एट्टिस,
चरवाहों और वनस्पतियों का फ्रीजियन देव है, जिसकी पहचान एक खूबसूरत युवा की है । उसे
ग्रीक गल्पों में वनस्पतियों की शारदेय
मृत्यु और वासंती पुनर्जीवन के निरंतर चक्र के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है । फ्रीजिया
में, उसकी पूजा का उल्लेख 5000 ई.पू. से लेकर रोम में, सामान्य काल 400 तक मिलता
है । ग्रीक समाज में उसके सिंहासन के लिये फर की लकड़ी का उपयोग किया जाता था जबकि
रोमन साम्राज्य के सिक्कों और मठों में उसके चित्रण, रोमन समाज में उसकी
लोकप्रियता का बयान करते हैं । गल्प कहती है कि एट्टिस, देवी सायबेले की तुलना में
युवा और संस्तरण क्रम में छोटा देव माना गया है यद्यपि उसे सायबेले का विशिष्ट
मुख्य पुरोहित मानने वाले लोगों की कमीं भी नहीं है । बहरहाल सायबेले की पूजा करने
वालों की संख्या एट्टिस की पूजा करने वाले लोगों से अधिक नहीं होगी । यहां यह
उल्लेख कर देना उचित होगा कि अन्यान्य गल्प कथाओं में, कहीं पर उसे एगडिस्टिस अथवा
कलौस का पुत्र माना गया है, कहीं पर सायबेले को उसकी मां कहा गया है, किसी अन्य
संस्करण में उसे नद्य जल परी नाना का पुत्र कहा गया है जोकि एगडिस्टिस के भंग,
प्रजनन अंग से निकले अखरोट के बीज से गर्भवती हुई थी, इस गल्प में देव एट्टिस को
जन्मजात किन्नर कहा गया है । ये गल्प कथाएं, जहां एक ओर एट्टिस के प्रति हमें
संभ्रमित करती हैं, वहीं रोचक विवरण साम्य यह है कि एट्टिस, फ्रीजिया की व्यापारिक
नगरी पेसिनोस में जन्मा था जोकि एगडिस्टिस
पर्वत के निकट स्थित थी ।
एट्टिस
के सम्बन्ध में बहुप्रचलित गल्प कहती है कि एट्टिस और सायबेले की पूजा, एक साथ
चलते चलते, समय के किसी मोड़ पर पृथक पृथक हो गई है हालांकि एट्टिस का नाम, सायबेले
के ग्रीक-ओ-रोमन पूजा क्षेत्र प्रसरण का, अनुगमन करता ही रहा यानि कि जहां देवी
सायबेले पहुंची वहीं एट्टिस का पुनरावतार हुआ । एट्टिस के मिथक पर लीडियन प्रभाव
भी देखने को मिलता है । कहते हैं कि एट्टिस जन्मना फ्रीजियन गॉल था और लीडिया आगमन
पर देवी सायबेले से मिला जिसके बाद उनकी नजदीकियां बढ़ गईं जिससे देवता ज्यूस बेहद
क्रुद्ध हुआ / ईर्ष्यालू हो उठा और उसने लीडिया की फसलों को नष्ट करने के लिये एक
विशाल सूकर भेजा जिसने लीडिया की फसलें बर्बाद कर दीं । इस समय अनेकों लीडियंस के
साथ एट्टिस भी मारा गया, इसी कारण से पेस्सीनस में रहने वाले गॉल आज भी सूकर का
मांस नहीं खाते हैं । माना जाता है कि सायबेले के गल्ली / किन्नर पुरोहितों का
सिलसिला एट्टिस ने शुरू किया । रोमन साम्राज्य में पेस्सीनस के रहने वाले गल्ली
पुरोहितों के राजनैतिक प्रभुत्व का कारण भी संभवतः यही था । यह विश्वास किया जाता
है कि गल्ली बनने की पृष्ठभूमि में स्वयं को एट्टिस की परम्परा से जोड़ कर रखने का
विचार प्रमुख है ।
इस
गल्प के रोमन संस्करण के अनुसार सायबेले ही एगडिस्टिस थी जोकि धरती पर ज्यूपिटर /
गुरु के बिखरे शुक्राणुओं से पैदा हुई थी चूंकि देवताओं ने एगडिस्टिस का बंध्याकरण
कर दिया तो वो देवी सायबेले में तब्दील हो गई । एगडिस्टिस के बंध्याकरण के समय
उसके पौरुष के जो भी अंश धरती पर गिरे, वहाँ एक फलदार वृक्ष उग गया, उस वृक्ष के
फल / अखरोट को खाने से जलपरी नाना गर्भवती हो गई और परिणाम स्वरुप एट्टिस का जन्म
हुआ चूंकि कुंवारी मां जलपरी नाना अपने पिता से भयभीत थी सो उसने शिशु एट्टिस का
परित्याग कर दिया जिसे चरवाहों द्वारा पाला गया और जो बड़े होकर, पुरुष देव से
स्त्री देवी हो चुकी सायबेले का प्रेमी बन गया । एक प्रकार से वो, देवी सायबेले के
अतीतकालीन पुरुष अवतार एगडिस्टिस और जलपरी नाना की संतान था । इस गल्प को सुनते
हुए, भारतीय सन्दर्भ, कुंती के पुत्र कर्ण का ख्याल अकस्मात ही जेहन में कौंधता है
हालांकि कर्ण की युवावस्था के प्रणय प्रसंग युवा एट्टिस के प्रणय प्रसंग से साम्य
नहीं रखते । पर एट्टिस की कुंवारी मां नाना का जलपरी होना और अविवाहित कुंती
द्वारा परित्यक्त कर्ण को नदी में बहाया जाना एक रुचिकर संयोग है ।
बहरहाल
इस गल्प के अनुसार युवा देव एट्टिस, देवी सायबेले का प्रणय संगी था जोकि देवी
सायबेले से वचनबद्ध था कि वो सदैव विश्वसनीय प्रेमी बना रहेगा । जहां एट्टिस, देवी
सायबेले के प्रणय का व्रती था, वहीं उसे एक अप्सरा सैग्रिटिस / सैग्रिस से प्रेम
हो गया और उसने अपनी अप्सरा प्रेमिका से ब्याह करने का निर्णय ले लिया । जब देवी
सायबेले ने इस ब्याह की खबर सुनी तो उसे एट्टिस द्वारा प्रणय पवित्रता भंग करने /
वचन तोड़ने को लेकर बहुत क्रोध आया । वो विवाह स्थल पर जा पहुंची उसके क्रोध के
प्रभाव से एट्टिस मनोविक्षिप्त हो गया और विवाह में आये अन्य आगंतुकों को बेहद
कष्ट हुआ । मनोविक्षिप्तता की दशा में एट्टिस पर्वतों के ऊपर उड़ चला जहां वो एक फर
के वृक्ष के नीचे रुका और उसने स्वयं का बंध्याकरण कर डाला जिसके फलस्वरूप उसकी
मृत्यु हो गई । सायबेले ने जब एट्टिस को मृत पाया तो उसे अपने कृत्य पर पछतावा हुआ
शोकाकुल होकर उसने विलाप किया और फिर ज्यूपिटर / गुरु से अनुनय विनय की, कि वे एट्टिस
को पुनर्जीवन प्रदान करें । ज्यूपिटर / गुरु ने घोषणा की, कि फर का वृक्ष सदैव
पवित्र माना जाएगा और इसी वृक्ष की तरह से एट्टिस का जियेगा ।
जहां
एट्टिस का रक्त बिखरा था वहाँ पहला जामुनी / नील पुष्प जन्मा ।इसी गल्प में आंशिक
संशोधन देखें तो पायेंगे कि एट्टिस को सायबेले के पिता मेओन ने मार डाला था
क्योंकि उन्हें अपनी पुत्री और एट्टिस के निकटाभिगमन का निषेध करना था । बहरहाल एट्टिस
का पुनर्जीवन दोनों ही गल्पों में समान कथन है । सो एट्टिस, प्रकृति में मृत्यु और
पुनर्जीवन की सतत सांकेतिकता का गल्प है जो किन्नर हुआ और फिर से जी उठा । निकटाभिगम
के नियमों का उल्लंघन कर बंजर हुआ जीवन एक बार फिर से हरिया उठा । बहरहाल अनेकों
विद्वान इसे जीसस क्राइस्ट का ग्रीक-ओ-रोमन संस्करण मानते हैं जोकि स्वयं कुंवारी
मां के गर्भ से जन्मे सलीब पर चढाये गये और फिर से जी उठे अंततः वे भी परमात्मा के
पुत्र थे ।