बुधवार, 9 अगस्त 2017

वसंत की जय

जब दुनिया नई नई थी, तब एक बूढा इधर उधर घूम रहा था ! उसके बाल सफ़ेद थे ! जब वो कदम बढ़ाता धरातल पत्थर की तरह सख्त हो जाता और जब सांस लेता तो बहती नदियां थम जाती, तालाब ठोस हो जाते, पशु पक्षी उसके सामने से पलायन कर जाते, पत्तियां मुरझाकर पेड़ों से नीचे गिर जातीं, पेड़ सूख कर मर जाते ! आखिरकार बूढ़े को एक जगह मिल गई, जहां वो अपने लिये आवास बना सकता था ! उसने बर्फ की दीवारें और छत बनाई और उसके अंदर आग जला कर बैठ गया हालांकि उस आग में ज़रा भी ऊष्मा नहीं थी बल्कि उससे झिलमिल करती रौशनी निकल रही थी ! उस बूढ़े का एकमात्र मित्र उत्तरी पवन था, जो बूढ़े के साथ, उस ठंडे अलाव के पास बैठा रहता, वो दोनों इस बात पर हंसते कि उन्होंने दुनिया को चरम ठंडा और सख्त बनाने के लिये क्या क्या किया ! वो उन लंबी सर्दीली रातों में धूम्रपान करते रहते !   

एक सुबह, अलाव के पास ऊंघते हुए दोनों ने महसूस किया कि बाहर कुछ बदलाव हो रहा है, उन्होंने विलक्षण घटनायें घटते हुए देखी, बर्फीले झोंके कमजोर पड़ रहे थे, तालाबों में जमी हुई बर्फ में दरारें पड़ने लगी थी ! हुंह...उत्तरी पवन ने कहा, मैं यहां ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकता ! वो उस ठिकाने से बाहर निकल कर उत्तर दिशा की ओर उड़ चला...उड़ता रहा, जब तक कि  उसे मोटी परत वाली बर्फ और न्यूनतम ऊष्मा वाली, जगह नहीं मिल गई ! लेकिन बूढा वहां से हिला तक नहीं, उसे अपने जादू के मज़बूत होने पर पूरा विश्वास था, वो बर्फीली झोपड़ी उसने खुद ही तो बनाई थी, तभी द्वार पर खटखटाने की आवाज़ आई ! खट खट करने वाला सख्तजान था, उसकी हरकतों / थपथपाहट से जमी हुई बर्फ के टुकड़े बिखरने लगे थे, बूढ़ा चिल्लाया भागो, यहां से ! कोई भी मेरे आवास में घुस नहीं सकता !

तभी घर का द्वार टूट कर गिर गया ! बूढ़े की मनाही के बावजूद, एक नौजवान अपने चेहरे पर मुस्कराहट लिये अंदर आया और बूढ़े के सामने अलाव के दूसरी ओर बैठ गया ! उसके हाथों में एक हरी छड़ी थी जिससे उसने आग को कुरेदा, आग तेज जलने लगी और ऊष्मा बढ़ने लगी ! बूढ़े के माथे से पसीना छलकने लगा ! बूढ़े ने कहा, कौन हो तुम ? मेरी अनुमति के बिना घर में कैसे घुसे? यहां मेरे मित्र उत्तरी पवन के सिवा कोई अन्य व्यक्ति नहीं आ सकता, तुमने घर का दरवाजा कैसे तोड़ दिया ? यहां से चले जाओ वर्ना मैं अपनी सांसों से तुम्हें बर्फ की तरह जमा दूंगा ! बूढ़े ने अपनी सर्दीली सांसे उस युवक की तरफ छोड़ीं, लेकिन उस युवक पर इसका कोई असर नहीं हुआ, सिर्फ एक महीन लकीर सी धुंध / वाष्प उसके होठों से बाहर निकली !

युवक हंसा और उसने बूढ़े से कहा, मुझे यहां रहने दो और तुम्हारे अलाव से गर्माहट लेने दो ! यह सुनकर बूढ़ा बहुत नाराज हुआ, उसने कहा, मैं वो हूं जो पशु और पक्षियों को पलायन के लिये मजबूर कर देता है, मेरे क़दमों से धरातल ठोस और पाषणवत हो जाता है, बर्फ जम जाती है, मैं तुमसे अधिक शक्तिशाली हूं, यह सब कहते हुए बूढ़े के चेहरे पर आया पसीना और तेज बहने लगा पर...वो युवक लगातार मुस्कराता रहा ! सुनो, उस अपरिचित युवा ने कहा, मैं युवा हूं और शक्तिशाली भी ! तुम मुझे डरा नहीं सकते ! निश्चित रूप से तुम जानते हो कि मैं कौन हूं ! क्या मेरी सांसों की गर्मी तुम महसूस नहीं कर रहे हो ? जब मैं सांस लेता हूं तो पेड़ पनपते हैं, फूल खिलते हैं, घास अंकुरित होती है, पशु पक्षी मेरे पास आते हैं, बर्फ पिघलने लगती है !

मेरे लंबे बालों को देखो और अपने झड़ते हुए सफ़ेद बालों को भी ! ओ बूढ़े व्यक्ति, क्या तुम मुझे नहीं जानते ? जब मैं चलता हूं तो सूरज चमकता है, जहां तुम ठहर ही नहीं सकते ! क्या तुमने अपने घर के टूटते द्वार पर मेरी दोस्त की थपकियों को नहीं सुना? मेरी दोस्त दक्षिणी हवा, जो इस वक्त तुम्हारी झोपड़ी के ऊपर से बह रही है, ये समय, यहां से, तुम्हारे जाने का समय है ! बूढ़ा कुछ कहना चाहता था पर...उसका मुंह खुले का खुला रह गया, उससे एक शब्द भी बाहर नहीं निकला ! वो छोटा और छोटा होने लगा, पसीना उसकी कनपटियों से नीचे की ओर बह रहा था, वो पिघलता गया, वो चला गया ! झोपड़ी की बर्फ वाली दीवारें ढह गईं और जिस जगह, उस बूढ़े ने ठण्डी आग वाला अलाव जलाया था, उस जगह सफ़ेद फूल खिलने लगे, एक बार फिर से वसंत ने सर्दियों को शिकस्त दे दी थी ! 

सेनेका इंडियंस का यह आख्यान कहन की दृष्टि से अद्भुत है, एक बूढ़ा जिसके सफ़ेद बाल हैं, जिसके सांस लेने से नदी तालाब जम जाते हैं, पेड़ों की पत्तियां झड़ जाती हैं, परिंदे और जानवर जिससे दूर भागते हैं, उत्तरी पवन जिसका मित्र है, जो बर्फ से घर / इग्लू बना सकता है, जिसका अलाव ऊष्मा नहीं देता, वो दरअसल खत्म होती हुई शीत ऋतु है ! उसके बरक्स मुस्कराता हुआ नौजवान जो अपने साथ दक्षिणी पवन लाया है, जो सर्दियों के द्वार खटखटा कर, अपने आगमन की सूचना देता है, जिसकी सांसों से दरख्तों में जीवन पनपता है, फूल खिलते हैं, घास अंकुरित होती है, जीव जगत जिसका सामीप्य पसंद करता है, जिसके मौजूदगी में चरम शीत अपना वज़ूद खोने लगती है, जिसकी सखि दक्षिणी पवन को देख, उत्तरी पवन किसी अन्य भूक्षेत्र की ओर प्रस्थित हो जाती है ! वो वसंत है ! ऋतु परिवर्तन को वृद्ध और युवा इंसान के प्रतीकात्मक हवाले से बयान करना, किस्सागोई का खूबसूरत  नमूना है !  

अनुश्रुति में प्राकृतिक बदलावों को अभिव्यक्त करने का तरीका दिलचस्प है, ठंडे अलाव के इर्द गिर्द बैठे बूढ़े और उसके मित्र उत्तरी पवन के द्वारा धूम्रपान करने का उल्लेख, प्रकृति की शक्तियों को मनुष्यों के प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत करते समय, कथाकालीन समुदाय से सहज स्वीकृति प्राप्त करने यत्न लगता है ! सामुदायिक व्यसन / आदतों को प्राकृतिक शक्तियों से जोड़ कर, इन शक्तियों के मानवीय स्वरूप को श्रोताओं के अंतस में उतारने और कहन की विश्वसनीयता स्थापित करने की चेष्ठा के अंतर्गत, कथा पात्रों के ऐन श्रोताओं के जैसा होने का रोचक आलाप है यह ! इसके अतिरिक्त, बूढ़े और नौजवान के मध्य हो रहे संवाद भी उस मनःस्थिति की अक्काशी करते हैं, जोकि अमूमन, सामुदायिक, सामाजिक दिनचर्या का सहज सुलभ हिस्सा होती है ! अस्तु ध्यातव्य यह है कि स्थापित सत्ता, स्वयं के विस्थापन का विरोध ना करे तो उसे असामान्य व्यवहार माना जाएगा !

ये जानते हुए कि परिवर्तन नैमित्तिक हैं, अपरिहार्य है ! पहले आगमन...फिर प्रस्थान...फिर पुनरागमन, पूर्व निर्धारित ऋतु चक्र / जीवन-चर्या हैं जबकि नवागत के समक्ष पुरातन का प्रतिरोध, मानवीय स्वभाव ! ऐसे में प्राकृतिक घटनाक्रम को मानवीय स्वभाव के कलेवर में पेश करने का मंतव्य यही हो सकता है कि श्रोता समुदाय, कथन को अपना परिचित जाने / समझे ! यह स्वीकार किया जा सकता है कि इस आख्यान के मंच में प्राकृतिक बदलाव, इंसानी किरदारों द्वारा प्रस्तुत और अभिनीत किये गये हैं...