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रविवार, 8 जुलाई 2018

किन्नर - 34

एट्टिस, चरवाहों और वनस्पतियों का फ्रीजियन देव है, जिसकी पहचान एक खूबसूरत युवा की है । उसे ग्रीक गल्पों में वनस्पतियों  की शारदेय मृत्यु और वासंती पुनर्जीवन के निरंतर चक्र के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है । फ्रीजिया में, उसकी पूजा का उल्लेख 5000 ई.पू. से लेकर रोम में, सामान्य काल 400 तक मिलता है । ग्रीक समाज में उसके सिंहासन के लिये फर की लकड़ी का उपयोग किया जाता था जबकि रोमन साम्राज्य के सिक्कों और मठों में उसके चित्रण, रोमन समाज में उसकी लोकप्रियता का बयान करते हैं । गल्प कहती है कि एट्टिस, देवी सायबेले की तुलना में युवा और संस्तरण क्रम में छोटा देव माना गया है यद्यपि उसे सायबेले का विशिष्ट मुख्य पुरोहित मानने वाले लोगों की कमीं भी नहीं है । बहरहाल सायबेले की पूजा करने वालों की संख्या एट्टिस की पूजा करने वाले लोगों से अधिक नहीं होगी । यहां यह उल्लेख कर देना उचित होगा कि अन्यान्य गल्प कथाओं में, कहीं पर उसे एगडिस्टिस अथवा कलौस का पुत्र माना गया है, कहीं पर सायबेले को उसकी मां कहा गया है, किसी अन्य संस्करण में उसे नद्य जल परी नाना का पुत्र कहा गया है जोकि एगडिस्टिस के भंग, प्रजनन अंग से निकले अखरोट के बीज से गर्भवती हुई थी, इस गल्प में देव एट्टिस को जन्मजात किन्नर कहा गया है । ये गल्प कथाएं, जहां एक ओर एट्टिस के प्रति हमें संभ्रमित करती हैं, वहीं रोचक विवरण साम्य यह है कि एट्टिस, फ्रीजिया की व्यापारिक नगरी पेसिनोस में जन्मा था जोकि एगडिस्टिस  पर्वत के निकट स्थित थी ।
एट्टिस के सम्बन्ध में बहुप्रचलित गल्प कहती है कि एट्टिस और सायबेले की पूजा, एक साथ चलते चलते, समय के किसी मोड़ पर पृथक पृथक हो गई है हालांकि एट्टिस का नाम, सायबेले के ग्रीक-ओ-रोमन पूजा क्षेत्र प्रसरण का, अनुगमन करता ही रहा यानि कि जहां देवी सायबेले पहुंची वहीं एट्टिस का पुनरावतार हुआ । एट्टिस के मिथक पर लीडियन प्रभाव भी देखने को मिलता है । कहते हैं कि एट्टिस जन्मना फ्रीजियन गॉल था और लीडिया आगमन पर देवी सायबेले से मिला जिसके बाद उनकी नजदीकियां बढ़ गईं जिससे देवता ज्यूस बेहद क्रुद्ध हुआ / ईर्ष्यालू हो उठा और उसने लीडिया की फसलों को नष्ट करने के लिये एक विशाल सूकर भेजा जिसने लीडिया की फसलें बर्बाद कर दीं । इस समय अनेकों लीडियंस के साथ एट्टिस भी मारा गया, इसी कारण से पेस्सीनस में रहने वाले गॉल आज भी सूकर का मांस नहीं खाते हैं । माना जाता है कि सायबेले के गल्ली / किन्नर पुरोहितों का सिलसिला एट्टिस ने शुरू किया । रोमन साम्राज्य में पेस्सीनस के रहने वाले गल्ली पुरोहितों के राजनैतिक प्रभुत्व का कारण भी संभवतः यही था । यह विश्वास किया जाता है कि गल्ली बनने की पृष्ठभूमि में स्वयं को एट्टिस की परम्परा से जोड़ कर रखने का विचार प्रमुख है ।
इस गल्प के रोमन संस्करण के अनुसार सायबेले ही एगडिस्टिस थी जोकि धरती पर ज्यूपिटर / गुरु के बिखरे शुक्राणुओं से पैदा हुई थी चूंकि देवताओं ने एगडिस्टिस का बंध्याकरण कर दिया तो वो देवी सायबेले में तब्दील हो गई । एगडिस्टिस के बंध्याकरण के समय उसके पौरुष के जो भी अंश धरती पर गिरे, वहाँ एक फलदार वृक्ष उग गया, उस वृक्ष के फल / अखरोट को खाने से जलपरी नाना गर्भवती हो गई और परिणाम स्वरुप एट्टिस का जन्म हुआ चूंकि कुंवारी मां जलपरी नाना अपने पिता से भयभीत थी सो उसने शिशु एट्टिस का परित्याग कर दिया जिसे चरवाहों द्वारा पाला गया और जो बड़े होकर, पुरुष देव से स्त्री देवी हो चुकी सायबेले का प्रेमी बन गया । एक प्रकार से वो, देवी सायबेले के अतीतकालीन पुरुष अवतार एगडिस्टिस और जलपरी नाना की संतान था । इस गल्प को सुनते हुए, भारतीय सन्दर्भ, कुंती के पुत्र कर्ण का ख्याल अकस्मात ही जेहन में कौंधता है हालांकि कर्ण की युवावस्था के प्रणय प्रसंग युवा एट्टिस के प्रणय प्रसंग से साम्य नहीं रखते । पर एट्टिस की कुंवारी मां नाना का जलपरी होना और अविवाहित कुंती द्वारा परित्यक्त कर्ण को नदी में बहाया जाना एक रुचिकर संयोग है ।
बहरहाल इस गल्प के अनुसार युवा देव एट्टिस, देवी सायबेले का प्रणय संगी था जोकि देवी सायबेले से वचनबद्ध था कि वो सदैव विश्वसनीय प्रेमी बना रहेगा । जहां एट्टिस, देवी सायबेले के प्रणय का व्रती था, वहीं उसे एक अप्सरा सैग्रिटिस / सैग्रिस से प्रेम हो गया और उसने अपनी अप्सरा प्रेमिका से ब्याह करने का निर्णय ले लिया । जब देवी सायबेले ने इस ब्याह की खबर सुनी तो उसे एट्टिस द्वारा प्रणय पवित्रता भंग करने / वचन तोड़ने को लेकर बहुत क्रोध आया । वो विवाह स्थल पर जा पहुंची उसके क्रोध के प्रभाव से एट्टिस मनोविक्षिप्त हो गया और विवाह में आये अन्य आगंतुकों को बेहद कष्ट हुआ । मनोविक्षिप्तता की दशा में एट्टिस पर्वतों के ऊपर उड़ चला जहां वो एक फर के वृक्ष के नीचे रुका और उसने स्वयं का बंध्याकरण कर डाला जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई । सायबेले ने जब एट्टिस को मृत पाया तो उसे अपने कृत्य पर पछतावा हुआ शोकाकुल होकर उसने विलाप किया और फिर ज्यूपिटर / गुरु से अनुनय विनय की, कि वे एट्टिस को पुनर्जीवन प्रदान करें । ज्यूपिटर / गुरु ने घोषणा की, कि फर का वृक्ष सदैव पवित्र माना जाएगा और इसी वृक्ष की तरह से एट्टिस का जियेगा ।
जहां एट्टिस का रक्त बिखरा था वहाँ पहला जामुनी / नील पुष्प जन्मा ।इसी गल्प में आंशिक संशोधन देखें तो पायेंगे कि एट्टिस को सायबेले के पिता मेओन ने मार डाला था क्योंकि उन्हें अपनी पुत्री और एट्टिस के निकटाभिगमन का निषेध करना था । बहरहाल एट्टिस का पुनर्जीवन दोनों ही गल्पों में समान कथन है । सो एट्टिस, प्रकृति में मृत्यु और पुनर्जीवन की सतत सांकेतिकता का गल्प है जो किन्नर हुआ और फिर से जी उठा । निकटाभिगम के नियमों का उल्लंघन कर बंजर हुआ जीवन एक बार फिर से हरिया उठा । बहरहाल अनेकों विद्वान इसे जीसस क्राइस्ट का ग्रीक-ओ-रोमन संस्करण मानते हैं जोकि स्वयं कुंवारी मां के गर्भ से जन्मे सलीब पर चढाये गये और फिर से जी उठे अंततः वे भी परमात्मा के पुत्र थे ।

बुधवार, 13 जून 2018

किन्नर - 15


ईसाईयत के प्रारम्भिक दिनों में कामुकता और दैहिकभौतिक सुखों के मुद्दे गहन चर्चा का विषय हुआ करते थे । वे अक्सर जागतिक सुखों के परित्याग की बातें करते ताकि जीसस के जीवन दर्शन का अनुकरण किया जा सके । मैथ्यू 19:12 में उल्लेख करता है कि ‘जो अपनी माता की कोख से किन्नर जन्में हैं और वे जिन्हें मनुष्यों ने किन्नर बनाया है अथवा वे जो स्वर्ग के राज्य  हेतु स्वयं किन्नर हो गये हैं । वे जो इसे प्राप्त करने में सक्षम हैंउन्हें इसे प्राप्त करना चाहिए’  

उन दिनों अनेकों धर्मशास्त्री ये मानते थे कि सच्चे ईसाई को स्वर्ग की आशा में ब्रह्मचारी होना चाहिए । सामान्य काल 185 से 254 के ग्रीक धर्मशास्त्री ओरिगेन को ये तर्क उचित लगता था सो उसने स्वयं को बंध्याकृत कर लिया और एक निरपेक्ष निर्विकार ब्रह्मचारी अध्येता के तौर पर स्थापित होने का मार्ग चुना । तकरीबन पच्चीस वर्षों तक चर्च के इतिहासकार यह मानते रहे कि उसने लड़कियों को शिक्षा देते समय स्वयं की यौन लालसा से मुक्ति के लिये यह कार्य किया था ।

किन्नर ओरिगेन के दावे के अनुसारउसने स्वयं का बंध्याकरणनितांत आध्यात्मिक और धार्मिक कारणों से किया थाकिन्नर हो कर उसनेउस धारणा को पुष्ट करने की बात कहीजिसके अंतर्गत एक सच्चे ईसाई को स्वर्ग की आशा में ब्रह्मचारी हो जाना चाहिएउसका ख्याल था कि उसने जागतिक सुखों का परित्याग कर दिया है और वो जीसस के जीवन दर्शन का वास्तविक अनुशरणकर्ता है ।

चूंकि ईश्वरीयता के नाम पर किन्नरत्व के विचार से चर्च सहमत नहीं था सो कालान्तर में चर्च परिषद ने धर्मावलंबियों द्वारा  स्वयं को बंध्याकृत कर लेने पर रोक लगा दी थी । यदि चर्च के इतिहासकारों की इस धारणा को स्वीकार कर लिया जाए कि ओरिगेन ने लड़कियों को शिक्षा देते समय स्वयं की यौन लालसाओं के शमन के उपाय बतौर किन्नरत्व को अपनाया तो हमें यह भी मानना होगा कि एक धार्मिक व्यक्ति के लिये लिंग भेद हीन ईश्वर की प्राप्ति का विचार भी अनिवार्यतः इस कृत्य की पृष्ठभूमि में मौजूद रहा होगा ।  

गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

कांच का चाकू...

कहते हैं कि एज़्टेक कबीले के सृजन की कहानी देवी क्वाटिलिक्वे से शुरू होती है, जोकि सर्पों का परिधान पहनती और जिसके गले में नरमुंडों की माला पड़ी रहती...जो गहन आत्मविश्वास की प्रतिमूर्ति है ! देवी क्वाटिलिक्वे, प्रथम बार, लावा निर्मित कांच के चाकू से गर्भवती हो गई थीं और फिर उन्होंने, चंद्रमा की देवी क्वोयोलशाऊकी तथा पुरुष वंशजों के एक समूह को जन्म दिया जोकि तारे बन गये थे ! एक दिन देवी क्वाटिलिक्वे को पंखों का एक गोल पुलंदा मिला, जिसे उन्होंने अपनी सीने में लपेट लिया लेकिन दोबारा देखने पर उन्होंने पाया कि पंखों का गोल पुलंदा गायब हो चुका है और वो पुनः गर्भवती हो गई हैं, हालांकि उनकी पुत्री देवी चन्द्रमा और पुत्र तारों को अपनी मां क्वाटिलिक्वे की इस कहानी पर ज़रा भी विश्वास नहीं हुआ और वे लोग लज्जित अनुभव करने लगे, उन्होंने तय किया कि वे सभी मिलकर अपनी मां को मार डालेंगे !

वे लोग, यही मानते थे कि कोई देवी, केवल एक बार ही संतान को जन्म दे सकती है, जोकि उसके सच्चे देवत्व का प्रमाण होता है ! बहरहाल जब वे लोग अपनी मां की हत्या की योजना बना रहे थे, तब, देवी क्वाटिलिक्वे ने अग्नि सर्प की सहायता से, युद्ध के अग्नि देवता ह्यूइटज़िलीह्यूइटल को जन्म दिया, जिसने क्रोध में आकर अपने सभी भाइयों और बहन क्वोयोलशाऊकी को मार डाला ! उसने बहन का सिर, धड़ से अलग करके, पर्वतों के मध्य गहरे खड्ड में फेंक दिया, जहां वो सदा सर्वदा के लिये विखंडित पड़ा रहा ! ठीक उसी समय, स्वर्ग लगभग टुकड़ों में तब्दील हो गया और धरती मां नीचे गिर गई थीं, जिनके निषेचित बच्चों को, भ्रातघाती द्वारा टुकड़े टुकड़े कर के पूरे अंतरिक्ष में बिखेर दिया गया था ! इस तबाही के उपरान्त मूल अमेरिकन इंडियंस का प्राकृतिक ब्रह्माण्ड जन्मा,तब सर्वोच्च देवता ओमेटेकूटली और उसकी पत्नि ओमेसिहाउटल ने पूरे विश्व में जीवन का सृजन किया...

एज़्टेक, अर्वाचीन कबीले के लोग हैं, अन्य आदिम जातीय समूहों की तरह से सृष्टि की रचना को लेकर,उनकी अपनी परिकल्पनायें हैं ! उनके ब्रह्माण्ड की रचना भले ही देवत्व धारी व्यक्तित्व करते हों पर...उन सभी देवी देवताओं में मनुष्यगत, संवेदनाओं, भावनाओं, कल्पनाशीलता, सृजनशीलता, ईर्ष्या, द्वेष और कलह प्रियता जैसे, लक्षणों का विवरण मिलना आम बात है जैसे कि इस कथा में देवी क्वाटिलिक्वे नरमुंड की माला पहनने वाली तथा सर्पों को परिधान बतौर लपेटने वाली पारलौकिक शक्ति है, किन्तु वो ज्वालामुखीय लावे से निर्मित कांच से गर्भवती होकर देवी चंद्रमा और तारों को जन्म देती है ! आख्यान में उल्लिखित, इस देवी के, चमचमाते / रौशन रौशन / आलोकित, पुत्रों और पुत्री के जन्म के लिये, चमकदार कांच के चाकू को उत्तरदाई ठहराना प्रातीतिक है, रुचिकर है ! कांच के चाकू के...चांद सितारे जैसे बच्चे !

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अपनी मां को पुनः गर्भवती देखकर देवी चन्द्रमा और पुत्र तारे क्षुब्ध हैं, उन्हें विश्वास  ही नहीं होता कि उन्हें, जन्म देने वाली दिव्य शक्ति,पुनः गर्भवती हो सकती है, वे इसे दिव्यता पर कलंक मानकर लज्जित हैं और अपनी कलंकित मां की हत्या का निर्णय ले लेते हैं, प्रतीत होता है कि मां के दोबारा गर्भवती होने का मुद्दा वास्तव में, गर्भवती होने के कलंक से कहीं अधिक, दिव्यता के प्रथम उत्तराधिकारियों तथा संभावित अतिरिक्त उत्तराधिकारी के मध्य, दिव्यता की विरासत के, बटवारे का मुद्दा रहा होगा ! विरासत के बटवारे के निषेध के लिये, गर्भवती मां को रास्ते से हटाने का निर्णय, ईर्ष्या जनित लगता है, बिलकुल मनुष्यों के स्वभाव और व्यवहार के अनुकूल होने जैसा...सो कथा संकेत यही हैं कि झगड़े का मूल कारण विरासत थी, किन्तु उसे कांच के चाकू बनाम पंखों के पुलंदे से गर्भ धारण करने वाली यौन अनैतिकता बतौर हवा दे दी गई !

कथा के अनुसार देवी क्वाटिलिक्वे सर्पों को परिधान बतौर लपेटती थी सो उसने, अग्नि सर्प की मदद से, पंखों के पुत्र, युद्ध के अग्नि देवता ह्यूइटज़िलीह्यूइटल को जन्म दिया, जिसने दिव्यता की विरासत के दावेदार उन सभी लोगों को मार डाला जो कि उसके जन्म का विरोध कर रहे थे, अतः एक ही मां की संतानों के मध्य वैमनस्य, ब्रह्माण्ड की बर्बादी और पुनर्जीवन का आधार बना ! नरमुंडों और सर्पों वाली दिव्यता तथा विनाश के बाद पुनर्सृजन के संकेत हमें अपनी पारलौकिक गाथाओं में भी मिलते हैं, किन्तु महत्वपूर्ण तथ्य यह कि प्रस्तुत कथा मनुष्यों की प्रातीतिक परछाईं के जैसे बहुदेवतावाद को समर्पित है, जिसमें सृष्टि के विनाश का कारण कोई एक देवता है, तो सृजन के लिये उत्तरदाई कोई और...  

रविवार, 24 दिसंबर 2017

मादकता


ईश्वर धरती पर उतरा तो उसने पाया कि यहां, बहुत गंदगी है, बुरी चीज़ों से भरी हुई, दुष्ट लोग, रहस्मय और नरभक्षी ! ईश्वर ने सोचा कि धरती को साफ़ करने के लिये जल प्रलय लाई जाए...और गंदे लोगों, राक्षसों को डुबा कर मार दिया जाए, फिर उसने ऐसा ही किया पानी, पहाड़ों की चोटियों तक भर गया, तब एक व्यक्ति और उसकी दो पुत्रियों को छोड़कर, सारे मनुष्य जलमग्न हो गये ! दरअसल वो तीनों एक डोंगी में बैठकर बाढ़ से बच निकले थे ! जलस्तर घटने पर उन्होंने देखा कि धरती स्वच्छ हो गई है ! उन्हें बेहद भूख लगी थी, उन्होंने इधर उधर देखा, ढूँढा पर वहाँ खाने लायक कुछ भी नहीं था ! कंद मूल वाला कोई छोटा मोटा पौधा तक नहीं, केवल भिन्न प्रजातियों के कुछ बड़े पेड़ थे !

उन्होंने फर के टुकड़े को पत्थर से कूट कर काढ़ा बनाया पर...वह पीने योग्य नहीं था सो उसे फेंक दिया, इसके बाद उन्होंने पाइन, भिदुर और अन्य लकड़ियों के काढ़े बनाए पर सब व्यर्थ, अंतत बेरियों की लकड़ियों का काढ़ा तुलनात्मक रूप से पीने योग्य था ! लड़कियों ने उसे पिया और...दिया ! ये काढ़ा थोड़ा सा मादक / नशीला था ! उन्हें नशा हो गया, नशे की हालत में लड़कियों ने अपने पिता से यौन से सम्बन्ध बना लिये, पिता को कुछ पता ही नहीं चला ! इधर धरती धीरे धीरे सूख रही थी और उन तीनों की भूख बढ़ती जा रही थी, इसलिए वे तीनों लगातार बेरियों की लकड़ी का काढ़ा बना कर पीते रहे ! पिता इस मादक द्रव्य का आदी हो चला था और लड़कियां उससे अक्सर दैहिक सम्बन्ध स्थापित करती रहीं !

परिणाम स्वरुप लड़कियों ने कई बच्चों को जन्म दिया...जिस पर नशेड़ी पिता अचंभित हुआ कि वे दोनों किस प्रकार से गर्भवती हो गईं ! कालान्तर में, वयस्क होकर, इन्हीं बच्चों ने आपस में ब्याह किये और फिर उनके भी बच्चे पैदा हुए, इस प्रकार से धरती पर, मनुष्यों की पुनर्बसाहट का सिलसिला जारी रहा ! ऐसे ही पशु और पक्षी भी बहुतायत से धरती में आबाद होने लगे थे...

आर्कटिक उप-क्षेत्र के निकट अलास्का की टिलिंगिट कबीले की ये जनश्रुति, ईश्वर के हवाले से, धरती में दुष्ट लोगों की संख्या बढ़ने का संकेत देती है, जिन्हें ईश्वर, बाढ़ लाकर समाप्त कर देना चाहता है ! दुनियां में प्रचलित अन्य जल प्रलय कथाओं के इतर इस कथा में शेष बच गये पात्रों को, ईश्वर ने समय पूर्व कोई चेतावनी दी हो ऐसा उल्लेख इस कथा में नहीं मिलता और ना ही इस बात का कोई संकेत कि बर्फीले क्षेत्र के निवासियों के पास डोंगी के मौजूद होने का आशय क्या है ? क्या यह डोंगी स्लेज के साथ संबद्ध कोई लकड़ी का बड़ा टुकड़ा थी, जिसे सामान ढोने / लादने के उपयोग में लाया जाता रहा हो ? बहरहाल बाढ़ से बच गये पिता, पुत्रियों के लिये ये डोंगी, दैवीय ना सही, भौतिक / जागतिक वरदान / उपलब्धता अवश्य मानी जा सकती है !

जल प्रलय के बाद खाद्य पदार्थों की कमी स्वभाविक है और ये भी कि भूखे लोग अपने जीवन रक्षण के लिये बहुविध प्रयोग करें, जैसा कि पिता और पुत्रियों ने, कंद मूल फलों की अनुपलब्धता को देखते हुए, भिन्न भिन्न लकड़ियों को कूट कर, तरल काढ़ा बना कर, अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिये किया ! इसे तुलनात्मक संयोग ही माना जाएगा कि अन्य लकड़ियों का काढ़ा पीने योग्य नहीं था और बेरियों का काढ़ा पीने योग्य पाया गया ! इसमें कोई संदेह नहीं कि, आयुगत कारणों से, पिता की अपेक्षा पुत्रियों में यौनेच्छायें अधिक प्रबल रही होंगी ! उल्लेखनीय है कि, उस काल खंड में, उनके योग्य कोई युवा नर, धरती पर जीवित नहीं था और...जीवन रक्षण के उपरान्त निज मूल प्रवृत्ति का शमन करना, उनकी विवशता हो गई होगी !

ये कथा ईश्वरीय कोप और जल प्रलय के मानदंड से विश्व की बहुचर्चित कथाओं जैसी ही है, किन्तु पुत्रियों द्वारा, अपने ही सगे पिता से देह संसर्ग स्थापित करना और कालांतर में उनसे जन्में बच्चों के पारस्परिक ब्याह के फलस्वरूप वंश वृद्धियों के कथन, बहुत संभव है कि यौन नैतिकता के मानकों से विचलित दिखाई दे, हालांकि यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है कि पुत्रियों ने अपनी मूल प्रवृत्ति का शमन करते समय यौन नैतिकता के उल्लंघन के अपराध बोध से उबरने के लिये मादक द्रव्यों का इस्तेमाल किया, यही कारण है कि पिता अपनी पुत्रियों के गर्भवती हो जाने को लेकर अचंभित बना रहा...

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

गोदना


वो दोनों गहरे दोस्त थे किन्तु उन दोनों को दुःख यह था कि उन्होंने कभी गोदना नहीं गुदवाया था ! उन्हें लगता था कि वे अपने अन्य दोस्तों की तुलना मे खूबसूरत नहीं हैं ! एक दिन उन दोनों ने तय किया कि वे एक दूसरे को गोदना गोदेंगे, सो उनमें से एक युवक ने दूसरे युवक के सीने, पीठ, हाथों, पैरों, यहां तक कि चेहरे पर भी गोदना गोद दिया ! अपना काम / अंकन पूरा होते ही उसने खाना बनाने के बर्तन के निचले तल से कालिख निकाल कर, गोदने के सभी निशानों पर लगा / मल दी, इस तरह से उसके दोस्त की गोदना गुदाई का काम अच्छी तरह से पूरा हुआ !

इसके बाद, पहले दोस्त ने दूसरे से कहा कि गोदना गुदवाने के बाद, तुम बहुत खूबसूरत दिख रहे हो, इसलिए अब तुम्हारी बारी है कि तुम मेरे शरीर पर गोदना गोदने का काम जल्द से जल्द पूरा करो, लेकिन, इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता, उसके दोस्त ने बर्तन के तल से ढेर सारी कालिख लेकर, उसके सिर से लेकर पैर तक मल / पोत दी, जिसके कारण से पहला दोस्त बेहद काला और चिकनाई युक्त दिखने लगा ! उसे अपनी कालिमामय हालत को देखकर बहुत गुस्सा आया और उसने चिल्ला कर कहा, मैंने तुम्हे कितनी सावधानी के साथ गोदा था और तुमने मेरे साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया !

वो दोनों आपस में लड़ने लगे, लेकिन अचानक ही सुंदर गोदने वाला युवा महाकाय छिपकली में बदल गया और...फिर छिपने के लिये लंबी / ऊंची घास के मैदान की ओर भागा...जबकि कालिख पुते शरीर वाला युवक, कौव्वा बन कर गांव के ऊपर मंडराने लगा !

वैसे तो ये जनश्रुति, फिलीपींस से ताल्लुक रखती है पर...पूरी में दुनियां गोदना, मनुष्यों की देहों के कैनवास पर सौन्दर्यात्मक अभिरुचियों की अभिव्यक्ति है, हालांकि कई समाजों में इसके प्रचलन की पृष्ठभूमि में आध्यात्मिक / पारलौकिक कारण भी उद्धृत किये जाते हैं ! यह जानना रुचिकर है कि चरम आदिम समुदायों से लेकर परम आधुनिक समाजों में भी गोदना, बहुप्रचलित सौंदर्य प्रसाधन / अलंकरण / आभूषण और फैशन बतौर अस्तित्वमान है ! साधारण, निर्धन लोगों से लेकर ख्यातिनाम तथा धन धान्य से परिपूर्ण लोग भी गोदने के आकर्षण से बच नहीं पाते !  

समाज विज्ञानियों ने गोदने को लेकर अनगिनत अध्ययन किये हैं, जिनका उल्लेख इस आख्यान की व्याख्या के लिये कतई आवश्यक नहीं है, फिर भी ये जान लेना ज़रुरी है कि मिस्र में पाई गई, स्त्रियों की ममियों में गोदने के चिन्ह मिले हैं जोकि उनके शरीर के विभिन्न अंगों...यहां तक कि जांघों के ऊपरी हिस्सों पर अंकित किये गये थे, वे संभवतः वेश्याएं थी, याकि राज नर्तकियाँ अथवा काम व्याधि से ग्रस्त स्त्रियां रही होंगी, जिनकी पहचान गोदने के अलंकार से की जाती होगी ! काल गणना के अनुसार ये ममियां 4000 ईसा पूर्व की हो सकती हैं !

इटालियन आस्ट्रियन सीमा पर 5200 ईसा पूर्व, जितने पुराने गोदने के संकेत तथा पूर्व इंका सभ्यता में स्त्री ममी की खोपड़ी में गोदने के चिन्ह मिले ! ग्रीको रोमन सभ्यता, चीन के हान राजवंश और जापान के कुलीन लोगों में गोदने का प्रचलन रहा है !पोलिनेशियाई लोग अपनी संस्कृति के प्रतीक गोदने में इस्तेमाल करते रहे हैं, प्रशांत द्वीपीय आदिम कबीलों, खासकर ताहितियन समाज के लोगों में कूल्हों / शरीर के पृष्ठभाग में गोदने का चिन्हांकन, विगत 12000 वर्षों से काम वयस्कता / बालिग़ होने बतौर स्वीकार किया गया है, गौर तलब है कि ताहितियन शब्द टाटू से टैटू शब्द प्रचलन में आया जोकि हमारे लिये गोदना नामित है !  

न्यूजीलैंड के माओरी लोग अपने चेहरे पर गोदना गुदवाते हैं जबकि हवाई द्वीप समूह के लोग अपनी जुबानों पर तीन डाट्स अंकित करवाते हैं ! हमारे अपने देश भारत में भी गोदना आदिम जातीय समूहों के आकर्षण का केन्द्र बिंदु है, भले ही इसके कारण अलग अलग हो सकते हैं ! योद्धा, साधारण जन, स्त्री, पुरुष, बूढ़े, बच्चे सब के सब गोदने से अभिभूत...गोदने को लेकर काल खंड, स्थान का कोई भेद नहीं, हालांकि लैंगिक, आयु, व्यक्तिगत रूचि और व्यवसायगत कारणों से गोदने के अभिविन्यास अलग अलग हुआ करते हैं ! बहरहाल हम इस फिलीपीनी आख्यान की व्याख्या की ओर वापस आते हैं !

कथा के अनुसार दो अभिन्न मित्र हैं, जिन्हें अन्य युवाओं की तुलना में स्वयं के खूबसूरत नहीं होने का दुःख है ! उन्हें विश्वास है कि गोदना गुदवाने से उनके दैहिक सौंदर्य की अभिवृद्धि होगी, इसलिए वे एक दूसरे को गोदना गोदने के लिये सहमत होते हैं, यहां यह कहना कठिन है कि इस कार्य के लिये वे, सामान्यतः गांव में मौजूद गोदना विशेषज्ञ के पास क्यों नहीं जाते ? क्या गांव में उनका कोई निषेध था ? याकि उनके पास, गोदना विशेषज्ञ के कार्य के प्रतिसाद स्वरुप कोई राशि या वस्तु नहीं थी ? बहरहाल कारण जो भी हो, वे दोनों एक दूसरे के सौंदर्य की श्रीवृद्धि के लिये, परस्पर सहमत हुए थे !

उन दोनों मित्रों की कुंठा यह थी कि वे तुलनात्मक असौंदर्य के शिकार हैं और उनके कुंठा मुक्त होने का सबसे बेहतर तरीका है, देह पर अलंकारिक अभिविन्यास बतौर गोदने का अंकन ! यहां यह ध्यान देना होगा कि पहले मित्र ने दूसरे मित्र के शरीर पर बड़ी ही सावधानी से गोदने का अंकन किया और कालिख रगड़ रगड़ कर उस अंकन को चमकदार बना दिया ! कहन के मुताबिक उसने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया और अब उसकी अपेक्षा थी कि उसका मित्र भी, उसे गोदना गोद कर सुंदर बना दे ! जनश्रुति के इसी मोड़ पर दूसरे युवा की मौलिक प्रवृत्ति उभर कर सामने आती हैं...

जैसा कि हमने पहले ही कहा है कि गोदने का उद्देश्य, आध्यात्मिक या सौन्दर्यात्मक अभिरुचियों को प्रकटित करना होता है, अब इस कथन में जोड़ ये कि सौन्दर्यात्मकता की अभिव्यक्ति के बहुतायत हिस्से में कामुकता / विषम लिंगी आकर्षण प्रबल रूप में विद्यमान हुआ करते हैं, सो माना यह जाए कि, भले ही दोनों मित्रों की मित्रता गहन थी और उनका दुःख एक समान था, असुंदर दिखना ! इसलिए यह कहना कठिन नहीं है कि मित्रों की कुंठा की पृष्ठभूमि में यौन आकर्षण संबंधी प्रवृत्तियां भी शामिल हो सकती हैं यानि कि असौंदर्यगत कारणों से युवतियों के साहचर्य से वंचित होने / बने रहने का अहसास !

कथा को पढ़ते हुए लगता यही है कि पहले युवक ने मित्रता का समुचित निर्वहन किया, किन्तु गोदने के दैहिक आभूषण धारण करने के बाद, सुंदर / आकर्षक हो जाने के उपरान्त दूसरे युवक की नीयत में खोट आ गया और उसने पहले युवक की देहयष्टि को कालिख पोत कर असुंदर कर दिया ! उनकी मित्रता, सौन्दर्यात्मकता की बढ़त / अग्रता की बलि चढ़ गई ! आख्यान में दूसरे युवक का बड़ी छिपकली के रूप में, घास की ओट में, पलायन प्रतीकात्मक है, जहां वह अपनी करनी / मित्रता से घात को छुपाना चाहता है, जबकि कृष्णवर्ण कौव्वे का गांव / आबादी के ऊपर मंडराना पहले युवक की अतृप्त लालसाओं का द्योतक है...

सोमवार, 18 दिसंबर 2017

जल समाधि


वो बेहद खूबसूरत युवती थी, उसे देख कर पुरुष बावले हो जाया करते, हालांकि वो जिससे भी ब्याह करती, वह युवक, ब्याह के फ़ौरन बाद मर जाया करता, लेकिन इससे उस युवती को कोई फर्क नहीं पड़ता था ! वो एक के बाद दूसरा, फिर तीसरा...और अगला ब्याह करती रही ! उस साल उसके पांच पति काल कवलित हो चुके थे ! वे सभी चतुर, बहादुर और आकर्षक कबीलाई युवा थे ! पांचवें पति की मृत्यु के बाद, उसने जिस युवक से ब्याह किया, वो खामोश तबियत इंसान था और गांव के लोग उसे बेवकूफ समझते थे, लेकिन वो युवक, वास्तव में उतना बेवकूफ भी नहीं था ! उसे ये विश्वास हो गया था कि युवती से सम्बंधित  कोई विस्मयकारी रहस्य ज़रूर है, जिसे जान लेना ज़रुरी है, इसलिए युवक ने दिन रात / हर एक समय उस युवती की निगरानी शुरू कर दी !

यह गर्मियों का समय था जब युवती ने, युवक से कहा कि जलावन की लकडियां लाने और बेरियां चुनने के लिये यह उपयुक्त समय है, चलो जंगल चल कर कैम्प लगाते हैं ! उसने सुझाव दिया कि युवक को अस्थाई झोपड़ी बनाने के लिये, जंगल में एक खास जगह चयनित जगह में रुक कर बाकी के काम निपटाना होंगे, युवक मान गया और झोपड़ी निर्माण के लिये सामग्री लाने के नाम पर घने जंगल में घुस गया ! युवती ने सोचा कि युवक अलग दिशा में गया है सो, वह झटपट, पथरीली चट्टानों की दिशा में मौजूद एक जलाशय के किनारे जा पहुंची जबकि युवक छुप कर उसका पीछा करता रहा ! युवक की गतिविधियों से अनभिज्ञ युवती ताल के किनारे बैठकर एक गीत गाने लगी !

गीत गायन के समय ताल की सतह पर झाग / फेन हिलोरें मारने लगा और उस झाग से एक महाकाय सांप प्रकट हुआ ! इस दरम्यान उस युवती ने अपने गहने और कपड़े उतार कर एक किनारे रख दिये थे और वो उस सांप से लिपट गई, छिपा हुआ युवक समझ गया कि प्रेमालिंगन के दौरान, सांप का जहर उस युवती के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है, जिसे अन्य युवकों में स्थानांतरित करके युवती अपनी प्राण रक्षा कर लेती है,जबकि विष प्रभावित युवक मर जाया करते हैं ! युवक फ़ौरन वापस लौटा और पूर्व निर्धारित जगह पर अस्थायी झोपड़ी बना कर उसने जानबूझकर दो बिस्तर बनाए और अलाव जला लिया ! कुछ देर बाद कैम्प में वापस लौटी युवती, दो अलग अलग बिस्तर देख कर हैरान रह गई, उसे उम्मीद थी कि वहां पर एक ही बिस्तर होगा !

उसने, युवक से इस सम्बन्ध में बात की तो युवक ने कड़ाई के साथ युवती के झूठ को उजागर कर दिया, वो डर गई और दूसरे बिस्तर पर जाकर सोने लगी ! युवक रात में तीन बार उठा, उसने आग प्रज्ज्वलित की और हर बार उस युवती को पुकारा, लेकिन उसे कोई जबाब नहीं मिला, सुबह होने पर युवक ने युवती को हिलाया किन्तु वह मर चुकी थी...अपने ही प्रेमी, सांप के जहर के प्रभाव से...युवक ने गांव वालों के साथ मिलकर, दिवंगत युवती की देह को उसी ताल में विसर्जित कर दिया, जहां उसका प्रेमी रहता था ! 

ये आख्यान मूल अमेरिकन इन्डियन, पास्सामक्वोडी कबीले से सम्बंधित है ! खूबसूरत युवती को देखकर युवाओं का प्रभावित हो जाना स्वभाविक है किन्तु विवाह के फ़ौरन बाद हो रही मौतों पर आंखें मूँद लेना, अस्वभाविक लगता है, खासकर तब, जब कि दिवंगत हुए पाँचों पति, चतुर, बहादुर और आकर्षक बताये गये हैं ! युवती का छठा पति, खामोश तबियत इंसान होने के नाते अपने ही समाज में बेवकूफ माना गया क्योंकि वह स्वयं को अभिव्यक्त नहीं करता था ! सामान्यतः ऐसे लोग, लगभग प्रत्येक कालखंड और हर एक समाज में चुप्पे अथवा घुन्ने कह कर संबोधित किये जाते रहे हैं ! बहरहाल युवती द्वारा छठे पति बतौर चयनित किये गये इस युवक में, प्रेम में अंधे हो गये, जैसे लक्षण दिखाई नहीं देते क्योंकि वह पूर्व घटनाक्रम के प्रति सशंकित है !

कहना कठिन है कि ताल निवासी सांप ? यदि वह सांप ही था तो ?  के प्रेम में पड़ी हुई युवती को जहर का अभ्यास क्यों नहीं था, सामान्यतः युवतियों को विषकन्या बनाए जाने संबंधी अनेकों दृष्टांत मिलते हैं, जिनमें विषकन्या स्वयं में, व्यापित जहर से दिवंगत नहीं हुआ करतीं ! क्या ये संभव नहीं है कि ताल निवासी सांप वास्तव में सांप होने के बजाये, नाग कुल का कोई व्यक्ति रहा हो ? और विवाहेत्तर संबंधों के उजागर हो जाने के कारण युवती को जहर दे कर मौत के घाट उतार दिया गया हो ? किन्तु इस स्थिति में हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि पांच, चतुर और बहादुर युवकों की मौतों के लिये युवती का प्रेमी उत्तरदाई रहा होगा जिसने अपने अवैध संबंधों को छिपाने के युवती के पाँचों पतियों को जहर देकर मार डाला होगा ?

प्रतीत होता है कि युवती मूलतः नाग कबीले की कोई विष कन्या रही होगी जोकि कबीलाई दुश्मनी के चलते, चुन चुन कर विरोधी कबीले के चतुर, बहादुर और आकर्षक युवकों को, अपने प्रेम जाल में फांस कर ठिकाने लगा रही थी, किन्तु छठे युवक की सजगता के चलते, उसे स्वयं के प्राण गवाना पड़े होंगे, वैसे तो प्रेमी के होते हुए भी अन्य युवकों से समानान्तर विवाह करने वाली युवती को काम पीड़ित / काम व्याधिग्रस्त कह कर भी कथा के अर्थ, अनर्थ किये जा सकते हैं, लेकिन इस धारणा में झोल यह है कि काम संतुष्टि के लिये ब्याह की अनिवार्यता क्या मायने रखती है ? अतः कबीलों की आपसी शत्रुता और विरोधी कबीले के बहादुर युवकों की मौतों को लेकर युवती के विषकन्या होने तथा रहस्य उजागर हो जाने की स्थिति में स्वयं के मारे जाने की धारणा को अधिक तर्कसंगत माना जाना सकता है !

बहरहाल दिवंगत युवती की जल समाधि, उसके अपने निर्णयों का प्राप्य है...   

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

तू खुदा है ना मेरा इश्क फरिश्तों जैसा...

मुद्दतों पहले की बात है जबकि विनइबेगो कबीले में एक प्रभावशाली व्यक्ति रहता था जो कि अपने समुदाय में परम आदरणीय और बेहद लोकप्रिय था ! वह अपने कबीले के औषध अनुष्ठानों वाले समूह का सदस्य था ! उसका एकमात्र पुत्र अल्प-ज्ञानी था ! लिहाज़ा गुज़रते वक्त के साथ पिता अपने पुत्र को उपहार देने लगा ! एक बार उसने, अग्नि पर केतली चढ़ा कर पुत्र से कहा, बहादुर और सच्चे योद्धा बनो, आश्चर्य चकित पुत्र यह नहीं समझ सका कि, उसका पिता उसे इस तरह से उपहार और उपदेश क्यों देता है !  इधर पिता अनवरत, पुत्र को उपहार देता रहा ! एक दिन उसने पुत्र को एक सुन्दर अश्व दिया और कहा कि मेरे प्रिय पुत्र, योद्धा होने के लिये, तुम्हे कुछ प्रक्रियाओं का ज्ञान होना आवश्यक है, बहरहाल पुत्र जो भी समझ सकता था, वही समझा !

कुछ समय बाद पुत्र ने एक सुंदर युवती से विवाह किया, जिसके बाल सुर्ख थे और जो किसी अन्य कबीले  की सुकन्या थी ! किन्तु हैरान कर देने वाली बात यह कि उसका पिता उस युवती के सौंदर्य पाश में बंध कर, उस पर अपनी निगाहें लगा बैठा ! पिता की आसक्ति का संज्ञान लेते हुए, पुत्र ने उक्त युवती को, अपने पिता को उपहार स्वरुप सौंप दिया ! पुत्र की भेंट से कृतज्ञ पिता ने पुत्र से कहा, मैं इसका प्रतिफल तुम्हें कैसे दूं ? तुमने मेरे हृदय को आल्हादित कर दिया है ! अन्ततोगत्वा पिता ने अपने पुत्र को वह समस्त ज्ञान प्रदान कर दिया जोकि उसके आधिपत्य में था !

कालांतर में सुर्ख बालों वाली वो युवती बीमार हो गई और फिर उसकी मृत्यु हो गई, तब उस बूढ़े व्यक्ति ने युवती की खोपड़ी से एक पात्र बनाया...और फिर एक गीत भी सृजित किया जोकि कबीले के औषध अनुष्ठानों में आज भी प्रयुक्त किया जाता है ! 

यह आख्यान अमेरिकन इन्डियन विनइबेगो समुदाय के औषध ज्ञानी पिता और उसके शिशु से युवा होते पुत्र के पारस्परिक सम्बन्धों, पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान के अंतरण के साथ ही साथ यौन नैतिकता की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित करता है ! प्रथम दृष्टया औषध ज्ञानी एक लोकप्रिय और समादृत व्यक्ति है , जिसके परित्यक्त होने की अपेक्षा विधुर हो जाने के संकेत अधिक मुखरित होते हैं , वह अपने पुत्र को उसकी माता की शिक्षा से वंचित रह जाने का अहसास कराने के बजाये, उपहारों और उपदेशों की शक्ल में प्रशिक्षित करने के लिये प्रयासरत बना रहता है ! एक अर्थ में वही पुत्र की माँ भी है और पिता भी ! पुत्र के युवा होकर विवाहित होने तक वह स्वयं पुनर्विवाह नहीं करता ! निःसंदेह वह अपने पुत्र को सौतेली माता के पालन पोषण और तद्जनित नकारात्मक संभावनाओं से परे बनाए रखता है, भले ही इस हेतु वह अपनी नैसर्गिक यौनेच्छाओं का दमन करता रहा हो !  

कथा, युवा पुत्र के अंतर कबीलाई विवाह के कथन के साथ, यह स्पष्ट संकेत देती है कि विनइबेगो समुदाय में अंतर कबीलाई विवाहों का निषेध नहीं था...और पत्नि को उपहार स्वरुप भेंट किये जाने का कथन कथाकालीन समाज के पितृसत्तामक होने का उदघोष करता है ! आख्यान को बांचते हुए पिता पुत्र के दरम्यान उपहारों के विनिमय और ज्ञानान्तरण के तथ्य अन्य समाजों की तरह सहज लगते हैं, किन्तु पिता की आसक्ति पर, पिता को पुत्रवधु का उपहार बतौर सौंपा जाना चौंकाता है ! लंबे समय से यौन सुख से वंचित पिता का, सुर्ख केशों वाली युवती, जोकि उसके ही प्रिय पुत्र की नवविवाहिता है, पर आसक्त हो जाना दैहिक अनिवार्यताओं के मद्देनजर भले ही अप्रिय संकेत ना दे, किन्तु सामाजिक मान्यताओं पर कुठाराघात और यौन नैतिकता उल्लंघन के प्रश्न हमारे सम्मुख सहज ही खड़े हो जाते हैं !

अस्तु विचाराधीन प्रश्न यह है कि क्या पुत्रवधु को पत्नि बतौर स्वीकार कर उस औषध ज्ञानी ने यौन नैतिकता अथवा सामाजिक मान्यताओं का उल्लंघन किया है ? इस हेतु हमें भारत के उत्तरपूर्वी क्षेत्र के मातृवंशीय गारो आदिवासियों को विचारण में लेना होगा जहां, दामाद नितांत आर्थिक कारणों से अपनी विधवा सास से ब्याह कर लेता है या फिर दक्षिण भारत के वे लोग जो मामा को भांजी से विवाह करने का प्राथमिक अधिकार देते हैं अथवा बहु-पत्नियों के एकमात्र पति होने से लेकर अनेक पतियों की एकमात्र पत्नि होने जैसे अनेकों दृष्टान्त ! ममेरे फुफेरे भाई बहिनों के वैवाहिक संबंध याकि पश्चिमी समाजों में निकटतम रक्त सम्बन्धों की अनदेखी करते हुए बनाए गये स्त्री पुरुष संबंध !

निःसंदेह विश्वव्यापी मानवीय बसाहटों में सामाजिक मान्यताओं और यौन नैतिकताओं को लेकर कोई एकमेव स्वीकार्य आचरण संहिता नहीं है और ना ही हो सकती है, यहां तक कि मिथिकीय मान्यताओं, अवतारों, श्रेष्ठियों के अंतर और इतर भी...