रविवार, 21 अक्तूबर 2018

चंदू शिकरा

एक बार शिकरे ने खरगोश के साथ छल करने का फैसला किया, उसने कहा, आकाश स्थित भूमि में एक कार्यक्रम है और वो, खरगोश को वहां तक ले जा सकता है ! यह सुनकर खरगोश ने अपना गिटार लिया और शिकरे की पीठ पर बैठ गया ! जब वो दोनों ऊंचे आकाश में थे तो शिकरे ने खुद को हिलाकर खरगोश को जमीन पर गिराना चाहा !

     

इस पर खरगोश ने गुस्से में आकर अपना गिटार, शिकरे के सिर पर ज़ोर से दे मारा, इसके बाद वो, शिकरे के पंख खींच कर, उनके सहारे फिसल कर / ग्लाइड कर के, आहिस्ता आहिस्ता जमीन में उतर गया ! जब शिकरे ने अपने सिर में फंस गए गिटार को झटक कर निकालना चाहा तो उसके सिर के सारे बाल / पंख उखड़ गए और तब से, उसके वंशज भी गंजे सिर / चंदू होने लगे हैं...

 

ये कथा, ऊंचे आकाश में स्थित किसी भूमि के होने का संकेत देती है, कदाचित स्वर्ग जैसी कोई अवधारणा, जहां, किसी कार्यक्रम के आयोजन का हवाला मिलते ही खरगोश अपने लोभ का संवरण नहीं कर सका और अपने वाद्य यंत्र को लेकर मित्र शिकरे के साथ चल पड़ा ! खरगोश, शिकरे का मित्र है, किन्तु उसे अंदाज़ नहीं कि शिकरे के मन में उसके प्रति दुर्भावना पनप रही है और वो उसे ऊंचाई से गिराकर मारना चाहता है / आहार बनाना चाहता है !

 

मित्र-घाती शिकरा ऊंचाई पर पहुंचने के बाद खरगोश को असहाय मान लेता है और उसे नीचे ज़मीन पर गिराना चाहता है ! शिकरे की साजिश का यह दूसरा चरण था जबकि, प्रथम चरण में वो खरगोश को आकाश में ले जाने में सफल हो गया था ! खरगोश का गुस्सा, जान पर बन आई, स्थिति के समय का है, जहां उसे शिकरे की चालबाजी / धोखेबाजी का पता चल चुका है ! बहरहाल आख्यान यहां पर दो रोचक कथन करता है ! एक तो यह कि खरगोश गिटार को शिकरे के सिर पर जोर से मारता है जोकि उसे मिले धोखे का प्रतिकार जैसा है !

 

और दूसरा यह कि शिकरे के पंखों को नोच कर उनके सहारे, धरती पर उतरते वक्त लगने वाली चोट की आशंका को कम करना, खरगोश की विवेक शीलता/ प्रत्युत्पन्नमति का परिचायक है ! यानि कि जो पंख ऊंचाई पर ले जा सकते हैं, वे सुरक्षित नीचे उतार भी देंगे ! खरगोश छल का प्रतिकार करता है और अपने बुद्धि बल से सुरक्षित वापस लौटता है, किन्तु मित्र-द्रोही शिकरा, आगत पीढ़ियों तक अपने अपकृत्य के निशान छोड़ जाता है...