सुधन्या लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सुधन्या लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कहीं और से ...



ये ब्रह्माण्ड 

भले ही मैं बिछ जाता हूं 

तुम्हारे संकेत मात्र  से

किंतु एक दिन

ये ब्रह्माण्ड 

मेरे चुम्बनों की ध्वनि से भर जाएगा  !



हिमनद पिघल रहे हैं

इन दिनों

तुम्हारा ख्याल

अनछुई गुनगुन तपिश सा

अन्दर अनंत

हिमनद पिघल रहे हैं

ज़रूर कुछ

बस्तियां डूब जायेंगी  !


समंदर हिल्लोरे मारने लगा 

आह उस दिन तुम 

बेकली से मुझ तक दौड़ीं 

पर्वत हिल उट्ठे 

धरती थर्राई 

और मेरे अन्दर 

समंदर हिल्लोरे मारने लगा  !



तुम कोई जादूगरनी हो !


इब्नें मरियम

भी नहीं

कोई  पयम्बर

भी नहीं

तुमसे उम्मीद

कि जी उठता हूँ





( तारे टूटने से पहले के प्रेम गीत  )