बहुत पहले की
बात है जब पशु और पौधे भी इंसानों की तरह से, वस्त्र / वेशभूषा धारण करते और
इंसानों के जैसे कार्य किया करते थे ! एक दिन लून,चमगादड़ और कटीली झाड़ी ने
व्यवसाय करने का निर्णय लिया! चमगादड़ ने बैंक
से रुपया उधार लिया और फिर उन्होंने ऊनी कपड़े खरीदकर सुदूर प्रदेश / स्थान देखने
की नीयत की ! जब वे नौकायन कर रहे थे, तो भयंकर तूफ़ान आया जिसके कारण से उनकी नौका
टूट गई !
जैसे तैसे वे
किसी, सुदूर किनारे / तट पर जा पहुंचे और फिर तीनों साझीदार, वहीं ठहर / बस
गये ! कहते हैं कि चमगादड़ उस दिन के बाद से केवल रात में बाहर निकलती है ताकि वो, उसे
उधार देने वालों से मुंह छिपा सके जबकि लून पानी में छिपी रहती है और कंटीली झाड़ी
वहां से गुज़रने वाले लोगों के कपड़े पकड़ती रहती है ताकि ऊनी कपड़े इकठ्ठा कर सके
जोकि उसने तूफ़ान में खो दिये थे...
किसी आख्यान के निहितार्थ खोजना, कथाकार समूह के सामाजिक जीवन
की गहन पड़ताल के अवसर प्रदान करता है ! विवेचनाधीन आख्यान पशु और पौधों के इंसानों
जैसा वस्त्र विन्यास धारण करने के कथन के साथ शुरू होता है और यह कथा ऐन इंसानों
के स्वभाव और आचरण में रची बसी दिखाई देती है ! यह विश्वास करना कठिन है कि लून,
चमगादड़ और कटीली झाड़ी, वास्तव में इस कथा के किरदार हैं बल्कि यह विश्वास करना
आसान है कि कथा के पात्र, अंततः इंसान हैं, जिनका स्वभाव लून, चमगादड़ और कटीली झाड़ी
के जैसा है !
प्रतीति यह है कि कथा भले ही मनुष्य से इतर जीवों और वनस्पति को संबोधित करती दिखाई देती हो, किन्तु कहनीयता में इसका सरोकार भिन्न स्वभाव, व्यक्तित्व वाले इंसानों से हटकर नहीं है ! आख्यान कहता है कि तीन मित्र जो कि व्यवसाय करना चाहते हैं, उनमें से एक निशाचर या अन्धकार प्रिय, कदाचित मूढ़ मति व्यक्ति है, जिसने अपने दोस्तों के साथ व्यवसाय करने की नीयत से बैंक से ऋण ले डाला है ! वे सभी निज भूमि के बजाय किसी अज्ञात प्रदेश में व्यवसाय करने के इच्छुक है ! उन्हें मौसम और रास्ते का सम्यक बोध नहीं, वे दिशाहीन हैं और अनजान लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए भटक जाते हैं !
कथा संकेत यह है कि नौकायन सह तूफ़ान विपरीत परिस्थितियां
हैं जिन्हें तीनों मित्रों ने व्यवसाय प्रारम्भ करने से पहले आकलन में सम्मिलित
नहीं किया था ! बहरहाल वे बर्बाद हैं, अपनी निज भूमि से दूर कहीं अन्यत्र निवास रत
हैं ! चूंकि चमगादड़ ने ऋण लिया था जिसे चुकाने की स्थिति में वो नहीं है सो उधार
दाताओं से मुंह छुपाने के सिवा उसके पास कोई अन्य रास्ता भी शेष नहीं ! दूसरी ओर लून
संभवतः जल क्षत्रिय या पानी के कर्म में लिप्त रहने वाला कोई इंसान है जो अपनी
सुविधानुसार पानी में छुप कर अपने दिन गुजारता है ! इसी तरह से विपरीत परिस्थितियों
में अपना सब कुछ खो चुका कटीली झाड़ी के जैसे स्वभाव वाला इंसान राहगीरों से छुट पुट
भरपाई करने के कृत्य में लीन है !
आश्चर्यजनक जनक रूप से यह आख्यान बेहद रोचक किन्तु कथनी,
करनी और समझ में बेमेल स्वभाव वाले
मित्रों को समर्पित है...