सोमवार, 14 अगस्त 2017

फंदे में हवा

शुरुआत में हवा, बेहद हिंसक गति के साथ बहा करती थी ! वो अक्सर, आदिम धरती के वाशिंदों की जान ले लेती और उनकी संपत्ति तहस नहस कर डालती ! उन दिनों झूलते पुल के पास एक व्यक्ति अपने तीन पुत्रों के साथ रहता था, उसके पुत्रों में सबसे छोटा, बहुत महत्वाकांक्षी था, वो नित नये और अद्भुत कार्य करता रहता ! एक दिन उसने अपने पिता और भाइयों से कहा, मैं हवा को फंदे में फंसाना चाहता हूं, ये सुनकर वे सभी उस पर हंसे ! उन्होंने कहा, हवा तो दिखती ही नहीं, तुम उसे कैसे फांसोगे ? खिल्ली उड़ाये जाने के बाद भी, वो बाहर गया और उसने फंदा लगाया !

वो कई रातो तक असफल रहा, क्योंकि उसका फंदा बहुत लंबा था, बहरहाल वो हर एक रात उस फंदे को छोटा करता जाता और सुबह आकर फंदे को देखा करता, एक सुबह उसने देखा कि हवा उसके छोटे से फंदे में फंस गई है ! बड़ी मशक्कत के बाद उसने हवा को अपने कम्बल में लपेटा और घर की तरफ चल पड़ा ! घर पहुंचकर उसने कम्बल को नीचे रखा और गांव के लोगों से कहा, अंततः मैंने हवा को पकड़ लिया है ! वे सभी उस पर हंसने लगे ! गांव वालों को विश्वास दिलाने के लिये, उसने कम्बल का एक छोर ढ़ीला किया तो हवा उग्रता के साथ बाहर निकलने लगी !

उसका निवास अस्त व्यस्त होकर लगभग गिरने ही वाला था ! लोगों ने चीख कर उससे कहा, हवा की तीव्रता / गति कम करो, उसने कम्बल का कोना फिर से बांध कर ऐसा ही किया ! अन्ततोगत्वा उसने हवा को इस शर्त के साथ बंधन से मुक्त किया कि वो दोबारा फिर कभी, आदिम धरती पर रहने वाले लोगों को चोट पहुंचाने वाली गति से नहीं बहेगी...और हवा ने सदैव इस शर्त का पालन किया !

उन दिनों मनुष्यों को प्रकृति के साथ अपने संबंधों को निर्धारित करना था ! ये दिन, उनके सीखने / अनुभव संजोने के आरंभिक दिन थे, जब कि उन्होंने प्राकृतिक शक्तियों को स्वयं की तुलना में अधिक बलशाली मानकर, देवताओं में गिन लिया था ! उनके महीनों/ वर्षों के सृजन कर्म को प्राकृतिक शक्तियां क्षण में तहस नहस कर डालती, यथा वे कई कई दिनों में अपना आशियाना बना पाते, लेकिन बाढ़ / आंधियां / अग्नि, कुछ एक पल में ही सब स्वाहा कर देते / तिनका तिनका बिखेर देते ! तब मनुष्यों का तकनीकी सामर्थ्य अपने शैशव काल में था, सो प्राकृतिक शक्तियों के समक्ष डट कर खड़े रहने की अपेक्षा यह स्वभाविक ही था कि वो काल्पनिक धरातल पर ही सही, इन शक्तियों के आगे समर्पण कर दे !     

अमेरिकन इंडियंस में बहुश्रुत, ये आख्यान संकेत देता है कि हवा, मनुष्यों के जीवन और संपत्तियों की क्षति का कारण थी, उसकी गति मनुष्यों के नियंत्रण से बाहर और अक्सर होने वाली विनाश लीला के लिये उत्तरदाई थी, सो उसे हिंसक कहा गया है ! कथा के पात्र, बूढ़े पिता और तुलनात्मक रूप से आयु में बड़े भाइयों की तुलना में छोटे भाई को अधिक जिज्ञासु / ज्ञान पिपासु / नवाचारी माना गया है, इसलिए वो युवा, अपने पिता और भाइयों की तरह से हवा के समक्ष समर्पित बने रहने की बजाये मुक्त होना चाहता है, हवा को अपने नियंत्रण / आधिपत्य में लेना चाहता है ! पुरानी और नई पीढ़ी की मनः स्थितियों का यह अंतर सहज है ! स्वभाविक है !

कथा समय तक संचित अनुभव / ज्ञान यह है कि हवा दिखती नहीं और क्षति पहुंचाने की हद तक शक्तिमान है, तो पुरानी पीढ़ी का यथास्थिति वाद नई पीढ़ी के उपहास की शक्ल में अभिव्यक्त होता है, हालांकि युवा नवाचारी, उपहास से हतोत्साहित नहीं होता बल्कि हवा को नियंत्रित करने के अपने निश्चय पर कायम बना रहता है ! कह नहीं सकते कि उसने हवा पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये क्या क्या प्रयोग किये होंगे ? पर...अनुश्रुति कहती है कि वह हर रात अपने फंदे को छोटा करता जाया करता था, इसे हम प्रतीकात्मक रूप से अध्येता / प्रयोगकर्ता के दृष्टिकोण, उसकी धारणाओं के परिष्कृत / शुद्ध ( Precise) होते जाने के तौर पर स्वीकार कर सकते हैं !

विज्ञान सम्मत कथन यह है कि हवाओं पर अपने नियंत्रण को सिद्ध करने के लिये उस युवा ने गांव वालों के समक्ष, सार्वजानिक तौर पर प्रदर्शन किया था / प्रस्तुतीकरण दिया था ! कम्बल और फंदे को सांकेतिकता के लिहाज़ से ऐसा उपकरण माना जाना चाहिए, जिसे कि अन्वेषण कर्ता ने अपने प्रयोग के दौरान इस्तेमाल किया होगा ! इन दिनों हम हवा से बिजली बनाते हैं, तब संभवतः नाव चलाने के लिये, खलिहान में अन्न से भूसे को हटाने के लिये, चूल्हे में धुंधवाती आग को प्रज्वलित करने के लिये, जैसे अनेकों छोटे छोटे उद्धरणों में परिलक्षित, हवा के नियंत्रित इस्तेमाल की सफलता के लिये उक्त युवा को उत्तरदाई माना गया हो...