गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कहीं और से ...



ये ब्रह्माण्ड 

भले ही मैं बिछ जाता हूं 

तुम्हारे संकेत मात्र  से

किंतु एक दिन

ये ब्रह्माण्ड 

मेरे चुम्बनों की ध्वनि से भर जाएगा  !



हिमनद पिघल रहे हैं

इन दिनों

तुम्हारा ख्याल

अनछुई गुनगुन तपिश सा

अन्दर अनंत

हिमनद पिघल रहे हैं

ज़रूर कुछ

बस्तियां डूब जायेंगी  !


समंदर हिल्लोरे मारने लगा 

आह उस दिन तुम 

बेकली से मुझ तक दौड़ीं 

पर्वत हिल उट्ठे 

धरती थर्राई 

और मेरे अन्दर 

समंदर हिल्लोरे मारने लगा  !



तुम कोई जादूगरनी हो !


इब्नें मरियम

भी नहीं

कोई  पयम्बर

भी नहीं

तुमसे उम्मीद

कि जी उठता हूँ





( तारे टूटने से पहले के प्रेम गीत  )

29 टिप्‍पणियां:

  1. आह! कवि पागल होता ह. कुछ भी सोच सकता है. काश ये पागलपन हर किसी को मिल पाता.

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  2. और जब मिले ये दो जन तो धरती अपने भ्रमण पथ पर सहसा रुक सी गयी पल भर को :)
    काश ये मिल भी जाते ....

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  3. वाह वाह!कवि मन से निकली काव्य रश्मियों का उजाला ब्रह्माण्ड तक परिलक्षित हो रहा है। :)

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  4. मेरे गीत में अरविंद मिश्र जी प्रेरणा स्रोत की तलाश कर रहे थे कहीं ये वही तो नहीं ! ये 'कहीं और..' का पता ठिकाना बतायेंगे सरकार?

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  5. १)
    उस दिन की कल्पना से
    बहुत डरा-डरा हूँ मैं,
    जब आपको,उनको ,
    चुम्बनों से भरे ब्रह्माण्ड में
    कहीं ठौर-ठिकाना न मिलेगा !!

    २)
    बिना छुए ही पिघल रहे हो ?

    हिमनदों के पिघलने से ज़रूर क़यामत आएगी
    तब श्रद्धा और मनु फिर बचेंगे !

    ३)
    सोचता हूँ,
    जब दौड़ने में ही इतना कुछ हो जाता है तो मिलने पर ...?

    काँप जाता हूँ !!

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  6. @ तारे टूटने से पहले के प्रेम गीत
    बहुत खूब! (अच्छा किया पहले ही लिख लिये, क़यामत के बाद कौन लिखे क्या लिखे?)

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  7. मुआफी चाहता हूँ अली साब....ठण्ड ज़्यादा थी,सो टीपते समय दिमाग में ठंडक का जोर ज़्यादा था.श्रीमती जी से कड़क-चाय बनवाकर फिर बैठा हूँ....फिर से घोखने ! आपको पहली बार में समझ लेना निहायत बेवकूफी है !

    ...कहीं और से - मतलब किसी दूसरे का दखल है ?

    पहली कविता समझ से परे है...चुम्बन में छाप कम आवाज़ ज़्यादा हो रही है,मानवीय नहीं कोई और ही ताकत है !
    उनके ख्याल से आँसू और दिल पर असर तो होता है पर अनंत हिमनद....? इस रहस्य को आप ही उजागर करें !

    मिलन कितना घटनापूर्ण है,सारी सृष्टि प्रभावित हो जाती है...पर पर्वत और धरती तो हमसे बाहर हिलते हैं और समंदर हमारे अंदर ? रहस्यवादी कविता !इसे भी समझाइये !

    ....तारे टूटने से पहले

    इतना कुछ कल्पित कर लोगे तो तारे क्या आसमान भी टूट पड़ेगा आपकी मुराद पूरी करने के लिए !

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  8. इन दिनों
    तुम्हारा ख्याल
    अनछुई गुनगुन तपिश सा
    अन्दर अनंत
    हिमनद पिघल रहे हैं
    ज़रूर कुछ
    बस्तियां डूब जायेंगी ....

    वाह आपकी कल्पना की उड़ान बहुत लंबी है ... अलग अंदाज़ लिए .. सभी पसंद आई ...

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  9. 'क्‍या गजब करते हो जी' टाइप कुछ कहने को मन हो रहा है.

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  10. तारे टूटने से पहले की तो ऐसी ही होनी थी ।
    तारे टूटने के बाद की भी तो सुनाइये !

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  11. आज ताली बजाने को जी चाह रहा है.. फिर याता है वह जेन फ़कीर जिसने एक हाथ से बजने वाली ताली के स्वर को समाधि और परमात्मा का द्वार कहा था.
    आज वही ताली बजाने को जी चाह रहा है.. एक हाथ की ताली.. सर्वथा मौन!! मौन की अनुमति तो है ना, अली सा.

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  12. …और तारा टूटने के बाद वाले?

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  13. (१)
    मित्रो इस बार तय किया था कि सारी टिप्पणियां आ चुकें तो जबाब दूं ! कारण कुछ अलग सा है जैसा कि आपने देखा कि प्रविष्टि का शीर्षक है 'कहीं और से...' यानि कि रचनायें इस घाट की नहीं हैं , इन्हें किसी और ब्लाग से उठाया गया है ! संयोग या दुर्योग जो भी कहें वह ब्लॉग अपनी जागतिक लीला समाप्त कर चुका है :)

    मेरे मित्रों को यह स्मरण नहीं कि वे इन रचनाओं को अपना दुलार उसके मूल स्थान में भी दे चुके हैं :)

    मिसाल के तौर पर भाई देवेन्द्र पाण्डेय जी की वाह प्राप्त रचना जिसे मैं अब चस्पा कर रहा हूं :)

    मेरे परम मित्र डाक्टर अरविन्द जी तो उस ब्लॉग को फालो भी कर रहे थे पर उन्हें संभवतः इसका स्मरण नहीं है :)

    डाक्टर ज़ाकिर अली रजनीश साहब भी वहां किसी ना किसी तरीके से मौजूद थे :)

    एक और बड़ी कवियित्री भी वहां टिप्पणीकार थीं और मैं...मुझे तो वहां होना ही था :)

    मुझे मालूम है कि अगर वह ब्लॉग अधिक सक्रिय होता तो उसे मित्रों का अपार स्नेह मिलता, उतना कि जितना मुझे भी नहीं मिल पाया :)

    अगर किसी ब्लॉग से स्त्रीयोचित संकेत / ध्वनियां मिलें तो शायद ऐसा होना बहुत स्वाभाविक भी है ! खैर यह एक प्रयोग था जो समाप्त हुआ अनजाने में ही सही , इसमें शामिल सारे मित्रों का ऋणी हूं जिनकी वज़ह से ब्लॉग जगत में भी वही ट्रेंड पुख्ता हुआ जोकि सामाजिक यथार्थ है :)

    (२)
    @ काजल भाई,
    सच कहूं तो इसी पागलपन से दुनिया चलती है टिकी हुई है :)

    @ अरविन्द जी,
    अगर मिल पाते तो कवितायें जन्म ना लेतीं :)

    @ ललित जी,
    ब्रह्माण्ड की स्याही के साथ इस उजलेपन का होना बेहद ज़रुरी है :)

    @ देवेन्द्र जी ,
    आपकी वाह भी थी वहां जिसे चस्पा कर दिया है :)

    @ संतोष जी ,
    आपकी टिप्पणी विस्तृत जबाब मांगती है पर अभी इतना ही कि आवाजों के दरम्यान हमारे रहने की जगह अब भी बनती है और तब भी बनेगी :)

    एक बार कांपने के बाद सब ठीक हो जाता है ये आप भी जानते हैं :)

    @ स्मार्ट इन्डियन जी ,
    संकेत में आई कयामत के बाद आदमी की दशा दिहाड़ी मजदूर जैसी हो जाती है :)

    @ संतोष जी ,
    कविताओं के आशय कभी विस्तार से कहूंगा अभी नहीं :)

    @ आदरणीय सुब्रमनियन जी ,
    धन्यवाद :)

    @ दिगंबर नासवा जी ,
    शुक्रिया ! कल्पना की उड़ान फिलहाल किसी और के हक़ की है :)

    @ राहुल सिंह जी ,
    होना तो यही चाहिए था :)

    @ क्षमा जी ,
    आपको भी नये साल की शुभकामनायें !

    @ डाक्टर दराल साहब,
    जी वह भी सुनाई जायेंगी किसी दिन :)

    @ सलिल जी,
    बेहद खूबसूरत टिप्पणी ! शानदार ! मानीखेज़ ! अदभुत ! शुक्रिया !

    @ पाबला जी ,
    वो अभी बाकी है मेरे दोस्त :)

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  14. सचमुच और गहरा हो गया रहस्‍य.

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  15. अली सा
    इतना तो समझ में आ गया था कि आपने ही आज की ब्लॉगिंग की कमज़ोर नस पकड़कर बुड्ढे और जवान ब्लौगरों की नींद हराम कर दी थी,टीपों का भी टोटा नहीं रहा होगा !
    ...एक बार फिर से !

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  16. ye sanidev ke dar se itti rahsyavadi
    tipir-tipir ho rahi hai............

    savdhan....tazurbeman.......ali-sa,
    ye bhai log apko potne-patne me lage
    hain......yse, jigyasa balak bhi badh
    gai hai.........


    pranam.

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  17. आह! कितने खूबसूरत भाव संजोये हैं………………आगत विगत का फ़ेर छोडें
    नव वर्ष का स्वागत कर लें
    फिर पुराने ढर्रे पर ज़िन्दगी चल ले
    चलो कुछ देर भरम मे जी लें

    सबको कुछ दुआयें दे दें
    सबकी कुछ दुआयें ले लें
    2011 को विदाई दे दें
    2012 का स्वागत कर लें

    कुछ पल तो वर्तमान मे जी लें
    कुछ रस्म अदायगी हम भी कर लें
    एक शाम 2012 के नाम कर दें
    आओ नववर्ष का स्वागत कर लें

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  18. @ संतोष जी ,
    ये भी खूब इंतज़ार है ,है ना :)

    @ राहुल सिंह जी ,
    कम से कम आपके लिए तो नहीं :)

    @ संतोष जी ,
    हाँ...टीपें कैसे बरसती हैं ये देखा :)

    @ संजय झा जी,
    भाई लोगों से मैं भी सावधान हूँ :)

    @ वंदना जी ,
    शुक्रिया , आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

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  19. किन्तु एक दिन...
    ब्रह्माण्ड में चर-अचर के प्रति उपजे
    स्नेह और आकर्षण को प्रतिविम्बित करते हुए संकेत
    निसंदेह, छल नहीं रहे हैं .... !
    ख़याल की तपिश
    अन्दर बर्फ होने की प्रक्रिया में
    सकारात्मक परिवर्तन ला ही सकती है
    चेतना पर अंकित रुकावटें, बह भी तो सकती हैं
    समंदर का हिलोरें मारना,, मन भा गया

    धन्यवाद... कह रहा हूँ !!

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  20. हृदय मे भावों के मेघ उमड़ने घुमड़ने लगते हैं तो बरसेंगे भी……बहुत ही सुंदर रचना! नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

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  21. @ संजय मिश्र हबीब साहब ,
    आपको नववर्ष की अशेष शुभकामनायें !

    @ दानिश साहब ,
    नए साल की मुबारकबाद तो पहले ही दे चुका हूँ ! अब एक शानदार टिप्पणी के लिए फिर से मुबारकबाद क़ुबूल फरमाइयेगा !

    @ सूर्यकांत गुप्ता जी ,
    नए साल के लिए कोटि कोटि सुमंगलकामनाएं !

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  22. नये वर्ष की शुभकामनाओं के साथ........
    प्यार की सचमुच पराकाष्ठा दिखी है,
    कल्पना को आपकी करता नमन मैं।
    हो गया ऐसा तो क्या होगा ये मेरा,
    उठ रहीं हैं अत्यधिक शंकायें मन में।।

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  23. नव-वर्ष 2012 की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

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  24. @ दिनेश अग्रवाल जी ,
    आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

    @ अशोक जी ,
    नया वर्ष आपके लिए विगत से बड़ी सौगात लाये ! यही शुभकामना है !

    @ वाणी जी ,
    नववर्ष की आपको भी अनेक शुभकामनायें :)

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  25. बहुत सुंदर,गहरे रहस्य भाव की रचना...
    नया साल आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,

    मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--

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