आज सुबह सवेरे कडकडाती ठण्ड में स्नान ध्यान करके ऑफिस पहुंचा तो लगा शायद ध्वजारोहण का उतावलापन मुझे ही है ! मित्रगण घड़ियों के कांटे नापते तौलते आहिस्ता आहिस्ता पहुंचते रहे और मैं उनके मशीनी अंदाज़ पर खीजता रहा ...महसूस हुआ कि वे सब ड्यूटी पर हैं वर्ना मुमकिन है ... ना भी आते ! उनके चेहरे हमेशा की तरह अवसरों पर ढल जानने की कला में निष्णात सो पता भी नहीं चला कि वे सच में उल्लसित है या...? घर वापसी में सोचा कि थोड़ी बहुत ब्लागरी कर ली जाये लिहाज़ा अपडेट देखने के चक्कर में द्विवेदी जी के अनवरत में प्रकाशित हुई कविता और तस्वीरों से चिपक गया ...पता नहीं वे इतनी सुन्दर सुन्दर तस्वीरें कहां से लाते हैं ? बॉडी बिल्टअप...घिसापिटा / मुरझाया / कुम्हलाया / कैसा भी हो मन कुलांचें भरने लगता है ! यक़ीनन यहां पर घडियां उल्टी चलती हैं !
आज छुट्टी का दिन है और मैं घर पर हूँ पर बीबी दुखी नहीं ... दूसरों की बीबियां ब्लागिंग के बारे में क्या सोचतीं हैं पता नहीं ? पर अपनी बेगम बेहद खुश होती हैं , खास तौर पर अगर छुट्टी का दिन हो और मैं ब्लागिंग से जूझना चाहूं तो उनका चेहरा खिल उठता है ! उनकी खुशियों को ध्यान में रखते हुए मैं भी एडजस्टमेंट करता हूँ ! अरे भाई अगले ब्रेक में चाय तो दे दीजिये और मजाल है जो विज्ञापन ख़त्म होने से पहले चाय मेरी टेबल पर मौजूद ना हो ! यूं तो मैं इस बात का ज़िक्र पहले भी कभी कर चुका हूँ कि टीवी सीरियल्स नें हमारी जिन्दगी और संबंधों की रवानगी की कुछ नयी सी समय सारणी फिक्स कर डाली है ! सीरियल्स उनकी कमजोरी है ... तो बच्चों के अपने शौक हैं यानि कि कार्टून्स और मैं... न्यूज़ चैनल पर अटका हुआ !
इधर मैं तो न्यूज़ चैनल्स की बलि देकर ब्लागिंग से दिल लगाता हूँ ... एडजस्टमेंट कर लेता हूँ ! लेकिन बच्चे ...उनका कुडकुडाना जारी रहता है ! वे अपनी मां से तर्क करते हैं सीरियल्स को लेकर...सारे सीरियल्स की कहानी एक जैसी क्यों है ? सभी में एक अदद स्त्री भली मानुष बनते हुए लगातार अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारती रहती है ? ये लोग रोने धोने से पहले इतना मेकअप क्यों करते हैं ? और मम्मी ये पवित्र रिश्ता वाले इतना कैसे रो पाते हैं ?
बच्चों का ख्याल है कि समंदर से जुडी हुई आँखे और कर भी क्या सकती हैं ? ये बच्चों का उपहास ही सही पर मैं भी सोचता हूँ ... कि सीरियल्स में इतनी इमोशनल क्राइसेस...भला क्यों ?