मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

निचाट मरुभूमि के लिए अभिशापित प्रेम...!

क्वेहुआलिऊ अपने कबीले का सबसे हसीन युवक था, जो बचपन से ही कबीले के मुखिया की खूबसूरत पुत्री पासनसाना के लिए नित दिन फूल चुना करता ! वो दोनों हमेशा साथ खेलते, चलते और पहाड़ के नयनाभिराम हिस्सों में साथ साथ वक़्त गुज़ारा करते ! ...यूँहीं दिन गुज़रते गये और किसी एक लम्हें में उन्हें एक दूसरे से मुहब्बत हो गई, जबकि पासनसाना का पिता अपने कबीले के किसी दूसरे युवक से अपनी पुत्री का विवाह करना चाहता था ! पासनसाना के पिता द्वारा विवाह के लिए चयनित युवक उस कबीले का सबसे शानदार आखेटक था !

क्वेहुआलिऊ और पासनसाना ये खबर सुनते ही रोने लगे और एक दिन उन दोनों ने घर से भाग जाने का निश्चय किया ! फिर सुबह सुबह सहपलायन कर चुके इस युवा प्रेमी जोड़े ने पहाड़ से गुज़रते वक्त यह सुनिश्चय किया कि अगले दिन, पहला तारा दिखने तक उन्हें पर्वत श्रृंखला के उस पार पहुंच जाना चाहिए ! इधर युवती का पिता अपनी पुत्री की इस हरकत पर आगबबूला हो गया और उसने अपने कबीले के लोगों के साथ इस जोड़े की खोजबीन शुरू कर दी, उधर दिन तमाम चलते चलते क्वेहुआलिऊ और पासनसाना बहुत थक चुके थे और थोड़ा सा आराम करना चाहते थे !

वे सोने ही वाले थे कि पूरे चांद की रौशनी में, उनका पीछा करने वाले लोगों का झुण्ड उन्हें दिखाई दे गया, चिंतित प्रेमी जोड़े ने भूमि की देवी से शरण की याचना की, दयावश भूमि की देवी ने पहाड़ पर एक कन्दरा खोल दी जहाँ इस प्रेमी जोड़े को छुपने का अवसर मिल गया ! इधर खोजी समूह के साथ मौजूद, कबीले का मुखिया चिल्लाया वे आसपास ही होंगे ! वे हमेशा के लिए तो छुप नहीं सकते, हमें सुबह तक इंतज़ार करना होगा ! खोजी समूह रात भर वहीं रुका रहा ! किन्तु...अगली सुबह पासनसाना और उसकी आगोश में संरक्षित उसका प्रेमी क्वेहुआलिऊ कैक्टस में तब्दील हो चुके थे !

अपने कथानक के हिसाब से अर्जेंटीना के इस लोक आख्यान में ज़रा भी नयापन नहीं है ! अक्सर प्रेमी जोड़े का बचपन से साथ साथ रहना और एक दूसरे से प्रेम करने लग जाना...परिजनों के विरोध का एकमात्र आधार जीवनसाथी चयन का सर्वाधिकार अपने हाथों सुरक्षित रखना / रखने का यत्न करना ! कुल मिलाकर प्रेम विवाह विरुद्ध परिजन प्रायोजित / आयोजित विवाह अथवा नई बनाम पुरानी पीढ़ी का संघर्ष वगैरह वगैरह ...हालाँकि कथा में प्रयुक्त प्रतीकों और कहन को गौर से सुनने / देखने / समझने की हालत में आख्यान के कई नवअर्थों की संभावनायें मुखरित होने लगती हैं !

ये आख्यान संकेत देता है कि, बचपन से लेकर युवापन तक के सतत साहचर्य की स्थिति में लावण्यमयी युवती और सुदर्शन युवा के प्रेमातुर होने का आधार बनता है, यद्यपि संभव है कि उनमें प्रेम के पल्लवित होने का कोई अन्य कारण भी मौजूद हो ! उनके विवाह को सामाजिक संस्वीकृति के नज़रिये से देखा जाए तो पारस्परिक विजातीयता जैसा कोई अवरोध भी नहीं था, क्योंकि वे दोनों एक ही कबीले के सदस्य हैं और उनमें निरंतर मित्रवत सम्बन्ध बने रहने की पारिवारिक स्वीकार्यता से प्रतीत होता है कि उनके मध्य कोई पारिवारिक आर्थिक सामाजिक विभेद जैसी स्थिति भी नहीं थी !

युवती का पिता, देह सुदर्शन युवा तथा बालपन से ही निकट परिचित सजातीय युवा की तुलना में एक उत्कृष्ट सजातीय आखेटक को अपनी पुत्री के वर के रूप में चुनता है तो इसके दो ही कारण हो सकते हैं , एक तो यह कि आखेटक युवा, सुदर्शन युवा की तुलना में अपनी भावी पत्नी के भरण पोषण और संरक्षण के लिए अधिक सामर्थ्यशाली दावेदार लगता है और दूसरा यह कि अपने कबीले के मुखिया की हैसियत से युवती के पिता को स्वयं की राजनैतिक हैसियत तथा सत्ता के स्थायित्व के लिए एक योद्धा नातेदार / एक शौर्यशाली आखेटक, कहीं अधिक अनुकूल स्वजन प्रतीत हुआ होगा !

घर से पलायन कर चुके प्रेमी जोड़े को पहाड़ की कन्दरा में पनाह मिलने / देने के लिए भूमि देवी का उल्लेख प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन जैसा है ! चांदनी में वे अपने विरोधी समूह / खोजी दस्ते को देख सकते हैं और गुफा के गहन अन्धकार में स्वयं छुपे बने रह सकते हैं , गोया प्रकृति / दैवीयता स्वयं , प्रेमी जोड़े के प्रेम के पक्ष में खड़ी हुई हो ! भोर के उजाले में प्रेम के इस आख्यान का अंत प्रेमी युगल के कैक्टस हो जाने की सांकेतिकता पर आ टिकता है , मेरा ख्याल है कि वे वास्तव में कैक्टस में तब्दील नहीं हुए थे, बल्कि अपने परिजनों और अपने समाज के लिए त्याज्य हो गये थे !

कबीले ने उन्हें, परिवार की अभिलाषाओं के प्रतिकूल व्यवहार करने और उस पर डटे रहने की सजा बतौर बहिष्कृत किया होगा ! वे कबीले के लिए प्रथम दृष्टया कैक्टस तुल्य / त्याज्य मान लिए गये होंगे ! सम्भव है कि समाज से बहिष्कृत होने के बाद उनका जीवन न्यूनतम अवसरों / मूलभूत सुविधाओं के अभाव / भीषण एवं हाहाकारी हालात में गुज़रा हो ? शायद कैक्टस की तरह से निचाट मरू दशाओं में ? जैसा कि गुज़री शताब्दियों से आज तक होता आया है...और आज भी होता है कि, प्रेमासक्त जोड़े, खाट पर पसरी / हुक्का गुड़गुड़ाती हुई न्याय प्रियता के लिए कैक्टस तुल्य ही होते हैं !

23 टिप्‍पणियां:

  1. एक ही कबीले के होने के बाद भी विरोध का कारण आर्थिक चिंता ही अधिक हो सकती है परिवार की अभिलाषाओं के विरुद्ध जाने का दंड विवाहित दम्पत्तियों को भी मिल सकता है , प्रेम विवाह हो यां अरेंज :)
    आपका आकलन सटीक होता है !!

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  2. काफी दिनों बाद आपका लिखा पढ़ रहें है, इसलिए पता नहीं की ' इस नुमा' का आप कबसे लिखने लगे ! हमारी जानकारी के मुताबिक़ आप शादी शुदा है और तकरीबन खुशहाल ही है। इसीलिए इस मरुस्थली प्रेम और कैक्टस में आपकी रूचि को हम समझ नहीं पा रहे है :)

    लगता है पुरानी कुछ पोस्ट पढने के बाद ही इस पेरडिम शिफ्ट के बारें में कुछ समझ पाएंगे :)

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    1. मजाल साहब,
      इस नुमा में घुसपैठ किये हुए काफी दिन हो गये :)
      कामकाज से अगली फुर्सत में ही वापसी का इरादा है !
      मुद्दत बाद आपसे मुखातिब हो पाया हूं ! अच्छा लगा :)

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    1. भाई दीप ,
      मुझे लग ही रहा था कि तकरीबन खुशहाल होने के एलिमेंट को कोई ना कोई बंदा धर ही लेगा :)
      बहरहाल मजाल साहब जो भी उचित समझें :)

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  4. कैक्टस की परिभाषा सटीक रही ...
    आज भी यह बच्चे कैक्टस की तरह ही देखे जाते हैं :(

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  5. कहानी में सब कुछ सुपरिचित सा लगा पर उन जोड़ों का कैक्टस में बदल जाना समझ में नहीं आया.
    आपने इसकी व्याख्या करने की कोशिश की है, जो सही ही लग रही है.

    पर अर्जेंटीना की इस कहानी का उद्देश्य, प्रेम विवाह को हतोत्साहित करना तो नहीं...इस कहानी के माध्यम से यह सन्देश दिया जा रहा हो कि अगर 'पिता की मर्जी के खिलाफ शादी किया तो कैक्टस में बदल सकते हो '

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    1. मैंने यही कहा कि वे कैकस में नहीं बदले बल्कि उनका आगत जीवन दूभर / कंटकाकीर्ण कर दिया गया होगा !

      आपका कहना दुरुस्त है, निश्चय ही ये कथा प्रेम विवाह को हतोत्साहित करती और परिजनों द्वारा व्यवस्थित विवाह को प्रधानता देती दिख रही है !

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  6. अगर आखिर से आगाज़ करूँ तो कैक्टस की शक्ल मुझे भी अक्सर हाथ-पैर वाले 'इंसानों सी' दिखती है. किसी ने एक दूसरे के आगोश में या साथ-साथ उगे दो कैक्टस को देखा हो और उन्हें इंसान तसव्वुर कर लिया हो. मुमकिन है उस वक्त उस कैक्टस पर फूल भी खिले हों, जिसे मोहब्बत का फूल मानते हुए एक दास्ताने-मोहब्बत तामीर कर ली गयी हो. अक्सर टॉयलेट सीट पर बैठे हुए ज़हन टाइल्स के डिजायनों का आपस में मिलना कई शक्लें और ज़ेहन में कई कहानियाँ या वाकये या किस्से गढता चला जाता है.
    कहानी में नयापन इसीलिये नहीं है कि इसका मकसद कोई पैगाम देना नहीं है. बाप का अपनी औलाद के ऊपर अपने बाप होने का हक आयद करने का बहाना चाहिए, सो उसने पा लिया. कामयाब रहा कि नहीं यह तो पढने वाले की सोच पर छोड़ा जा सकता है.
    आपकी एनालिसिस तो खैर हमेशा से काबिले गौर होती है!!बहुत दिन हुए मुझे भी यहाँ आये हुए!!

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    1. अफ़सोस है कि कई दिनों बाद आप को शुक्रिया कह पा रहा हूं !

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  7. 'जाआे आज से तुम मेरे लिए मर गए' जैसा ही कुछ मुझे भी लगता है.

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  8. सुंदर व्याख्या। कैक्टसीय अंत के अनुरूप सार्थक शीर्षक।

    दुनियाँ का पता नहीं यह कौन सा आश्चर्य है, लेकिन है! प्रेम सभी करना चाहते हैं लेकिन प्रेमी कैक्टस की तरह अच्छे नहीं लगते।

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    1. हम करें तो पुण्य तुम करो तो पाप वाली प्रवृत्ति है !

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  9. .और आज भी होता है कि, प्रेमासक्त जोड़े, खाट पर पसरी / हुक्का गुड़गुड़ाती हुई न्याय प्रियता के लिए कैक्टस तुल्य ही होते हैं !

    विडम्बनापूर्ण,दुखद और शर्मनाक

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  10. कैक्‍टस को अपने ही परिवेश में मत देखिये । मरूभूमि के लिये कैक्‍टस सब्‍ज है अमर है सुंदरता का भी प्रतीक है । इस पार आकर देखिये

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    1. @ मरुभूमि के परिवेश में ,
      कैक्टस की बेहतर व्याख्या / सुंदर सुझाव ! एक और आयाम / दृष्टि ! आभार !

      @ कथा के पात्रों का परिवेश ,
      प्रेमी जोड़ा और उसके परिजन अगर मरूभूमि के परिवेश में रहने वाले होते तो नि:संदेह कैक्टस की आपकी व्याख्या के अतिरिक्त और कोई विकल्प ही नहीं था...किन्तु कथा के सारे पात्र मरुभूमि के निवासी नहीं है अतः उनके लिए तयशुदा सब्जा / अमरता और सुंदरता के प्रतीकों में (सामान्यतः) कैक्टस सम्मिलित नहीं है ! उसे कथा के पात्रों की स्थानीयता के सन्दर्भ में तुलनात्मक रूप से त्याज्य और परित्यक्त ही माना जाएगा !

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