तब जबकि सर्वत्र,
भ्रम / अराजकता व्याप्त थी, बेनू पक्षी इस, ना कुछ, के ऊपर उड़ा और फिर उसकी सतह पर
जा उतरा, उसकी पहली कूक से चहुं-दिश व्यापित सन्नाटा टूटा ! इस प्रथम ध्वनि
से तय होना था कि संसार में क्या होगा और क्या नहीं ! कहते हैं कि बेनू पक्षी, महाकाय
नील बगुले जैसा दिखता है किन्तु उसके पंखों की रंगत अग्नि की लौ जैसी और उसका सिर
मनुष्यों के जैसा है !
मान्यता यह भी है कि बेनू पक्षी, मिस्री सूर्य देवता का सहयोगी अथवा स्वयं सूर्य देव है, उसके सिर पर मुकुट यही आभास देता है ! वो स्वयं को प्रतिदिन उगते सूर्य की किरणों के साथ नवीनीकृत करता, यानि कि उसमें स्वयं को मृत और पुनर्जीवित करने का सामर्थ्य है, बेनू जोकि फीनिक्स का मिस्री प्रतिरूप है, जो राख होकर भी पुनर्जीवित हो जाता है...
प्रस्तुत आख्यान, सृष्टि सृजन के पूर्व के भ्रम / अनिश्चय का कथन करता है ! उस समय के अराजक होने का आशय कदाचित यह है कि सृष्टि में नियम / कानून / कायदे भले ही निहित हों पर अस्पष्टता सतह पर मुखर / प्रकट थी ! आख्यान इसे मौन समय में गिनता है ! वो कहता है कि तब प्रथम ध्वनि भी उद्भूत नहीं हुई थी ! सृष्टि में व्यापित अनिश्चय / मौन के दरम्यान बेनू की पहली कूक को वह सृष्टि की प्रथम ध्वनि मानता है !
कथानुसार बेनू की कूक से तय हुआ कि संसार में क्या होना चाहिए और क्या नहीं ! आश्चर्य की बात है कि ना कुछ के ऊपर से बेनू की उड़ान और सतह पर उतरने से सृष्टि सृजन का सूत्रपात हुआ ! बेनू जो महाकाय नील बगुले के जैसा है किन्तु उसके पंखों की रंगत अग्नि के जैसी और सिर मनुष्यों की तरह का है ! तो क्या बेनू किसी परिंदे / मनुष्य / नील रंगत / अग्नि / कूक के विविधतापूर्ण, एक्य से धरती / सृष्टि के निर्माण का सांकेतिक प्रतीक है ?
आख्यान बेनू की तुलना मिस्री सूर्य देवता के सहायक अथवा स्वयं सूर्य देवता से करता है, कथा के प्रथम हिस्से में मानुष शीर्ष का कथन था पर दूसरे हिस्से में उसके साथ मुकुट भी जोड़ दिया गया है ! इतना ही नहीं उसकी ऊर्जा का नवीनीकरण स्रोत ही सूर्य बन जाता है ! वो बेमेल विविध तत्व / अंग युक्त परिंदा स्वयं नश्वर और स्वयं अमर है ! उसकी तुलना फीनिक्स के मिस्री संस्करण से भी की गई है ! बहरहाल ये आख्यान सर्वत्र भ्रम / अराजकता के कथन से शुरू होता है और कथान्त तक भ्रम / अनिश्चय और अराजकता का प्रतीक बना रहता है ...