कबीले का वो योद्धा शिकार को निकला था पर आने वाले कई दिनों तक वापस लौटा ही नहीं , उसके सबसे छोटे पुत्र को छोड़कर , सारे परिजनों ने यह मान लिया कि उसकी मृत्यु हो गई होगी ! छोटा पुत्र प्रतिदिन पूछता , मेरे पिता जी कहां हैं ? योद्धा के बड़े पुत्र जो कि जादूगर थे , गुमशुद / मृत पिता की खोज में जंगल की ओर निकले ! आखिरकार वे अपने पिता के टूटे भले और हड्डियों के ढेर तक जा पहुंचे ! सबसे बड़े पुत्र ने एकत्रित हड्डियों को नरकंकाल का आकार दिया और दूसरे पुत्र ने उन पर मांस चढ़ाया जबकि तीसरे पुत्र ने उस मांस पर प्राण फूंके और इस तरह से योद्धा पुनः जीवित हो गया !
जीवित होकर योद्धा , गांव की ओर प्रस्थित हुआ , जहां उसकी वापसी को लेकर , एक शानदार जश्न मनाया गया ! इस अवसर पर योद्धा ने कहा , जो व्यक्ति मुझे जीवन में वापस लाया है , मैं उस एक , बेहतरीन उपहार दूंगा , यह सुनकर उसके , तीनो बड़े पुत्र चिल्लाये , वो उपहार मुझे दो , मुझे दो , ओ पिता , आपकी वापसी में मेरा योगदान सबसे ज़्यादा है ! इस पर योद्धा ने कहा , मैं वो उपहार अपने सबसे छोटे पुत्र को दूंगा , उसे ही , जिसने मेरे जीवन की रक्षा की है , एक इंसान वास्तव में तब तक नहीं मरता जब तक कि उसे भुला ना दिया जाये !
पश्चिमी अफ्रीका के इस आख्यान में छुपे जीवन दर्शन पर नज़र डालने से पहले यह गौर करना ज़रुरी है कि प्रारंभिक समाजों में मनुष्य का जीवन मौसमी वर्षा आधारित कृषि अथवा वनस्थलियों में किये गये आखेट पर निर्भर था , अल्प या अतिवृष्टि के हालात में उसका जीवन यदि कठिन था तो अवृष्टि के समय में इसे कठिनतम कहा जा सकता है ! उन दिनों , उसके आखेट के हथियार अपरिष्कृत कोटि के हुआ करते थे , वन्य पशुओं से प्रतिदिन की भिडंत में जीवन मृत्यु की अनिश्चितता तो खैर थी ही ! कभी किसी दिन शिकार मिलता तो कभी हाथ खाली भी !
जीवन को लेकर अनिश्चिता भरे इस काल खंड में आखेट से नहीं लौटे योद्धा का अंतिम संस्कार कर दिया जाना , एक आम बात थी , तब सारे परिजन , सारे गांव वासी , सहज स्वीकार कर लेते कि वन्य जंतुओं ने उस योद्धा को अंतिम विदाई दे दी होगी , यानि कि आखेटक की वापसी के लिए लंबी प्रतीक्षा औचित्यहीन मान ली जाया करती ! इस कथा में बड़े पुत्रों को जादूगर कहा गया है , जिसे शब्दशः स्वीकार करना कठिन है पर वे लोग ग्राम्य श्रेणी के वैद्य तुल्य ज़रूर रहे होंगे जो , किसी घायल की हड्डियों की टूट फूट और रक्तस्राव आदि की रोकथाम / उपचार करने में सक्षम रहे होंगे !
यह मान लेना उचित नहीं होगा कि वो योद्धा एक बार मर कर पुनः जीवित हुआ और इसमें उसके तीन बड़े पुत्रों की जादूगरी का योगदान था , संभव है कि योद्धा घायल रहा हो और उसे बचा पाने का उपक्रम इसलिए सफल हुआ हो कि उसे समय पर चिकित्सकीय सहायता प्राप्त हो गयी हो ... तो मुद्दा शेष ये कि योद्धा की चिकित्सा करने वाले से पुत्रों से अधिक महत्त्व उस छोटे पुत्र का हुआ जो कि अपने पिता को निरंतर याद करता रहा , जिसने अपने पिता को कभी भी मृत नहीं माना और जिसके आग्रह के प्रभाववश पिता की खोज परख और सुश्रुषा संभव हुई !
तथ्य यह है कि योद्धा को उसके सारे परिजन प्रचलित परिपाटी के अनुसार मृत मान चुके थे और अगर वह सशरीर जीवित बना रहा तो इसमें उसके सबसे छोटे पुत्र का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण हुआ , क्योंकि उसकी स्मृतियों में जीवित बने रहने और उसके निरंतर आग्रह के कारण ही पिता के जीवन की रक्षा संभव हुई , अतः पिता का यह निर्णय अत्यधिक चिंतनपरक है कि एक इंसान तब तक नहीं मरता जब तक कि उसे भुला ना दिया जाये ! मेरे तईं लगभग अनक्षर समाज के उस योद्धा के इस कथन को देहेतर मृत्यु के परिप्रेक्ष्य में भी देखा सकता है !
...पिता को यह इल्म था कि उसे वास्तविक रूप से कौन जीवित रख सकता है ।
जवाब देंहटाएंदेह तो वैसे भी नश्वर है,कर्म और विचार नहीं ।
हां उनका ये आध्यात्मिक रवैया हमसे मिलता जुलता सा लगा !
हटाएं'चंदामामा' में विक्रम-वैताल श्रृंखला में ऐसी ही एक कहानी पढी थी|
जवाब देंहटाएंइस कहानी में योद्धा का निर्णय अवश्य ही गौर करने लायक है, कई बार कहते भी हैं 'स्मृतियों में जीवित रहना' |
हमारी कहानियां,हमारे ओरिजिन की तरह से अक्सर एक ही स्रोत पर जा टिकती हैं सो कोई हैरानी नहीं जो अफ्रीका महाद्वीप,हिन्दुस्तान की तरह के उपदेश देने लग जाए :)
हटाएं१. इस कथा में बड़े पुत्रों को जादूगर कहा गया है , जिसे शब्दशः स्वीकार करना कठिन है...
जवाब देंहटाएं.
मुझे याद है जबसे आपने अपनी आख्यान्माला प्रारम्भ की है, मैंने तब से यही कहा है कि आख्यानों के बारे में जैसा कहा है मैं वैसा ही स्वीकार करना चाहता हूँ और उन्हीं तथ्यों के आलोक में तार्किक व्याख्या करना चाहता हूँ. यहाँ भी यह मान लेने से कि वे जादूगर थे, कोई अंतर नहीं पडता. वे अपने जादू का प्रयोग अपने भोजन/शिकार के लिए नहीं करते होंगे. और पिता को जीवित करने की बात, आख्यान के निहित सन्देश को स्पष्ट करने के लिए कही गयी. अन्यथा यह भी संभव था कि वे जादू से यह पता लगा लेते कि पिता जीवित है..
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२. संभव है कि योद्धा घायल रहा हो और उसे बचा पाने का उपक्रम इसलिए सफल हुआ हो कि उसे समय पर चिकित्सकीय सहायता प्राप्त हो गयी हो ...
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संभव नहीं. क्योंकि आपने स्वयं कहा है कि हड्डियों को जोड़ा, उसपर मांस चढाया और उसके अंदर प्राण प्रतिष्ठा की गयी. इस बात पर इसलिए भी भरोसा करने को जी चाहता है कि पश्चिमी अफ्रीका के इस आख्यान का हमारे प्राचीन आख्यान के साथ एक अद्भुत साम्य है, जहाँ एक मृत सिंह के साथ यही प्रयोग किया गया था. यह तो अद्भुत संयोग है.
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३. ओशो ने अपने अंतिम सन्देश में कहा है कि अपने शरीर के साथ तो मैं एक समय में एक स्थान पर ही हूँ, किन्तु देहत्याग के उपरांत तो मैं सर्वव्यापी हो जाउंगा.. इसलिए मेरी यह इच्छा है कि मेरा उद्धरण कभी भूतकाल में न दिया जाए. क्योंकि मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ. उस कनिष्ठ पुत्र ने इसी परम्परा का निर्वाह किया. और उसके लिए तो उसके जनक कभी मृत हो ही नहीं सकते.
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४. अत में आपके गंभीर आख्यानों पर भी फिल्मों की बातें किये बिना मेरा उपाख्यान समाप्त नहीं होता. अतः, फिल्म 'मदर इंडिया' की नरगिस जी का चरित्र इस आख्यान को जीवंत करता है, जिसमें उस स्त्री का पति लापता हो जाता है (हमारे विधि शास्त्र के अनुसार भी सात वर्षों के बाद उसे मृत मान लिया जाता है) मगर फिल्म के अंत तक उसके झुर्रियों भरे चहरे पर सुहाग की बिंदी चमकती रहती है.
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५. अंत में, हमारे देश में सिर्फ दो स्वतन्त्रता सेनानी ही जीवित बचे हैं, क्योंकि सारा राष्ट्र उन्हें धूम-धाम से स्मरण करता है.. कई सेनानी ऐसे हैं जो स्वतन्त्रता की राह में शहीद हो गए थे, मगर हमारे राष्ट्र ने उन्हें "मार डाला."
(१)
हटाएंसामान्यतः आदिम समाजों का धर्म अपने आप में जादुई तत्वों की बहुलता लिए होता है इसलिए उन लोगों की गतिविधियों में जादू का उल्लेख बहुतायत से मिलता है ! कथा को यथावत स्वीकार करके हम उनके नज़रिये उनकी विशिष्टता को एक तरह से उनके वजूद को सम्मानित करते हैं , इसके लिए आपको साधुवाद ! इसके बरक्स कथा के दूसरे आयामों की पड़ताल समय की मांग मान ली जाए !
(२)
हड्डियों और मांस में प्राण प्रतिष्ठा का कथन मूलतः कथा का है उससे हमारे आख्यान का साम्य यकीनन गौर तलब है ,इस संयोग से सहमति ...किन्तु जैसा कि मैंने पहले भी कहा इसके बरक्स कथा के दूसरे आयामों की पड़ताल समय की मांग मान ली जाए !
(३)
अति सुंदर दृष्टान्त !
(४)
खूबसूरत मिसाल !
(५)
सहमति !
टिप्पणी से इतर एक पुनर्कथन ये कि आप की प्रतिक्रिया , कथा , अगर कोई युवती हो तो उसे गहनों से संवार देने जैसी है :)
@ सारा राष्ट्र उन्हें धूम-धाम से स्मरण करता है..
हटाएंसलिल जी
लोग याद करते है या उन्हें याद कराया जाता है स्वार्थवश और बाकियों को भुलावादिया गया |
अंशुमाला जी,
हटाएंमैंने भी वही कहा है... मेरे कथन को व्यंग्योक्ति या कटु सत्य ही समझा जाए, आपके इस प्रत्युत्तर के आलोक में!!
प्रेरणास्पद!!!!
जवाब देंहटाएंमुझे एक शे'र याद आ रहा हँ:
" मर भी जाऊं तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
लफ्ज़ मेरे, मेरे होने की गवाही देंगे........"
सो लफ्ज़ इंसान की नई परसोना हुए ! बढ़िया !
हटाएंसरल सी, लेकिन गहरी कहानी.
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंएक इंसान तब तक नहीं मरता जब तक कि उसे भुला ना दिया जाये !
जवाब देंहटाएंकई बार प्रियजनों का विश्वास मौत के मुंह से खींच लाता है . स्मृतियों में तो खैर मनुष्य मर कर भी नहीं मरता .कथा का सन्देश वास्तविक और प्रभावी है .
हां कथा इसी सन्देश पर आधारित है कि जीवन और अस्तित्व स्मृतियों की हदों तक मौजूद रहते हैं !
हटाएंसहमत हूं की यादे ही असल में मनुष्य को जीवित रखती है और मारती है कई बार जीवित व्यक्ति भी हमारे लिए मृत समान हो जाता है जब वो हमारी यादो से चला जाता है और कभी लौटता ही नहीं , किन्तु ये यादे जीवित लोगों के जीवन को आगे बढ़ने से ना रोके तो ही अच्छा है , कई बार महिलाओ को देखा है जीवनसाथी के जाने के बाद भी अपने जीवन को आगे ले जाने से उसका नया अध्याय शुरू करने से इनकार कर देती है क्योकि स्मृतियों में पहला जीवन साथी ही जीवित रहता है सदा, आप यहाँ पर पुत्र पुत्री किसी भी अन्य रिश्ते को रख सकते है जो एक व्यक्ति के जाने के बाद उसकी जगह आये नये व्यक्ति को पुराने व्यक्ति की याद में या तो आने नहीं देता है या आने के बाद स्वीकार नहीं करता है , स्मृतियों में किसी को इस तरह जीवत रखने से सहमत नहीं हूं | साथ ही अपने के जाने के बाद उनकी स्मृतियों में उदास या दुखी हो जाना भी अच्छा नहीं लगता है मुझे लगता है की गये व्यक्ति के समीपता को याद कर खुश होना चाहिए ना की उसके चले जाने का शोक करना चाहिए , व्यक्ति की क्यों अच्छा समय , अपना ही बीत गया जीवन जैसे बचपन , जवानी आदि सभी चीजो को अपने यादो में हमेसा एक ख़ुशी बना कर रखनी चाहिए बुरे समय और गलतियों को एक सबक बना कर | शायद मै यहाँ स्मृतियों के सकरात्मक और नकरात्मक पक्ष की बात कर रही हूं :)
जवाब देंहटाएंयदि मेरी टिप्पणी पोस्ट के विषय से इतर हो तो क्षमा कीजियेगा |
(१)
हटाएंसबसे पहले तो ये कि जिसके साथ लंबा वक़्त गुज़रा हो उसे विस्मृत कर पाना कठिन होता है मृत्यु के बाद उसे कोई अपने ज़ेहन में जीवित रखे ये मृतक की उपलब्धि है ! इस कथा में ज़ेहन में मौजूद बने रहने को ही योद्धा ने जीवन कहा है !
(२)
आपने कतिपय दुखद हालातों का ज़िक्र किया है जिसमें असमय जीवन साथी को खो चुकी महिलायें नव जीवन इसलिए शुरू नहीं कर पातीं कि उन्हें हठपूर्वक मृतात्मा को स्मृतियों में बनाये रखने का दंड दे दिया जाता है इस मामले में , मैं आपकी चिंता से सहमत हूं ! यह अधिकार सम्बंधित महिला और व्यक्ति का ही होना चाहिए कि वह अपने जीवन के नए अध्याय कब लिखना चाहता है !
(३)
आपकी टिप्पणी पोस्ट की विषयवस्तु से आगे की त्रासदी का बखान करती है सो उसका भी स्वागत है !
always remember live with your life,not to be a hero but to remain alive.with time,heroes seems a little foolish.
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंयह कथा इस दर्शन को बताने के लिए कही गई है कि कोई तब तक नहीं मरता जब तक उसे भुला न दिया जाय। जिला वही सकता है जो उससे प्रेम करता हो। महापुरूषों को जीवित मानकर भगवान की तरह पूजे जाने के पीछे भी वही कारण है। इस दर्शन को बताने के लिए जो ताना-बाना बुना गया है उसे अक्षरशः न स्वीकार करने, संदेह करने की दशा में हम इस दर्शन के प्रति अनजाने में ही शंका करने वाले हो जायेंगे। जबकि इसे स्वीकार करने में आनंद की अनुभूति होगी। अतः पूरी कथा को जैसा कहा गया है वैसा ही मानकर आनंद लेता हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,स्वागतेय विचार ! तो फिर उन लोगों को भी आनंद लेने दीजिये जिन्हें शंका में आनंद आता हो :)
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१- योद्धा वाकई मर गया था।
२- हुआ यह कि योद्धा के मरने के बाद परिवार का उच्च दर्जा व रसूख खतरे में पड़ गया।
३- तीनों बड़े भाइयों ने योजना बनायी व पिता की शक्लोसूरत से मिलते अन्य किसी योद्धा को जादू द्वारा हड्डियों को नरकंकाल का आकार दे, मांस चढ़ा व प्राण फूंके 'पुनर्जीवित योद्धा' के रूप में घर ले आये।
४- सबसे छोटा चौथा भाई क्योंकि इस योजना में शामिल नहीं था इसलिये उसे विशेष उपहार दे व सार्वजनिक रूप से उस उपहार का 'असली हकदार' बता पटा कर चुप करा लिया गया।
केस सॉल्व... अब अपनी पीठ खुद थपथपा लेता हूँ... :)
आज भी अपने ग्रामीण समाज में इस तरह की कहानियाँ अक्सर दोहरायी जाती हैं साँप काटे से मरे असरदार-रसूखदार-मालदार मृतकों के मामले में...
...
@ केस सॉल्व, :)
हटाएं@ मालदार मृतक ,
सहमति , आप कथा को एक नया अर्थ दे गये !
सही माएने में मरता वही है जिसे लोग भूला दें....वरना वो अनंतकाल तक अपनी सक्षम उपस्थितियां दर्ज कराता रहता है...उदाहरणार्थ कई बरस बीत जाने के बाद लोगों के मन में गाँधी जी भी जीवित हैं और नाथूराम गोड़से भी....
जवाब देंहटाएंबहरहाल विरल साहित्य की चाशनी में लिपटी एक और विरली पोस्ट.......
आपकी प्रतिक्रिया स्मृतियों में शेष बने रहने की दोनों वज़हों का खुलासा करती है , यानि कि स्तुत्य और निंदित जीवन अस्तित्व !
हटाएं'बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा' की तर्ज़ पर अली शोएब सैयद साहब ने बड़ी खूबसूरत बात कही है, न चाहते हुए भी इतना कहने का लोभ संवरण न कर पाया!!
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