बुधवार, 13 जून 2018

किन्नर - 15


ईसाईयत के प्रारम्भिक दिनों में कामुकता और दैहिकभौतिक सुखों के मुद्दे गहन चर्चा का विषय हुआ करते थे । वे अक्सर जागतिक सुखों के परित्याग की बातें करते ताकि जीसस के जीवन दर्शन का अनुकरण किया जा सके । मैथ्यू 19:12 में उल्लेख करता है कि ‘जो अपनी माता की कोख से किन्नर जन्में हैं और वे जिन्हें मनुष्यों ने किन्नर बनाया है अथवा वे जो स्वर्ग के राज्य  हेतु स्वयं किन्नर हो गये हैं । वे जो इसे प्राप्त करने में सक्षम हैंउन्हें इसे प्राप्त करना चाहिए’  

उन दिनों अनेकों धर्मशास्त्री ये मानते थे कि सच्चे ईसाई को स्वर्ग की आशा में ब्रह्मचारी होना चाहिए । सामान्य काल 185 से 254 के ग्रीक धर्मशास्त्री ओरिगेन को ये तर्क उचित लगता था सो उसने स्वयं को बंध्याकृत कर लिया और एक निरपेक्ष निर्विकार ब्रह्मचारी अध्येता के तौर पर स्थापित होने का मार्ग चुना । तकरीबन पच्चीस वर्षों तक चर्च के इतिहासकार यह मानते रहे कि उसने लड़कियों को शिक्षा देते समय स्वयं की यौन लालसा से मुक्ति के लिये यह कार्य किया था ।

किन्नर ओरिगेन के दावे के अनुसारउसने स्वयं का बंध्याकरणनितांत आध्यात्मिक और धार्मिक कारणों से किया थाकिन्नर हो कर उसनेउस धारणा को पुष्ट करने की बात कहीजिसके अंतर्गत एक सच्चे ईसाई को स्वर्ग की आशा में ब्रह्मचारी हो जाना चाहिएउसका ख्याल था कि उसने जागतिक सुखों का परित्याग कर दिया है और वो जीसस के जीवन दर्शन का वास्तविक अनुशरणकर्ता है ।

चूंकि ईश्वरीयता के नाम पर किन्नरत्व के विचार से चर्च सहमत नहीं था सो कालान्तर में चर्च परिषद ने धर्मावलंबियों द्वारा  स्वयं को बंध्याकृत कर लेने पर रोक लगा दी थी । यदि चर्च के इतिहासकारों की इस धारणा को स्वीकार कर लिया जाए कि ओरिगेन ने लड़कियों को शिक्षा देते समय स्वयं की यौन लालसाओं के शमन के उपाय बतौर किन्नरत्व को अपनाया तो हमें यह भी मानना होगा कि एक धार्मिक व्यक्ति के लिये लिंग भेद हीन ईश्वर की प्राप्ति का विचार भी अनिवार्यतः इस कृत्य की पृष्ठभूमि में मौजूद रहा होगा ।