शनिवार, 19 अगस्त 2017

औषध ज्ञानी का आर्तनाद

बीते समय की बात है जबकि, तस्करोरा प्रदेश में एक महाकाय और भयावह मच्छर रहता था, इतना बड़ा कि जब वो उड़ान भरता तो सूरज दिखना बंद हो जाता, मानो रात हो गई हो ! उसके पंख फैलाने का मतलब, घनघोर तूफ़ान आने के जैसा ! उसे जब भी भूख लगती, वो तस्करोरा बस्ती जाता और एक या दो व्यक्तियों को उठा लेता, उनका खून चूसता यहां तक कि उनकी हड्डियां तक साफ़ कर डालता ! तस्करोरा योद्धा बारम्बार प्रयत्न करते कि इस आततायी को मार डालें पर उनके तीर उसके सामने सूखी पत्तियों की तरह गिर जाते ! योद्धाओं को समझ में नहीं आता कि वे क्या करें, क्या ना करें ! गांव के मुखिया और औषध ज्ञानी ने गांव के लोगों की आम सभा बुलाई ताकि सब मिलकर, सृजनहारे ईश्वर से प्रार्थना करें कि वो, इस महाकाय मच्छर का विनाश कर दे ! उन सब ने मिलकर बड़ी आग जलाई, स्तुति वन्दन किया / भजन गाये और प्रार्थना की !

चमगादड़ और मकड़ी ने उनका आर्तनाद सुना और सोचा कि, वो दोनों, किस तरह से, इन लोगों की मदद कर सकते हैं !  चमगादड़ आकाश से नीचे आया ताकि महाकाय मच्छर से युद्ध कर के उसे नष्ट कर सके और मकड़ी ने बड़ा सा जाल बुना ताकि दानवाकार मच्छर को फंसाया सके ! मच्छर ने यह सुना ! वो जानता था कि वो, चमगादड़ से युद्ध में जीत नहीं पायेगा, सो उसने वहां से पलायन करना तय किया और तेजी उड़ चला, दूर, इतना दूर कि कोई उसे देख ना सके ! उसकी उड़ान बिजली से तेज थी लेकिन चमगादड़ ने उसका पीछा किया, उतना ही तेज ! विशाल मच्छर झीलों, नदियों, तालाबों, पर्वतों के ऊपर से होकर उड़ा !  चमगादड़ उसके ठीक, पीछे पीछे उड़ता रहा, बिना थके ! राक्षस मच्छर महासागर की ओर, बाजों के जैसी तेज गति से उड़ा किन्तु चमगादड़ ने उसे लगभग पकड़ ही लिया !

तब सूरज आकाश के अंतिम छोर पर बिखरी हुई लाल धुंध में डूब रहा था ! मच्छर ने मुड़कर देखना चाहा कि चमगादड़ उससे कितना दूर है, ऐन उसी समय वो मकड़ी के विशाल जाले से टकराया और उसमें फंस गया ! इसके बाद लड़ाई ज्यादा देर तक नहीं चल सकी, मच्छर के टुकड़े टुकड़े कर दिये गये हालांकि उसके नष्ट होते ही, उसका खून सभी दिशाओं में दूर दूर तक बिखर गया ! इसके बाद एक विस्मयकारी घटना घटी, खून की बूंदों से नन्हें नन्हें, हजारों मच्छर उत्पन्न हो गये, जिनके डंक बेहद पैने थे ! जन्म के फ़ौरन बाद उन्होंने बिना किसी भेदभाव के, मनुष्यों और पशुओं पर अपने नुकीले डंकों की सहायता से हमला करना ज़ारी रखा! ये घटना बहुत पुरानी है, लेकिन चमगादड़ आज भी हर रात उनका शिकार किया करता है और मकड़ी उन्हें पकड़ने के लिये जाला बुना करती है !

ये आख्यान, तमाम निषेधात्मक उपायों के बावजूद धरती पर, मच्छरों के निरंतर जीवित बने रहने, कम-ओ-बेश, उनकी नस्ल के अमर होने जैसा कथन करता है ! मच्छरों से परेशान आदिम समुदाय, योद्धाओं के तीरों के सूखी पत्तियों की तरह नीचे गिर जाने /  निष्फल रह जाने का विवरण देता है ! वे मच्छरों से इतने अधिक आतंकित हैं कि उनके महाकाय पूर्वज की कल्पना करते हैं, दैत्याकार, दानवतुल्य, जिसके रक्त की बूंदों से अनगिनत मच्छरों का जन्म हुआ ! यह कहना दिलचस्प है कि मच्छरों का पितामह रक्त चूसक होने के साथ ही साथ मनुष्यों की हड्डियां तक साफ़ कर देता था, संभवतः ये कथन मच्छरों के कारण हो रही, मानवीय मृत्युओं को संबोधित है ! मच्छरों से निपटने में असफल योद्धाओं को बौद्धिक रूप से असहाय मान लेने का आशय यही हो सकता है कि मच्छरों के विनाश के लिये बनाई गई, उनकी समस्त योजनाएं निष्फल हुई होंगी / अकारथ हो गईं होंगी !

अनुश्रुति कहती है कि मुखिया ने औषध ज्ञानी के साथ मिलकर एक आम सभा का आयोजन किया जोकि मूलतः सारे भौतिक, दैहिक उपायों के असफल हो जाने के बाद अधिप्राकृतिक / पारलौकिक शक्तियों के हस्तक्षेप की याचना सभा यानि कि एक धार्मिक आयोजन जैसी है, आशय यह कि जब स्वयं से भरोसा उठ जाए तो ईश्वर पर विश्वास करने के जैसा ! योद्धाओं के इतर  औषध ज्ञानी अर्थात वैद्य का ईश्वरीय शक्तियों के समक्ष समर्पण / प्रार्थना सभा में हिस्सेदार हो जाना, तत्कालीन समाज में मौजूद  सम्पूर्ण चिकित्सा उपायों की असफलता का उदघोष है ! ये आख्यान प्रकृति में सर्व-जीव जगत के पारस्परिक संबंधों, प्रजनन आधिक्य के प्राकृतिक निषेध, संख्या संतुलन के विवरण भी प्रस्तुत करता है ! निःसंदेह उत्तरी कैरिलोना के तस्करोरा समुदाय के प्रकृति पर्यवेक्षण का बेहतरीन दृष्टान्त है, यह विवरण !  

महाकाय मच्छर,चमगादड़ और मकड़ी से डरता है, वो उनसे युद्ध नहीं चाहता, लेकिन मुठभेड़ यथार्थ है, उसे होकर रहना है, मकड़ी का जाल उसके लिये शाश्वत मृत्यु बंधन है ! अनुश्रुति, पृथ्वी के क्षितिज पर व्यापित लाल धुंध में सूरज के डूबने का बयान देती है, जबकि विशाल मच्छर, मकड़ी के जाल में फंस कर अपनी जान गंवा बैठता है / खून की बूंदों में तब्दील हो जाता है और फिर बूंदें नन्हें मच्छरों में ! जहां पूर्वज मच्छर, मनुष्यों का शिकार करता था, वहीं नन्हें मच्छर अन्य पशु पक्षियों को भी अपना शिकार बनाने लगते हैं, बिना पूर्वाग्रह, सबका खून पीना और जीवित बने रहने का यत्न करना ! कथा पुरानी है, कथा नई भी है ! मनुष्यों के शत्रु मच्छरों को, मनुष्यों के अधुनातन औषध शस्त्रों के अतिरिक्त चमगादड़ और मकड़ी ही नहीं, गम्बूसिया मछली से भी डरना चाहिए...