tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post6277865974784706582..comments2023-10-30T13:19:42.453+05:30Comments on ummaten: मेरी मम्मी क्या बोली मेरे लिये बनाम खुराफातों के मुहूर्त !उम्मतेंhttp://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-7131233308624566842011-03-19T15:52:46.944+05:302011-03-19T15:52:46.944+05:30अली साहब होली के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवा...अली साहब होली के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-13295397887677281892011-03-19T11:38:45.604+05:302011-03-19T11:38:45.604+05:30AAapke vicharon se sahmat. Ek mauka to diya hi jan...AAapke vicharon se sahmat. Ek mauka to diya hi jana chahiye.<br /><br /><br /><b>होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।</b><br />आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को <b><a href="http://ts.samwaad.com/2011/03/blog-post_18.html" rel="nofollow">असामयिक मौत</a></b> से बचाएं तथा <b><a href="http://sb.samwaad.com/2011/03/blog-post_19.html" rel="nofollow">अनजाने में होने वाले पाप</a></b> से लोगों को अवगत कराएं।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-51468852695567053862011-03-19T09:42:52.789+05:302011-03-19T09:42:52.789+05:30भजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
मन मेरो लागे रहे सब...<b>भजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।<br />मन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥</b><br /><br />होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-82310860397765865532011-03-18T17:47:19.684+05:302011-03-18T17:47:19.684+05:30मुझे तो आपकी पत्नी की महूर्त वाली बात बहुत जमी.काश...मुझे तो आपकी पत्नी की महूर्त वाली बात बहुत जमी.काश सब खुराफ़ाती यूँ ही काम करते तो मुहूर्त निकलने वालों को पटा लेते और खुराफातें रोक लेते.<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-9883575489726736042011-03-18T10:15:27.445+05:302011-03-18T10:15:27.445+05:30आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाये...आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!rajesh singh kshatrihttps://www.blogger.com/profile/05830899015565164627noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-59411967675127749412011-03-16T11:13:03.080+05:302011-03-16T11:13:03.080+05:30अच्छी पोस्ट
खुराफाती अपनी आदत नहीं छोड़ पाते तो आपस...अच्छी पोस्ट<br />खुराफाती अपनी आदत नहीं छोड़ पाते तो आपसे भी अपनी सहजता वाली और खुराफातियों पर विश्वास कर लेने वाली आदत भी इतनी आसानी से थोड़े ही छूटेगी! (श्रीमतीजी भी मुझे यही कहती रहती है कि आप हर किसी पर इतनी आसानी से विश्वास क्यूं कर लेते हैं) । <br />देवेन्द्रजी ने सही कहा शायद आपको नुकसान पहुँचाने का मुहर्त नहीं निकाल पाया हो वह।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-22654672241797494552011-03-16T06:42:40.386+05:302011-03-16T06:42:40.386+05:30@ अदा जी ,
ओह एक ही कश्ती में सवार हैं हम :)
@ ...@ अदा जी ,<br />ओह एक ही कश्ती में सवार हैं हम :) <br /><br />@ स्मार्ट इन्डियन जी ,<br />बच्चों और बुरे लोगों पे सहमत ! दोस्त कुमार वाला मुहावरा बहुत दिनों बाद सुना :)<br /><br />जबसे स्पेलिंग स्क्वाड के मुखिया 69/1,69/2 में लीन हुए हैं उसकी गतिविधियां सुस्त हो गई हैं :)<br /><br />@ प्रवीण शाह जी ,<br />बुद्धत्व ? हां...यही है :)<br /><br />@ दिगंबर नासवा जी ,<br />मस्त रहने वाला आइडिया पसंद आया :)<br /><br />@ रश्मि जी ,<br />पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए आभार :)<br />संगत और धवल पक्ष का काम्बीनेशन तो बनता ही है ! आपसे सहमत !<br /><br />@ दानिश जी ,<br />शुक्रिया !<br /><br />@ काजल कुमार ,<br />सही !<br /><br />@ संवेदना के स्वर ,<br />अगर कोई मुझसे पूछे कि वो लम्हा कौन सा है जब आप आनंद अतिरेक में डूब जाते हैं तो मैं कहूँगा ...नेट कनेक्ट होने का :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-67405709900733635662011-03-15T23:45:26.018+05:302011-03-15T23:45:26.018+05:30अली सा! सेम प्रॉब्लेम.. नेटऔर लैपटॉप दोनों बारी बा...अली सा! सेम प्रॉब्लेम.. नेटऔर लैपटॉप दोनों बारी बारी से ख़राबी के कॉम्पिटीशन में लगे थे... हम दोनों दोस्त जब एक जगह थे तो इतनी गहरी दोस्ती न थी.. अब जब दूर हैं तो दिल से इतने करीब कि शेक्सपियेर भी हैरान रह जाए...<br />सम्बंधों का सम्बंध तो बस दिल से है!! कुछ कुछ होता है और दिल तो पागल है, बस हो जाता है!! और हाँ ये सम्बंध महूरत देखकर नहीं होते.. जब हो जाते हैं तो वही शुभ मुहूर्त्त होता है!!सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-85962562798354249962011-03-15T22:54:25.808+05:302011-03-15T22:54:25.808+05:30चिकना घड़ा होना भी कहां हर किसी के बूते की बात है....चिकना घड़ा होना भी कहां हर किसी के बूते की बात है...बड़ा मुश्किल काम है ये कुछ के लिए तो कुछ के लिए चुटकी का खेल.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-71078561937500766192011-03-15T19:23:47.824+05:302011-03-15T19:23:47.824+05:30कुछ रिश्ते अनजाने में ही बंध जाया करते हैं
चोट का ...कुछ रिश्ते अनजाने में ही बंध जाया करते हैं<br />चोट का एहसास तो<br />जानने वाले भी दे दिया करते हैं...<br />लेकिन वो कैफियत<br />जो अपरिचित होते हुए भी<br />पराई नहीं<br />वो लुत्फ़, वो आनंद<br />और कहाँ ढून्ढ पाएगा कोई ..... !daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-80342428081458135732011-03-15T17:25:12.845+05:302011-03-15T17:25:12.845+05:30आपकी ये पोस्ट पढ़ने के बाद लिंक द्वारा पिछली पोस्ट...आपकी ये पोस्ट पढ़ने के बाद लिंक द्वारा पिछली पोस्ट भी पढ़ आई....उस पोस्ट की अंतिम पंक्तियाँ ग़मगीन कर गयीं...ऐसे सवाल उठते ही क्यूँ है...किसी भी इंसान के मन में...<br /><br />यहाँ भी, आत्मविश्लेषण की क्या जरूरत....<br />बड़ी होने पर....उस बच्ची के ज़ेहन में ममी के टीचर और चॉकलेट वाले अंकल की मीठी यादें होंगी...<br /><br />आपके सहकर्मी जैसे लोग तो आस-पास दर्जनों बिखरे होते हैं...कोई कितना भी बुरा हो..एक अच्छे दोस्त की जरूरत उसे भी होती है...जिसके साथ वो अपने व्यक्तित्व का श्वेत पक्ष शेयर कर सके....और शायद अच्छी संगत में इस धवल पक्ष का दायरा बढ़ता जाए.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-4674490953353984862011-03-15T14:54:44.248+05:302011-03-15T14:54:44.248+05:30अली जी ... जीवन में आत्म विश्लेषण करना क्या ज़रूरी...अली जी ... जीवन में आत्म विश्लेषण करना क्या ज़रूरी हैं ... इस विश्लेषण से ऐसा नही होता की खुद की मूल प्रवृति बदलने लगती है ... जिसकी की बिल्कुल ज़रूरत नही ... क्योंकि आप एक आदत को बदलोगे तो दूसरी आदत पर ज़रूर असर पड़ेगा ... <br />मेरा मानना है अगर कोई आदत या सोच बिल्कुल ही ग़लत ना हो तो उस पर आत्म विश्लेषण नही करना चाहिए ... बस मस्त रहना चाहिए ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-52985413278876502532011-03-15T12:05:09.161+05:302011-03-15T12:05:09.161+05:30.
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मैं तो यही कहूँगा कि बंदे को अपना स्वभाव नही....<br />.<br />.<br />मैं तो यही कहूँगा कि बंदे को अपना स्वभाव नहीं छोड़ना चाहिये कभी... वृक्ष तो सभी को आश्रय-छाया देता है, उसे भी जो उसकी ही टहनियाँ तोड़ ताप लेता है... ज्यादा फिकर नहीं करने का इस बारे में... सब बराबर हो जाता है... कोई आपके सद्भाव का गलत फायदा उठा यदि नुकसान पहुंचाता है तो दुगुने आपके इसी गुण के कारण आपकी ढाल भी बन जाते हैं... इसी लिये शायद आज तक वृक्ष शान से खड़े हैं... कम से कम मेरा तो यही अनुभव रहा है अब तक... और हाँ मुझे 'तकलीफ' भी नहीं पहुंचती कभी, न अपनों से न बेगानों से... क्या यही बुद्धत्व है... :) <br /><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-31133298349057093552011-03-15T11:05:14.820+05:302011-03-15T11:05:14.820+05:30इससे पहले कि स्पैलिंग स्क्वैड पकडे, मैं अपनी पिछली...इससे पहले कि स्पैलिंग स्क्वैड पकडे, मैं अपनी पिछली टिप्पणी सही कर लेता हूँ: आत्मविश्लेषण, आत्मविश्लेषण, आत्मविश्लेषण!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-54703610857355786612011-03-15T07:01:36.445+05:302011-03-15T07:01:36.445+05:30मुझे नहीं लगता कि आपको किसी आत्मविष्लेषण की आवश्यक...मुझे नहीं लगता कि आपको किसी आत्मविष्लेषण की आवश्यकता है। वैसे इन दो तरह की घटनाओं का (अलग-अलग) विष्लेषण अवश्य किया जा सकता है। जहाँ तक बच्चों के कोमल मन की बात है, वे तो किसी पर भी विश्वास कर लेते हैं (दुर्भाग्य से अपराधी मनोवृत्ति के लोग अक्सर इस बात का फायदा भी उठाते हैं)। अक्सर अच्छे लोगों का व्यवहार भी अच्छा ही होता है। बुरे लोग भी व्यवहारकुशल हो सकते हैं परंतु वे अपना व्यवहार वहाँ खर्च करते हैं जहाँ से उन्हें फायदा हो तो बच्चों, बूढों, विकलांगों को तो उनके क्षेत्र से बाहर ही समझिये। नतीज़ा यह कि बच्चे अक्सर अच्छे लोगों से लगाव महसूस करने लगते हैं [पुनः, इसलिये नहींकि बच्चों को उनके मन की बात पता है बल्कि इसलिये क्योंकि उनके साथ वे अपनी मर्ज़ी कर सकते हैं] आपके उदाहरणों में बच्चे की बात का जवाब देने से लेकर उन्हें छोडने जाना और कैंडी देना भी शामिल है। <br /><br />रही बात दोस्तकुमार की। मतलबी यार किसके? दम लगाई खिसके।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-19408505182648556762011-03-15T03:03:46.431+05:302011-03-15T03:03:46.431+05:30अली साहेब,
अनजानों से जो दुःख मिलता है..वो झेलना म...अली साहेब,<br />अनजानों से जो दुःख मिलता है..वो झेलना मुश्किल नहीं होता...लेकिन अपनों से जो तकलीफ मिलती है उसे सह पाना बहुत कठिन होता है...<br />मुझे इस ब्लॉग जगत से यही दुःख मिला है....और बस अब चुप हैं और झेल रहे हैं...:)<br />हमेशा की तरह..लाजवाब प्रस्तुति..<br />धन्यवाद...स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-74739511617334795562011-03-14T16:13:36.005+05:302011-03-14T16:13:36.005+05:30@ वाणी जी ,
स्नेह बंधन में बंधने के बाद वाले धर्म ...@ वाणी जी ,<br />स्नेह बंधन में बंधने के बाद वाले धर्म संकट में मैं भी हूं ! अपरिचित की तुलना में परिचित से नुकसान वाली बात से भी सहमत !<br /><br />@ मो सम कौन जी ,<br />सेकेण्ड लास्ट पैरा वाले सज्जन ? केवल कुटिल खल कामी हैं :)<br />हम अक्सर मिलते हैं क्या आपको याद नहीं :)<br /><br />आपकी टिप्पणी के दूसरे पैरे से पूरा इत्तफाक !<br /><br />@ निशांत मिश्र जी ,<br />बेहद ज़ज्बाती कथा का स्मरण हुआ है आपको !<br />पत्नियों के मसले में इससे बढ़कर कुछ भी लिखने की हिम्मत नहीं हो रही :)<br /><br />@ सतीश भाई ,<br />प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया ! <br />घर में आप जैसे भले मानुष के उदाहरण देकर काम चला लूंगा :)<br /><br />@ अरविन्द जी ,<br />हम तो समाधान चाह रहे थे और आपने जिज्ञासा बलवती बता के प्रश्न चिन्ह छोड़ दिया !<br /><br />@ देवेन्द्र भाई ,<br />गज़ब की प्रतिक्रिया है आपकी ! आभार !<br /><br />@ राहुल सिंह जी ,<br />अनुभवपरक सलाह शीश नवा कर स्वीकार !<br /><br />@ अतुल श्रीवास्तव जी ,<br />पहली बात सौ टका सही ! <br />दूसरी बात में सिर्फ इतना जोड़ दूं कि उनके व्यक्तिगत अवगुणों की मार , कार्यालय और सहकर्मी ही झेल रहे है !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-56071156437071690622011-03-14T12:57:19.009+05:302011-03-14T12:57:19.009+05:30दोनों संस्मरण अच्छे।
पहले की बात करें तो छोटी स...दोनों संस्मरण अच्छे। <br />पहले की बात करें तो छोटी सी बच्ची आपसे एक चाकलेट के बदले में आपको आपको जमाने भर की खुशियां दे सकती हैं। आखिर एक बच्ची के मोहक मुस्कान से बढकर कुछ हो सकता है क्या। <br />और दूसरे की करें तो आपके कार्यालय के साथी से संबंध होना ही चाहिए। अवगुण उनका व्यक्तिगत मामला है पर यदि कार्यालय के काम में वे निपुण हैं तो सारे अवगुण माफ हो जाने चाहिए। <br />बहुत दिनों बाद आपकी कलम चली। अच्छा लगा।Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-40665159091791755252011-03-14T08:45:20.092+05:302011-03-14T08:45:20.092+05:30महिलाओं की व्यावहारिक समझ प्रकृति-प्रदत्त मानी ज...महिलाओं की व्यावहारिक समझ प्रकृति-प्रदत्त मानी जाती है, उस पर निर्भर करें न करें, भरोसा तो कर ही सकते हैं.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-620016976043942052011-03-14T08:37:11.767+05:302011-03-14T08:37:11.767+05:30भले मानुष को खुराफाती बहुत जल्दी ताड़ जाते हैं लेक...भले मानुष को खुराफाती बहुत जल्दी ताड़ जाते हैं लेकिन खुराफाती को ताड़ने में भले आदमी को वक्त लगता है। मजा यह कि ताड़ने के बाद भी दोस्ती निभाता चला जाता है कि उसने मेरा क्या बिगाड़ा है! हो सकता है कि अभी आपको नुकसान पहुंचाने का वह मुहूर्त ही नहीं निकाल पाया है!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-29231498510656290342011-03-14T08:15:01.327+05:302011-03-14T08:15:01.327+05:30स्नेह बंधन में बंधने के बाद किसी दुष्ट व्यवहार साम...स्नेह बंधन में बंधने के बाद किसी दुष्ट व्यवहार सामने आये तो किया क्या जाए ?<br />मेरी भी यही जिज्ञासा बलवती हो गयी है!<br />संत्रास तो परिचित ही देते हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-83908214576633842562011-03-14T08:03:23.283+05:302011-03-14T08:03:23.283+05:30"वे खुराफात भी मुहूर्त निकलवा कर करते होंगे ....<b>"वे खुराफात भी मुहूर्त निकलवा कर करते होंगे ..."<br /><br />आसानी से भरोसा करते स्नेही और उदार लोगों को, अक्सर आज के समय में, आत्मविश्लेषण की जरूरत पड़ जाती है ! <br /><br />शातिर भाई लोग, बिना आप पर दया खाए, अपना विश्वास जमाने में कामयाब हो जाते हैं और फिर निर्ममता से अच्छाइयों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाते हुए, अपना काम करते हैं !<br /><br />शुभकामनायें देता हूँ कि इन्हें अपना उपयोग न करने दें तो शायद मज़ाक कम बनेगी !<br /><br />मगर घर में क्या होगा ...पता नहीं ???? <br />:-)) </b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-61125474930019347282011-03-14T07:41:22.558+05:302011-03-14T07:41:22.558+05:30पोस्ट संवेदनापूर्ण है.
इसे पढ़कर बरसों पहले पढी एक...पोस्ट संवेदनापूर्ण है.<br />इसे पढ़कर बरसों पहले पढी एक विदेशी कहानी याद आ गयी जिसमें अंचल में रेल चलानेवाला एक रेलचालक अपने मार्ग में आनेवाले एक घर के सामने खेलती बालिका को बचपन से देखता रहता है और उससे बहुत गहरे जुड़ाव का अनुभव करता है. समय के साथ वह बालिका बड़ी होती जाती है और एक दिन उसका ब्याह हो जाता है. उसकी विदाई देखते समय रेलचालक का दिल भर आता है. कहानी और आपकी पोस्ट में क्या मेल है यह बता पाना मुश्किल है पर आपकी पोस्ट ने उसकी याद ताज़ा कर दी.<br />आपकी पत्नीश्री के कमेन्ट के बारे में क्या कहूं... यह भी तो नहीं कह सकता की सारी पत्नियां एक सी होती हैं... क्योंकि बहुत सी पत्नियां एक ही होती हुई भी अलग-अलग होती हैं:)निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-87731088368167404112011-03-14T07:18:36.497+05:302011-03-14T07:18:36.497+05:30अली साहब, हम पहले मिले हैं क्या? सैकंडलास्ट पैरा प...अली साहब, हम पहले मिले हैं क्या? सैकंडलास्ट पैरा पढ़कर चेहरे पर हँसी आ गई:))<br /><br />इन रिश्तों के बारे में आत्मविश्लेषण? - ये स्वाभाविक मुलाकातों से उपजते हैं और हर इंसान अपनी चारित्रिक विशेषताओं के साथ ही इन्हें निभाता है। अब जिसके पास जो चीज है, वही वह दूसरों में तलाशता भी है और वही लौटाता भी है। अपने थोड़े से अनुभवों से यह जानता हूँ कि कुछ लोग यकीनन सोहबत से बदलते हैं लेकिन जहाँ ऐसा महसूस हुआ कि ’सूरदास की कारी कमलिया’ टाईप के लोगों से वास्ता पड़ा है तो अपन तो जिद नहीं करते कि उन्हें सुधारना ही सुधारना है। हम भी अपने हिस्से की कोशिश करके देखते हैं और निकल लेते हैं।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3486713072293488752.post-72949472994882317692011-03-14T06:29:28.087+05:302011-03-14T06:29:28.087+05:30कई बार होता है ऐसा ...अक्सर अनजान अपरिचितों से दूर...कई बार होता है ऐसा ...अक्सर अनजान अपरिचितों से दूर रहने की सलाह दी जाती है , मैं भी सोचती हूँ कई बार क्या अनजान अपिरिचित परिचितों की तुलना में ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं ? स्नेह बंधन में बंधने के बाद किसी दुष्ट व्यवहार सामने आये तो किया क्या जाए ?वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com