पानी भरते हुए और क्या क्या करती है ! अगली सुबह बूढ़े ने ऐसा ही कियावो यह देख कर हैरान रह गया कि युवा पत्नि ने नदी तट पर पहुंच कर जैसे ही घड़े का ढक्कन खोला, उसमें से एक बेहद खूबसूरत चिड़िया बाहर निकली और पास के दरख़्त की शाख पर बैठ कर गाने लगी और वो युवती, चिड़िया को एकटक निहारते हुए, उसका गाना सुनने लगी !

अचानक उसे लगा कि काफी देर हो चुकी है, तो उसने घड़े में पानी भरा और चिड़िया को अपने कपड़ों में छुपा कर घर वापस आ पहुंची, फिर घड़े का पानी खाली करके उसने, चिड़िया को घड़े में छुपाकर अपने शयन कक्ष में रख दिया ! इस घटनाक्रम का ब्यौरा देने बूढ़ा फिर से गुनिया के पास जा पहुंचा तो उसने कहा कि इस मुद्दे पर सलाह देने के लिए मुझे, तुमसे दो बकरे चाहिए ! उस बूढ़े ने ऐसा ही किया ! बकरे पाकर गुनिया ने बूढ़े से कहा कि उस चिड़िया को मार डालो ! रात में ये बात बूढ़े ने अपनी बूढ़ी पत्नि को बताई, लेकिन बूढ़ी पत्नि थोड़ी बहरी थी, सो बूढ़े को उसेकिस्सा बयान करने के लिए, ऊंचे सुर में बात करना पड़ी, जिसे युवती और चिड़िया ने सुन लिया ! अगली सुबह बूढ़े और बूढ़ी के जागने से पहले युवती ने अपना सामान बांध लिया और बूढ़े का घर छोड़ने के लिए तैयार हो गयी ! इस वक्त वो चिड़िया घड़े के ढक्कन के ऊपर बैठी थी ! युवती चिल्लाई, तुमने इस खूबसूरत चिड़िया को मारने की योजना बनाई जो कि मेरे लिए मेरी संतान के जैसी है ! इसलिए अब मैं यहां एक पल भी नहीं रुक सकती और वो वहां से चली गयी...

आख्यान का आरंभ ज़र्जर शरीर, दंपत्ति से होता है, जहां बूढ़ी पत्नि दैनिक पारिवारिक कार्यों को सम्पादित करने में पिछड़ रही है, अतः बूढ़ा पति अपेक्षाकृत युवा लड़की को दूसरी पत्नि बनाने का प्रस्ताव अपनी वृद्धा पत्नि के समक्ष रखता है ! दूसरे विवाह के पक्ष में तर्क, पारिवारिक दायित्वों के सम्यक निर्वहन तक सीमित है, सो बूढ़ी पत्नि के एतराज का कारण भी नहीं बनता था ! बहरहाल इस बेमेल विवाह में निहित अंतर्कथा ये है कि युवा पत्नि और बूढ़े पति के दरम्यान किसी रागात्मक सम्बन्ध की संभावना भी नहीं है ! कथनाशय ये है कि वहां दैहिक कामनाओं की पूर्ति का ख्याल भी दूर की कौड़ी लाने जैसा है, सो युवती की अन्यत्र प्राकृतिक अभिरुचियों / लालसाओं / जुड़ाव सम्बन्धी बयान, अस्वभाविक भी नहीं है ! इसके ऐन विपरीत वृद्ध दंपत्ति की प्राथमिक अपेक्षा, घरेलू कृत्यों का तत्पर संपादन है, इसलिए वृद्ध पति पत्नि और युवा पत्नि के दरम्यान, रुचियों / अपेक्षाओं के विरोधाभाष जनित तनाव को अनुचित भी नहीं कहा जा सकता !

आख्यान का दूसरा हिस्सा, दो पीढ़ियों के अयाचित जुड़ाव के सम्पूर्ण समापन / पटाक्षेप से पूर्व युवा पक्ष की अभिरुचियों को जड़ से समाप्त कर देने को समर्पित है, ताकि युवा पक्ष, वृद्ध पीढ़ी की ओर पूर्णतः समर्पित हो जाए ! यानि कि इस मोड़ पर कथा, रुचियों के संघर्ष का रूप ले लेती है ! युवती जो कि बूढ़े पति और परिवार की नौकरानी, सदृश भूमिका से असंतुष्ट है वो, प्रकृति / सुन्दर गायन / परिंदे पर आसक्त है ! हालांकि कथा में रोचक तथ्य ये है कि उभय पक्ष, अपने लक्ष्य / रूचि के संरक्षण के समांनातर, पारस्परिक बैर-भाव को यथा संभव गोपनीय बनाये रखने की चेष्टा करते हैं !  निज पक्ष की जय हेतु बूढ़े दंपत्ति को जादुई सहायता / गुनिया की सहायता चाहिये, जो लालची और छलिया स्वरूप है ! फिर युवती पारिवारिक दासत्व की तुलना में अपनी आसक्ति और स्वतंत्रता को चुनती है... 

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

मायावी

प्रचलित कहन ये है कि बूबरीविशाल डैनों, लम्बी सफेद गर्दन, बड़ी चोंच, छोटे पैरों और झिल्लीदार पंजों वाला परिंदा है, जो कि बैल की तरह से आर्तनाद / रुदन कर सकता है, किन्तु स्कॉटिश आख्यानों में उसे जल-अश्व जैसा प्राणी माना गया है ! एक मान्यता यह भी है कि बूबरी को कायान्तरण की शक्तियां प्राप्त हैं सो वो जल-अश्व की तरह में पानी में चलने वाले जीव के अतिरिक्त घोड़ों का खून चूसने वाला परजीवी भी बन जाया करता है ! कुछेक गल्पों में यह उल्लेख भी मिलता है कि परिंदे के रूप में उड़ने के बजाये वो तालाबों और झीलों में तैरना और शिकार करना पसंद करता है ! उसके विषय में एक किंवदंती यह भी है कि वो पशुओं के घायल बच्चों के चीत्कार की नक़ल करता है ताकि बड़े पशु उस आवाज से आकर्षित होकर उसके निकट आ पहुंचें और वो उनका शिकार कर ले ! वो सामान्यतः भेड़ों का मांस पसंद करता है पर ज़रूरत पड़ने पर ऊदबिलावों का शिकार भी कर लेता है...

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

अतृप्त मनः

वो पंखहीन मुर्गी की तरह से दिखती है ! हंगेरियन लोक आख्यानों में उसे चुड़ैलों के समतुल्य माना जाता है ! लोक मान्यता यह है कि वो अण्डों को अपनी भुजाओं के नीचे सेती है ! कहते हैं कि लाइडरेक, एक चुड़ैल के रूप में, जिस भी व्यक्ति के निकट होती है, उसके द्वारा सौंपे गए कार्य, अथक रूप से पूर्ण करती रहती है, यदि उसे अतिरिक्त कार्य सौंपे जाने में कोई कोताही की जाए तो वो उस निकटवर्ती व्यक्ति को मार डालती है, अतः उसे ऐसे कार्य सौंपे जाना चाहिए जो कि असंभव हों मसलन छलनी में पानी लाना ! लाइडरेक कथाओं के एक अन्य संस्करण के अनुसार वो विरही जोड़े को अपने वश में करने की चेष्टा करती है ! हरेक रात उसकी उपस्थिति के कारण से विरही बन्दा अपने मूल प्रेम / अनुराग से भटक जाता है सो इस किस्म की लाइडरेक से पीछा छुड़ाने का सबसे आसान तरीका है कि मनुष्य के रूप में उसने जो भी जूते / जूतियां पहन रखी हों उन्हें चोरी कर लिया जाए...

बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

हुपु

अजीब से नाम वाले इस परिंदे को भारत में कठफोड़वा और दुनिया की दूसरी जगहों में हुदहुद भी कहते हैं ! अरबी मिथकों में इसका उल्लेख बोध-प्राप्त यानि कि इल्हाम-शुद परिंदे के तौर पर किया जाता है ! मान्यता यह भी है कि इसे निदानात्मक तथा पानी को दिव्यता प्रदान करने वाली शक्तियां प्राप्त हैं ! कहते हैं कि राजा सुलेमान ने इसके पंखों को एकत्रित करके तपते रेगिस्तान में अपने लिए छायादार पनाहगाह बनाई थी ! एक धारणा यह भी है कि युवा हुपु, अपने बूढ़े और निर्बल हुपु सम्बन्धियों की ख़ास फ़िक्र करते है ! यूरोपीय मिथक के अनुसार हुपु को ईश्वर ने ख़ास तौर पर सृजित किया और उसके खाने के लिए वो तमाम चीजें बनाईं, जिन्हे परिंदे पसंद करते हैं, लेकिन हूपु ने वो सब खाने से इंकार कर दिया, जिससे रुष्ट होकर ईश्वर ने उसे दंड स्वरूप अन्य जानवरों के मल में से भोजन प्राप्त करने हेतु अभिशापित कर दिया...

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

आखेटक का दुःख

एक दिन कौव्वे ने देखा कि बाज़ ने नीचे की ओर उड़ान भर के एक मेमने को अपने पंजों में दबोच लिया और उसे खाने के लिए ऊंचे पहाड़ पर ले गया ! कौव्वे ने सोचा ये तो बहुत आसान है ! वो भूखा था, सो उसने बाज़ की तर्ज़ पर नीचे की ओर उड़ान भरी और एक भारी भरकम भेड़ को अपने पंजों में दबोच लेना चाहा, लेकिन वो, वज़नी भेड़ को ऊपर नहीं उठा सका !


यहां तक कि उसके पंजे  भेड़ के ऊन में बुरी तरह से फंस गए और वो खुद भी भेड़ से अपना पिंड नहीं छुड़ा पाया ! ऊन में उलझे हुए कौव्वे को चरवाहे ने देखा और पकड़ कर, उसके पंख कतर दिए, इसके बाद कौव्वे को अपना पालतू बनाने के लिए अपने घर ले गया ! तब से लेकर आज तक वो कौव्वा, दूसरे कौव्वों को  सावधान करता रहता है कि वे ज़िंदा भेड़ से दूर रहें...


 

विवेचनाधीन आख्यान, अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर किये गए, किसी यत्न / उद्यम के निषेध को समर्पित है ! कथा कहती है कि बाज़ आखेटक है सो कौव्वा भी ! बाज़ ने अपने शिकार बतौर एक मेमने को चुना जिसका वजन उठाना, उसकी सामर्थ्य से बाहर नहीं था, वो अपने शिकार को उंचाई पर ले गया, किन्तु कौव्वा आखेट के समय बाज़ की नक़ल करते हुए, बड़ी भूल कर बैठा, उसने हलके वज़न वाले मेमने को चुनने के बजाये भारी भरकम भेड़ को चुन लिया, जिसका वजन ढ़ोना कौव्वे की सामर्थ्य से बाहर था !

 

 

कौव्वे ने शिकार के समय अपनी सामर्थ्य / क्षमता का समुचित आकलन नहीं किया जिसका परिणाम उसे भुगतना पड़ा ! वो ना तो भेड़ को ऊंचा उठाने की शक्ति रखता था और ना ही उसने भेड़ के ऊन / बालों में अपने पंजों के फंस जाने के जोखिम की कल्पना की थी ! भेड़ पालतू थी और उसकी मृत्यु से होने वाले नुकसान को ध्यान में रखकर चरवाहे ने कौव्वे की स्वतंत्रता ख़त्म कर दी ! उसकी उड़ान क्षमता सीमित कर दी गई ! कथन शेष यह कि कौव्वा दूसरे कौव्वों को सावधान करता रहता है कि जो भूल उसने की वो दूसरे कौव्वे  ना करें !


 

ये कथा, कौव्वे की नासमझी / उसकी परतंत्रता के लिए, उसे ही लांछित करती है ! कौव्वे ने खुद को खोकर ज्ञान पाया ! अब वो दूसरों को सावधान करता है, ठीक वैसे ही जैसे कि हम इन्सान करते हैं...

 

 

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

कुहू

मुद्दतों पहले की बात है जबकि कोयल / कोकिला अपने ही गीतोंअपने ही सुरों को बेहद पसंद करती थी और अक्सर दूसरे परिंदों से पूछती रहती कि कौन सी चिड़िया सबसे मधुर स्वर में गाती है ? दुर्भाग्यवश कोई भी परिंदामधुर स्वर में गाने वाले परिंदों का नाम लेते हुएकोयल का नाम नहीं लेता थासो कोयल ने सोचा कि शायद, सारे परिंदे उसका नाम भूल गए हैं ! इसलिए उसने तय किया कि वो उन सभी परिंदों को अपना नाम याद दिलाएगी ! कहते हैं कि तब से लेकर आज तक, वो बार बार सिर्फ अपना ही नाम लेती है कुहू...कुहू...कुहू...

 

ये सच है कि कोयल एक ही गीत गाती है , एक ही सुर साधती है, कुहू...कुहू...और यह राग, शताब्दियों से इंसानों की जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है ! ऐसा लगता है कि जैसे संगीत का कोई इंसानी घराना ! अपने सुर ताल लय प्रारूप पर एकाधिकार रखे हुए हो ! बिलकुल ऐसे ही कोयल का घराना दूसरे परिंदों की गायकी से हटकर है ! कोयल को प्रतीत होता है कि वो सारे परिंदों में सर्वश्रेष्ठ है ! उसे लगता है कि परिंदे कुछ भी गायें, स्वर माधुर्य में उससे उन्नीस ही होंगे ! वो आत्म मुग्ध है और इसकी पुष्टि स्वरुप अन्य परिंदों से पूछती रहती है कि सबसे मीठा गाने वाला परिंदा कौन है ?

 

अपनी प्रतिभा पर स्वयं गर्व करना और दूसरों से उस गौरव की पुष्टि का यत्न करना इंसानी स्वभाव है , सो इसे, आख्यान की नायिका कोयल के सिर मढ़ दिया गया है ! लगता है कि कोयल के बहाने कोई इंसान / इंसानी घराना / संगीत समूह अपनी ही बात कह रहा हो ! कोयल के स्वर माधुर्य पर अन्य परिंदों का मौन, बिलकुल इंसानों के जैसा है, जहां या तो ईर्ष्या है अथवा सोचा समझा तिरस्कार या फिर हास परिहास नुमा छेड़ छाड़ ? बहरहाल आख्यान की नायिका कोयल अन्य परिंदों को अपना नाम स्मरण कराने की गरज से वो ही राग छेड़ती जो उसके अपने नाम का उदघोष करे, तो क्या इन्सान ऐसा नहीं करते...  

रविवार, 21 अक्टूबर 2018

चंदू शिकरा

एक बार शिकरे ने खरगोश के साथ छल करने का फैसला किया, उसने कहा, आकाश स्थित भूमि में एक कार्यक्रम है और वो, खरगोश को वहां तक ले जा सकता है ! यह सुनकर खरगोश ने अपना गिटार लिया और शिकरे की पीठ पर बैठ गया ! जब वो दोनों ऊंचे आकाश में थे तो शिकरे ने खुद को हिलाकर खरगोश को जमीन पर गिराना चाहा !

     

इस पर खरगोश ने गुस्से में आकर अपना गिटार, शिकरे के सिर पर ज़ोर से दे मारा, इसके बाद वो, शिकरे के पंख खींच कर, उनके सहारे फिसल कर / ग्लाइड कर के, आहिस्ता आहिस्ता जमीन में उतर गया ! जब शिकरे ने अपने सिर में फंस गए गिटार को झटक कर निकालना चाहा तो उसके सिर के सारे बाल / पंख उखड़ गए और तब से, उसके वंशज भी गंजे सिर / चंदू होने लगे हैं...

 

ये कथा, ऊंचे आकाश में स्थित किसी भूमि के होने का संकेत देती है, कदाचित स्वर्ग जैसी कोई अवधारणा, जहां, किसी कार्यक्रम के आयोजन का हवाला मिलते ही खरगोश अपने लोभ का संवरण नहीं कर सका और अपने वाद्य यंत्र को लेकर मित्र शिकरे के साथ चल पड़ा ! खरगोश, शिकरे का मित्र है, किन्तु उसे अंदाज़ नहीं कि शिकरे के मन में उसके प्रति दुर्भावना पनप रही है और वो उसे ऊंचाई से गिराकर मारना चाहता है / आहार बनाना चाहता है !

 

मित्र-घाती शिकरा ऊंचाई पर पहुंचने के बाद खरगोश को असहाय मान लेता है और उसे नीचे ज़मीन पर गिराना चाहता है ! शिकरे की साजिश का यह दूसरा चरण था जबकि, प्रथम चरण में वो खरगोश को आकाश में ले जाने में सफल हो गया था ! खरगोश का गुस्सा, जान पर बन आई, स्थिति के समय का है, जहां उसे शिकरे की चालबाजी / धोखेबाजी का पता चल चुका है ! बहरहाल आख्यान यहां पर दो रोचक कथन करता है ! एक तो यह कि खरगोश गिटार को शिकरे के सिर पर जोर से मारता है जोकि उसे मिले धोखे का प्रतिकार जैसा है !

 

और दूसरा यह कि शिकरे के पंखों को नोच कर उनके सहारे, धरती पर उतरते वक्त लगने वाली चोट की आशंका को कम करना, खरगोश की विवेक शीलता/ प्रत्युत्पन्नमति का परिचायक है ! यानि कि जो पंख ऊंचाई पर ले जा सकते हैं, वे सुरक्षित नीचे उतार भी देंगे ! खरगोश छल का प्रतिकार करता है और अपने बुद्धि बल से सुरक्षित वापस लौटता है, किन्तु मित्र-द्रोही शिकरा, आगत पीढ़ियों तक अपने अपकृत्य के निशान छोड़ जाता है...      

 

  

शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

पहली कूक

तब जबकि सर्वत्र, भ्रम / अराजकता व्याप्त थी, बेनू पक्षी इस, ना कुछ, के ऊपर उड़ा और फिर उसकी सतह पर जा उतरा, उसकी पहली कूक से चहुं-दिश व्यापित सन्नाटा टूटा ! इस प्रथम ध्वनि से तय होना था कि संसार में क्या होगा और क्या नहीं ! कहते हैं कि बेनू पक्षी, महाकाय नील बगुले जैसा दिखता है किन्तु उसके पंखों की रंगत अग्नि की लौ जैसी और उसका सिर मनुष्यों के जैसा है !

मान्यता यह भी है कि बेनू पक्षी, मिस्री सूर्य देवता का सहयोगी अथवा स्वयं सूर्य देव है, उसके सिर पर मुकुट यही आभास देता है ! वो स्वयं को प्रतिदिन उगते सूर्य की किरणों के साथ नवीनीकृत करता, यानि कि उसमें स्वयं को मृत और पुनर्जीवित करने का सामर्थ्य है, बेनू जोकि फीनिक्स का मिस्री प्रतिरूप है, जो राख होकर भी पुनर्जीवित हो जाता है...

प्रस्तुत आख्यान, सृष्टि सृजन के पूर्व के भ्रम / अनिश्चय का कथन करता है ! उस समय के अराजक होने का आशय कदाचित यह है कि सृष्टि में नियम / कानून / कायदे भले ही निहित हों पर अस्पष्टता सतह पर मुखर / प्रकट  थी ! आख्यान इसे मौन समय में गिनता है ! वो कहता है कि तब प्रथम ध्वनि भी उद्भूत नहीं हुई थी ! सृष्टि में व्यापित अनिश्चय / मौन के दरम्यान बेनू की पहली कूक को वह सृष्टि की प्रथम ध्वनि मानता है !  

कथानुसार बेनू की कूक से तय हुआ कि संसार में क्या होना चाहिए और क्या नहीं ! आश्चर्य की बात है कि ना कुछ के ऊपर से बेनू की उड़ान और सतह पर उतरने से सृष्टि सृजन का सूत्रपात हुआ ! बेनू जो महाकाय नील बगुले के जैसा है किन्तु उसके पंखों की रंगत अग्नि के जैसी और सिर मनुष्यों की तरह का है ! तो क्या बेनू किसी परिंदे / मनुष्य / नील रंगत / अग्नि / कूक के विविधतापूर्ण, एक्य से धरती / सृष्टि के निर्माण का सांकेतिक प्रतीक है ?

आख्यान बेनू की तुलना मिस्री सूर्य देवता के सहायक अथवा स्वयं सूर्य देवता से करता है, कथा के प्रथम हिस्से में मानुष शीर्ष का कथन था पर दूसरे हिस्से में उसके साथ मुकुट भी जोड़ दिया गया है ! इतना ही नहीं उसकी ऊर्जा का नवीनीकरण स्रोत ही सूर्य बन जाता है ! वो बेमेल विविध तत्व / अंग युक्त परिंदा स्वयं नश्वर और स्वयं अमर है ! उसकी तुलना फीनिक्स के मिस्री संस्करण से भी की गई है ! बहरहाल ये आख्यान सर्वत्र भ्रम / अराजकता के कथन से शुरू होता है और कथान्त तक भ्रम / अनिश्चय और अराजकता का प्रतीक बना रहता है ... 

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

परिंदों के रंग

जल प्रलय के दौरान पानी में डूबती उतराती, ईश दूत नूह की नौका, बारिश के थमने के कई दिन बाद बमुश्किल धरती के किसी ऊंचे स्थान पर जा पहुंची जोकि पानी का स्तर कम होने के कारण पानी की सतह पर उभर आया था, तब नौका के मस्तूल पर मौजूद परिंदे, धरती को देखकर, इतने उत्साहित हो गए कि उन्होंने आकाश की ओर ऊंची उड़ान भर दी, जहां उन्हें इंद्र धनुष दिखाई दिया, उड़ान भरते परिंदे, इंद्र धनुष के विविध रंगों से होकर गुज़रे, जिसके कारण से उनके पंख / जिस्म, उन्हीं रंगों में रंग गए ! यानि कि किसी परिंदे की रंगत सुर्ख लाल, किसी की रंगत चटख नील वर्ण और कोई परिंदा सुनहरे / पीले रंगों में रंग गया, बस ऐसे ही सारे परिंदों ने अलग अलग रंगत पाई...  

 

 जल प्रलय का यह आख्यान सगरे जगत में बहु-प्रचलित और बहु-श्रुत आख्यान है, हिन्दू, ईसाई, मुस्लिम, यहूदी धर्मावलम्बियों में जल प्रलय के उपरान्त सिरजनहारे ईश के प्रिय दूत मनु या नूह की संततियों द्वारा धरती में इंसानों के पुनर्जीवन / पुनर्बसाहट की चर्चा की गयी है ! इतना ही नहीं अलास्का, यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया,चीन, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, कम-ओ-बेश पूरी दुनिया में जल प्रलय के मिथक कहे सुन जाते हैं ! इसके इतर कतिपय आदिम समाजों में इन्द्रधनुष के माध्यम से धरती, प्रकृति और परिंदों के रंग बिरंगे होने के कथन किये गए हैं ! किन्तु यह अनोखा घालमेल है जो मनु / नूह / अन्यान्य ईश प्रिय दूतों की नौका विचरण के अंतिम चरण में धरती के किसी उच्च शिखर पर नाव के जा टिकने की संभावना से उत्साहित परिंदों और इन्द्रधनुष को लेकर रंगों के बिखरने निखरने का कथन किया गया है !

 

कथा कहती है कि लम्बे समय तक हुई वर्षा से धरती जलमग्न हो गई थी और वर्षा थमने के बाद जल का स्तर घटने से, कोई पर्वत शिखर सर्वप्रथम इंसानों / परिंदों की पुनर्बसाहट की संभावनाओं को लेकर प्रकटित होता है, ऐसे में लम्बे समय तक नाव के भरोसे अथाह जल राशि में उतरते / तिरते / भटकते, जिन्दा रह पाए, इंसानों और परिंदों का उत्साह स्वभाविक है ! उनमें से अधिकांश मूलतः थल / वन / आकाश जीवी हैं अतः अटूट वर्षा / बादलों से मुक्त आकाश और जल मुक्त धरती के संकेत उनके लिए अनुकूल / सहज पुनर्जीवन का सन्देश लाते हैं ! यह समय सूर्य के खुलकर चमकने और वर्षा के समापन का संधिकाल है सो इन्द्रधनुष की उपस्थिति और उसके बिखरे निखरे रंगों के दरम्यान उड़ान भरते, उत्साही परिंदों के रंगमय हो जाने का उल्लेख, प्रकृति और प्राकृतिक जीव जंतुओं के परस्पर अनुकूलतम हो जाने के जैसा है...  

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

निर्विवाद मुखिया

एक बार की बात है, जब कौव्वा, चील, उल्लू और बड़ा नील बगुलापरिंदों के मुखिया बनने की होड़ में लगे हुए थे ! बैठक के दौरान ज्यादातर परिंदों का विचार था कि किसी छोटे परिंदे को यह मौक़ा मिलना चाहिए, लेकिन नील बगुला इस बात से सहमत नहीं था, क्योंकि वो स्वयं भी मुखिया बनने का इच्छुक था ! बहरहाल बैठक में बगुले को परीक्षा स्वरुप यह जिम्मेदारी दी गयी कि वह सारे परिंदों को मछलियां वितरित करे ! इस पर बगुले ने तय किया कि वो परिंदों को उनके आकार के हिसाब से मछलियां बांटेगा, यानि कि छोटों को छोटा और खुद जैसे बड़ों के लिए बड़ा टुकड़ा !

चील ने चिल्लाकर इस निर्णय का विरोध किया और मछली के एक बड़े टुकड़े पर अपने पंजे जमा दिए ! चूंकि चील और बगुला सभी परिंदों के लिए न्याय सम्मत नहीं थे और उनमें अधैर्य / उतावलापन भी था, सो उन दोनों को प्रतियोगिता से बाहर का रास्ता दिखा दिया ! अब, कौव्वा और उल्लू  ही मुखिया बनने की दौड़ में शेष रह गए थे ! इसके बाद ज्यादातर परिंदों ने कहा कि, उल्लू सिर्फ रात में जागता है तो फिर दिन में परिंदों की रक्षा और नेतृत्व कैसे करेगा ? यही वज़ह थी कि सारे परिंदों ने सर्वसम्मति से कौव्वे को अपना मुखिया चुन लिया...

हमें यह विश्वास है कि लोक आख्यानों में तत्कालीन समाज की पर्यावरणीय समझ और संचित ज्ञान / बोध का प्रकटीकरण होता है ! जैसा कि इस आख्यान में परिंदों के हवाले से निर्विवाद नेतृत्व की चर्चा और विविध वर्णी / बहु-जातीय समाज में आकार के बड़प्पन से छुटकारे की कामना के अंतर्गत नन्हें परिंदों को नेतृत्व देने की वकालत की गयी है, लेकिन बड़े परिंदे अपने दावे का परित्याग करने के लिए सहमत नहीं थे ! बहरहाल नेतृत्व के परीक्षण का दांव खेला गया, जिसके फलस्वरूप नील बगुला और चील, निज स्वार्थ सिद्धि की भावना के कारण स्पर्धा से बाहर हो गए ! बगुले और चील का निर्णय / व्यवहार / स्वभाव न्यायसंगत नहीं था और उनमें धैर्य की नितांत कमी थी !

 

नील बगुले और चील की समूहगत अस्वीकार्यता के बाद, नेतृत्व की होड़ में शेष रह गए उल्लू और कौव्वे की दावेदारी का निराकरण दिलचस्प है ! जन / परिंदा समूह मानता है कि उल्लू निशाचर है और वो दिन भर समाज के हित रक्षण हेतु उपलब्ध नहीं रहेगा अतः उसकी तुलना में कौव्वा बेहतर नेतृत्वकर्ता सिद्ध होगा ! अगर हम ध्यान दें तो नेतृत्व के चयन के लिए गढ़े गए छोटे छोटे उद्धरण / तर्क, नेतृत्व की दावेदारियों को अस्वीकार करने अथवा स्वीकार करने के लिए आधारभूत मानदंडों का कार्य करते हैं और इनसे परिंदों / मनुष्यों के सामाजिक जीवन के सम्बन्ध में समूह की सोच / चिंतन धारा उजागर होती है ! ज्ञान का पता चलता है ! बहरहाल इस कथा को बांचने से प्रतीत होता है कि लम्बे समय तक परिंदे और इंसान एक जैसा सोचते आये हैं ! हरेक दिन काम का और रातें आराम की...

 

 

बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

गंजा राजा


एक दिन सारे परिंदों ने तय किया कि उन्हें एक राजा की ज़रूरत है और राजा, वो परिंदा बनेगा जो सबसे ऊंचा उड़ेगा ! अगली सुबह सारे प्रतिस्पर्धी एक मैदान में इकट्ठा हुए और उल्लू की सीटी बजते ही आकाश की ओर उड़ चले, जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ती जा रही थी, छोटे छोटे परिंदे थक कर वापस लौटने लगे, क्योंकि उन्होंने इससे पहले कभी भी इतनी ऊंची उड़ान नहीं भरी थी ! जल्द ही प्रतिस्पर्धा में केवल तीन परिंदे बाक़ी रह गए, एक तो गिद्ध, दूसरा उकाब और तीसरा बाज़ ! चूंकि प्रतिस्पर्धा के दौरान सूरज बेहद तप रहा था, सो बाज़ भी प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गया !

 

इसके बाद उकाब और गिद्ध, ऊपर की ओर उड़ते रहे, यहां तक कि सूरज की गर्मी से दोनों पक्षियों के सिर के बाल / पंख झुलसने लगे थे और उनके सिरों में गंज दिखाई देने लगी थी, कुछ देर बाद उकाब भी गर्मी की ताब ना ला सका और होड़ से बाहर हो गया, जबकि गिद्ध लगातार ऊंचा उड़ता रहा, यहां तक कि उसके जिस्म के ज्यादातर पंख भी जल गए ! तब से गिद्ध,पक्षियों का राजा कहलाया, हालांकि उस दिन के बाद से उसके बच्चे भी गंजे सिर और नुचे / जले हुए पंखों वाले शरीर के साथ पैदा होते हैं...

 

विवेचनाधीन आख्यान, राजनैतिक अथवा सैन्य या फिर सामाजिक, धार्मिक नेतृत्व के लिए गढ़ा गया प्रतीत होता है, जिसमें विजेता शारीरिक क्षति को सहकर भी, अन्य प्रतियोगियों की तुलना में स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करता है ! वो निकटतम शारीरिक दक्षता वाले अन्य परिंदों की तुलना में अपने धैर्यवान होने को प्रमाणित करता है ! कथा संकेत के अनुसार परिंदों का समाज विजातीय समाज है, जहां राजतांत्रिक परम्पराओं के अनुरूप, नेतृत्व की तलाश है और इस तलाश में सभी आकांक्षी-जनों को अपनी क्षमता प्रदर्शन का समान अवसर प्राप्त होता है ! कथा में यह उल्लेख नहीं मिलता कि प्रश्नाधीन समाज में विजातीयता कोई मुद्दा है ! ज़ाहिर है कि कथा उक्त समाज में व्यापित / मौजूद सामाजिक सहिष्णुता का प्रकटन करती है !

 

आख्यान में रोचक ढंग से प्रतिस्पर्धारत परिंदों को अधिकतम ऊंचाई / उच्चता / श्रेष्ठता की ओर जाना है ! उन्हें विपरीत परिस्थितियों यानि कि तीव्र ताप को सहन करना है ! छोटे परिंदों की सीमित शारीरिक क्षमता, उन्हें शीघ्र ही स्पर्धा से बाहर होने को विवश कर देती है किन्तु तीन ऐसे परिंदे, जिनकी उड़ान सामर्थ्य लगभग समतुल्य है, होड़ में बने रहते हैं !  इन तीनों में बाज, तीव्र ताप को सहन नहीं कर पाने के कारणवश सबसे पहले होड़ से बाहर हो जाता है ! जबकि उकाब और गिद्ध में लम्बे समय तक शक्ति प्रदर्शन चलता रहता है ! दोनों तीव्र ताप में झुलसते हैं और उनके शरीर रोम विहीन होने लगते हैं ! बहरहाल उकाब के रण छोड़ने तक गिद्ध के ज्यादातर बाल झुलस चुके होते हैं और वो लगभग गंजा हो कर भी स्पर्धा का विजेता बनता है !

 

कथा सार ये है कि शीर्ष पद / नेतृत्व हासिल करना, आपके धैर्य और शारीरिक क्षमता पर निर्भर करता है ! आप अपने पंख,अपने बाल, अपने ख़ूबसूरत सिर को बदसूरती में बदल सकते है ! आपकी आगत पीढियां शारीरिक बदलाव को वर्षों तक भुगतने को अभिशप्त हो सकती है पर श्रेष्ठता हासिल करना हो और खासकर विजातीय समाज में सबका सम्मान, तो ये मोल अधिक भी नहीं है ...  

 

 

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

सखियां



गुज़रे ज़माने की बात है जब कि मां परिंदों को अपने बच्चों के लिए पंखों वाली पोशाक सिलना पड़ती थी ! दुर्भाग्यवश मुर्गी मां की सुई खो गई थी सो उसने अपनी सखि, बाज़ मां से सुई उधार ले ली, लेकिन वो समय पर बाज़ मां को उसकी सुई वापस करना भूल गई ! बहरहाल बाज़ मां जब भी अपनी सुई वापस लेने आती, मुर्गी मां अपने बच्चों सहित छुप जाया करती !

 

मुर्गी मां से मिलने में कई बार नाकाम रहने के बाद बाज़ मां को बेहद गुस्सा आया और उसने सारे जंगल में ये ऐलान कर दिया कि, अगर वो अपने बच्चों के लिए पंखों वाली पोशाक नहीं सिल पाई तो वो, मुर्गियों से उनकी पंख पोशाक छीन लिया करेगी, इसीलिए तब से लेकर आज तक बाज़ परिजन, मुर्गियों का शिकार करते हैं और मुर्गियां अपने पंजों से जमीन खुरचती और उसमें वापस मिट्टी भरती रहती हैं ताकि उन्हें बाज़ मां की खोई हुई सुई मिल जाए... 

 

इस आख्यान को सीधे सीधे देखें तो लगता है कि बाज के द्वारा मुर्गियों का शिकार करने और बाज से जान बचाने के लिए, छुप जाने वाली मुर्गियों को लेकर ये किस्सा प्रसरित किया गया होगा ! इस दृष्टि से ये कथा सपाट बयानी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है ! किन्तु कथा को गौर से पढ़ा जाए तो इसके सांकेतिक निहितार्थ बेहद महत्वपूर्ण दिखाई देंगे ! ऐसा लगता है कि कथा मित्रवत संबंधों के शत्रुवत हो जाने को लेकर कही गई है ! ये आख्यान अमानत में ख्यानत की धुरी पर घूमता है !

 

आख्यान में वर्णित वस्त्र विन्यास, उस समाज को संबोधित हैं जहां पर प्रकृति से प्राप्त कच्चे माल को जस का तस इस्तेमाल कर लिया जाता था, यानि पहले पहल कपास / रेशम से धागे बनाना और फिर धागों से कपड़ों की बुनाई जैसी कोई लम्बी चौड़ी कवायद नहीं ! इस समाज में वस्त्रों की सिलाई, हाथों और सुई के प्रयोग पर निर्भर थी, जिसमें सौन्दर्य बोध पंखों के प्रयोग पर आधारित दिखाई देता है और बच्चों के लिए कपड़े सिलना मां  का दायित्व !

 

मुर्गी और बाज सखियां अगर सांकेतिक रूप से इंसान मान ली जायें तो कथा संकेत यह है कि वस्त्र विन्यास का आधारभूत उपकरण, संबंधों की निकटता और पारस्परिक लेन देन पर आधारित था ! ऐसे में उधार लिए गए, अत्यंत महत्वपूर्ण उपकरण / सुई की गुमशुदगी मुर्गी की लापरवाही मनाई जायेगी और फलस्वरूप बाज मां की आक्रामक प्रतिक्रिया उसके बच्चों के प्रति उसके दायित्व बोध का प्रकटन करेगी ! यानि कि बाज मां अपने बच्चों के वस्त्र इसलिए नहीं सिल पा रही क्योंकि उसका भरोसा टूटा है सो उसकी प्रतिक्रिया स्वभाविक लगती है !

 

परिंदों के माध्यम से कहे गए इस आख्यान को हम मानवीय समूहों में भी यथावत लागू कर सकते हैं ! जहाँ माता और उनकी संतानों के समुचित पालन पोषण विधान और मित्रवत संबंधों की टूट से उपजी शत्रुता सहज है ! एक मां अपनी लापरवाही के लिए मुंह छुपाये घूमती है और दूसरी अपने विश्वास के टूटने का बदला चाहती है ! इस आख्यान में सबसे रोचक कथन है मुर्गी मां के द्वारा पंजों से जमीन को खुरच कर धूल में गुमशुदा संभावनाओं को तलाश करना, गोया कोई इंसान मां संबंधों की पुनर्स्थापना / शत्रुता के समापन / अपने अपराध बोध से मुक्ति के लिए घर के कबाड़ / कपड़ों की उलट पुलट कर, खो गयी अपरिहार्यता को ढूंढ रही हो...  

 

 

सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

घोंसले

सभी परिंदे जानते थे कि मैगपाई घोंसला बुनने में उस्ताद / निपुण है सो उन्होंने मैगपाई से अनुरोध किया कि वो उन्हें घोंसला बनाना सिखा दे ! बहरहाल मैगपाई ने सबसे पहले तिनकों से घोंसला बुना जिसे कुछ परिंदों ने देखा और उड़ गये, हालांकि मैगपाई ने कहा कि मैंने अभी पूरी शिक्षा नहीं दी है, इसके बाद उसने घास से घोंसला बुना जिसे देख कर कुछ और परिंदे उड़ गये इस पर मैगपाई ने फिर से कहा कि मैंने अभी तक अपना काम पूरा नहीं किया है ! इस बार उसने घोंसले में कीचड़ / मिट्टी का लेप लगाया ! तब से आज तक सारे परिंदे अलग अलग तरह से घोंसले बनाते हैं, क्योंकि उनमें से ज्यादातर ने रॉबिन और अबाबील की तरह से टुकड़ा टुकड़ा ज्ञान प्राप्त किया था...

ये कथा निपुणतम शिल्पी से आधा अधूरा ज्ञान प्राप्त करने वाले शिष्यों को संबोधित है ! शिष्यों / परिंदों  को भली भांति पता था कि मैगपाई घोंसला बनाने में सर्वश्रेष्ठ  है ! अस्तु उन सभी ने मैगपाई से स्वयं ही आग्रह किया कि वो उन्हें अपना ज्ञान दे / उन्हें अपना शिष्य बनाना स्वीकार कर ले ! मैगपाई इस आग्रह पर सहमत थी और उसने अपनी कला अन्य परिंदों को देने का निश्चय कर लिया ! गुरु ने सर्वप्रथम तिनकों का उपयोग कर घोंसला बुना जिसे देख और प्राप्त ज्ञान को पर्याप्त मानकर कुछेक उतावले परिंदे कार्यशाला से पलायन कर गए हालांकि गुरु ने उनसे कहा कि मैंने अभी तक पूरी शिक्षा प्रदान नहीं की है ! पर ये परिंदे जल्दबाजी में थे और इन्होने अपनी शिक्षा पूरी नहीं की !

 

इसके बाद मैगपाई ने घास से घोंसला बुना, जिसे देख कर कुछ परिंदों ने अपनी शिक्षा पूर्ण मान ली और कार्यशाला का परित्याग कर दिया !  यद्यपि मैगपाई ने इन शिष्यों से कहा कि मैंने अभी तक अपना काम पूरा नहीं किया है लेकिन परिंदों में धैर्य नहीं था और वे अधूरी शिक्षा को लेकर गुरु का साथ छोड़ गए ! इसके बाद मैगपाई ने घोंसले में कीचड़ / मिट्टी का लेप लगाया और अपना प्रशिक्षण दायित्व सम्पन्न किया ! कहते हैं गुरु से ज्ञान प्राप्ति के भिन्न चरणों में विदाई ले चुके परिंदे अपने ज्ञान के अनुसार घोंसले बनाते हैं ! इनमें से अधिकांश ने राबिन और अबाबील की तरह से टुकड़ा टुकडा ज्ञान प्राप्त किया था इसलिए ज्यादातर परिंदे अलग अलग तरह से घोंसला बुनते है !

 

कथा कहती है कि शिक्षा प्राप्ति धैर्य का विषय है और इसकी पूर्णता गुरु की सम्मति पर निर्भर होती है ! बहरहाल आख्यान में उल्लिखित शिष्य परिंदों के धैर्य का स्तर उनकी कला के स्तर का निर्धारण करता है ! यदि इस कथा को मानवीय सन्दर्भों में आकलित किया जाए तो गृह का निर्माण प्राकृतिक आपदाओं और अन्य दैनिक संकटों के विरुद्ध मनुष्य को ना केवल सुरक्षा कवच प्रदान करता है बल्कि उसके निर्माण में मौजूद सौन्दर्य बोध उन मनुष्यों की सुरुचि सम्पन्नता / दक्षता का परिचायक भी होता है ! अतः सगरे जगत के मनुष्यों के आवास की निर्मिति में व्यापित भिन्नताएं उनकी शिक्षा का आभास कराती है भले ही इसकी पृष्ठभूमि में अन्यान्य आर्थिक और परिस्थति जन्य कारण भी मौजूद हों...

 

 

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

लून


बहुत पहले की बात है जब पशु और पौधे भी इंसानों की तरह से, वस्त्र / वेशभूषा धारण करते और इंसानों के जैसे कार्य किया करते थे ! एक दिन लून,चमगादड़ और कटीली झाड़ी ने व्यवसाय करने का निर्णय लिया! चमगादड़ ने बैंक से रुपया उधार लिया और फिर उन्होंने ऊनी कपड़े खरीदकर सुदूर प्रदेश / स्थान देखने की नीयत की ! जब वे नौकायन कर रहे थे, तो भयंकर तूफ़ान आया जिसके कारण से उनकी नौका टूट गई !

 

जैसे तैसे वे किसी, सुदूर  किनारे / तट पर जा पहुंचे और फिर तीनों साझीदार, वहीं ठहर / बस गये ! कहते हैं कि चमगादड़ उस दिन के बाद से केवल रात में बाहर निकलती है ताकि वो, उसे उधार देने वालों से मुंह छिपा सके जबकि लून पानी में छिपी रहती है और कंटीली झाड़ी वहां से गुज़रने वाले लोगों के कपड़े पकड़ती रहती है ताकि ऊनी कपड़े इकठ्ठा कर सके जोकि उसने तूफ़ान में खो दिये थे...

 

किसी आख्यान के निहितार्थ खोजना, कथाकार समूह के सामाजिक जीवन की गहन पड़ताल के अवसर प्रदान करता है ! विवेचनाधीन आख्यान पशु और पौधों के इंसानों जैसा वस्त्र विन्यास धारण करने के कथन के साथ शुरू होता है और यह कथा ऐन इंसानों के स्वभाव और आचरण में रची बसी दिखाई देती है ! यह विश्वास करना कठिन है कि लून, चमगादड़ और कटीली झाड़ी, वास्तव में इस कथा के किरदार हैं बल्कि यह विश्वास करना आसान है कि कथा के पात्र, अंततः इंसान हैं, जिनका स्वभाव लून, चमगादड़ और कटीली झाड़ी के जैसा है !

 

प्रतीति यह है कि कथा भले ही मनुष्य से इतर जीवों और वनस्पति को संबोधित करती दिखाई देती हो, किन्तु कहनीयता में इसका सरोकार भिन्न स्वभाव, व्यक्तित्व वाले इंसानों से हटकर नहीं है ! आख्यान कहता है कि तीन मित्र जो कि व्यवसाय करना चाहते हैं, उनमें से एक निशाचर या अन्धकार प्रिय, कदाचित मूढ़ मति व्यक्ति है, जिसने अपने दोस्तों के साथ व्यवसाय करने की नीयत से बैंक से ऋण  ले डाला है ! वे सभी निज भूमि के बजाय किसी अज्ञात प्रदेश में व्यवसाय करने के इच्छुक है ! उन्हें मौसम और रास्ते का सम्यक बोध नहीं, वे दिशाहीन हैं और अनजान लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए भटक जाते हैं !

 

कथा संकेत यह है कि नौकायन सह तूफ़ान विपरीत परिस्थितियां हैं जिन्हें तीनों मित्रों ने व्यवसाय प्रारम्भ करने से पहले आकलन में सम्मिलित नहीं किया था ! बहरहाल वे बर्बाद हैं, अपनी निज भूमि से दूर कहीं अन्यत्र निवास रत हैं ! चूंकि चमगादड़ ने ऋण लिया था जिसे चुकाने की स्थिति में वो नहीं है सो उधार दाताओं से मुंह छुपाने के सिवा उसके पास कोई अन्य रास्ता भी शेष नहीं ! दूसरी ओर लून संभवतः जल क्षत्रिय या पानी के कर्म में लिप्त रहने वाला कोई इंसान है जो अपनी सुविधानुसार पानी में छुप कर अपने दिन गुजारता है ! इसी तरह से विपरीत परिस्थितियों में अपना सब कुछ खो चुका कटीली झाड़ी के जैसे स्वभाव वाला इंसान राहगीरों से छुट पुट भरपाई करने के कृत्य में लीन है !

 

आश्चर्यजनक जनक रूप से यह आख्यान बेहद रोचक किन्तु कथनी, करनी और समझ में बेमेल स्वभाव वाले मित्रों को समर्पित है...

 

 

 

शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

अबाबील

जर्मन लोक विश्वास है कि किसी जमाने में स्वैलो / अबाबील बहुत सुरीली थी, लेकिन उसका ख्याल था कि लकड़ियों और जंगल के दरम्यान गायकी, बे-फ़िज़ूल है सो उसने अपना परिवार इकट्ठा किया और शहरों की ओर चल पड़ी ताकि वहां के लोग, उसकी सुर साधना को सुन सकें...मुश्किल यह थी कि जंगलों की तरह से शहरों में तिनके आसानी से मयस्सर ना थे, जिनसे कि वो अपना घोंसला बना पाती !

 

हालांकि बरसात के समय उसे घोंसला बनाने के लिये काफी सारा कीचड़ मिल जाता जिससे कि वो अपना घोंसला बना ले ! ...लेकिन शहर के लोगों के पास स्वैलो के गीत सुनने का वक्त नहीं था, वहाँ शोरगुल बहुत था और लोग अक्सर अपने कामों में व्यस्त बने रहते ! हालात को देख कर स्वैलो वहाँ के शोर से अधिक ऊंचे सुर में गाने की कोशिश करने लगी, जिसकी वज़ह से उसके अपने मूल सुर, ऊंचे सुरों में दब गये / घिस गये / कर्कश हो गये और कालांतर में वो गाना भूल गई...  

 

यह कथा, निष्णात / हुनरमंद को श्रोताओं की कमी से श्रोता आधिक्य की ओर आकर्षित करने जैसे संकेत देती है, जिसके तहत हुनरमंद अबाबील अपनी कला के प्रदर्शन के लिए शांत श्रोता स्थल के परित्याग के बाद शोर गुल और भीड़ भरे इलाके का त्रुटि पूर्ण चयन कर बैठती है ! हालांकि जंगल के बरअक्स शहर में उसके अनुकूल गृह / घोंसला निर्माण के समुचित साधन मयस्सर नहीं हैं, ना तो तिनके और ना ही बरसात के मौसम को छोड़ कर, किसी और मौसम में, तिनकों को जोड़ने के लिए पर्याप्त कीचड़ !

 

शहर की जीवन दशाएं शोर गुल, चिल्लपों आपा धापी से परिपूर्ण होने के कारण से, वहां पर जंगल जैसे एकान्तिक / पुर सुकून, सुर साधना के योग्य स्थल नहीं थे ! इसलिए अबाबील को अपनी गायकी में, शहरी श्रोताओं के अनुकूल, ध्वन्यात्मक संशोधन करना पड़े / तेजतर गायकी का सहारा लेना पड़ा ! ज़ाहिर है कि उसका कंठ, ध्वनि विस्फोट के लिए सहज नहीं था इसलिए उसे अपने मूल स्वर स्थायी रूप से खोना पड़े ! अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि अबाबील के सुर उचित मार्ग से भटक गए !

 

यहां यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि शहर के लोगों की व्यस्तताएं भिन्न थीं, उनके पास अपने कामों को छोड़ कर अबाबील की गायकी से लुत्फंदोज़ होने की फुर्सत भी नहीं थी, इसलिए अबाबील उन्हें आकर्षित करने के लिए अपना सुरीलापन खो बैठी ! इस आख्यान से हम इस निष्कर्ष तक भी पहुंच सकते हैं कि कला निष्णात को भ्रमित करने वाले सवालों में से वो उत्तर चुनने चाहिए जो उसकी कला के अनुकूल हों ! कला को विरूपित करने वाले निर्णयों में कला और कलावंत दोनों के गुम हो जाने का ख़तरा बना ही रहता है !

 

धुरंधर गायक को अपनी श्रेष्ठता और मौलिकता का संरक्षण करना चाहिए या उसे प्रतिकूल स्वभाव वाले श्रोताओं के सामने प्रस्तुत करने का निर्णय लेना चाहिए ? कलात्मक अभिव्यक्ति के सम्मुख श्रोताओं की संख्यात्मक न्यूनता या आधिक्य, श्रोताओं की गुण ग्राह्यता से प्रभावित होना चाहिए अथवा नहीं ? इस आख्यान के वाचन से यह स्पष्ट निष्कर्ष निकलता है कि अबाबील के निर्णयों का प्रभाव उसकी जीवन दशाओं के साथ ही साथ उसकी गायकी पर भी पड़ा ! उसने निर्णयात्मक भूल की और उसे खामियाजा भुगतना पड़ा !

 

कथा कहती है कि कलावंत को भ्रामक परिस्थितियों में सोच समझ कर निर्णय लेने चाहिए क्योंकि त्रुटिपूर्ण निर्णयों से केवल उसकी व्यक्तिगत क्षति ही नहीं होती बल्कि एक श्रोता समूह भी उसकी कला के क्षय / कला की स्थायी गुमशुदगी को भुगतने के लिए अभिशप्त हो जाता है! बहरहाल कथन शेष यह कि ये आख्यान अबाबील के बहाने इंसानों पर भी चोट करता चलता है ...