मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

आखेटक का दुःख

एक दिन कौव्वे ने देखा कि बाज़ ने नीचे की ओर उड़ान भर के एक मेमने को अपने पंजों में दबोच लिया और उसे खाने के लिए ऊंचे पहाड़ पर ले गया ! कौव्वे ने सोचा ये तो बहुत आसान है ! वो भूखा था, सो उसने बाज़ की तर्ज़ पर नीचे की ओर उड़ान भरी और एक भारी भरकम भेड़ को अपने पंजों में दबोच लेना चाहा, लेकिन वो, वज़नी भेड़ को ऊपर नहीं उठा सका !


यहां तक कि उसके पंजे  भेड़ के ऊन में बुरी तरह से फंस गए और वो खुद भी भेड़ से अपना पिंड नहीं छुड़ा पाया ! ऊन में उलझे हुए कौव्वे को चरवाहे ने देखा और पकड़ कर, उसके पंख कतर दिए, इसके बाद कौव्वे को अपना पालतू बनाने के लिए अपने घर ले गया ! तब से लेकर आज तक वो कौव्वा, दूसरे कौव्वों को  सावधान करता रहता है कि वे ज़िंदा भेड़ से दूर रहें...


 

विवेचनाधीन आख्यान, अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर किये गए, किसी यत्न / उद्यम के निषेध को समर्पित है ! कथा कहती है कि बाज़ आखेटक है सो कौव्वा भी ! बाज़ ने अपने शिकार बतौर एक मेमने को चुना जिसका वजन उठाना, उसकी सामर्थ्य से बाहर नहीं था, वो अपने शिकार को उंचाई पर ले गया, किन्तु कौव्वा आखेट के समय बाज़ की नक़ल करते हुए, बड़ी भूल कर बैठा, उसने हलके वज़न वाले मेमने को चुनने के बजाये भारी भरकम भेड़ को चुन लिया, जिसका वजन ढ़ोना कौव्वे की सामर्थ्य से बाहर था !

 

 

कौव्वे ने शिकार के समय अपनी सामर्थ्य / क्षमता का समुचित आकलन नहीं किया जिसका परिणाम उसे भुगतना पड़ा ! वो ना तो भेड़ को ऊंचा उठाने की शक्ति रखता था और ना ही उसने भेड़ के ऊन / बालों में अपने पंजों के फंस जाने के जोखिम की कल्पना की थी ! भेड़ पालतू थी और उसकी मृत्यु से होने वाले नुकसान को ध्यान में रखकर चरवाहे ने कौव्वे की स्वतंत्रता ख़त्म कर दी ! उसकी उड़ान क्षमता सीमित कर दी गई ! कथन शेष यह कि कौव्वा दूसरे कौव्वों को सावधान करता रहता है कि जो भूल उसने की वो दूसरे कौव्वे  ना करें !


 

ये कथा, कौव्वे की नासमझी / उसकी परतंत्रता के लिए, उसे ही लांछित करती है ! कौव्वे ने खुद को खोकर ज्ञान पाया ! अब वो दूसरों को सावधान करता है, ठीक वैसे ही जैसे कि हम इन्सान करते हैं...