बुधवार, 23 अगस्त 2017

बूढ़े के बच्चे...

उस दिन चांद, सूरज, हवा, इंद्रधनुष, बिजली, अग्नि और पानी, एक बूढ़े से मिले ! बूढ़ा व्यक्ति ईश्वर था ! उन सबकी बैठक में एक इंसान को भी आमंत्रित किया गया था ! बिजली ने बूढ़े से पूछा, क्या आप दुनिया के इंसानों को मेरे बच्चे बना सकते हो ? नहीं वे तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते बल्कि पोते हो सकते हैं, बूढ़े ने कहा ! जब दुनिया के लोगों पर कोई मुसीबत आयेगी / बोझ आएगा तो तुम उसके निराकरण कर्ता होओगे, फिर सूरज ने यही सवाल,उस बूढ़े से किया, बूढ़े ने उत्तर दिया, नहीं, नहीं वे तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते बल्कि मित्र और पोते हो सकते हैं, तुम्हारा अस्तित्व उन्हें रौशनी देने के लिये है, बस !

इसके बाद चांद ने पूछा, क्या धरती के लोग मेरे बच्चे हो सकते हैं, बूढ़े ने कहा, नहीं मैं ये नहीं कर सकता, वे तुम्हारे भतीजे और मित्र हो सकते हैं ! अब अग्नि ने बूढ़े से कहा, क्या आप धरती के लोगों को मेरे बच्चे बना सकते हैं ? बूढ़े ने जबाब दिया, नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता,लेकिन वे तुम्हारे पोते होंगे,वे तुमसे ऊष्मा पायेंगे और जीवित रहने के लिये तुम्हारा पकाया हुआ खायेंगे ! इसके बाद यही सवाल हवा ने पूछा तो बूढ़े ने कहा, नहीं वे तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते बल्कि वे तुम्हारे पोते होंगे ताकि तुम उनसे बीमारियों और प्रदूषण को दूर ले जाओ !

फिर इंद्रधनुष ने भी यही अभिलाषा व्यक्त की, तो उस बूढ़े ने कहा, नहीं वे तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते बल्कि तुम उन्हें बाढ़ और अति वर्षा से बचाओगे और तुम इसी तरह से सम्मानित होओगे ! इसके बाद पानी ने यही सवाल उस बूढ़े से किया तो बूढ़े ने उत्तर दिया, नहीं ऐसा नहीं हो सकता बल्कि तुम उन्हें स्वच्छ किया करोगे, जब भी वे गंदे हो जायेंगे ! इस के लिये तुम्हें लंबे आदमी के तौर पर जाना जाएगा ! अब उस बूढ़े ने कहा कि मैंने तुम सबको यह मार्गदर्शन दिया है कि क्या करना है और कैसे करना है, तुम सब यह अवश्य याद रखना कि धरती के लोग मेरे बच्चे हैं !

अनुभव समृद्ध को बूढ़ा कहने की परंपरा लगभग हर एक समय में, सभी समाजों में मौजूद रही है ! ग्राम्य व्यवस्था के अधीन जातिगत पंचायतें, परंपरा आधारित होती आई हैं, जिन्हें अक्सर वृद्धजन परिषद भी माना गया है ! इन परिषदों को विधायिका सह कार्यपालिका से लेकर न्याय पालिका तक के समेकित अधिकार प्राप्त राजनैतिक सामाजिक संगठन बतौर स्वीकार किया जा सकता है, यानि कि अनुभवी लोगों के मार्गदर्शन में चलने वाली समाज व्यवस्था ! डोकरा / सयान / बूढ़ा, बढ़ती आयु के लोगों के लिये प्रयुक्त किये जाने वाले सहज और सामान्य संबोधन हैं !

इसमें अचरज की बात नहीं कि यह आख्यान, ईश्वर को बूढ़ा व्यक्ति कहता है !  ईश्वर जो पारलौकिक शक्ति है, सर्वोच्च सत्ता शिखर है, सृजनहारा है, उसे अर्वाचीन समुदाय द्वारा बूढ़ा मान लेना कोई असामान्य बात नहीं है ! कथा में विविध प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा ईश्वर उर्फ बूढ़े से यह कामना की जाती है कि, धरती के मनुष्य इन प्राकृतिक शक्तियों के बच्चे मान लिये जायें, किन्तु बूढ़ा व्यक्ति इन सभी शक्तियों को उनके पृथक पृथक दायित्वों से परिचित कराता है और स्पष्ट रूप से कह देता है कि मनुष्य, इन प्राकृतिक शक्तियों के बच्चे नहीं हैं !

वे मित्र हो सकते हैं, प्रपौत्र हो सकते हैं या अन्य कोई सगे संबंधी पर...बच्चे नहीं, क्योंकि धरती के सारे मनुष्य स्वयं इस बूढ़े व्यक्ति के बच्चे हैं ! बूढ़े व्यक्ति के अभिमत में मनुष्यों के प्रति सारी प्राकृतिक शक्तियां अलग अलग तरह से उत्तरदाई हैं ! बूढ़े व्यक्ति और अन्य प्राकृतिक शक्तियों के मध्य होने वाला वार्तालाप बहुत दिलचस्प है किन्तु सबसे अधिक महत्वपूर्ण कथन ये है कि पानी को मनुष्य की सहायता के एवज में लंबे व्यक्ति के रूप में जाना जाएगा ! नि:संदेह यह कथन जल बिन मनुष्य के अस्तित्व और स्वच्छता के कारण मनुष्य के दीर्घजीवी होने के आशय को लेकर किया गया कथन है !