गुरुवार, 27 सितंबर 2012

सूर्य पुत्र...!

एक समय की बात है जब बेल्ला कूला नदी से कुछ ही दूरी पर रहने वाली युवती अपने ही कबीले के नवयुवकों की ओर से आने वाले सारे विवाह प्रस्तावों को ठुकरा रही थी क्योंकि वह स्वयं सूर्य से विवाह करने की इच्छुक थी , अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए उसने अपना गांव छोड़ा और सूर्य की खोज में चल पड़ी ! अंततः वह सूर्य के घर जा पहुंची और उन दोनों ने विवाह कर लिया ! विवाह के मात्र एक ही दिन पश्चात युवती को पुत्र की प्राप्ति हुई जोकि अगले ही दिन बोलने और चलने योग्य हो गया , उसने कहा मां , मैं आपके माता पिता को देखना चाहता हूं और वह रोने लगा , यह सुनकर युवती को भी अपने घर की याद सताने लगी ! जब सूर्य ने अपनी पत्नी को उदास देखा और अपने पुत्र को नाना नानी से मिलने का इच्छुक पाया तो उसने कहा आप अपने माता पिता से मिलने धरती चले जाइये ! आप मेरी बरौनियों (पलकों के छोटे बाल) के सहारे नीचे उतर जाइये , बरौनियां यानि कि सूर्य रश्मियां जो कि युवती के मायके तक उतरी / पसरी / फ़ैली हुईं थीं , सो सूर्य पुत्र और उसकी मां , सूर्य रश्मियों के सहारे नीचे उतर कर गांव तक आ पहुंचे !

इधर गांव में खेलते वक़्त दूसरे बच्चे , सूर्य पुत्र को चिढ़ाते कि उसका कोई पिता नहीं हैं...रोते हुए उसने अपनी मां से धनुष बाण की मांग की , जिसे उसकी मां ने पूरा कर दिया ! धनुष बाण लेकर , सूर्य पुत्र गांव से बाहर निकला और उसने आकाश की दिशा में बाण चलाया जो कि आकाश में जाकर अटक गया और फिर दूसरा बाण जो पहले बाण में जा अटका , इस तरह से वो तब तक बाण चलाता रहा जब तक कि बाणों की एक श्रृंखला आकाश से धरती तक नहीं बन गयी और फिर वह उस श्रृंखला पर चढ़ते हुए सूर्य के घर तक जा पहुंचा ! उसने सूर्य को बतलाया कि गांव में बच्चे उसे पिता विहीन कह कर चिढ़ाते हैं , अतः सूर्य उसके साथ गांव तक चले ! सूर्य ने उससे कहा कि मैं ऐसा नहीं कर सकता , क्योंकि मेरे पास कई मशालें हैं , जिनमें से मैं , सुबह और शाम कम ताप वाली मशालें और दोपहर को तीव्र ताप वाली मशालें जलाता हूं , इसके बावजूद बालक अपनी जिद पर अड़ा रहा तो फिर सूर्य ने उसे मशालें देते हुए कहा कि गांव जाओ...पर ध्यान रहे , इन्हें वैसे ही उपयोग में लाना जैसा कि मैंने कहा है !

अगली सुबह सूर्य पुत्र ने मशालें प्रज्ज्वलित करना प्रारम्भ किया , किन्तु उसकी अधीरता बढ़ने लगी , जिसके कारण से , उसने सारी मशालें एक साथ जला दी , जिस पर तीव्र ताप के हालात बन गये , पेड़ पौधे जलने लगे , जो पशु , ताप से बचने के लिए पानी में कूदे वे भीषण ऊष्मा से उबलते हुए पानी में अपने प्राण ना बचा सके , कुछ पशु चट्टानों के पीछे जा छुपे , अफरा तफरी के इस हाल में बालक की मां ने अपने कम्बल में छुपा कर अनेकों प्राणियों के प्राण बचाये ! एमिन एक बिल में जा घुसा पर बिल छोटा था इसलिए उसकी पूंछ की नोक बिल से बाहर रहकर झुलस गई , उसी दिन से एमिन की पूंछ की नोक काली हुआ करती है ! उस समय पहाड़ी बकरी गुफा में छुप गई थी तो वो झक सफ़ेद बनी रही ! इसके अतिरिक्त जो भी जानवर छुप नहीं सके उनकी त्वचा झुलस कर ऊपर की ओर गहरी काली और नीचे की ओर हल्की काली रंगत की हो गई ! ये सारा घटनाक्रम देख कर सूर्य ने अपने पुत्र से कहा ये तुमने क्यों किया ? क्या तुम्हें धरती पर लोगों का समाप्त हो जाना अच्छा लगता ? सूर्य ने उसे उठा कर आकाश से नीचे फेंक दिया और कहा तुम ऊद बिलाव हो जाओगे और मनुष्य की भावी पीढ़ियां ( मिंक के लिए ) तुम्हारा शिकार किया करेंगी !

मूल अमेरिकन वाशिंदों की ये कथा अपनी प्रतीकात्मक कहनशीलता के इतर प्रथम दृष्टया / सीधे सीधे जो सन्देश संप्रेषित करती है , वो ये कि आदिम समुदाय की स्त्रियों को अपने कबीले से बाहर / विजातीय विवाह करने तथा अपनी इच्छा से वर चुनने का अधिकार है इस प्रकरण में , पति के रूप में देव सूर्य / कुलीन सूर्य / तप्त सूर्य का चुनाव युवती ने अपनी मर्जी से किया ! स्मरण रहे कि इस पर समाज को कोई आपत्ति नहीं हुई ! पति के रूप में सूर्य अपनी पत्नी और पुत्र की भावनाओं का सम्मान करने वाला सिद्ध हुआ जो उन्हें , उनकी उदासीनता के निवारण हेतु , उनके मन वांछित स्थान तक भेजने में कोई कोताही नहीं करता ! सामान्यतः पितृ विहीन बच्चों के साथ जो व्यवहार समाज में होता है , वही सूर्य पुत्र के साथ भी हुआ और दैवीय / अलौकिक ढंग से तीव्र गति से बोल / चल सकने तथा आकाश और धरती के मध्य बाणों से एक श्रृंखला बना सकने की सामर्थ्य रखने वाला बालक भी इस मानवीय प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हो सका कि वह अपने साथ खेलने वाले बच्चों को अपने पिता का साक्ष्य उपलब्ध करा पाये ! उसमें , पितृ प्रदत्त शक्ति और सामर्थ्य को लेकर बालकोचित अधीरता और नादानी का उल्लेख यह दर्शाता है कि वह एक सामान्य समाज का सामान्य शिशु ही था !

कथा में सूर्य को एक सामर्थ्यवान पुरुष के रूप में स्वीकार करने पर यह निष्कर्ष निकालने में कोई कठिनाई नहीं होती कि वह अपनी शक्ति के प्रदर्शन और उसके संयमित उपयोग को लेकर एक तर्क संगत व्यक्ति था ! उसे धरती पर जीवन की मौजूदगी की अनिवार्यता का भान था , अतः उसने अपने पुत्र को शक्तियां सौंपते वक़्त यही शिक्षा दी थी , किन्तु उसका पुत्र असफल रहा सो उसने अपने पुत्र को दण्डित भी किया ! जहां उस युवती को अपने वर के चयन की स्वतंत्रता मिली हुई थी , वहीं वह स्वयं भी इतनी सामर्थ्य शाली थी कि सूर्य के ताप से प्राणियों के जीवन की रक्षा भी कर सकती थी जैसा कि उसने अपने पुत्र की नादान / असंयमित हरकत के वक़्त में किया जबकि जीवन , अति ताप से हाहाकार की स्थिति में पहुंच गया था ! सूर्य के बजाये पुत्र को धनुष बाण युवती ने दिये , तो ज़ाहिर बात ये कि अस्त्र शस्त्र को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का श्रेय केवल पुरुषों तक सीमित नहीं माना जा सकता ! कथा में पति पत्नी और पुत्र के अलावा कतिपय प्राणियों की देह की रंगत को लेकर पे काल्पनिक किन्तु रोचक कथन किये गये हैं ! 

मुझे लगता है कि आख्यान में तर्क संगति के नज़रिये से बहुतेरी बातें खारिज की जा सकती हैं , परन्तु कहन की दृष्टि से उनका अपना सौंदर्य है , मसलन सूर्य की बरौनियों के रूप में उसकी रश्मियों का कथन और रश्मियों का धरती तक पसरा होना , फिर रश्मियों के सहारे माता पुत्र का नीचे उतरना ! सूर्य के द्वारा सुबह , शाम और दोपहर की बेला में धूप और ताप के घटते बढ़ते अंशों को लेकर कहा गया , मशालों वाला कथन रोचक है ! एक ओर जहां पति पत्नी संसार में जीवन को लेकर सदाशय हैं , सुहृद हैं , वहीं पुत्र की अल्पवयता के चलते उसे अधीर और शक्तियों को संभाल पाने में अक्षम कह कर , कथा , योग्यता को आयु और अनुभवों के साथ जोड़ने का यत्न करती है !

27 टिप्‍पणियां:

  1. इस आख्यान में फंतासी के तत्व जितने दृढ हैं उतने ही अकाट्य इसमें निहित सन्देश हैं. बल्कि वे सन्देश कालजयी कहे जाएँ तो अतिशयोक्ति न होगी. सूर्य का वर्णन, सूर्य को पाने की चाह, उससे विवाह, एक दिन पश्चात ही शिशु को जन्म देना, शिशु का बड़ा हो जाना, रश्मियों के सहारे उतरना, मशालें आदि आदि..

    १. नारी-विषयक सन्देश के प्रति आपके विचार बहुत विस्तार से सारे आयामों को छूते हैं इसलिए उसकी बात तो मैं नहीं करूँगा.. लेकिन आपके पूर्व प्रकाशित आख्यानों को देखते हुए, इस आख्यान से भी "वर्जना के प्रति आकर्षण" के सिद्धांत को बल मिलता है. यहाँ भी वर्जित फल की तरह वर्जित मशाल के प्रज्जवलन से प्रकृति/प्राकृतिक जीव जंतु आहत हुए हैं.

    २. नारी विषय पर एक व्यक्तिगत विचार प्रस्तुत करना चाहूँगा कि प्रकृति ने नारी को ही यह शक्ति दी है कि वह "प्राकृतिक आपदाओं" से बचाने के लिए अपना ममतामयी आँचल फैला सके. अतः मैं उसे सूर्य की पत्नी के रूप में बचाव करते हुए नहीं, अपितु पुरुष आततायियों से रक्षा करने वाली नारी के रूप में देख रहा हूँ.

    ३. और अंत में, एक आश्चर्यजनक तथ्य... यह अमेरिकी कथा बीसवीं सदी में भी कितनी सच है.. एक अमेरिकी ने सूर्य से एक मशाल प्राप्त की जिसके प्रयोग की एक सीमा थी, मर्यादा थी..किन्तु उसने इन मर्यादाओं का उल्लंघन किया और वह मशाल जलाकर हिरोशिमा और नागासाकी पर गिरा दी.. कितना अद्भुत साम्य है यह और अमेरिका ने इस आख्यान से सीख भी नहीं ली. आज भी उस मशाल का प्रयोग अनवरत चल रहा है!!

    इन सब बातों से अलग ये आख्यान वास्तव में एक अलग ही दुनिया की यात्रा पर ले जाते हैं..!! आभार आपका!!

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    1. सलिल जी ,
      कथा प्रदत्त संदेशों पर आपसे सहमति और फंतासी पर तो खैर है ही :)
      (१)
      वर्जित के प्रति आकर्षण का मुद्दा सटीक है , गौर तलब है कि यहां पर करेला नीम चढ़ा भी था यानि कि बच्चे में वर्जित के प्रति आकर्षण के अलावा अनुभव जनित संयम की कमी और शक्ति तथा सामर्थ्य के प्रति परिपक्वता का अभाव भी था ,फलतः जनहानि हुई !
      (२)
      बढ़िया नज़रिया !
      (३)
      बहुत खूब !

      आपकी तारीफ से बहकूं नहीं बस यही दुआ कीजिये !

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    2. परमात्मा मेरा नज़रिया बरकरार रक्खे और आपकी तारीफ़ मेरे लिए आशीष बने-बाइसे गुरूर न हो (यानि मेरी ओर से "आपकी तारीफ़ से बहकूँ नहीं बस यही दुआ कीजिये"...
      दुआओं में शामिल रक्खें!!

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    3. आपके लिए हमेशा अशेष दुआएं !

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  2. ....बेमेल का संग ऐसा ही परिणाम उत्पन्न करता है ।

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    1. आपके कमेन्ट पर रहीम याद आये !

      कह रहीम कैसे निभे बेर केर को संग
      ये रस डोलत आपने उनके फाटत अंग :)

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  3. इस संपूर्ण कथा में सूर्य अपने प्रबल तेज की भांति ही निर्दोष है...सूर्य पुत्र को अपने ही पिता की असीमित शक्तियों का भान नहीं था और उसकी माता ने उसे धनुष-बाण थमा कर उसके इस अधूरे ज्ञान को अनावश्यक बल दिया जो की उसके लिये दण्ड का भागी बना....इस दावानल की चपेट में आने के लिये सूर्य पुत्र और उसकी मां समान रूप से ज़िम्मेवार हैं....सच कहा है आपने की अस्त्र शस्त्र को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का श्रेय केवल पुरुषों तक सीमित नहीं माना जा सकता॥ और आख़िर में बस इतना ही की लाजवाब अली साहब.....

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    1. सैयद साहब ,
      कथा पर आपकी निष्पत्तियां रास आईं ! खूबसूरत अभिमत !

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  4. @सूर्य की बरौनियां यानि कि सूर्य रश्मियां
    ये कुछ नया पता चला...:)

    कोई भी कहानी पढ़ते ही मेरे दिमाग में चलने लगता है...यह क्यूँ लिखी गयी होगी??...क्या विचार सूत्र होंगे??...और एक ख्याल ये आया कि जानवरों के अलग-अलग रंग और सूरज की गर्मी देखकर कुछ ऐसी कल्पना की गयी होगी कि कुछ जानवर गुफा में छुप कर सफ़ेद रह गए...कुछ झुलस कर काले पड़ गए..आदि आदि..

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    1. @ बरौनियां बनाम रश्मियां ,
      कोई हैरानी नहीं कि ये विचार आदिम समाज ने आगे बढ़ाया है जिन्हें हम अपनी तुलना में पिछड़ा कहते नहीं थकते !

      @ कथाकार का दिमाग ,
      चलना ही चाहिए :)
      क्या आपने लिंक में दिए गये फोटो देखे ?

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  5. कुछ समानताये दिख रही है अमेरिका के और भारतीय सूर्य पुत्र कर्ण में |
    १- अमेरिकी हो या भारतीय सूर्य अपने पुत्रो के साथ नहीं रह पाता है |
    २- सभी सूर्य पुत्र अभिशप्त है समाज द्वारा सताए जाने के लिए |
    ३- सूर्य अपने पुत्रो को कवच कुंडल और मशाल के रूप में विशेष शक्तिया देता है किन्तु कोई भी पुत्र उनका सही उपयोग नहीं कर पाता है |
    ४- सूर्य पुत्र दिल से तो अच्छे है किन्तु समाज के द्वारा सताए जाने के बाद वो सही निर्णय नहीं ले पाते है और समाज के लिए ना चाहते हुए भी हानिकारक बन जाते है |
    ५- सूर्य पुत्र एक ग्रे शेड लिए नायक की तरह है |
    ६- सूर्य एक बहुत ही आकर्षण व्यक्तित्व के मालिक है जिनके लिए युवतिया अपनी परम्परा और समाज से बाहर भी कदम निकाल देती है किन्तु सूर्य उन्हें सम्मान नहीं दिला पाता है समाज में |
    ७- अमेरिका से लेकर भारत तक माँ कितनी भी सक्षम हो किन्तु समाज में संतानों के लिए पिता का होना हमेसा से ही जरुरी रहा है भले वो मात्र जैविकी पिता हो ( एक दिन में ही पुत्र होना और दूसरे दिन ही उसे छोड़ चला आना तो वैसा ही लगता है परिवार वाली भावना कहा है )
    ८- समाज को दूसरे की कमजोरियों , दुखो और अभावों का मजाक उड़ाना हमेसा से ही अच्छा लगता है |
    बाकि आप की व्याख्या से सहमत हूँ |

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  6. सोच ही रहा था कि कोई मित्र तो कर्ण से इस कथा के साम्य का उल्लेख करे , आपने किया , सो शुक्रिया ! आपने विचारण के लिए जो बिंदु सामने रखे हैं वे सभी महत्वपूर्ण हैं ! आपकी प्रतिक्रिया कथा के इस पक्ष को पर्याप्त विस्तार देती है कि अमेरिकी और भारतीय समाज में स्त्रियों और उनकी पसंद के संबंधों के बाद के , हालात में कितनी समानता हो सकती है ! आपके निष्कर्ष प्रभावित करते हैं ! आपसे पूर्ण सहमति !

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  7. .
    .
    .

    १- यह दो एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न दो वर्गों के बेमेल मेल की कथा है।
    २- सूर्य शासक-आभिजात्य-शक्तिशाली-सत्ताधारी पुरूष है और युवती सर्वहारा।
    ३- विवाह का केवल एक ही दिन बने रहना मतलब युवती के मन में अपने प्रति आकर्षण का लाभ शासक ने उठाया और केवल एक बार के उसी संसर्ग से युवती ने गर्भधारण कर लिया। गर्भधारण के परिणाम स्वरूप उत्पन्न पुत्र को उसका हक न देने के लिये उसे सत्ता-शक्ति-ज्ञान के सही उपयोग में असमर्थ और इस बात के सबूत के तौर पर विभिन्न जानवरों के काले-गोरे होने तक का जिम्मेदार बता दिया गया... आकाश से नीचे फेंकना मतलब उसे शारीरिक क्षति भी पहुंचायी गयी...
    ४- अंशुमाला जी सही कहती हैं कर्ण के रूप में कुछ इसी तरह की कथा हमारे यहाँ भी प्रचलन में है।
    ५- आज भी यह सब दोहराया जाता है... सूर्य को चाहने वाली मासूम कन्यायें हैं... उनसे छल होता है... और परिणाम स्वरूप उत्पन्न संतानों को पिता के 'उच्च स्तर' के लायक न बता कर दुत्कार-प्रताड़ना भी मिलती है...
    ६- आदिम युग से आज तक कभी कभी लगता है कि समय थिर सा गया है... कुछ भी तो नहीं बदला...



    ...

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    1. प्रवीण शाह जी ,
      मैंने इसे विजातीय विवाह की समाज स्वीकृति कहा , सूर्य को देव /कुलीन / तप्त कहा ! आपने इसे एक नया अर्थ / नया आयाम दे दिया , नि:संदेह स्त्री सर्वहारा वर्ग से थी और संभव है कि घटनाक्रम वैसे ही घटित हुआ हो जैसे कि आपने अनुमान किया है , यानि कि शासक का शोषण वगैरह ! रंगभेद के मुद्दे पर आपने जितना मुखर होकर कहा वैसा मैं स्वयं नहीं कह सका ! इसे मेरी भीरुता जानिये कि मैंने उसे प्राणियों की देह की रंगत के काल्पनिक और रोचक वर्णन का नाम देकर इतिश्री करली ! सुसंगत और दमदार कथन के लिए आपको साधुवाद !

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  8. बहुत ही सुंदर वर्णन....शोएब भाई मैं तो पहले से ही आपके हिंदी लेखन का दीवाना हूँ....यह प्रस्तुति भी बहुत ही उच्च श्रेणी की है...बहुत खूब... :-)

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  9. सूर्य चर्चित देव रहे होंगे। उनके भी, अपने भी या सभी के। सूर्य को सुंदर पुरूष भी कहते हैं। sun बोले तो गॉड, धूप। पृथ्वी पर हर जगह पाये जाने वाले देव। कहानियों में भले ही कुछ अंश तक ही समानता (कर्ण से)है तो भी यह समानता इसी सर्वव्यापी होने का परिणाम लगता है।

    कर्ण का कवच-कुंडल उनकी माँ ने छीन लिया था। इस कथा में माँ ने ही उसे अस्त्र दिया। कर्ण अनाथ था, यह बालक अनाथ न होते हुए भी उद्दण्ड, अधीर निकला। कुंती को लोक लाज से कर्ण के पुत्र होने की बात छुपानी पड़ी जबकि इस कथा में माँ को विवाह से लेकर पुत्र के साथ रहने तक किसी प्रकार के सामाजिक उपेक्षा का अंदेशा नहीं था। इस तरह से देखा जाय तो कथाकारों ने (अमेरिका और भारत) लगभग वैसी ही सामाजिक स्वतंत्रता और परतंत्रता नारी के संदर्भ में देखी जैसी की आज भी दोनो मुल्कों में दिखाई देती है। लेकिन सूर्य को, सुंदर पुरूष को दोनो ही मुल्कों में सर्वशक्ति मान दिखाया गया। माँ को ममता की मूर्ति।

    इस कथा का कर्ण से साम्य और भेद ढूँढ़ा जाय। बिंदुवार लिखकर शोध किया जाय तो गज़ब के रोचक तथ्य(दोनो मुल्कों के सामाज शास्त्र पर) हाथ आयेंगे।

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    1. धूप की सर्वव्याप्ति का कथन ठीक है अगर वह प्रकृति का अंश है तो मनुष्य से हर जगह उसका वास्ता पड़ना ही था और फिर उसके अनुभव भी अभिव्यक्त होने थे ! सवाल ये है कि क्या वो सचमुच देव थे या सुपुरुष या अन्य कोई राजसी व्यक्ति ?

      बिन्दुवार शोध की बात आपने खूब कही ,पर इसे करेगा कौन :)

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    2. समाज शास्त्र के प्रोफेसर करेंगे और कौन करेगा! :)

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    3. देवेन्द्र जी
      जहा तक मेरी जानकारी है कवच कुंडल कुंती ने नहीं किसी और ने ( शायद इंद्र ) भेष बदल कर दान में ले लिया था दानवीर कर्ण से दुसरे कर्ण अनाथ नहीं थे उन्हें एक सारथि ने पाला था और सारथि की पत्नी राधा के नाम पर उनका नाम राधेय था और वो सूत पुत्र कहलाते थे इसी karan वीर होने के बाद भी उनका सम्मान नहीं था , कुंती के बताये जाने से पहले तो उन्हें पता भी नहीं था की वो उनके पुत्र है |

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    4. देवेन्द्र जी
      जहा तक मेरी जानकारी है कवच कुंडल कुंती ने नहीं किसी और ने ( शायद इंद्र ) भेष बदल कर दान में ले लिया था दानवीर कर्ण से दुसरे कर्ण अनाथ नहीं थे उन्हें एक सारथि ने पाला था और सारथि की पत्नी राधा के नाम पर उनका नाम राधेय था और वो सूत पुत्र कहलाते थे इसी कर्ण वीर होने के बाद भी उनका सम्मान नहीं था , कुंती के बताये जाने से पहले तो उन्हें पता भी नहीं था की वो उनके पुत्र है |

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    5. बताया क्यों? एक तो पुत्र का सम्मान नहीं दिया दूसरे जब पाण्डवों पर संकट आया तो माँ की दुहाई देकर कवच कुंडल इंद्र के माध्यम से ही सही, हथिया लिया। सूर्य भी रक्षा करने नहीं आये। अब इसे इस कथा से जोड़कर देखिये। यहाँ भी पुत्र सूर्य के आशीर्वाद से मशालें प्राप्त कर लेता है लेकिन गलत प्रयोग करता है। पुत्र की उद्दंडता की सजा स्वयम् सूर्य देते हैं। इस कथा में सामाजिक सोच का जो फर्क दिखता है वह रोचक है।

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