सोमवार, 21 अगस्त 2017

आलोक पर सबका हक...

बहुत पहले की बात है जब एक मुखिया ने सूर्य को अपने संदूक में कैद कर रखा था ! उसकी पुत्री जब बेरियां चुनने के लिये जंगल जाती तो संदूक अपने साथ ले जाती और ज़रा सा खोलती ताकि सिर्फ उसे ही, आस पास दिखाई दे ! जब उसकी टोकरी बेरियों से भर जाती तो वो संदूक सहित घर वापस लौट आती ! उस क्षेत्र के आस पास के अन्य समुदायों के लोग बेहद निर्धन थे, उन्होंने गावों की संयुक्त परिषद की बैठक बुलाई, जिसमें यह विचार किया गया कि सूर्य को किस तरह से वापस लाया जाए / मुक्त कराया जाये, अंततः उन्होंने यह निर्णय लिया कि कालीक्यू , सूर्य की वापसी / चोरी / मुक्ति के लिये उपयुक्त व्यक्ति है सो उसे इस कार्य के लिये अधिकृत कर दिया गया !

कालीक्यू पुराने दास का वेश बनाकर उस क्षेत्र में पहुंचा जहां सूर्य कैद था, वहां के लोगों ने उसे पकड़ लिया और अपने मुखिया के घर ले गये ! मुखिया ने कहा, अरे ये तो मेरे पिता का दास था, एक दिन मेरे पिता ने इसे खो दिया था, इसके पिता भी मेरे पिता के दास थे ! लोगों ने मुखिया की बात पर भरोसा कर के कालीक्यू को उसे सौंप दिया ! अगले दिन जब मुखिया की पुत्री बेरियां चुनने जा रही थी तो उन्होंने दास को डोंगी की अंडाकार पतवारें लेकर अपने साथ चलने कहा ! मुखिया ने कहा, ये एक शानदार नाविक है, लोगों ने मुखिया की बात पर विश्वास किया ! जब उन्होंने अपनी यात्रा प्रारम्भ की तो दास, कहने लगा, सेस, सेस, सेस, इस पर मुखिया ने अपने भाई से कहा, मेरे साथ यात्रा पर निकलते समय ये बचपन से ही ऐसा कहा करता था !

भाई को कुछ भी याद नहीं आया, तो मुखिया ने कहा, तुम मुझसे बड़े हो, भला ये तुम्हे कैसे याद नहीं है ! तुम बेकार व्यक्ति हो ! आख़िरकार वे उस जगह पहुंच गये, जहां बेरियां मौजूद थीं, लड़की ने संदूक को थोड़ा सा खोला, जैसे ही सूर्य की एक झलक दिखाई दी, दास ने झपट कर संदूक को पूरा खोल दिया और फिर हर तरफ दिन का प्रकाश फ़ैल गया ! इसके बाद कालीक्यू दूर भाग गया, लोगों ने उसे पकड़ने की कोशिश की...पर नाकाम रहे ! उन्होंने मुखिया की बेदम पिटाई की, क्यों कि उसके झूठ के कारण ही सूर्य उनके हाथों से निकल गया था ! इधर कालीक्यू वापस अपने क्षेत्र में जा पहुंचा और उसने लोगों से कहा, आज के बाद हम...हम सभी लोग सूर्य से आनंदित होंगे,  ना कि कोई अकेला व्यक्ति !

ये अनुश्रुति, असामान्य से घटनाक्रम को लेकर कही गई प्रतीत होती है, जहां एक मुखिया प्रकृति प्रदत्त संसाधन पर कब्ज़ा कर लेता है, जिसके कारण से अन्य समुदाय, प्रकृति के इस उपहार से वंचित रह जाते हैं ! ऐसा लगता है कि इस कब्ज़ेदारी से या तो मुखिया का अपना परिवार ही लाभान्वित हो रहा था या अधिक से अधिक उसका अपना समुदाय ! निकटस्थ क्षेत्रों के अन्य समुदाय / कबीलों में इस बात की टीस थी कि वे लोग, उक्त मुखिया के अपकृत्य के चलते अंधेरों में जी रहे हैं, जबकि रौशनी पर उनका भी हक होना चाहिए ! मुखिया ने रौशनी, जिसे कि इस आख्यान में सूर्य कहा गया है, को अपने संदूक में कैद कर रखा था और वो उसे इतना ही मुक्त करता, जितना कि उसके अपने परिजनों / समुदाय के लिये पर्याप्त होता !   

अन्य स्थानीय अमेरिकन इन्डियन कबीलों को रौशनी से वंचित बने रहने का अहसास था सो उन्होंने, संयुक्त ग्राम परिषद में सूर्य की मुक्ति के लिये पारस्परिक चर्चा की ! रौशनी की मुक्ति के लिये वे इस हद तक जा सकते थे कि कब्जेदार मुखिया के घर से रौशनी की चोरी कर ली जाए, यानि कि वे जस को तस की धारणा पर अमल करने के लिये तैयार थे ! कालीक्यू निश्चित रूप से उन सभी कबीलों में सुयोग्य युवा रहा होगा तभी तो उसे एक सुर से यह दायित्व सौंपा गया ! सूर्य का कब्जेदार मुखिया लालची प्रवृत्ति का है, यह बात कालीक्यू भली भांति जानता था, इसीलिए उसने स्वयं को एक दास के रूप में प्रस्तुत कर, मुखिया के लालचीपन का लाभ उठाया, उसके परिवार में घुसपैठ करने में सफल हुआ !

इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि लालची मुखिया अपनी ही प्रवृत्ति का शिकार हुआ, पहले उसने सार्वजनिक हितकारिणी रौशनी पर निज स्वार्थ्य वश कब्ज़ा किया फिर एक दास पर मुफ्त का स्वामित्व पाने की गरज़ से अपने परिजनों और अपने ही समुदाय के लोगों से झूठ पर झूठ बोला ! उसने अपने बड़े भाई को, स्वयं के झूठ की स्थापना के नाम से जानबूझ कर लताड़ा, बहरहाल कालीक्यू ने रौशनी पर अनाधिकृत कब्जाधारी परिवार / समुदाय का विश्वास जीता, उनके साथ बना रहा और मुखिया के लालच  का फायदा उठाया ! मुखिया की पुत्री के हाथों से रौशनी को मुक्त करने के लिये उसने तब तक इंतज़ार किया, जब तक कि उसे इस तथ्य कि पुष्टि नहीं हो गई कि सूर्य / रौशनी वास्तव में उस संदूक / बंधन में मौजूद है !

शेष कथा यह कि कालीक्यू ने रौशनी को बंधन / कैद से मुक्त किया और स्वयं को भी रौशनी के कब्जेदार कबीले के हाथों में पड़ने से बचाया, वह विवेकवान, संयत और अवसरों के अनुकूल चपल हो जाने वाला युवा था ! उसने सार्वजनिक हित के लिये जोखिम मोल लिया और अपने उद्देश्य में सफल हुआ ! सबसे अहम बात ये कि उसने अपनी सकुशल वापसी के उपरान्त कहा कि आज के बाद हम सभी लोग सूर्य से आनंदित होंगे ना कि कोई अकेला व्यक्ति, यानि कि नैसर्गिक संसाधनों / प्रकृति प्रदत्त आलोक पर सब का हक !