यहां , एक आंख मिचौली सा माहौल है मेरे और नेट कनेक्टिविटी के दरम्यान ! भले ही यह केवल और केवल शुद्ध संयोग हो कि महामहिम ...और दूसरे वी.आई.पी. महानुभाव जैसे ही दौरे पर आते हैं तो इस पुण्य अवसर पर नेट कनेक्टिविटी मौजूद नहीं होती और अक्सर तो उनके आये बिना भी ! टेक्नीकल बातों के कन्फ्यूजन भी टेक्नीकल होते हैं तो जैसे ही विभाग से बात करें कि भाई आज इंटरनेट सुविधा कब बहाल होगी ? वे इसे टेक्नीकल्टीज के हवाले करते हुए इंतज़ार की सलाह दे डालते हैं !फिर इसके आगे क्या मैं और क्या मेरा इंतज़ार ! मसला ये कि अपना मूड है तो नेट कनेक्टिविटी नहीं और अगर नेट कनेक्टिविटी है तो कामकाजी व्यस्ततायें हैं या फिर मूड नहीं !
पिछले दिनों बिटिया के स्कूल आते जाते एक नन्ही सी बच्ची से मुलाकात हुई , उसने पूछा आप मेरी मम्मी को जानते हैं ? मुझे कुछ सूझा नहीं सो मुस्कराया ! उसने फिर पूछा , आपने मेरी मम्मी को पढाया है ? मुझे लगा शायद वो मेरी किसी भूतपूर्व छात्रा की बिटिया होगी तो उसका दिल रखने के लिहाज़ से मैंने सहमति का संकेत दिया ! वो खुश होकर हास्टल की तरफ चली गई ! ठीक अगले ही दिन वो फिर से मेरे पास आई और पूछने लगी कि मेरी मम्मी क्या बोली मेरे लिये ? मैंने कहा कि उसने कहा है कि मैं तुम्हारा ध्यान रखूं ...तो फिर कल आप मेरे लिये डेयरी मिल्क लाना ! मैंने कहा ठीक है ! टोल डो वाले अनुभव के बाद ये दूसरा मौक़ा था जबकि कोई नन्ही जान एक अपरिचित पे भरोसा कर रही थी ! मैंने पत्नी से कहा कि स्कूल जाने से पहले गाड़ी में डेयरी मिल्क के दो बार रख देना ! चाकलेट पाते ही नन्ही का चेहरा खिल उठा और उसने मुझे थैंक यू कहा और ये भी कि शनिवार या इतवार को वो हास्टल से घर चली जायेगी ! संयोग से शनिवार को मैं स्कूल नहीं जा सका और अगले दो तीन महीने तक इसकी कोई गुंजायश भी नहीं है ! अब उससे दोबारा मुलाकात पता नहीं कब हो ?
इधर मेरे एक अनुजवत सहकर्मी अपनी पहली पोस्टिंग के समय से ही मेरे स्नेह के पात्र बन बैठे ! शुरुवाती संबंधों की मिठास के बाद , उनकी सारी खूबियां पता चलने तक बहुत देर हो चुकी थी इसलिये उन्हें , उनके अवगुणों सहित स्वीकार किया गया ! तमाम दोस्त कहते इस वाहियात बंदे को बढ़ावा मत दीजिए ! मैं कहता उसके अवगुण , उसके साथ...शायद मेरी और आपकी सोहबत में सुधर जाये ! सच कहूं तो बन्दा कुटिल खल कामी से बढ़कर है ! दूसरों के फटे में टांग अड़ाने और नुकसान पंहुचाने के हुनर से लैस ! आज शाम को पत्नी से बात करते हुए मैंने कहा कि उसने अमुक काम मुहूर्त निकलवाकर किया है , बड़ा ही धार्मिक जीव है , कम से कम इस मसले पर तो ईश्वर पर भरोसा करता है ! इस पर पत्नी का कहना था कि हां वे तो खुराफात भी मुहूर्त निकलवा कर ही करते होंगे !
पत्नी के कमेन्ट से हैरान हूं और सोच रहा हूं कि नेट कनेक्टिविटी भले ही मेरे वश में नहीं पर एक नन्हीं जान से परिचय और एक अनुजवत सहकर्मी से संबंधो की कनेक्टिविटी के मसले में मुझे आत्मविश्लेषण की ज़रूरत है कि नहीं ?
कई बार होता है ऐसा ...अक्सर अनजान अपरिचितों से दूर रहने की सलाह दी जाती है , मैं भी सोचती हूँ कई बार क्या अनजान अपिरिचित परिचितों की तुलना में ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं ? स्नेह बंधन में बंधने के बाद किसी दुष्ट व्यवहार सामने आये तो किया क्या जाए ?
जवाब देंहटाएंअली साहब, हम पहले मिले हैं क्या? सैकंडलास्ट पैरा पढ़कर चेहरे पर हँसी आ गई:))
जवाब देंहटाएंइन रिश्तों के बारे में आत्मविश्लेषण? - ये स्वाभाविक मुलाकातों से उपजते हैं और हर इंसान अपनी चारित्रिक विशेषताओं के साथ ही इन्हें निभाता है। अब जिसके पास जो चीज है, वही वह दूसरों में तलाशता भी है और वही लौटाता भी है। अपने थोड़े से अनुभवों से यह जानता हूँ कि कुछ लोग यकीनन सोहबत से बदलते हैं लेकिन जहाँ ऐसा महसूस हुआ कि ’सूरदास की कारी कमलिया’ टाईप के लोगों से वास्ता पड़ा है तो अपन तो जिद नहीं करते कि उन्हें सुधारना ही सुधारना है। हम भी अपने हिस्से की कोशिश करके देखते हैं और निकल लेते हैं।
पोस्ट संवेदनापूर्ण है.
जवाब देंहटाएंइसे पढ़कर बरसों पहले पढी एक विदेशी कहानी याद आ गयी जिसमें अंचल में रेल चलानेवाला एक रेलचालक अपने मार्ग में आनेवाले एक घर के सामने खेलती बालिका को बचपन से देखता रहता है और उससे बहुत गहरे जुड़ाव का अनुभव करता है. समय के साथ वह बालिका बड़ी होती जाती है और एक दिन उसका ब्याह हो जाता है. उसकी विदाई देखते समय रेलचालक का दिल भर आता है. कहानी और आपकी पोस्ट में क्या मेल है यह बता पाना मुश्किल है पर आपकी पोस्ट ने उसकी याद ताज़ा कर दी.
आपकी पत्नीश्री के कमेन्ट के बारे में क्या कहूं... यह भी तो नहीं कह सकता की सारी पत्नियां एक सी होती हैं... क्योंकि बहुत सी पत्नियां एक ही होती हुई भी अलग-अलग होती हैं:)
"वे खुराफात भी मुहूर्त निकलवा कर करते होंगे ..."
जवाब देंहटाएंआसानी से भरोसा करते स्नेही और उदार लोगों को, अक्सर आज के समय में, आत्मविश्लेषण की जरूरत पड़ जाती है !
शातिर भाई लोग, बिना आप पर दया खाए, अपना विश्वास जमाने में कामयाब हो जाते हैं और फिर निर्ममता से अच्छाइयों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाते हुए, अपना काम करते हैं !
शुभकामनायें देता हूँ कि इन्हें अपना उपयोग न करने दें तो शायद मज़ाक कम बनेगी !
मगर घर में क्या होगा ...पता नहीं ????
:-))
स्नेह बंधन में बंधने के बाद किसी दुष्ट व्यवहार सामने आये तो किया क्या जाए ?
जवाब देंहटाएंमेरी भी यही जिज्ञासा बलवती हो गयी है!
संत्रास तो परिचित ही देते हैं !
भले मानुष को खुराफाती बहुत जल्दी ताड़ जाते हैं लेकिन खुराफाती को ताड़ने में भले आदमी को वक्त लगता है। मजा यह कि ताड़ने के बाद भी दोस्ती निभाता चला जाता है कि उसने मेरा क्या बिगाड़ा है! हो सकता है कि अभी आपको नुकसान पहुंचाने का वह मुहूर्त ही नहीं निकाल पाया है!
जवाब देंहटाएंमहिलाओं की व्यावहारिक समझ प्रकृति-प्रदत्त मानी जाती है, उस पर निर्भर करें न करें, भरोसा तो कर ही सकते हैं.
जवाब देंहटाएंदोनों संस्मरण अच्छे।
जवाब देंहटाएंपहले की बात करें तो छोटी सी बच्ची आपसे एक चाकलेट के बदले में आपको आपको जमाने भर की खुशियां दे सकती हैं। आखिर एक बच्ची के मोहक मुस्कान से बढकर कुछ हो सकता है क्या।
और दूसरे की करें तो आपके कार्यालय के साथी से संबंध होना ही चाहिए। अवगुण उनका व्यक्तिगत मामला है पर यदि कार्यालय के काम में वे निपुण हैं तो सारे अवगुण माफ हो जाने चाहिए।
बहुत दिनों बाद आपकी कलम चली। अच्छा लगा।
@ वाणी जी ,
जवाब देंहटाएंस्नेह बंधन में बंधने के बाद वाले धर्म संकट में मैं भी हूं ! अपरिचित की तुलना में परिचित से नुकसान वाली बात से भी सहमत !
@ मो सम कौन जी ,
सेकेण्ड लास्ट पैरा वाले सज्जन ? केवल कुटिल खल कामी हैं :)
हम अक्सर मिलते हैं क्या आपको याद नहीं :)
आपकी टिप्पणी के दूसरे पैरे से पूरा इत्तफाक !
@ निशांत मिश्र जी ,
बेहद ज़ज्बाती कथा का स्मरण हुआ है आपको !
पत्नियों के मसले में इससे बढ़कर कुछ भी लिखने की हिम्मत नहीं हो रही :)
@ सतीश भाई ,
प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया !
घर में आप जैसे भले मानुष के उदाहरण देकर काम चला लूंगा :)
@ अरविन्द जी ,
हम तो समाधान चाह रहे थे और आपने जिज्ञासा बलवती बता के प्रश्न चिन्ह छोड़ दिया !
@ देवेन्द्र भाई ,
गज़ब की प्रतिक्रिया है आपकी ! आभार !
@ राहुल सिंह जी ,
अनुभवपरक सलाह शीश नवा कर स्वीकार !
@ अतुल श्रीवास्तव जी ,
पहली बात सौ टका सही !
दूसरी बात में सिर्फ इतना जोड़ दूं कि उनके व्यक्तिगत अवगुणों की मार , कार्यालय और सहकर्मी ही झेल रहे है !
अली साहेब,
जवाब देंहटाएंअनजानों से जो दुःख मिलता है..वो झेलना मुश्किल नहीं होता...लेकिन अपनों से जो तकलीफ मिलती है उसे सह पाना बहुत कठिन होता है...
मुझे इस ब्लॉग जगत से यही दुःख मिला है....और बस अब चुप हैं और झेल रहे हैं...:)
हमेशा की तरह..लाजवाब प्रस्तुति..
धन्यवाद...
मुझे नहीं लगता कि आपको किसी आत्मविष्लेषण की आवश्यकता है। वैसे इन दो तरह की घटनाओं का (अलग-अलग) विष्लेषण अवश्य किया जा सकता है। जहाँ तक बच्चों के कोमल मन की बात है, वे तो किसी पर भी विश्वास कर लेते हैं (दुर्भाग्य से अपराधी मनोवृत्ति के लोग अक्सर इस बात का फायदा भी उठाते हैं)। अक्सर अच्छे लोगों का व्यवहार भी अच्छा ही होता है। बुरे लोग भी व्यवहारकुशल हो सकते हैं परंतु वे अपना व्यवहार वहाँ खर्च करते हैं जहाँ से उन्हें फायदा हो तो बच्चों, बूढों, विकलांगों को तो उनके क्षेत्र से बाहर ही समझिये। नतीज़ा यह कि बच्चे अक्सर अच्छे लोगों से लगाव महसूस करने लगते हैं [पुनः, इसलिये नहींकि बच्चों को उनके मन की बात पता है बल्कि इसलिये क्योंकि उनके साथ वे अपनी मर्ज़ी कर सकते हैं] आपके उदाहरणों में बच्चे की बात का जवाब देने से लेकर उन्हें छोडने जाना और कैंडी देना भी शामिल है।
जवाब देंहटाएंरही बात दोस्तकुमार की। मतलबी यार किसके? दम लगाई खिसके।
इससे पहले कि स्पैलिंग स्क्वैड पकडे, मैं अपनी पिछली टिप्पणी सही कर लेता हूँ: आत्मविश्लेषण, आत्मविश्लेषण, आत्मविश्लेषण!
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मैं तो यही कहूँगा कि बंदे को अपना स्वभाव नहीं छोड़ना चाहिये कभी... वृक्ष तो सभी को आश्रय-छाया देता है, उसे भी जो उसकी ही टहनियाँ तोड़ ताप लेता है... ज्यादा फिकर नहीं करने का इस बारे में... सब बराबर हो जाता है... कोई आपके सद्भाव का गलत फायदा उठा यदि नुकसान पहुंचाता है तो दुगुने आपके इसी गुण के कारण आपकी ढाल भी बन जाते हैं... इसी लिये शायद आज तक वृक्ष शान से खड़े हैं... कम से कम मेरा तो यही अनुभव रहा है अब तक... और हाँ मुझे 'तकलीफ' भी नहीं पहुंचती कभी, न अपनों से न बेगानों से... क्या यही बुद्धत्व है... :)
...
अली जी ... जीवन में आत्म विश्लेषण करना क्या ज़रूरी हैं ... इस विश्लेषण से ऐसा नही होता की खुद की मूल प्रवृति बदलने लगती है ... जिसकी की बिल्कुल ज़रूरत नही ... क्योंकि आप एक आदत को बदलोगे तो दूसरी आदत पर ज़रूर असर पड़ेगा ...
जवाब देंहटाएंमेरा मानना है अगर कोई आदत या सोच बिल्कुल ही ग़लत ना हो तो उस पर आत्म विश्लेषण नही करना चाहिए ... बस मस्त रहना चाहिए ...
आपकी ये पोस्ट पढ़ने के बाद लिंक द्वारा पिछली पोस्ट भी पढ़ आई....उस पोस्ट की अंतिम पंक्तियाँ ग़मगीन कर गयीं...ऐसे सवाल उठते ही क्यूँ है...किसी भी इंसान के मन में...
जवाब देंहटाएंयहाँ भी, आत्मविश्लेषण की क्या जरूरत....
बड़ी होने पर....उस बच्ची के ज़ेहन में ममी के टीचर और चॉकलेट वाले अंकल की मीठी यादें होंगी...
आपके सहकर्मी जैसे लोग तो आस-पास दर्जनों बिखरे होते हैं...कोई कितना भी बुरा हो..एक अच्छे दोस्त की जरूरत उसे भी होती है...जिसके साथ वो अपने व्यक्तित्व का श्वेत पक्ष शेयर कर सके....और शायद अच्छी संगत में इस धवल पक्ष का दायरा बढ़ता जाए.
कुछ रिश्ते अनजाने में ही बंध जाया करते हैं
जवाब देंहटाएंचोट का एहसास तो
जानने वाले भी दे दिया करते हैं...
लेकिन वो कैफियत
जो अपरिचित होते हुए भी
पराई नहीं
वो लुत्फ़, वो आनंद
और कहाँ ढून्ढ पाएगा कोई ..... !
चिकना घड़ा होना भी कहां हर किसी के बूते की बात है...बड़ा मुश्किल काम है ये कुछ के लिए तो कुछ के लिए चुटकी का खेल.
जवाब देंहटाएंअली सा! सेम प्रॉब्लेम.. नेटऔर लैपटॉप दोनों बारी बारी से ख़राबी के कॉम्पिटीशन में लगे थे... हम दोनों दोस्त जब एक जगह थे तो इतनी गहरी दोस्ती न थी.. अब जब दूर हैं तो दिल से इतने करीब कि शेक्सपियेर भी हैरान रह जाए...
जवाब देंहटाएंसम्बंधों का सम्बंध तो बस दिल से है!! कुछ कुछ होता है और दिल तो पागल है, बस हो जाता है!! और हाँ ये सम्बंध महूरत देखकर नहीं होते.. जब हो जाते हैं तो वही शुभ मुहूर्त्त होता है!!
@ अदा जी ,
जवाब देंहटाएंओह एक ही कश्ती में सवार हैं हम :)
@ स्मार्ट इन्डियन जी ,
बच्चों और बुरे लोगों पे सहमत ! दोस्त कुमार वाला मुहावरा बहुत दिनों बाद सुना :)
जबसे स्पेलिंग स्क्वाड के मुखिया 69/1,69/2 में लीन हुए हैं उसकी गतिविधियां सुस्त हो गई हैं :)
@ प्रवीण शाह जी ,
बुद्धत्व ? हां...यही है :)
@ दिगंबर नासवा जी ,
मस्त रहने वाला आइडिया पसंद आया :)
@ रश्मि जी ,
पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए आभार :)
संगत और धवल पक्ष का काम्बीनेशन तो बनता ही है ! आपसे सहमत !
@ दानिश जी ,
शुक्रिया !
@ काजल कुमार ,
सही !
@ संवेदना के स्वर ,
अगर कोई मुझसे पूछे कि वो लम्हा कौन सा है जब आप आनंद अतिरेक में डूब जाते हैं तो मैं कहूँगा ...नेट कनेक्ट होने का :)
अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंखुराफाती अपनी आदत नहीं छोड़ पाते तो आपसे भी अपनी सहजता वाली और खुराफातियों पर विश्वास कर लेने वाली आदत भी इतनी आसानी से थोड़े ही छूटेगी! (श्रीमतीजी भी मुझे यही कहती रहती है कि आप हर किसी पर इतनी आसानी से विश्वास क्यूं कर लेते हैं) ।
देवेन्द्रजी ने सही कहा शायद आपको नुकसान पहुँचाने का मुहर्त नहीं निकाल पाया हो वह।
आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंमुझे तो आपकी पत्नी की महूर्त वाली बात बहुत जमी.काश सब खुराफ़ाती यूँ ही काम करते तो मुहूर्त निकलने वालों को पटा लेते और खुराफातें रोक लेते.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
भजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
जवाब देंहटाएंमन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
AAapke vicharon se sahmat. Ek mauka to diya hi jana chahiye.
जवाब देंहटाएंहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
अली साहब होली के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं.
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