चाहनामीड समुद्री किनारे से दूर एक द्वीप में
अकेला रहता था, उसके पास एक घर और दो डोंगियां थी ! डोंगियां, ताकि वो आस पास आना
जाना कर सके ! एक दिन उसने मुख्य भूमि के समुद्र तट पर खूबसूरत युवती को देखा,
उसने युवती से कहा, चलो मेरे साथ द्वीप में रहना ! पहले युवती झिझकी...फिर चाहनामीड
के दबाब में द्वीप जाने को तैयार हो गई, युवती ने कहा, द्वीप में रहने के लिये उसे
कुछ वस्तुओं की आवश्यकता होगी, फिर वो अपने घर गई और वहां से लकड़ी का बड़ा खल बट्टा
तथा कुछ अंडे लेकर आई ! इसके बाद वो दोनों डोंगी में बैठ कर द्वीप जा पहुंचे, जहां
बहुत दिनों तक एक साथ रहे ! लंबे समय तक अविवाहित रहने के कारण चाहनामीड की अपनी
ही तरह की आदतें थीं, यथा अपनी पत्नि को बताये बिना, वो लंबे समय के लिये घर से
बाहर चला जाया करता, उसकी पत्नि को यह पसंद नहीं था पर...वो कुछ कहती नहीं थी !
निर्जन द्वीप में अकेला रहना उसे अच्छा नहीं लगता था, सो उसने, चाहनामीड को छोड़ने
का फैसला कर लिया !
वापस जाने की तैयारी में उसने बहुत सारी गुड़ियां
बनाईं, जिनमें से एक अन्य सब से बड़ी थी, आदतानुसार जैसे ही चाहनामीड, घर से गायब
हुआ, युवती ने तट पर रखी दूसरी डोंगी में खल बट्टा सहित कुछ अण्डों को रख दिया और
घर वापस लौट कर गुड़ियों को करीने से सजा दिया, कुछ इस तरह कि सबका मुंह घर के मध्य
भाग की तरफ रहे, फिर उसने सबसे बड़ी गुड़िया को बिस्तर में लिटा कर, उसे फर से ढंक
दिया ! युवती ने सारी गुड़ियों के पास थोड़ा थोड़ा जादुई पदार्थ भी रख दिया ! इसके
बाद वो डोंगी लेकर मुख्य भूमि की ओर चल पड़ी ! जब चाहनामीड घर वापस लौटा तो उसने
अपनी पत्नि को आवाज़ दी पर इसका कोई जबाब उसे नहीं मिला ! घर के अंदर घुस कर उसने
गुड़ियों को देखा जो उसका मुंह दूसरी तरफ घूमते ही ठठाकर हंसतीं ! चाहनामीड को लगा
कि बिस्तर पर उसकी पत्नि होगी सो उसने एक बड़ी छड़ी के सहारे बिस्तर से फर को हटाया,
उसने देखा कि वो एक बड़ी गुड़िया थी, जो दूसरी गुड़ियों के मुकाबले और भी जोर से हंसी
!
चाहनामीड ने चारों तरफ ध्यान से देखा, घर में खल
बट्टा नहीं था, वो समझ गया कि युवती उसे छोड़कर जा चुकी है ! वो दौड़ते हुए तट पर
पहुंचा तो उसने पाया कि उसकी दूसरी डोंगी पानी में बहुत दूर तक जा चुकी है ! उसकी
पत्नि मुख्य भूमि में पहुंचने के लिये डोंगी को बहुत तेजी से खे रही थी, वो पहली
डोंगी लेकर पत्नि के पीछे चल पड़ा, यथा शक्ति तेज दर तेज, चूंकि वो अपनी पत्नि से
बेहतर और ताकतवर खिवैय्या था सो जल्द ही पत्नि की डोंगी के निकट जा पहुंचा ! यह
देख कर पत्नि, डोंगी के अगले हिस्से में गई और उसने पानी में बट्टे को फेंक दिया जो
सैकड़ों बट्टों में तब्दील हो गया ! डोंगी के सामने से इतने सारे बट्टे हटाने में
चाहनामीड को समय लगा, तब तक युवती और भी दूर जा चुकी थी ! चाहनामीड ने चप्पू ज्यादा
तेज चलाये और फिर से युवती के नज़दीक जा पहुंचा ! इस बार युवती ने पानी में खल
फेंका, जो सैकड़ों खल में तब्दील हो गया, जिससे चाहनामीड के सामने एक नई बाधा खड़ी
हो गई, उसने जैसे तैसे सैकड़ों खल सामने से हटाये !
उसने पुनः युवती के निकट पहुंचने की कोशिश की,
लेकिन इस बार युवती ने पानी में अंडे फेंक दिये ! अण्डों की बाधा को रास्ते से हटा कर चाहनामीड,
युवती को पकड़ने के लिये लेकर आगे बढ़ा, चूंकि युवती के पास अन्य कोई सामग्री नहीं
बची थी, जिससे कि वो परित्यक्त पति का रास्ता रोक पाती, सो वो डोंगी में खड़ी हो गई
और उसने अपने सिर से एक लम्बा बाल तोड़ा, जो उसके हाथों में आते ही भाले की तरह से सख्त
हो गया, जिसे उसने चाहनामीड के माथे की ओर निशाना साध कर फेंका, चूंकि चाहनामीड
तेजी से डोंगी खे रहा था तो वो यह देख नहीं सका कि युवती ने क्या किया ! भाला तेजी
से चाहनामीड के माथे पर टकराया जिसके कारण वो डोंगी से पलट कर, नीचे पानी में गिर
गया और डूब कर मर गया ! इसके बाद वो युवती मोहेगान लोगों तक वापस जा पहुंची और
उसने मृत्यु होने तक का जीवन सुख पूर्वक जिया !
आख्यान कहता है कि युवक, सुंदर युवती की ओर
आकर्षित हुआ और उसने युवती को सहजीवन व्यतीत करने के लिये प्रेरित / आमंत्रित किया
! युवती प्रथम दृष्टया अनिच्छुक थी फिर युवक के साथ जाने के लिये उसकी सहमति,
स्त्रियोचित लज्जा जनक हो सकती है, चूंकि इस ब्याह कथा में, ब्याह के समय
अभिभावकों का विवरण अलोप हैं सो माना जा सकता है कि यह प्रेम विवाह रहा होगा !
हालांकि युवती ने अनजाने द्वीप की ओर प्रस्थित होने से पहले, मक्का कूटने के लिये
खल बत्ता रख लिया और अंडे शायद इसलिए कि घरेलू स्तर पर, खाने योग्य परिंदों के
प्रजनन / पुनुरुत्पादन / मांसाहार की सतत व्यवस्था बनी रहे ! निश्चय ही युवती,परिवार
बसाने की आकांक्षा के साथ मुख्य भूमि छोड़ कर द्वीप में पहुंची थी लेकिन पारिवारिक
सामंजस्य के अभाव की कल्पना भी उसने नहीं की होगी, युवक को अकेले रहने की आदत थी,
वह पहले भी किसी अन्य व्यक्ति के लिये उत्तरदायी नहीं था सो उसे, घर में अपनी उपस्थिति
/ अनुपस्थिति का विवरण किसी अन्य को देने का अभ्यास ही नहीं था !
कथन मंतव्य यह कि, कामजनित कारणों से युवती, उस
युवक के जीवन में आई ज़रूर, लेकिन वह युवक अपने एकाकी जीवन काल की आदतों में अपेक्षित
संशोधन नहीं कर सका जबकि युवती अपने बंधु बांधवों को तज कर युवक के भरोसे में,
सहजीवन व्यतीत करने आई थी और परिवार चलाने की उसकी तैयारी, खल बत्ते और अण्डों की
सांकेतिकता से स्पष्ट है ही ! हम मान सकते हैं कि युवती सामुदायिक जीवन छोड़कर, एक
अकेले युवक के साथ रहने के लिये तत्पर थी किन्तु युवक अपने सामाजिक दायित्व के
निर्वहन के लिये तैयार नहीं था ! उसे यह भी ध्यान नहीं रहा कि युवती ने उसके लिये
क्या क्या छोड़ा है और उसे युवती के त्याग की एवज किन किन अपेक्षाओं पर खरा उतरना
चाहिए ! बहरहाल कथा, युवक की लंबी अनुपस्थिति के बावजूद, कुछ नहीं कहने के आशय से युवती
के संयम का संकेत देती है लेकिन युवक, साहचर्य को लेकर पत्नि की अपेक्षाओं को समझ ही
नहीं सका या शायद महसूस ही नहीं कर पाया
!
प्रेम में एक पक्षीय त्याग / समर्पण /
अनुभूतियों की समझ को ढ़ोने का ठेका निश्चय ही उस युवती के हिस्से नहीं आया था,
जोड़ा हो जाने के हालात में यह सब उस युवक का भी कर्तव्य था ! संभवतः द्वीप पर
एकाकी जीवन जीते हुए उस युवक को, पशुवत यौनिकता का बोध अर्थात संगी से मिलो, सहवास
करो और भूल जाओ का, ज्ञान तो था पर...उसे प्रणय और सहजीवन के मौलिक दायित्वों का
बोध ही नहीं था ! युवती ने पति को पर्याप्त समय देने के उपरान्त ही परित्याग का
निर्णय लिया ! उसने मुख्य भूमि की ओर पलायन करने से से पूर्व, पति से पिंड छुड़ाने
के लिये यथा संभव तैयारियां की थीं, जो जल यात्रा के दौरान उसके काम आयीं !
दिलचस्प बात ये कि गृहस्थी के लिये जुटाये गये सामान का इस्तेमाल उसने, पीछा कर
रहे परित्यक्त पति को बाधा पहुंचाने के लिये किया ! इस आख्यान बांचते हुए प्रतीत
होता है कि कथाकालीन समुदाय की उक्त युवती को निर्णय लेने का अधिकार था सो उसने
ब्याह करने का निर्णय लिया और परित्याग का भी ! इतना ही नहीं आक्रामक होते हुए,
परित्यक्त पति / पुरुष के वध का निर्णय भी...