मलिक काफूर खिलजी सल्तनत का महत्वपूर्ण सेना नायक था, जिसने सामान्य काल 1308-1311 के मध्य दक्षिण भारतीय यादव, काकतीय और पांड्य राजवंशों के विरुद्ध सफल
सैन्य अभियान चलाये थे । कहते हैं कि वो
मूलतः नपुंसक था और अलाउद्दीन खिलजी का निकटस्थ किन्नर / सेवक था । उसे खिलजी की सेना के प्रमुख नुसरत खान द्वारा
गुजरात अभियान के दौरान एक हज़ार दीनार में खरीदा गया था । सो उसे हज़ार दीनारी भी कहा जाता है ।
मालिक काफूर ने अपनी सैन्य कार्यवाहियों के
दौरान दिल्ली सल्तनत के लिये बहुमूल्य संपदा और पशुधन एकत्रित किया था । दक्षिणी अभियानों के बाद उसकी तैनाती बतौर
गवर्नर / निजाम, देवगिरी में की गई थी और अलाउद्दीन खिलजी के बीमार पड़ने पर उसे
दिल्ली वापस बुला लिया गया था । दिल्ली
वापसी के बाद उसे नायब का प्रभार दिया गया था ।
सुलतान की मृत्यु के बाद उसने, सल्तनत के वारिस शहाबुद्दीन उमर से सत्ता
हथिया ली, लेकिन उसका कार्यकाल एक माह से अधिक नहीं चल सका, क्योंकि दिवंगत सुलतान
खिलजी के अंगरक्षकों द्वारा उसकी हत्या कर दी गई और फिर इसके बाद खिलजी का बड़ा
पुत्र मुबारक शाह शासक बना । काफूर मालिक
का प्रारंभिक परिचय सुस्पष्ट नहीं है संभवतः वह गुजरात का हिंदू अथवा अफ्रीकी मूल
का सुंदर युवा किन्नर था जोकि कालांतर में मुस्लिम हो गया ।
दिल्ली आने के बाद काफूर मलिक ने अपनी बौद्धिक
और सैन्य दक्षता से खिलजी को प्रभावित किया और पदोन्नति की सीढियां चढ़ता गया । यद्यपि उसकी महत्वाकांक्षा उसके पतन का
कारण बनी । यहां यह उल्लेखनीय है कि उसका किन्नर होना /
उसकी नपुंसकता और समलैंगिकता विवाद का विषय है । इस सम्बन्ध में कोई ठोस और प्रामाणिक दस्तावेज
उपलब्ध नहीं है । हालांकि कई इतिहासकार
परिस्थितिजन्य कारणों से उसे सुलतान खिलजी का समलैंगिक सहचर तथा किन्नर मानते हैं ।