सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

कुहू

मुद्दतों पहले की बात है जबकि कोयल / कोकिला अपने ही गीतोंअपने ही सुरों को बेहद पसंद करती थी और अक्सर दूसरे परिंदों से पूछती रहती कि कौन सी चिड़िया सबसे मधुर स्वर में गाती है ? दुर्भाग्यवश कोई भी परिंदामधुर स्वर में गाने वाले परिंदों का नाम लेते हुएकोयल का नाम नहीं लेता थासो कोयल ने सोचा कि शायद, सारे परिंदे उसका नाम भूल गए हैं ! इसलिए उसने तय किया कि वो उन सभी परिंदों को अपना नाम याद दिलाएगी ! कहते हैं कि तब से लेकर आज तक, वो बार बार सिर्फ अपना ही नाम लेती है कुहू...कुहू...कुहू...

 

ये सच है कि कोयल एक ही गीत गाती है , एक ही सुर साधती है, कुहू...कुहू...और यह राग, शताब्दियों से इंसानों की जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है ! ऐसा लगता है कि जैसे संगीत का कोई इंसानी घराना ! अपने सुर ताल लय प्रारूप पर एकाधिकार रखे हुए हो ! बिलकुल ऐसे ही कोयल का घराना दूसरे परिंदों की गायकी से हटकर है ! कोयल को प्रतीत होता है कि वो सारे परिंदों में सर्वश्रेष्ठ है ! उसे लगता है कि परिंदे कुछ भी गायें, स्वर माधुर्य में उससे उन्नीस ही होंगे ! वो आत्म मुग्ध है और इसकी पुष्टि स्वरुप अन्य परिंदों से पूछती रहती है कि सबसे मीठा गाने वाला परिंदा कौन है ?

 

अपनी प्रतिभा पर स्वयं गर्व करना और दूसरों से उस गौरव की पुष्टि का यत्न करना इंसानी स्वभाव है , सो इसे, आख्यान की नायिका कोयल के सिर मढ़ दिया गया है ! लगता है कि कोयल के बहाने कोई इंसान / इंसानी घराना / संगीत समूह अपनी ही बात कह रहा हो ! कोयल के स्वर माधुर्य पर अन्य परिंदों का मौन, बिलकुल इंसानों के जैसा है, जहां या तो ईर्ष्या है अथवा सोचा समझा तिरस्कार या फिर हास परिहास नुमा छेड़ छाड़ ? बहरहाल आख्यान की नायिका कोयल अन्य परिंदों को अपना नाम स्मरण कराने की गरज से वो ही राग छेड़ती जो उसके अपने नाम का उदघोष करे, तो क्या इन्सान ऐसा नहीं करते...