आलोक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
आलोक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 23 जून 2019

नीला आलोक


एक समय की बात है, जब एक सैनिक, अपने राजा का विश्वस्त सेवक था ! वो राजा की ओर से, अनेकों युद्ध लड़ा और घायल हुआ ! लेकिन राजा को घायल सैनिक की सेवाओं की आवश्यकता नहीं थी सो राजा ने कहा, अब तुम अपने घर वापस जाओ ! मैं तुम्हें अधिक समय तक वेतन नहीं दे पाऊंगा ! उस सैनिक को किसी अन्य तरीके से धन कमाने की जानकारी नहीं थी ! वो आकस्मिक तौर पर नौकरी छूट जाने से परेशान था और भटकते हुए सघन जंगल में जा घुसा, रात गहरा गई थी, उसने देखा दूर कहीं हल्की सी रौशनी दिखाई दे रही है ! उसने सोचा कोई रहता होगा, वहाँ ! कम से कम रात का ठिकाना तो मिल ही जाएगा ! वो नहीं जानता था कि उस कुटिया में बूढ़ी चुड़ैल रहती है ! उसने बूढ़ी से कहा, मुझे रात भर विश्राम की जगह दो, थोड़ा सा खाना और पानी भी, वर्ना मैं मर जाउंगा ! ओह ! भगोड़े सैनिक पर कौन विश्वास करता है ? मैं तुम पर दया, क्यों करूं ? अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी मदद करूं तो तुम्हें मेरी एक इच्छा पूरी करना होगी, चुड़ैल ने कहा ! सैनिक ने पूछा, तुम क्या चाहती हो ? मैं चाहती हूं कि तुम कल सुबह मेरे घर के चारों तरफ एक बागीचा बनाओ ! सैनिक इस काम के लिए सहमत हो गया ! इसके बदले में उसे चुड़ैल के घर में रात का ठिकाना और खाना मिल गया ! 

अगले दिन सैनिक काम में लग गया, लेकिन वो शाम तक पूरा बागीचा नहीं बना सका ! चुड़ैल ने कहा, ये पर्याप्त नहीं है, तुम एक रात और रुको ! अगले दिन मैं तुम्हें कोई दूसरा काम दूंगी ! सुबह चुड़ैल ने लकडियों को काट कर छोटे छोटे टुकड़े बनाने का काम सैनिक को सौंपा, किन्तु शाम तक पूरी लकडियाँ काटी नहीं जा सकीं ! इस पर चुड़ैल ने सैनिक से कहा, तुम कोई काम समय पर पूरा नहीं कर पाते हो ! एक रात और रुको और कल सुबह घर के पिछवाड़े वाले सूखे कुँवें में गिर गई मेरी नीली रौशनी को निकाल देना ! बहरहाल सुबह सैनिक को एक टोकरी के सहारे कुँवें में उतार दिया गया और उसने गुमशुदा नीली रौशनी को खोज लिया ! वो चिल्लाया मुझे वापस ऊपर खींचो ! चुड़ैल ने ऐसा ही किया, लेकिन कुँवें की मुंडेर पर उसने वो नीली रौशनी सैनिक के हाथों से खींच लेना चाही ! सैनिक उसकी नीयत भांप चुका था ! उसने कहा ठहरो, ये मैं तुम्हें तब दूंगा, जब ज़मीन पर अपने दोनों पैरों के बल पर खड़ा हो जाऊंगा ! लेकिन चुड़ैल ने उसे वापस कुँवें में गिरा दिया ! गीली मिट्टी पर गिरते ही सैनिक समझ गया कि वो मौत के पाश में फंस गया है ! नीली रौशनी जल रही थी पर उससे सैनिक का क्या भला होने वाला था ? वो वहीं बैठ गया, दु:खी और निराश ! तभी उसे ख्याल आया कि उसकी जेब में अधजला सिगार बचा हुआ है !  

उसने सोचा शायद यह मेरा अंतिम सुख होगा ! नीली रौशनी से सिगार जलाकर सैनिक ने एक गहरा कश लिया और छल्ले की शक्ल में धुंवा बाहर छोड़ा ! तभी उस धुंवें में से एक काला बौना प्रकट हुआ ! उसने कहा, मेरे स्वामी, क्या आज्ञा है ? सैनिक चौंक गया ! उसने कहा, ठीक है, सबसे पहले मुझे यहाँ से बाहर निकालो ! बौने ने सैनिक का हाथ पकड़ा और कुँवें के नीचे एक सुरंग में ले गया, जहां तहखाने में हीरे जवाहरातों के ढेर लगे थे, जिन्हें चुड़ैल ने इकठ्ठा किया था ! सैनिक अपने साथ नीली रौशनी लेना नहीं भूला ! उसने जितना भी संभव हुआ, हीरे जवाहरात समेट लिए ! कुँवें से बाहर आकर उसने बौने से कहा जाओ, उस चुड़ैल को बाँध कर न्यायाधिपति के सामने पेश करो ! थोड़ी ही देर में चुड़ैल के भयावह आर्तनाद सुनाई देने लगे और फिर सब कुछ शांत हो गया ! बौना वापस लौटा और उसने कहा चुड़ैल को मृत्यु दण्ड दे दिया गया है ! बौने ने पूछा और कोई आज्ञा स्वामी ! सैनिक ने कहा, अभी तुम जाओ जब मुझे ज़रूरत होगी तब मैं तुम्हें बुला लूंगा ! बौना नीली रौशनी में समा गया ! सैनिक अपने गाँव वापस चला गया जहां उसने अपने लिए शानदार घरबेहतरीन कपड़ों और आरामदेह चीजों की व्यवस्था कर ली ! एक दिन उसने बौने को बुलाया और बोला कि मैंने राजा की तन मन से सेवा की,पर राजा ने मुझसे दुर्व्यवहार करते हुए नौकरी से निकाल दिया ! मैं उससे बदला लेना चाहता हूं, तुम जाओ और राजकुमारी को यहां लेकर आओ ताकि वो नौकरों की तरह से मेरी सेवा करे !  

बौने ने कहा ये तो बहुत आसान काम है, लेकिन राजा को ये बात पता चल गई तो आप मुसीबत में पड़ जायेंगे ! रात में ठीक बारह बजे बौना, निद्रालीन राजकुमारी को उठा लाया ! सैनिक खुशी से चिल्लाया ! आहा ! चलो मेरा घर साफ़ करो ! मेरे जूतों में पालिश करो और...और...और...कई काम कहे, उसने ! राजकुमारी, नींद में वो सब काम करती रही ! इसके बाद मुर्गे की पहली बांग से पहले बौने ने राजकुमारी को वापस महल में पहुंचा दिया ! सुबह राजकुमारी ने अपने पिता से कहा, मैंने रात में एक बुरा सपना देखा है ! कल रात मुझे कोई बिजली की गति से कहीं दूर ले गया और वहाँ पर मुझसे घर के नौकर की तरह से सारे काम करवाए गए ! हालांकि यह एक स्वप्न था पर मुझे थकान महसूस हो रही है ! ये सुनकर राजा ने कहा, ये सपना सच भी हो सकता है ! अगली रात में तुम अपनी जेब में मूंगफल्ली के दाने भर लेना और ध्यान रहे कि जेब में एक छेद भी हो ! बहरहाल राजकुमारी के लिए, अगली रात, पुरानी रात जैसी ही गुज़री लेकिन राजा की योजना धराशाई हो गई क्योंकि सड़कों से गरीब बच्चों ने मूंगफल्ली के सारे दाने चुन लिए थे, इसलिए राजा को घटना स्थल का कोई सूत्र नहीं मिला ! इसके बाद राजा ने कहा, आज तुम जूते पहन कर सोना और उस घर में अपना एक जूता छुपा कर रख देना फिर हम उस जगह को ढूंढ निकालेंगे ! बौने ने राजा की योजना सुन ली और सैनिक को चेतावनी दी कि इस तरह की गतिविधियां रोक दीं जाएं, वर्ना मुसीबत खड़ी हो जायेगी ! 

सैनिक चिल्लाया, तुम सलाह मत दो, वैसा ही करो जैसा मैं कहता हूं ! बौना मजबूर था, उसने सैनिक का आदेश, मान लिया ! उस रात राजकुमारी ने महल वापसी से पहले अपनी एक जूती सैनिक के बिस्तर के नीचे छिपा दी ! अगली सुबह राजा के सैनिकों ने नगर, गांव में छापामार कार्यवाही शुरू कर दी, जल्द ही उन्हें भूतपूर्व सैनिक के घर से राजकुमारी की जूती मिल गई ! उसे बंदी बना लिया गया ! हालाँकि उसने काल कोठरी के एक पहरेदार से कहा, तुम मेरे घर से मेरा सिगार और नीली रौशनी ला दो, मैं इसके बदले तुम्हें सोना दूंगा ! पहरेदार मान गया और उसने बंदी सैनिक का सामान लाकर उसे दे दिया ! सैनिक ने सिगार जला कर बौने को बुलाया तो बौने ने कहा, डरो मत जहां वे ले जाएं, चुपचाप चले ना ! लेकिन अपने साथ नीली रौशनी रखना मत भूलना ! अगले दिन राजा के दरबारी न्यायाधीशों ने उसे मृत्यु दण्ड दिया ! इस पर बंदी सैनिक ने राजा से पूछा कि, क्या मैं एक सिगार पी सकता हूं ? राजा ने कहा, एक नहीं, तीन तीन पी लो, मगर ये मत सोचना कि मैं पुराने दिन याद कर के तुम्हारी जान बख्श दूंगा ! इसके बाद बंदी सैनिक ने सिगार जलाया तो बौना एक नन्हीं गदा लेकर प्रकट हुआ और उसने पूछा क्या आज्ञा है स्वामी ? सैनिक चिल्लाया, इन न्यायाधीशों और सैनिकों को मार डालो ! इस राजा ने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया है, इसे भी छोड़ना नहीं ! बौना सब पर कहर बन कर टूट पड़ा ! उसने सभी को मार डाला ! राजा बहुत डर गया था,उसने अपने आपको उस सैनिक के सामने समर्पित कर दिया, अपनी राजधानी उसे सौंप दी और राजकुमारी के साथ उसका ब्याह कर दिया ! 

ये कथा राजतान्त्रिक व्यवस्था में सत्ता शीर्ष पर मौजूद / प्रभुता प्राप्त व्यक्तियों के अवसरवाद तथा तिलस्म / फैंटेसी / कदाचित मृगमरीचिका की मिली जुली कहनीयता के इर्द गिर्द घूमती है और अंत भला सो सब भला की तर्ज पर समाप्त हो जाती है ! कथा का नायक राजा का विश्वस्त है किन्तु युद्ध में घायल होने के बाद उसे, राजा से तिरस्कार मिलता है, क्योंकि राजा आगत काल में घायल सैनिक की उपयोगिता पर विश्वास नहीं करता, वो उसे संरक्षण नहीं देता बल्कि उसे वित्तीय सहायता देने से इंकार कर देता है ! सैनिक धनार्जन का अन्य तरीका नहीं जानता और जंगल में भटकते हुए किसी दुष्ट महिला / चुड़ैल के चंगुल में फंस जाता है ! जो उसका शोषण करना चाहती है और तरह तरह के बहाने बनाते हुए अपने अधीन बनाये रखना चाहती है ! चुड़ैल, दैवीय शक्ति / नीली रौशनी की खोज में है और उसे पता है कि यह शक्ति उसके ही कुँवें में गुम हो गई है सो वो, उस सैनिक की सहायता से उसे खोजती है, लेकिन तब तक सैनिक, चुड़ैल की नीयत जान चुका होता है और वो नीली रौशनी चुड़ैल के हाथ में पड़ने नहीं देता ! कथा के इस मोड़ पर उसके प्राण संकट में हैं क्योंकि चुड़ैल उससे रुष्ट है ! संयोगवश सिगार पीने की आदत के कारण से सैनिक को नीली रौशनी की शक्तिमत्ता पता चल जाती है और वो उसकी सहायता से ना केवल चुड़ैल से मुक्ति पा लेता है बल्कि अकूत धन संपत्ति लेकर अपने घर वापस लौटता है ! नीली रौशनी की दिव्यता से सैनिक के हौसले बुलंद हैं और वो अपने पुराने स्वामी / कृतघ्न राजा से बदला चुकाना चाहता है !

वो राजकुमारी को नीली रौशनी की सहायता से हरेक रात अपनी सेवा में बुलाता है और शारीरिक श्रम करवाता है  / गृह दासी की तरह से काम लेता है ! राजकुमारी हर सुबह अपने बिस्तर पर जागती है तो समझती है कि उसके सपने भयावह हैं जिनके कारण से उसका शरीर टूटता है / दर्द से बेहाल रहता है ! वो अपने पिता से इस बात की चर्चा करती है और राजा अपनी पुत्री के शत्रु को नानाविध पकड़ने का यत्न करता है और अंततः अपने पुराने सैनिक को इस कृत्य में संलग्न पाता है तथा बंदी बनाते हुए मृत्यु दंड की सजा सुनाता है ! लेकिन सैनिक निश्चिन्त है, वो मृत्यु से पूर्व कारावास के पहरेदार को रिश्वत देकर अपना सिगार और नीली रौशनी अपने घर से मंगा लेता है ! मृत्यु दंड के समय वो राजा से सिगार पीने की अनुमति मांगता है और नीली रौशनी  में मौजूद उसका बौना सहायक, राजा की पूरी सेना का सर्वनाश कर देता है ! पहले राजा शक्ति का स्वामी था, अब सैनिक की शक्ति के सामने उसका सामर्थ्य क्षीण है वो प्राण रक्षा के लिए सैनिक के सामने समर्पण कर देता है और अपनी पुत्री को उससे ब्याह देता है ! सो राजपाट अब सैनिक का है ! कथा सार ये कि बड़ी शक्ति, छोटी शक्ति को कुचलने का माद्दा रखती है ! अतः अवसरवादिता / शक्ति का घमंड / लालच / कृतघ्नता त्याज्य है ...

 

 

सोमवार, 21 अगस्त 2017

आलोक पर सबका हक...

बहुत पहले की बात है जब एक मुखिया ने सूर्य को अपने संदूक में कैद कर रखा था ! उसकी पुत्री जब बेरियां चुनने के लिये जंगल जाती तो संदूक अपने साथ ले जाती और ज़रा सा खोलती ताकि सिर्फ उसे ही, आस पास दिखाई दे ! जब उसकी टोकरी बेरियों से भर जाती तो वो संदूक सहित घर वापस लौट आती ! उस क्षेत्र के आस पास के अन्य समुदायों के लोग बेहद निर्धन थे, उन्होंने गावों की संयुक्त परिषद की बैठक बुलाई, जिसमें यह विचार किया गया कि सूर्य को किस तरह से वापस लाया जाए / मुक्त कराया जाये, अंततः उन्होंने यह निर्णय लिया कि कालीक्यू , सूर्य की वापसी / चोरी / मुक्ति के लिये उपयुक्त व्यक्ति है सो उसे इस कार्य के लिये अधिकृत कर दिया गया !

कालीक्यू पुराने दास का वेश बनाकर उस क्षेत्र में पहुंचा जहां सूर्य कैद था, वहां के लोगों ने उसे पकड़ लिया और अपने मुखिया के घर ले गये ! मुखिया ने कहा, अरे ये तो मेरे पिता का दास था, एक दिन मेरे पिता ने इसे खो दिया था, इसके पिता भी मेरे पिता के दास थे ! लोगों ने मुखिया की बात पर भरोसा कर के कालीक्यू को उसे सौंप दिया ! अगले दिन जब मुखिया की पुत्री बेरियां चुनने जा रही थी तो उन्होंने दास को डोंगी की अंडाकार पतवारें लेकर अपने साथ चलने कहा ! मुखिया ने कहा, ये एक शानदार नाविक है, लोगों ने मुखिया की बात पर विश्वास किया ! जब उन्होंने अपनी यात्रा प्रारम्भ की तो दास, कहने लगा, सेस, सेस, सेस, इस पर मुखिया ने अपने भाई से कहा, मेरे साथ यात्रा पर निकलते समय ये बचपन से ही ऐसा कहा करता था !

भाई को कुछ भी याद नहीं आया, तो मुखिया ने कहा, तुम मुझसे बड़े हो, भला ये तुम्हे कैसे याद नहीं है ! तुम बेकार व्यक्ति हो ! आख़िरकार वे उस जगह पहुंच गये, जहां बेरियां मौजूद थीं, लड़की ने संदूक को थोड़ा सा खोला, जैसे ही सूर्य की एक झलक दिखाई दी, दास ने झपट कर संदूक को पूरा खोल दिया और फिर हर तरफ दिन का प्रकाश फ़ैल गया ! इसके बाद कालीक्यू दूर भाग गया, लोगों ने उसे पकड़ने की कोशिश की...पर नाकाम रहे ! उन्होंने मुखिया की बेदम पिटाई की, क्यों कि उसके झूठ के कारण ही सूर्य उनके हाथों से निकल गया था ! इधर कालीक्यू वापस अपने क्षेत्र में जा पहुंचा और उसने लोगों से कहा, आज के बाद हम...हम सभी लोग सूर्य से आनंदित होंगे,  ना कि कोई अकेला व्यक्ति !

ये अनुश्रुति, असामान्य से घटनाक्रम को लेकर कही गई प्रतीत होती है, जहां एक मुखिया प्रकृति प्रदत्त संसाधन पर कब्ज़ा कर लेता है, जिसके कारण से अन्य समुदाय, प्रकृति के इस उपहार से वंचित रह जाते हैं ! ऐसा लगता है कि इस कब्ज़ेदारी से या तो मुखिया का अपना परिवार ही लाभान्वित हो रहा था या अधिक से अधिक उसका अपना समुदाय ! निकटस्थ क्षेत्रों के अन्य समुदाय / कबीलों में इस बात की टीस थी कि वे लोग, उक्त मुखिया के अपकृत्य के चलते अंधेरों में जी रहे हैं, जबकि रौशनी पर उनका भी हक होना चाहिए ! मुखिया ने रौशनी, जिसे कि इस आख्यान में सूर्य कहा गया है, को अपने संदूक में कैद कर रखा था और वो उसे इतना ही मुक्त करता, जितना कि उसके अपने परिजनों / समुदाय के लिये पर्याप्त होता !   

अन्य स्थानीय अमेरिकन इन्डियन कबीलों को रौशनी से वंचित बने रहने का अहसास था सो उन्होंने, संयुक्त ग्राम परिषद में सूर्य की मुक्ति के लिये पारस्परिक चर्चा की ! रौशनी की मुक्ति के लिये वे इस हद तक जा सकते थे कि कब्जेदार मुखिया के घर से रौशनी की चोरी कर ली जाए, यानि कि वे जस को तस की धारणा पर अमल करने के लिये तैयार थे ! कालीक्यू निश्चित रूप से उन सभी कबीलों में सुयोग्य युवा रहा होगा तभी तो उसे एक सुर से यह दायित्व सौंपा गया ! सूर्य का कब्जेदार मुखिया लालची प्रवृत्ति का है, यह बात कालीक्यू भली भांति जानता था, इसीलिए उसने स्वयं को एक दास के रूप में प्रस्तुत कर, मुखिया के लालचीपन का लाभ उठाया, उसके परिवार में घुसपैठ करने में सफल हुआ !

इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि लालची मुखिया अपनी ही प्रवृत्ति का शिकार हुआ, पहले उसने सार्वजनिक हितकारिणी रौशनी पर निज स्वार्थ्य वश कब्ज़ा किया फिर एक दास पर मुफ्त का स्वामित्व पाने की गरज़ से अपने परिजनों और अपने ही समुदाय के लोगों से झूठ पर झूठ बोला ! उसने अपने बड़े भाई को, स्वयं के झूठ की स्थापना के नाम से जानबूझ कर लताड़ा, बहरहाल कालीक्यू ने रौशनी पर अनाधिकृत कब्जाधारी परिवार / समुदाय का विश्वास जीता, उनके साथ बना रहा और मुखिया के लालच  का फायदा उठाया ! मुखिया की पुत्री के हाथों से रौशनी को मुक्त करने के लिये उसने तब तक इंतज़ार किया, जब तक कि उसे इस तथ्य कि पुष्टि नहीं हो गई कि सूर्य / रौशनी वास्तव में उस संदूक / बंधन में मौजूद है !

शेष कथा यह कि कालीक्यू ने रौशनी को बंधन / कैद से मुक्त किया और स्वयं को भी रौशनी के कब्जेदार कबीले के हाथों में पड़ने से बचाया, वह विवेकवान, संयत और अवसरों के अनुकूल चपल हो जाने वाला युवा था ! उसने सार्वजनिक हित के लिये जोखिम मोल लिया और अपने उद्देश्य में सफल हुआ ! सबसे अहम बात ये कि उसने अपनी सकुशल वापसी के उपरान्त कहा कि आज के बाद हम सभी लोग सूर्य से आनंदित होंगे ना कि कोई अकेला व्यक्ति, यानि कि नैसर्गिक संसाधनों / प्रकृति प्रदत्त आलोक पर सब का हक !


सोमवार, 29 जुलाई 2013

और यूं तारे बने...!

रोला-मानो एक वृद्ध व्यक्ति था , जो कि अथाह नील महासागर और उसके अदभुत चमकदार मोतियों , श्वेत फेन और गुलाबी कोरल का स्वामी था , वह महासागर की गहराइयों में परछाइयों और विलक्षण रूपों वाली राजधानी का शासक था , वहां सूर्य की रौशनी , हरे और भूरे रंग की किरणों के तौर पर नीचे उतरती थी ! इस अजीब-ओ-गरीब भूमि पर भूरे , हरित समुद्री शैवाल / सिवार जैसे पौधे थे , जिनकी लंबी बांहें , लहरों के साथ आगे पीछे , ऊपर नीचे डोलती रहतीं...और इसके अतिरिक्त कई जगह समुद्री घास के बिखरे टुकड़े जो कि किसी हिम कन्या के महीन और मुलायम बालों जैसे दिखाई देते !  समुद्री शैवाल और वनस्पति के नीचे की अंधेरी गहराई हजारों भय पैदा करती !

वहां एक विशाल काले पत्थर की गुफा का महाकाय आक्टोपस अपनी भुजाओं को फैलाये भोजन की खोज में लगा रहता , उसकी बड़ी बड़ी किन्तु दीप्तिहीन आंखें गोया पानी को नापती रहतीं ! पास ही एक भूरी शार्क , शैवाल के अंदर और बाहर तीव्र गति से तैरती रहती , जब कि चमकदार रंग वाली मछली , खतरे के इस पथ से बचती हुई दिखाई देती , वहीं बिखरी पड़ी रेत में धंसी सफेद सीप के खोल से बड़ा सा केकड़ा बेढंगेपन के साथ बाहर नमूदार होता और शैवाल की तरफ अपनी भूरी , सफेद भुजायें फैला देता !  यह रोला-मानो की राजधानी थी...समुद्र के उस बूढ़े व्यक्ति की ! एक दिन रोला-मानो समुद्री किनारे के दलदली मैंग्रोव के पास मछली पकड़ने गया , जहां उसने कई मछलियां पकड़ीं और उन्हें आग में भून कर खा रहा था !

उसने देखा कि दो युवतियां उसके पास आ रहीं थीं ! उनके आकर्षक सुन्दर जिस्म , नये नवेले नरकुल की तरह से लचीले थे ! उनकी आंखें शाम की नर्म रौशनी जैसी थीं ! वो जब बोलतीं , तो लगता कि रात में नदी के तट पर सरकंडों से होकर मध्यम मृदु बयार बहती हो !  रोला-मानो , उन युवतियों को पकड़ने के ख्याल से मैंग्रोव के झुरमुट में छुप गया और उनके पास आते ही उसने अपना जाल उन पर फेंका लेकिन एक युवती जाल में फंसने से बच गई और वह समुद्र की गहराई में कूद गई ! रोला-मानो उस युवती के बच निकलने से नाराज होकर उसके पीछे एक जलती हुई लकड़ी लेकर समुद्र में कूदा , लकड़ी जैसे ही समुद्र की सतह से टकराई हिस्स की आवाज के साथ रौशनी के कण आकाश में बिखर गये और तब से आज तक वे सुनहरे तारों के रूप में आकाश में मौजूद हैं !  

रोला-मानो , समुद्र में कूद गई , उस युवती को पकड़ नहीं पाया , सो उसने वापस किनारे पर लौट कर जाल में फंसी हुई युवती को हमेशा हमेशा के लिए अपने साथ रहने के मकसद से , आकाश में रख दिया !  वो युवती शाम का चमकीला तारा हुई ! अपने आराम / अधिवास के स्थान से वो युवती , हर शाम-ओ-रात अनंत धुंध के बीच से चमकते हुए , बेचैन अंधियारे समुद्र और रोला-मानो की रहस्यमयी राजधानी को आलोकित करती रहती है ! गर्मियों की साफ़ रातों में , आकाश में चमकते ढेरों तारे और वो युवती आज भी उस रात की घटना का स्मरण कराते रहते हैं जब कि रोला-मानो ने मैंग्रोव के झुरमुट में छुपकर उसे पकड़ा था और समुद्र की सतह से जलती हुई लकड़ी के टकराने से सितारे जन्में थे !

आस्ट्रेलियाई मूल के अर्वाचीन मानवों / आदिवासियों की यह कथा , अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखी जाये तो हासिल शून्य , भले ही आये पर अपनी कहन के ऐतबार से इसे एक बेहद खूबसूरत कथा माना जाएगा , नील महासागर में हरित शैवाल , समुद्र की गहराई में सूर्य की रौशनी के बदलते रंग , लहरों पर लंबी बाँहें फैलाये तैरते उतराते शैवाल / सिवार , समुद्री घास का हिम कन्या के बालों जैसा होना , महाकाय आक्टोपस की दीप्तिहीन बड़ी बड़ी आँखें , सीप की ओट से बेढंगेपन के साथ निकलता केकड़ा, शाम की नर्म रौशनी जैसी आंखों वाली युवतियां , सरकंडों के दरम्यान से बहती मृदु बयार जैसे उनके सुर , नये नवेले नरकुल जैसी उनकी देह यष्टि  वगैरह वगैरह , कथाकालीन समाज के स्व-पारिस्थितिकीय पर्यवेक्षण के अदभुत नमूने हैं !

इस आख्यान की पृष्ठभूमि नि:संदेह समुद्र तट की किसी मछुवारा बस्ती से जोड़ कर देखी जायेगी ! कथा का नायक एक वृद्ध यानि कि अनुभवी मछुवारा है , संभवतः वह अपनी बस्ती का प्रधान / मुखिया रहा होगा ! गौर तलब है कि समुद्र तटीय विशिष्ट बस्ती के मछुवारे एक निश्चित समुद्री दायरे में मत्स्याखेट किया करते हैं , इसलिए इस निश्चित जल क्षेत्र (टेरेटरी) को उस अनुभवी व्यक्ति रोला-मानो की राजधानी कहा गया है !  इतना ही नहीं इस जल क्षेत्र की तमाम संपदा यथा चमकदार मोतियों , गुलाबी कोरल , श्वेत फेन आदि आदि का स्वामी भी उसे ही माना गया है ! इस आख्यान से यह स्पष्ट प्रतीति होती है कि प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय अधिवासियों के हक / अधिकार की अवधारणा अत्यंत पुरानी है !  

अर्वाचीन समाज में स्त्रियों और अग्नि कणों को आकाशीय तारों के सदृश माना जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है ! उक्त समाज के लिए अग्नि , भोजन पकाने का ही नहीं बल्कि अंधियारे को आलोकित करने का स्थायी और कमोबेश अक्षय माध्यम भी है , समुद्र के पानी में जलती लकड़ी के टकराने से उत्सर्जित अग्नि कणों को आकाश में तारों के तौर पर टांक देने / स्थापित कर देने का आशय इसके अतिरिक्त और कुछ हो भी नहीं सकता !  एक युवती जो कि आखेटक के जाल में फंस जाती है , वो भी आखेटक के साथ हमेशा हमेशा रहने के वास्ते आकाश में बसा दी जाती है , ताकि सबसे चमकीले तारे के तौर पर बेचैन / अंधियारे समुद्र और रोला-मानो की रहस्यमयी  राजधानी को रौशन करती रहे ! कहने का आशय यह कि स्त्रियों में अंधकार को आलोकित करने की क्षमता / ऊर्जा निहित है ! यहां प्रतीकात्मक रूप से आलोक को ज्ञान भी माना जा सकता है !

इस कथा में युवतियों की आंखों / दैहिक सुगढ़ता और आवाज़ को लेकर बेहद रोमानियत भरे कथन , भले ही किये गये हों...और स्त्रियों के प्रति पुरुषों के आकर्षण को वय भेद से इतर भले ही बताया गया हो...पर यह कथा स्त्री पुरुष के दरम्यानी आकर्षण के कुछ नये और अलग से अर्थ उकेरती है !  मसलन आख्यान का नायक एक वृद्ध और अनुभवी व्यक्ति है , जो कि स्त्रियों की समाज को आलोकित करने की क्षमता से भिज्ञ / परिचित प्रतीत होता है , यानि कि वृद्ध रोला-मानो , युवतियों के प्रति आकर्षित तो है पर...उसका आकर्षण , उसकी आयु / उसके अनुभव के अनुकूल, सामाजिक सोद्देश्यता-परक है ! वह उन युवतियों की असाधारण क्षमता / ऊर्जा का इस्तेमाल , समाज हित में करना चाहता है , हमेशा हमेशा के लिये...शाम-ओ-रात के सबसे हसीन / चमकदार तारे के जैसा !