मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

सखियां



गुज़रे ज़माने की बात है जब कि मां परिंदों को अपने बच्चों के लिए पंखों वाली पोशाक सिलना पड़ती थी ! दुर्भाग्यवश मुर्गी मां की सुई खो गई थी सो उसने अपनी सखि, बाज़ मां से सुई उधार ले ली, लेकिन वो समय पर बाज़ मां को उसकी सुई वापस करना भूल गई ! बहरहाल बाज़ मां जब भी अपनी सुई वापस लेने आती, मुर्गी मां अपने बच्चों सहित छुप जाया करती !

 

मुर्गी मां से मिलने में कई बार नाकाम रहने के बाद बाज़ मां को बेहद गुस्सा आया और उसने सारे जंगल में ये ऐलान कर दिया कि, अगर वो अपने बच्चों के लिए पंखों वाली पोशाक नहीं सिल पाई तो वो, मुर्गियों से उनकी पंख पोशाक छीन लिया करेगी, इसीलिए तब से लेकर आज तक बाज़ परिजन, मुर्गियों का शिकार करते हैं और मुर्गियां अपने पंजों से जमीन खुरचती और उसमें वापस मिट्टी भरती रहती हैं ताकि उन्हें बाज़ मां की खोई हुई सुई मिल जाए... 

 

इस आख्यान को सीधे सीधे देखें तो लगता है कि बाज के द्वारा मुर्गियों का शिकार करने और बाज से जान बचाने के लिए, छुप जाने वाली मुर्गियों को लेकर ये किस्सा प्रसरित किया गया होगा ! इस दृष्टि से ये कथा सपाट बयानी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है ! किन्तु कथा को गौर से पढ़ा जाए तो इसके सांकेतिक निहितार्थ बेहद महत्वपूर्ण दिखाई देंगे ! ऐसा लगता है कि कथा मित्रवत संबंधों के शत्रुवत हो जाने को लेकर कही गई है ! ये आख्यान अमानत में ख्यानत की धुरी पर घूमता है !

 

आख्यान में वर्णित वस्त्र विन्यास, उस समाज को संबोधित हैं जहां पर प्रकृति से प्राप्त कच्चे माल को जस का तस इस्तेमाल कर लिया जाता था, यानि पहले पहल कपास / रेशम से धागे बनाना और फिर धागों से कपड़ों की बुनाई जैसी कोई लम्बी चौड़ी कवायद नहीं ! इस समाज में वस्त्रों की सिलाई, हाथों और सुई के प्रयोग पर निर्भर थी, जिसमें सौन्दर्य बोध पंखों के प्रयोग पर आधारित दिखाई देता है और बच्चों के लिए कपड़े सिलना मां  का दायित्व !

 

मुर्गी और बाज सखियां अगर सांकेतिक रूप से इंसान मान ली जायें तो कथा संकेत यह है कि वस्त्र विन्यास का आधारभूत उपकरण, संबंधों की निकटता और पारस्परिक लेन देन पर आधारित था ! ऐसे में उधार लिए गए, अत्यंत महत्वपूर्ण उपकरण / सुई की गुमशुदगी मुर्गी की लापरवाही मनाई जायेगी और फलस्वरूप बाज मां की आक्रामक प्रतिक्रिया उसके बच्चों के प्रति उसके दायित्व बोध का प्रकटन करेगी ! यानि कि बाज मां अपने बच्चों के वस्त्र इसलिए नहीं सिल पा रही क्योंकि उसका भरोसा टूटा है सो उसकी प्रतिक्रिया स्वभाविक लगती है !

 

परिंदों के माध्यम से कहे गए इस आख्यान को हम मानवीय समूहों में भी यथावत लागू कर सकते हैं ! जहाँ माता और उनकी संतानों के समुचित पालन पोषण विधान और मित्रवत संबंधों की टूट से उपजी शत्रुता सहज है ! एक मां अपनी लापरवाही के लिए मुंह छुपाये घूमती है और दूसरी अपने विश्वास के टूटने का बदला चाहती है ! इस आख्यान में सबसे रोचक कथन है मुर्गी मां के द्वारा पंजों से जमीन को खुरच कर धूल में गुमशुदा संभावनाओं को तलाश करना, गोया कोई इंसान मां संबंधों की पुनर्स्थापना / शत्रुता के समापन / अपने अपराध बोध से मुक्ति के लिए घर के कबाड़ / कपड़ों की उलट पुलट कर, खो गयी अपरिहार्यता को ढूंढ रही हो...