शनिवार, 4 अगस्त 2012

हिम वधु...!

मोसाकू अपने शिष्य मिनोकिची के साथ जंगल में यात्रा कर रहे थे ! वे अपने गांव से कुछ ही दूर थे और अब उन्हें एक बर्फीला जलनद पार करना था , किन्तु नौका चलाने वाला मांझी अपनी नौका जलनद के दूसरे किनारे पर छोड़ कर जा चुका था ! ये बेहद सर्दीली रात थी और मौसम बेहद खराब सो उन्होंने तैर कर जलनद पार करने की अपेक्षा , इस तट पर स्थित मांझी की छोटी सी झोपड़ी में रात गुज़ारने का निश्चय किया ! इस छोटे से शरण स्थल के अन्दर आकर , मोसाकू जल्दी ही सो गये किन्तु मिनोकिची लेटकर जागते हुए झोपड़ी के दरवाजे पर थपेड़े मार रही बर्फीली हवा का शोर / फुफकारना सुनता रहा ! बहुत देर बाद मिनोकिची को नींद आई ही थी कि अपने चेहरे पर बर्फ की फुहार पड़ने से वह पुनः जाग गया ! उसने देखा कि झोपड़ी का द्वार खुल गया था और अन्दर एक गौरवर्ण स्त्री चकाचौंध करते हुए श्वेत वस्त्र पहने हुए खड़ी थी ! 

कुछ क्षण वह खड़ी रही और फिर मोसाकू के ऊपर झुकी , उसकी सांसे श्वेत धुंवें सी दिखाई दीं ! थोड़ी देर बाद वह मिनोकिची की ओर पलटी , वो चीखना चाहता था पर उस स्त्री की सांसे , जमा देने वाली हवा जैसी थीं ! स्त्री ने कहा , वह उसके साथ वही व्यवहार करना चाहती थी जो उसने , उसके वृद्ध गुरु के साथ किया है , किन्तु उसके युवापन और सौंदर्य के कारण वो उसे छोड़ रही है ! स्त्री ने मिनोकिची को धमकाते हुए कहा कि अगर वह देखी गई घटना के बारे में किसी से कहने का साहस करेगा तो वो उसे तत्काल मृत्यु दे देगी ! यह कहते हुए , वह वहां से अदृश्य हो गई ! इसके बाद मिनोकिची ने अपने गुरु मोसाकू को जगाने के लिए आवाज़ दी किन्तु कोई प्रत्युत्तर ना पाकर उसने अंधेरे में उनका हाथ छुआ वो बर्फ की तरह ठंडा था ! अघट घट चुका था , उनकी मृत्यु हो चुकी थी ! अगली सर्दियों के मौसम में जब मिनोकिची जब अपने घर लौट रहा था तब उसे एक सुंदर लड़की मिली , जिसका नाम युकी था !

वो नौकरी की तलाश में येडो जा रही थी ! मिनोकिची उसके आकर्षण में बंध चुका था , वो कुछ दूर तक उसके साथ गया और उसने , पूछा कि क्या उसकी मंगनी हो चुकी है ? लड़की के इंकार के बाद , वो उसे अपने घर ले आया और कुछ समय बाद उससे ब्याह कर लिया ! कालान्तर में युकी ने अपने पति को दस सुंदर / गौरवर्ण और अच्छे बच्चों का तोहफा दिया ! मिनोकिची की मां मरते समय तक युकी की तारीफ करती रही जोकि दूर दूर तक कही गई / जानी गई ! एक रात जब युकी सिलाई कर रही थी और उसके चेहरे पर चिराग की रौशनी पड़ रही थी तो मिनोकिची को , मांझी की झोपड़ी वाली घटना याद आ गई ! उसने कहा , युकी तुमने मुझे एक गौरवर्ण सुंदर युवती की याद दिला दी है , तब मैं अट्ठारह साल का था , जब उसने अपनी बर्फीली सांसों से मेरे गुरु को मार डाला था ! मुझे विश्वास है कि वो कोई अपरिचित आत्मा थी और आज रात वह तुमसे सादृश्य / साम्य रख रही है !

यह सुनते ही युकी ने अपने हाथों का समान नीचे फेंक दिया , उसके चेहरे पर भयावह मुस्कान थी और वो , अपने पति की ओर झुकते हुए चिल्लाई , ये मैं ही थी, युकी –ओन्ना जो उस दिन तुम्हारे पास आई थी और जिसने तुम्हारे गुरु को खामोश मौत दी थी ! ओ विश्वासघाती नीच, तुमने घटना को गुप्त रखने का अपना वादा तोड़ा है , अगर हमारे बच्चे सो नहीं रहे होते , तो मैं तुम्हें अभी मार डालती ! याद रखो , अगर उन्होंने तुम्हारी कोई शिकायत की , मैंने सुना या जाना तो बर्फ गिरने वाली रात में , मैं तुम्हें मार डालूंगी ! उसके बाद युकी- ओन्ना , बर्फ की स्त्री , सफ़ेद धुंध में बदल गई , चीखती / सिहरन पैदा करती हुई चिमनी के रास्ते बाहर निकल गई और फिर कभी वापस नहीं लौटी !

जापान की ये कथा बर्फीले मौसम की कठोरता को आधार बना कर कही गई है जिसमें एक शिष्य और उसका गुरु अपने गांव से ठीक पहले की नदी ना तो नाव से पार सकते थे , क्योंकि मांझी घर जा चुका था , और ना ही नदी तैर कर पार करना संभव था अतः वे मांझी की अस्थायी झोपड़ी में शरण लेते हैं , जोकि बर्फानी हवाओं की मार पूर्णतः सह ही नहीं सकती थी ! यहां अग्नि /अलाव या ताप की अन्य किसी व्यवस्था के अभाव में , वृद्ध गुरु अवश्य ही अतिशीत का शिकार हुआ होगा ! अपनी अनिद्रा / कच्ची नींद के चलते शिष्य को बर्फीली हवाओं के प्रति मतिभ्रम (इल्यूजन) हुआ होगा और उसने गुरु की मृत्यु को एक हिम स्त्री की सांसों से जोड़ कर देखा और यही नहीं गुरु की मृत्यु के कारणों को गोपनीय रखने बाबत कथित धमकी भी ,उसके इसी मतिभ्रम से जोड़ कर देखी जाये !

गुरु की मृत्यु को किसी गौरवर्ण स्त्री की आत्मा से जोड़ने और उसके आकस्मिक विलोपन को , शिष्य के मतिभ्रम के अलावा अन्य कोई नाम देना शायद उचित नहीं होगा ! शिष्य अगले वर्ष की यात्रा के दौरान, सायास एक गौरवर्ण युवती से संपर्क बढ़ाता है , जिससे संकेत मिलता है कि गौरवर्ण स्त्रियों के प्रति उसमें प्रबल आकर्षण मौजूद था ! श्वेत स्त्रियों की आकर्षण प्रबलता में वो जान ले लेने की सामर्थ्य देखता था ! अमूमन युवा प्रेमी आसक्त हो जाने की स्थिति को जान ले लेने के मुहावरे / कथन से जोड़ते ही हैं ! वैवाहिक जीवन में दस संतानों का उपहार उसे पत्नी से प्राप्त हुआ ,जैसा कथन एक ही अर्थ को ध्वनित करता है कि , गौर वर्ण स्त्री के प्रति उसकी मोहासक्ति अतिशयता की हद तक पहुंच गई थी ! हालांकि यह कहना कठिन है कि उसकी पत्नी उससे रुष्ट क्यों हुई और उसे छोड़ कर घर से बाहर क्यों चली गई ? शायद उसकी प्रेम अतिशयता ?

संभव है कि इस दिन का मौसम भी गुरु की मृत्यु वाले दिन की तरह से भीषण रहा हो और उसकी पत्नी हिम आत्मा से स्वयं की तुलना बर्दाश्त ना कर सकी हो या फिर अन्य कोई संचयी कारण ? कोई भी मां अपने बच्चों की परेशानी बर्दाश्त नहीं कर सकती ! अतः कथा का यह उल्लेख कि जाते समय उसने बच्चों के कष्ट के लिए पति को दोषी पाये जाने पर मार डालने की धमकी अगर दी भी तो यह असामान्य कथन नहीं है ! उसकी पत्नी के स्वभाव / उसके अच्छेपन /उसके अच्छे व्यवहार की ख्याति का उल्लेख कथा में है सो लगता यही है कि अंतिम अलगाव के लिए भी पति स्वयं और उसके मतिभ्रम ही उत्तरदाई रहे होंगे ! 

कथा के समस्त प्रतीकात्मक साक्ष्य कथन / घटना स्थल पर देखे गये हालात के कथन स्वयं पति द्वारा किये गये हैं अतः उनपर आंख मूँद कर विश्वास कर पाना कठिन है कि वह युवती चिमनी के रास्ते से बाहर निकल गई अथवा हवा में अदृश्य हो गई या कि फिर कभी वापस नहीं लौटी ! यह विश्वास करना भी कठिन है कि झगड़े के समय पत्नी चीखी चिल्लाई होगी , क्योंकि उसे अपने बच्चों की नींद का ख्याल था , यह संकेत पति स्वयं दे रहा है ! कौन कह सकता है कि बर्फवारी के दौरान पति की मनः स्थिति का शिकार / गृह कलह का शिकार होकर घर से बाहर निकली पत्नी , गुरु की तरह से चरम शीत में काल के गाल नहीं समा गई होगी ? बहरहाल कथा की नायिका को कथा के नायक के कथन पर हिम वधु मानना कठिन प्रतीत होता है ! 

{ इस कथा की व्याख्या बतौर आपके विचारों का पूर्ववत स्वागत है }

56 टिप्‍पणियां:

  1. Har baar ke tarah aapkee bhasha shaili ant tak padhneke liye baadhy karti hai!

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  2. विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ, अतः इतना निर्णय तो विज्ञान के सिद्धांतों के प्रति व्यक्त कर ही सकता हूँ कि अपने काल में वे सभी सिद्धांत अकाट्य प्रतीत होते हैं और अगले काल में निरर्थक. उसी प्रकार लोक आख्यानों का वर्त्तमान सन्दर्भ में तर्क द्वारा विश्लेषण करना कि यूं हुआ होगा या यूं होता तो क्या होता, मेरे विचार में अन्याय होगा उनके साथ. और एक जापानी लोकाख्यान का भारतवर्ष में भारतीय मानसिकता के प्रभाव में, भारतीय सामाजिक परिवेश के अनुसार विश्लेषण करना, कठिन और अनुमान ही सिद्ध हो सकता है. वैसे ही जैसे डाल्टन के सिद्धांत को हम नील्स बोर की दृष्टि से देखेंतो बचकाना दिखाई देगा!
    मुझे आपके आख्यान पढकर कुछ कुछ याद आ जाता है और मैं यही सोचकर खुश हो लेता हूँ कि विचारों का टकराना दो भिन्न-भिन्न सभ्यताओं के किसी उभयनिष्ठ सूत्र की तरह तो है. जैसे मैंने एक बार एक आख्यान के विषय में शेक्स्पियेर के मैकबेथ का उदाहरण दिया था (मात्र तुलनात्मकता के लिए).
    आज इस आख्यान से मेरे मन में एक प्रश्न यह उठ रहा है कि वह हिम-वधु उस युवक को क्यों जीवित छोड़ती रही? प्रथम परिचय में एक वादा लेकर छोड़ गयी और वादा तोड़े जाने पर "बच्चे सो नहीं रहे होते तो तुम्हें मृत्यु देती" कहकर विलुप्त हो गयी, जबकि बच्चों के सोते में भी वह उस "विश्वासघाती" को शान्ति से मौत की नींद सुला सकती थी. पर उसने ऐसा नहीं किया और स्वयं ही विलुप्त हो गयी.
    गंगा ने भी शांतनु से ऐसा ही वादा लिया था और उसके पुत्रों को मौत देती आयी थी. उसे पता था एक दिन वो टोकेगा और वो उसे छोडकर चली जायेगी. वही हुआ. यहाँ तो पार्श्व में वसुओं की कथा भी थी.
    इस आख्यान में उसने जानबूझकर वैसी परिस्थिति (प्रकाश) उत्पन्न की ताकि वो उस घटना को याद करे और उसे कहने को बाध्य हो जाए.
    शायद उस हिमबाला का सृजन उन दस पुत्रों की उत्पत्ति के लिए ही रहा हो, जिनंकी संतति आगे चलकर उस प्रदेश के भविष्य की सूत्रधार बनी हों. और वह बाला परमात्मा द्वारा निर्धारित अपना कार्य संपन्न कर उसी के शरण में चली गयी! और परमात्मा का हर काम किसी न किसी बहाने से होता है अतः वादा तोडने का बहाना समुचित अपराध या कारण था!!

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    1. सलिल जी,
      महज आख्यान के नज़रिये से स्वीकारें तो ज़रूर उस हिमबाला का जन्म दस पुत्रों के जन्म के लिए हुआ होगा और ये वही हिमबाला रही होगी जिसने गुरु की मृत्यु कारित की और युवक के सौंदर्य और युवापन पर मोहित होकर /तरस खाकर उसे जीवित छोड़ दिया ! यहां मोहित होना ज्यादा जमता है क्योंकि वह युवक से फिर से मिली और शादी के हालात पैदा किये और लक्ष्यपूर्ति / नियति / नियत समय के उपरान्त गंगा की तरह से वापस चली गयी ! वह युवक को जीवित क्यों छोडती रही ? का पहला उत्तर इस हिसाब से उसका प्रेम / उसकी प्रथम दृष्टया आसक्ति ही हुई !

      मेरा ख्याल है कि पहले अवसर पर कोई हिम स्त्री थी ही नहीं ! उस समय , प्रतिकूल मौसम में वृद्ध अपने अशक्त होने के चलते मरा और युवा अपने युवापन / प्रतिरक्षण क्षमता के चलते बचा पर उसका 'इल्यूजन' उसे कुछ और 'सजेस्ट' करता है ! दूसरे अवसर पर वो उसकी वास्तविक पत्नी रही होगी और उसके वाहियात इल्यूजन्स के चलते या अन्य किसी कारण से घर छोड़ गयी होगी ! इसलिए पहले मौके पर मृत्यु की धमकी और दूसरे मौके पर मृत्यु की धमकी में अंतर स्वतः दिखाई देता है ! झगड़े के समय, मैं तुम्हें मार डालूंगा /डालूंगी कह देना , अस्वाभाविक नहीं है और इसकी वज़ह से कोई सच में किसी को मार डाले ये ज़रुरी भी नहीं है इस धमकी को बच्चों की हिफाज़त के नज़रिए से देखा जाए !

      एशिया महाद्वीप के देश होने के कारण और महात्मा बुद्ध के प्रभाव क्षेत्र को देखकर हमें जापान को अपने से अलग नहीं मानना चाहिए ! वे तकनीकी / विज्ञान दृष्टि से अभी हाल ही में हमसे आगे हुए हैं वर्ना वे भी हमारी तरह के धान बोऊ /खेतिहर समाज हैं !

      आख्यानों को इसलिए कहा जाता है, कि लोग उससे सन्देश ग्रहण करें , अब यह बांचने वाले पर निर्भर है कि वह उस आख्यान को बांचते हुए क्या सन्देश ग्रहण करता है ? क्या अर्थ निकालता है ? बाकी आपकी इस बात में दम है कि उन कथाओं का विश्लेषण ज़्यादातर अनुमान आधारित ही माना जाएगा !...और यही वज़ह है कि एक ही आख्यान की व्याख्यायें भिन्न भिन्न हो सकती हैं ! यहां यह उल्लेखनीय होगा कि सभी पाठक / सभी श्रोता अपनी सोच / चिंतन में एक जैसे नहीं होते !

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  3. कहानी वास्तव में भारतीय सन्दर्भों से मेल नहीं खाती.जानबूझकर युवक से विवाह करने की परिस्थिति उत्पन्न करना और खूब सारी संतानें उत्पन्न करने के बाद 'वादा तोड़ने' का बहाना कर चले जाना अटपटा लगता है.स्त्री जादूगरनी है,शुरू से ही सम्बन्ध में प्रभावी है और निर्मोही भी.
    ...वैसे सलिल जी ने बड़ी अच्छी व्याख्या दी है और भारतीय-सन्दर्भ भी.

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    1. संतोष जी क्या भारत में ज्यादा संताने पैदा होने के बाद झगड़े और अलगाव नहीं होता ? :)

      मैंने कहा है कि घटनाओं के बारे में सारे बयान एक ही व्यक्ति / पुरुष / पति , के हैं ! इस कथा में स्त्री को अपना पक्ष रखने का मौक़ा ही नहीं मिला ! इसलिए आंखमूंद कर केवल पुरुष के बयानों पर यकीन शायद उचित नहीं है !

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  4. मिनोकिची के कल्पनाओं की उड़ान लगती है. वैसे जापान के सन्दर्भ में गौर वर्ण का उल्लेख कुछ अटपटी जरूर लगी.

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    1. हां , गौरवर्ण की जगह पीतवर्ण होना चाहिए था ! संभव है उसे जापानी के बजाये अमेरिकन लड़कियां पसंद हों ?आखिर को वो एक यायावर था !

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  5. <>
    सलिल भाई के कथन को दुबारा आपके विचार हेतु प्रस्तुत है अली सर !

    एक जापानी लोकाख्यान का भारतवर्ष में भारतीय मानसिकता के प्रभाव में, भारतीय सामाजिक परिवेश के अनुसार विश्लेषण करना, कठिन और अनुमान ही सिद्ध हो सकता है. वैसे ही जैसे डाल्टन के सिद्धांत को हम नील्स बोर की दृष्टि से देखेंतो बचकाना दिखाई देगा!

    आपके आख्यान केवल जापानी ही नहीं,वैश्विक होते हैं ! ऐसे में उनका विश्लेषण, उनके ही परिवेश अनुसार होना चाहिए , इस दुविधा के बारे में आपका, कम से कम एक लैक्चर बनता है सर ! हम इंतज़ार करेंगे ...

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    1. सलिल जी को मैंने एक प्रतिक्रिया दी है जिसमें जापान को भारत जैसा खेतिहर और बुद्ध प्रभावित देश बताया है , सो सामाजिकता के परिदृश्य में ज्यादा अंतर ना देखे जायें ! किसान / खेत / धान और मछलियां , क्या हमारे तटवर्ती क्षेत्र ऐसे नहीं हैं ? नदी किनारे डोंगियां और मल्लाह की झोपड़ी तथा गुरु शिष्य का साहचर्य भी ! अंतर अगर देखें तो बर्फ का है जो हम पर विशाल हिमालय की कृपा से कहर नहीं ढा पाती है !

      वैसे मैंने इस जापानी कथा की व्याख्या करते हुए 'जान ले लेने वाले' मुहावरे को छोड़कर भारतीयता का तो उल्लेख भी नहीं किया था फिर आप इस पक्ष पर आग्रहशील क्यों हैं ? अगर मैं भारतीय धरती पे होने वाले इल्यूजन से इसकी तुलना करता तो कहता, कि राजस्थान के रेगिस्तान में होने वाला इल्यूजन जापान की बर्फबारी में होने वाले इल्यूजन जैसा है ! यानि कि मतिभ्रम कहूं या मृगतृष्णा या मृग मारीचिका :)

      एक बात ज़रूर कहूंगा कि व्यक्तिगत रूप से मुझे जापान , भारत जैसा देश लगता है पर कथा की व्याख्या करते हुए मुझे भारत नहीं बल्कि जापान ही सूझ रहा था !

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  6. इस श्रृंखला की लगभग प्रत्येक कथा में यौनिकता का आवेग कहीं स्पष्ट तो ज्यादातर गुंठित रूप में है -जो मानव व्यवहार के अनुरूप है और शायद उसके आदमी जिजीविषा का उत्प्रेरण भी.....कथा का द्वैध भाव भी मौजूद है और कथान्त का किंचित अनपेक्षित आश्चर्य भी!

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    1. प्रेम मानव व्यवहार की नैसर्गिक वृत्तियों में से एक है अगर वह कथाओं में ना झलके तो कथा में वर्णित मानव व्यवहार को असहज माना जाएगा !

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  7. कथायें सच्ची घटनाओं पर आधारित होती हैं और काल्पनिक घटना पर भी। यह कथा काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है। धार्मिक आस्था से जुड़ी हमारे पास अनेको ऐसी कथायें हैं जो रोचक होने के साथ-साथ सर्वसाधारण द्वारा सच्ची कथा के रूप में स्वीकार्य हैं। इस कथा में ऐसी कोई आस्था न होने के कारण हम कह सकते हैं कि यह कथा काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है। इसमें एक ऐसी रूहानी शक्ति की कल्पना है जो वृद्ध की तो हत्या कर देती है लेकिन 18 वर्षीय युवा को देख प्रेम में आसक्त हो जाती है। वह युकी का रूप धरती है, उससे विवाह करती है और दस पुत्रों को जन्म देती है। मतलब यह कि वह सेक्स की अपनी संपूर्ण भूख मिटाकर पूर्णतया तृप्त हो जाती है। अब उसे किसी न किसी बहाने से अपनी रूहानी दुनियाँ में वापस तो जाना ही था सो मासूम मिनोकिची को आरोपित करते हुए चलते बनते है। दुष्ट आत्मा..इसे हम चुढै़ल कहते हैं। शेष बातें तो कथा की रोचकता और सौंदर्य वृद्धि के लिए लिखी गई हैं।

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    1. आख्यानों के बारे में यह कहना कठिन है कि वे सत्य घटनाओं पर आधारित हैं अथवा नहीं , कोई समय ,कोई कथाकार नामित रूप से मौजूद नहीं ! वे समेकित रूप से समुदाय की होती हैं , चौपाल / अलाव के इर्द गिर्द की कहन जैसी !

      मैं यह मान रहा हूं कि इस कथा की व्याख्या में आपने यौन अतृप्त आत्मा की आसक्तियों और उसके द्वारा एक विशिष्ट जीवन जी कर अपनी दुनिया में वापसी का कथन किया है !

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  8. जापानी लीजेंड के मुताबिक़ ये कथा एक आम व्यक्ति और एक सुपर नेचुरल के बीच की कथा हैं जिसमे एक सुपर नेचुरल { हमारे भारत में इसे भूतनी कहते हैं जी !!} एक व्यक्ति पर फ़िदा हो जाती हैं और धोखे से उसके गुरु को मार देती हैं और फिर रूप बदल कर स्त्री रूप में उस व्यक्ति से शादी कर के एक अच्छी भूतनी / प्रेतनी बनजाती हैं और उस से १० संतान को जनम देती हैं { संभव नहीं हैं , पर लीजेंड में होता हैं , शाहरुख़ खान और रानी मुखर्जी को ले कर अमोल पालेकर ने इसको उलट कर शाहरुख़ खान को भूत बना दिया था }
    http://en.wikipedia.org/wiki/Paheli

    लीजेंड में भूतनी / प्रेतनी को जब ये पता लगता हैं की मिनोकिची को ये पता लग गया हैं की वो आम स्त्री नहीं हैं तो वो मिनोकिची को धमकी देती हैं अगर मेरे बच्चो को सही नहीं रखा या उनको तुम से शिकायत हुई , तो जिस रात बर्फ गिरेगी उस रात में तुमको मार दूंगी .

    लेकिन वो कभी वापस नहीं आयी यानी उसके बच्चे सही रहे .

    इस कथा का सार उसका अंत हैं जहां प्रेत योनी में भी अगर क़ोई माँ बन जाता हैं तो बच्चे ही उसके जीवन का आधार होते हैं , और अपने बच्चो की सुरक्षा के लिये वो वहाँ ना रहने पर भी कटिबद्ध रहती हैं . अब क्युकी बच्चे स्त्री रूप में आने के बाद हुए और दस बच्चे मनुष्य योनी के रूप में तो पति के साथ कम से कम भी ७.५ वर्ष का तो रहा ही होगा फिर भी पति पर विश्वास नहीं रहा की वो बच्चो को सुरक्षित रखेगा , इस लिये "भय बिनु होई ना प्रीती " की तरह पति को जान से मारने की धमकी दी होगी .
    प्रेत योनी से मनुष्य योनी से वापस प्रेत योनी काफी लम्बी कथा हैं लेकिन एक लीजेंड बन गयी हैं .
    माँ हमेशा माँ होती हैं और मर कर भी अपने बच्चो की सुरक्षा के लिये रक्षा कवच की तरह उनके चारो तरफ घुमती रहती हैं .
    भारत में इन सब विषयों पर कई फिल्मे बन चुकी हैं जैसे "माँ "में ज्या प्रदा अपनी मृत्यु के बाद भी , अपने बच्चे को बचाने के लिये आत्मा रूप में घुमती हैं

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    1. हां यही ! सुपर नेचुरल /अधि प्राकृतिक को देवेन्द्र पाण्डेय जी ने रूहानी कहा है ! आत्मावादी (Animistic) समाजों में इस तरह के विश्वास आम होते हैं ! इस मामले में जापानी लोग भारतीय मनःस्थितियों से साम्य रखते हैं !
      कथा में मां की संस्थिति को आपने सही समझा है और उसके बच्चों के पक्ष में उसकी भूमिका को सहज माना है यही बात महत्वपूर्ण है ! योनि कोई भी हो मां केवल मां होती है अतः उसे नकारात्मक शेड में नहीं देखा जा सकता ! पति के साथ रहने की न्यूनतम अवधि ७.५ साल तो होनी ही चाहिए ! अगर यह अवधि और भी ज्यादा रही हो तो इसका एक मतलब यह भी हुआ कि लंबी अवधि में भी पति भरोसे / विश्वास के काबिल सिद्ध नहीं हुआ !

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  9. यह भी हो सकता है...कि शिष्य के युवा रूप पर आसक्त होकर, उस हिमबाला ने उसे सिर्फ जीवित ही नहीं छोड़ा...बल्कि उसी वक्त उसके साथ विवाह कर साथ चली आई और उस से वादा ले लिया कि वो इस बात का जिक्र किसी से नहीं करेगा कि वो एक साधारण मानवी नहीं हिमबाला है. एक दिन उसके चेहरे पर प्रकाश पड़ते देख...शिष्य को उस बर्फीली रात की याद आई और उसने उसका जिक्र कर दिया.. उसके बच्चों में से कोई जाग रहा था...जो सुनकर डर गया...इसीलिए वो उसे छोड़कर अंतर्ध्यान हो गयी...और उसे बच्चों का ख्याल रखने की चेतावनी भी देती गयी.
    हमारे भारतीय आख्यान में उसे आसानी से एक शापित अप्सरा बता दिया जाता.

    यहाँ तो मैने कहानी में ही फेर-बदल कर दिए..:)

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  10. इस लोक आख्यान को पढ़ते ही सबसे पहले शांतनु और गंगा ही याद आये ... हैरान हूँ कि सभी टिप्पणीकारों ने इसके भारतीय सन्दर्भ से इनकार कैसे किया!!

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    1. सलिल जी ने गंगा और शांतनु को याद किया था !

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    2. गंगा और शांतनु में माँ बच्चो को तिरोहित करती हैं यहाँ माँ बच्चो को ठीक रखने की बात करती हैं
      क़ोई समानता ही नहीं हैं

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    3. गंगा और शांतनु का सन्दर्भ वादा खिलाफी के रूप में किया गया है न कि माँ की ममता और सन्तान की सुरक्षा अथवा ह्त्या के सन्दर्भ में.. अतः बात तर्कसंगत नहीं है अली सा!!

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    4. सलिल जी आप मुझे गलत ना समझें मैंने आपकी 'याद' से कोई 'बात' कोई 'सन्दर्भ' नहीं जोड़े हैं ! सिर्फ ये कहा है कि आपने भी गंगा और शांतनु को याद किया था ! वो भी इसलिए कि वाणी जी को स्मरण रहे कि आपकी टिप्पणी में आपने गंगा और शांतनु के हवाले से क्या कहा है ? और वे क्या कह रही हैं ?

      उम्मीद है कि आप मेरा मंतव्य समझ जायेंगे !

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  11. मेरे अभिप्रायः से तो यह कथा सर्वांग सांकेतिक है।
    यह शीत कहर से जिजीविषा और प्रतिकार का संदेश दे रही है।
    हिम-कन्या वस्तुतः भीषण हिमपात और उसका शीत लहर प्रकोप है।
    वृद्ध गुरू अवस्था के कारण शीत लहर न सह पाने के कारण मृत्यु को प्राप्त होता है, युवा शारिरिक शीत के असर का प्रतिकार करने में सक्षम होता है। पुनः उसका सामना उसी मौसम हिमपात से होता है, इसबार शायद उसके पास प्रतिकार के सक्षम उपाय है और वह शीतलहर को वश कर लेता है। उसने शीत को अपने अनुकूल बना लिया है। उसके दस बच्चे होने से अभिप्रायः यह है कि उसने हिमापात से संघर्ष कर रहन सहन करने में योग्य एक समूह ही तैयार कर लिया था। शीतलहर नहीं चाहती थी मानव के लिए प्रतिकूलता/मारक की बदनामी ले। उस मारकता को याद दिलाना उसपर बुरा आरोप था परवशता उसे कमजोर मनवा लेने पर उतारू थी,यह दोनो ही स्थितियां वह नहीं चाहती थी। मानव नें गर्म रहने के उपाय कर लिए थे इसीलिए उसका अलाव की चिमनी के रास्ते जाने का संकेत मिला, अर्थात वह उष्मा से हार मान गई। 'बच्चो का ख्याल रखना' से आशय यह था कि उन्हें शीत से बचाव का ज्ञान प्रदान करते रहने से है, इसी तरह उस पीढी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती थी। उसे चेतावनी दी गई कि यदि उसने उपाय विस्मृत किए तो अगले हिमपात में उसकी जान चली जाएगी। कुल मिलाकर कथा मानव द्वारा हिम आच्छांदित प्रतिकूल वातावरण में भी जीवन संघर्ष करके उसे अपने अनुकूल बनाने की कथा है, हिम वधु, मारक शीतलहर की प्रतीक मात्र है।

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    1. आप की व्याख्या अच्छी लगी !

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    2. आपका दृष्टिकोण अच्छा लगा ! हालाँकि बच्चों के विषय में अगर आप पुनर्चिन्तन करना चाहें तो ! बच्चे, चरमशीत के विरुद्ध एक समूह हों , तो चरमशीत का आशीर्वाद अपने विरोधी पक्ष की ओर हुआ ! एक मृत्यु का कारण वह पहले ही बन चुकी थी सो अगली मृत्यु के लिए बदनामी के भय से वह विरोधी पक्ष को आशीर्वाद दे ? खास कर तब जबकि वह पराजित होकर बाहर जाने को विवश हो गयी हो तो यह कथन स्वीकारने में ज़रा सी झिझक होगी !
      बाकी आपके निष्कर्ष आकर्षित करते हैं ! चरम तापमान के विरुद्ध संघर्ष करने वाले व्यक्ति और उसकी सफलता को लेकर !

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    3. मिनोकिची उस वातावरण की पहली पीढ़ी है, जिसने चरमशीत से विरोधी संघर्ष किया और उबर कर उसे वश किया। किन्तु दस बच्चे दूसरी पीढ़ी है जिन्होंने वातावरण की अनुकूलता प्रतिकूलता में सामंजस्य स्थापित कर लिया है, शायद उनकी जन्मभूमि ही यह बर्फिला प्रदेश हो। परिणाम स्वरूप माँ-बेटों का रिश्ता है, माँ का गौरवर्ण (बर्फ) और बच्चों का गौरवर्ण होना, हिमक्षेत्र में जन्म का संकेत करता है। यहाँ बच्चों का हिल-मिल जाना(अनुकूलता स्थापित करना)कह सकते है। इसलिए विरोधी रवैया नहीं है। बच्चों में समन्वय का अभिगम विकसित हो चुका है, यह पीढ़ी शीतसंघर्ष और चरमशीत की मध्यस्थ भी है। अतः चरमशीत का उनसे ममत्व है, और आशिर्वाद भी।

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    4. हां वे उसी हिमक्षेत्र के रहने वाले थे ! कथा में नदी पार के गांव का ज़िक्र है !

      कथा में केवल इतना सा उल्लेख है कि "पत्नी ने दस गौरवर्ण अच्छे बच्चे उपहार में दिए" और "वे सो रहे थे" बस इसीलिए आपसे पुनर्चिन्तन के लिए कहा था ! इससे ज़्यादा उल्लेख / तारीफ़ तो पत्नी के सामाजिक व्यवहार का / की है ! खैर आपने अपनी बात कह ही दी है !


      कमेन्ट से बाहर :
      { इसीलिए पिछली कथा की तरह से मैं एक बार फिर से पत्नी की ओर झुक / रुझान / साफ्टनेस रख रहा हूं :) }

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    5. @ पत्नी के सामाजिक व्यवहार की ज़्यादा तारीफ़………

      कुल जमा दो जगह तारीफ है, उसमें भी व्यवहार कुशलता की जगह संकेत छिपे है-

      1-मिनोकिची की मां मरते समय तक युकी की तारीफ करती रही जोकि दूर दूर तक कही गई / जानी गई !
      संकेत : मिनोकिची की मां ने स्वयं तो शीत के अनुकूल कर दिया था और यह माहोल उसे सुहाता था, इस शीतल वातावरण के चर्चे दूर दूर तक थे।

      2-एक रात जब युकी सिलाई कर रही थी
      संकेत : हिम में वस्तुओं को ताजा रखने की शक्ति है,सिलाई सम्भवतः इसी जुड़ाव का प्रतीक है।

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    6. @ कमेन्ट से बाहर :
      { इसीलिए पिछली कथा की तरह से मैं एक बार फिर से पत्नी की ओर झुक / रुझान / साफ्टनेस रख रहा हूं :) }

      शोले में कुछ ऐसा डायलॉग है कि मौसी कहती है- "चाहे लाख बुराईयां हो तुम्हारे दोस्त में मगर तुम्हारे मुंह से तारीफ ही निकलती है। :)

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    7. @ तारीफ़ ,
      तारीफ़ तो तारीफ़ है भाई , जिसे हम खलनायिका माने, उसके सामाजिक व्यवहार की तारीफ !


      @ शोले ,
      मुझे आपने जय का रोल दे दिया :)

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  12. ये कहानी भारतीय परिवेश से कहा नहीं मिल रही है मुझे समझ नहीं आ रहा है , मसलन वही पत्नी के रूप में किसी स्त्री के चरित्र और स्वभाव की जगह बस गोरे रंग के पीछे भागना , ( ये तो नायक की किस्मत थी की नायिका रूप और गुण दोनों की धनी निकली ) वही विवाह के दस साल बाद भी पत्नी का पति के ऊपर भरोषा न कर पाना , ( ये तो पतियों को सोचना चाहिए की एक पत्नी बच्चो या किसी अन्य मामलों में पति पर भरोषा क्यों नहीं कर पाती है )वही एक पुरुष द्वारा अपना वादा याद नहीं रखना ,(चाहे पत्नी हो माँ हो या कोई अन्य पुरुष वादा भूलते देर नहीं करते है ), वही माँ बनते ही हर हाल में बच्चे की भलाई सोचना उसके लिए अपने जीवन को कुछ नहीं समझना ( जब पति उसकी तुलना किसी भूतनी , आत्मा आदि आदि से कर रहा है तो निश्चित रूप से माँ की ऐसी तुलना बच्चो के लिए ठीक नहीं है ) वही पत्नी के घर से छोड़ कर चले जाने के बाद उसे खोजने का प्रयास ना करना , कहानी में स्पष्ट लिखा है की वो वापस नहीं आई किन्तु ये नहीं लिखा है की पति ने वापस पत्नी को खोजने का प्रयास किया और वो नहीं आई |
    कही पढ़ा था की जापान की पारिवारिक भावना भारत से काफी मिलती जुलती होती है , और वहा की स्त्रियों का जीवन भारत की स्त्रियों की तरह ही कठिन होता है ( यदि मै गलत नहीं हूं तो एक जापानी धारावाहिक था " ओसीन " जिसका प्रसारण भारत सहित कई देशों में हुआ था उसमे देखा था ) भारत में प्रचलित वो चुटकुला नहीं सुना है की पत्नी विवाह के पहले साल में चन्द्र मुखी फिर सूरजमुखी और अंत में ज्वालामुखी बन जाती है, इसे महज चुटकुला न कहे अक्सर देखा गया है की चुटकुलों में अपने अंदर छुपी उन भावनाओ को ही बाहर निकाल जाता है जिन्हें सीधा नहीं कहा जा सकता है , इस चुटकुले से एक आम भारतीय के अपने पत्नी के प्रति कैसे विचार बदलते है समझा जा सकता है , क्या पता की कहानी में विवाह के इतने सालो बाद जब नायिका दस बच्चो की माँ बन गई है उसमे वो आकर्षण नहीं रह गई तो उससे उकता कर पति बार बार प्रेत आत्मा ,डायन आदि आदि से सम्बोघित कर रह हो जिससे परेशान हो कर वो बच्चो के भलाई के लिए वहा से चली गई हो | जहा तक भारत की बात है तो यहाँ तो कभी कभी तो समाज ही स्त्रियों को डायना कह उन्हें मार डालता है | स्त्रियों की तुलना बड़ी जल्दी ही चुड़ैल ,भूतनी . जादूगरनी ,डायना , आत्मा आदि से कर दी जाती है वासना की उपासना करने वाले ज्यादातर पुरुषो को इस तरह के संबोधन देते नहीं देखा है, जबकि वो उस वासना के लिए क्या क्या नहीं कर जाते है , कोई स्त्री यदि किसी पुरुष को देख कर आकर्षित होती है और उससे विवाह करती है पत्नी बहु और माँ के सारे कर्तव्यों को निभाती रहती है वो किसी को नहीं दिखता है उसके छोड़ कर चले जाने को लोग उसकी यौन आकांक्षा , और न जाने किसी किस नजर से देखते है यदि वो जादूगरनी होती तो क्या जरुरत थी उसे नायक के दस बच्चो को जन्म देने की की माँ की जिम्मेदारी निभाने की , यदि उसमे मात्र सेक्स की इच्छा होती तो उसके लिए किसी प्रेत आत्मा को विवाह की क्या जरुरत है और ऐसी स्त्री जिसमे काम वासना भरी पड़ी हो क्या वो इतने वर्षो तक एक ही पुरुष के पास रहना पसंद करती ,पता नहीं , लोगों की अपनी अपनी सोच है , और इन विचारो को पढ़ कर अपने समाज के बारे में लोगों के बारे में और जानने को मीलता है |

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    1. जैसा कि सुब्रमनियन जी ने याद दिलाया कि गौरवर्ण ही क्यों ? तो मुझे भी ख्याल आया कि जापानी मूलतः पीतवर्णी होने चाहिए ! इस हाल में दो संभावनायें हो सकती हैं...(एक) ये कि पति महोदय यायावर थे तो उन्हें अंग्रेज / अमेरिकन गौरवर्ण युवती पसंद आई हो और (दूसरी) ये कि इस आख्यान के संकलनकर्ता से वर्ण संबंधी ये त्रुटि हुई हो ?
      अब तक कई व्याख्यायें आई है जिसमें से ,रचना जी तथा आप नायिका को जीती जागती पत्नी ही मान रहे हैं और लंबे वैवाहिक जीवन के बाद भी पति की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह देख पा रहे हैं ! मां अपने बच्चों के बचाव के लिए किसी भी हद तक जा सकती है चाहे वह पति को धमकाने का कोई भी स्तर क्यों ना हो ? इसमें कुछ भी गलत नहीं है ! बिलकुल सहमत ! लंबे वैवाहिक जीवन और दस बच्चों के जन्म के बाद पति अपनी पत्नी से विमुख (आकर्षण के प्रति) हो रहा हो वाला आपका तर्क ठीक लगता है ! बात घूम फिर कर वही है कि प्रेम में सकारात्मक पक्ष स्त्रियां हैं और पुरुष हमेशा चूक करने वाला ! संभवतः जानबूझ कर या फिर स्वभाववश ? इस आख्यान श्रृंखला में अब तक चुनी गई कहानियां कमोबेश यही सन्देश देती हैं !

      बहरहाल एक विस्तृत और अच्छे कमेन्ट के लिए आपको धन्यवाद !

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    2. दस बच्चों के प्रति यदि माता के ममत्व को इतनी प्रधानता दी जाती है तो मात्र एक वचन भंग के आक्रोश और जिद में उन्ही प्रिय दस बच्चों को तज कर भाग जाने का आरोप भी तो लग सकता है। वस्तुतः कथा में "किसी को न कहने" की वचनबद्धता का प्रयोग ऐसे ही आरोपो के प्रतिपक्ष का कारण उपस्थित करने के लिए होता है।

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    3. आपके कमेन्ट पर प्रतिक्रिया तो अंशुमाला जी ही देंगी पर एक बात ज़रूर याद दिलाना चाहूंगा कि कथा के सारे बयान / कथन केवल पुरुष के हैं !

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    4. अली सा,
      मेरी प्रतिक्रिया आपके कथन पर थी---
      @ "बात घूम फिर कर वही है कि प्रेम में सकारात्मक पक्ष स्त्रियां हैं और पुरुष हमेशा चूक करने वाला !"
      सारे बयान / कथन केवल पुरुष के होने के उपरांत भी संतुलित प्रस्तुत हुए है, 'सुन्दरता का बखान' 'नायक की माता द्वारा प्रशंसा''वचनबद्धता'(वचन भंग भी वस्तुतः वह तारीफ के उद्देश्य से करता है)

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    5. सुज्ञ जी
      जैसा की मैंने अपने टिप्पणी में कह है कि
      @ क्या पता की कहानी में विवाह के इतने सालो बाद जब नायिका दस बच्चो की माँ बन गई है उसमे वो आकर्षण नहीं रह गई तो उससे उकता कर पति बार बार प्रेत आत्मा ,डायन आदि आदि से सम्बोघित कर रह हो जिससे परेशान हो कर वो बच्चो के भलाई के लिए वहा से चली गई हो |
      कुछ साल पहले मेरी कॉम के बच्चे के दिल की सर्जरी हुई पर वो उनके पास नहीं थी वो दूर दिल्ली में अपने बाक्सिंग का प्रशिक्षण ले रही थी क्योकि उन्हें पता था की उसी से पैसे आएंगे और बच्चो की अच्छी परवरिश होगी , ये भी सोचती हूं की सीता माता तभी धरती में क्यों नहीं समां गई जब राम ने उन्हें अपने घर से निकाला , क्योकि उनके पास बच्चे थे , बच्चो को बड़ा किया और जीवन के लिए जरुरी सारी शिक्षा दी उन्हें काबिल बनाया की वो अपने पिता से भी मुकाबला कर सके और तब जब राम ने उन्हें अपनाने की बात कही तो वो बच्चो को छोड़ कर चली गई क्योकि उन्हें पता था की वो अपने बच्चो को सक्षम बना चुकि है और अब उनका राम के पास होना उनके लिए अच्छा है और वो अपने आत्मसम्मान को छोड़ कर राम के साथ जा नहीं सकती थी सो बच्चो के भले के ली उन्हें राम के पास जाने दिया और खुद उन्हें छोड़ चली गई ,कभी कभी माँ को ये भी करना पड़ता है की बच्चो के भलाई के लिए उन्हें ही छोड़ना पड़ता है ,ये यही ख़त्म नहीं होता है जरा एक और रूप को देखीये पन्ना धाय को याद कीजिये किसी और के पुत्र को बचाने के लिए अपने ही बच्चे का बलिदान कर दिया , क्या कहेंगे की बड़ी क्रूर माये है ये सब , माँ ममता को समझना जरा मुश्किल है खासकर किसी पुरुष के लिए ( अपवाद हर जगह होते है ) इसलिए इसे यही ख़त्म करते है ,इस पर बात खिची तो पोस्ट का मुद्दा बदल जायेगा |

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    6. अली जी
      @प्रेम में सकारात्मक पक्ष स्त्रियां हैं और पुरुष हमेशा चूक करने वाला ! संभवतः जानबूझ कर या फिर स्वभाववश ?
      स्वभाव वश ही ज्यादा है, स्त्रिया भावनाओ में ज्यादा जीती और मरती है और प्रेम का मतलब ही भावना है दिल है ,यहाँ दिमाग कही नहीं है , किन्तु पुरुष ऐसा नहीं है , पुरुषो की अन्य टिप्पणियों को देखीये प्रेम को कैसे काम वासना सेक्स आदि आदि से जोड़ा जा रहा है उन्हें इसमे कही भी समर्पण प्रेम दिख ही नहीं रहा है , जब कहानी में वो नहीं दिख रहा है जी असली जीवन में किसी पुरुष को ये प्रेम समर्पण कैसे दिखेगा , शायद वो सच्चे प्रेम को समझ ही नहीं पाता है या उसकी सोच यौन आकांक्षा , वासना आदि में इतनी फंसी होती है की वो उससे बाहर निकल कर सोच ही नहीं पाता है , इसलिए अरंभा में जो स्त्री उसे चंद्रमुखी दिखती है वो कुछ समय बाद ज्वालामुखी सी दिखती है क्योकि शारीरिक आकर्षण ख़त्म होने , और शरीर की इच्छा पूर्ति होने के साथ ही उसकी तरफ से जो कुछ भी है ( कोई पुरुष उसको क्या नाम देता है मुझे नहीं पता ) वो ख़त्म हो जाता है , वो तो पत्नी के पाने प्रति प्रेम को भी पत्नी का कर्त्तव्य कह कर बहुत छोटा बना देता है और यही पर दी स्त्रियों की टिप्पणी में देखीये कितना फर्क है , प्रेम ,स्त्री , विवाह बच्चे इन शब्दों के साथ ही हर स्त्री कहानी को अपने आस पास पाती है खुद को उससे जुड़ा पाती है जबकि पुरुष अभी भी उस कहानी से ही अपने आप ( परिवेश )को नहीं जोड़ पा रहे है | मुझे तो लगता है की इस बात का जवाब आप को देना चाहिए की पुरुष हमेशा चूक करने वाला क्यों होता है ये जानबूझ कर या फिर स्वभाववश ?

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    7. @ बात घूम फिर कर ,
      सुज्ञ जी उस वाक्य को चयनित कथाओं , प्राप्त कमेंट्स के हवाले से और मेरे कमेन्ट की सम्पूर्णता के साथ बांचियेगा ! एक ही वाक्य चिन्हांकित कीजियेगा तो अर्थ बदल जाएगा !

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    8. अली सा,
      "घूम फिर कर" शब्दों द्वारा आपने स्वयं अपनी सभी टिप्पणियों को इस एक वाक्य में सारांशित कर लिया है न केवल टिप और इस पोस्ट को बल्कि आपने 'स्त्री प्रेम' टैग से सम्बंधित सभी चयनित कथाओं को इस एक वाक्य से सार संदेश में सीमित कर लिया है ("अब तक चुनी गई कहानियां कमोबेश यही सन्देश देती हैं !")
      स्त्री प्रेम तो ठीक है पता नहीं आगे आप पुरूष-प्रेम के आख्यान प्रस्तुत करने वाले हैं या नहीं :) और उसमें भी पुरूष पात्रों के साथ न्याय होगा या नहीं :)

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    9. पुरुषों पर आधारित आख्यान श्रृंखला के बारे में सोच तो रखा है !



      टीप से बाहर :
      { बस एक ही चिंता है कि पुरुषों से पुरुषों का प्रेम सबको बर्दाश्त होगा कि नहीं :)}

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    10. kya baat kahi hai ali sa.........hum bhartiya to sakal-jagat se prem karte hain??????????


      pranam

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  13. मैने जापान की कई यात्रा की हैं और पाया हैं की वहाँ महिला का स्किन कलर सफ़ेद नहीं होता हैं पीला भी नहीं होता हैं

    उनकी स्किन बहुत लाईट होती हैं और उस पर मेलानिन की कमी की वजह बहुत जल्दी लाल चकते पड़ जाते . जापान में सूरज की रौशनी बहुत तेज होती हैं और शाम को ८ बजे तक भी रात नहीं महसूस होती हैं जिस की वजह से स्किन जलने का अंदेशा रहता हैं


    जापान में वो स्त्रियाँ सबसे सुंदर समझी जाती हैं जिनकी स्किन की टोन सफ़ेद / वाईट हो . इसके लिये वहाँ स्किन वाईट निंग क्रीम का प्रयोग वहाँ की सब महिला करती हैं . वहाँ के बाजार इस तरह की चीजों से भरे हैं . वहाँ स्नान के लिये भी साबुन में वाईट निंग होती हैं http://en.wikipedia.org/wiki/Whiteness_in_Japanese_culture


    इस कथा में इसी लिये उसको स्नो ब्राइड कहा गया हैं क्युकी स्नो सफ़ेद होती हैं { शायद किसी को याद हो आजादी के काफी साल बाद तक भी भारत में महिला "स्नो " क्रीम का नाम ही स्नो !! लगाती थी और दुकानदार स्नो कहने मात्र से मुह पर सफेदी लाने वाली करें देता था }
    जिस लिंक पर मैने कथा पढी हैं वहाँ लिखा था Yuki presented her husband with ten fine and handsome children, fairer of skin than average. यानी और से ज्यादा "फेयर"ummaten.blogspot.in/2012/08/blog-post_4.html

    ये एक भ्रम हैं की भारत में रंग काला और विदेश में गोरा होता हैं . विदेशी लोग बहुत ज्यादा ख्याल रखते हैं अपनी स्किन का , और उनके यहाँ स्किन को साफ़ रखने के लिये { यानी गोरा दिखने के लिये } सब बहुत अच्छी क्वालिटी की क्रीम लगाते हैं . अब ये क्रीम भारत में भी उपलब्ध हैं और इन से स्किन के रंग में फरक इस लिये आता हैं क्युकी ये मेलानिन पिगमेंट को बनने से रोकती हैं या कम करती हैं . दुर्भाग्य से मेलानिन की कमी से व्यक्ति ज्यादा देर सूरज की तेजी बर्दाश्त नहीं कर पाता हैं .

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  14. http://wolfsonianfiulibrary.files.wordpress.com/2011/11/xc2011-08-2-68-1_000.jpg?w=497&h=619

    http://1.bp.blogspot.com/_zfDuy4-yDB8/TJCXEzsbEXI/AAAAAAAAFfY/XHeUDyZfJBY/s1600/1941_afghansnow_ad.jpg

    http://www.afghansnowindia.com/images/uploads/ads1/Afghansnow1950s.jpg

    http://www.advertisementsindia.com/wp-content/uploads/2011/05/Afghan-Snow-1.jpg

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  15. रचना जी तथा आप नायिका को जीती जागती पत्नी ही मान रहे हैं और लंबे वैवाहिक जीवन के बाद भी पति की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह देख पा रहे हैं !
    ---------

    हर देश में ये देखा जाता है की विधवा अपने बच्चो के साथ बिना दूसरा विवाह किये भी रह लेती हैं लेकिन विधुर अपने बच्चो के लिये माँ तलाशता हैं . बस इसी वजह से मैने लिखा की माँ हमेशा अपने बच्चो के लिये चिंतित रहती हैं मर कर भी


    अब कल की बात हैं की बच्चे की पिता और उनकी दूसरी पत्नी को " मोंस्टर परेंट्स " कहा गया हैं और उनको सजा दी गयी हैं . नहीं कर पाया एक पिता अपने ही बच्चे की हिफाज़त और अपनी दूसरी पत्नी के मोह में उस पर अनगिनत अत्याचार करता रहा
    और वही बच्चे की माँ के माता पिता ने उस बच्चे की कस्टडी ली और मोंस्टर परेंट को सजा दिलवाई http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-08-05/delhi/33048740_1_monster-parents-convicts-beatings

    ये कहना की "उन्ही प्रिय दस बच्चों को तज कर भाग जाने का आरोप भी तो लग सकता है।" गलत हैं क्युकी कथा में माँ का अंत यानी मृत्यु होजाना माना जाएगा क्युकी वो फिर नहीं आई . अगर आत्मा को जो मानते हैं वो इसको दूसरी तरह देखे तो आत्मा चली गयी चिमनी के रास्ते .
    और पिता मोंस्टर ना बने इस लिये धमकी दे कर गयी .



    लिजेंड की यही खासियत होती हैं की हर युग में आप उसको जोड़ कर अपने समय अनुसार पात्र खोज लेते हैं

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  16. The Alchemist kitaab me jo us kitaab ko padhtaa haen apane ko jarur pataa haen

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  17. @ पीत वर्ण,
    वे श्वेत / श्याम / कृष्ण के बजाये पीत वर्ण कहे जाते हैं इसका मतलब ये नहीं कि उनका रंग पीला होगा ! संभवतः इसका आशय पीली आभा /कांति से होना चाहिए ! वे मूलतः मंगोलायड हैं सो मैंने इसी हिसाब से उन्हें पीतवर्णी कहा है ! बाकी आपने वहाँ की यात्रायें की हैं तो आप ही सही होंगी !

    @ जीती जागती पत्नी मान रहे हैं ,
    कमेन्ट करने वालों में आप और अंशुमाला जी के हवाले से ये बात मैंने कही है ! अब ज़रा आलेख में देखिये मैंने स्वयं भी यही तर्क दिये हैं , शब्द भले ही अलग हों पर मेरा मंतव्य भी यही है कि वह आत्मा (हिम वधु )नहीं बल्कि एक पत्नी ही थी !

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  18. समीक्षा

    1-जीती जागती पत्नी
    यदि हम उसे जीती जागती स्त्री मानते है तो मानना पडेगा कि उसने आत्म हत्या की जबकि वह पति को मृत्यु देने में सक्षम थी। सलिल जी का यही यक्ष प्रश्न है……
    @ “आज इस आख्यान से मेरे मन में एक प्रश्न यह उठ रहा है कि वह हिम-वधु उस युवक को क्यों जीवित छोड़ती रही? प्रथम परिचय में एक वादा लेकर छोड़ गयी और वादा तोड़े जाने पर "बच्चे सो नहीं रहे होते तो तुम्हें मृत्यु देती" कहकर विलुप्त हो गयी, जबकि बच्चों के सोते में भी वह उस "विश्वासघाती" को शान्ति से मौत की नींद सुला सकती थी. पर उसने ऐसा नहीं किया और स्वयं ही विलुप्त हो गयी.”
    --सलिल जी के प्रश्न में भी यदि वह मानव है तो उसके कार्य निर्थक प्रतीत होते है। जबकि अतिशीत को बच्चो के सोए होने से फर्क पड़ता है, अतिशीत जब नायक को मारने के उद्देश्य से हिमपात द्वारा अपनी शीत प्रचंड़ कर दे तो उष्मा में सोए बच्चे भी प्रभावित हो सकते है।

    2-रूहानी शक्ति या यौन अतृप्त आत्मा
    यदि वह शक्ति धारी आत्मा है और वचनबद्धता के प्रति प्रतिबद्ध तो उसे फिर कभी वापस आकर पति को वचनभंग की सजा दी जानी चाहिए थी। जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ।

    3-‘अतिशीत’
    हां!! युकी को अतिशीत मानने में सभी संशयों का समाधान हो जाता है।

    मतिभ्रम :
    सर्द रात्रि की हिम-आपदा को नायक का मतिभ्रम (इल्यूजन) माना जाय तो वह ‘वचन’ भी नायक का अपना मतिभ्रम ही था। नायक की अपनी मतिभ्रम वाली वचनबद्धता युकी के लिए वचन भंग का द्रोह कैसे बन सकती है।
    वृद्ध गुरू की मौत की घटना को गुप्त रखने से अभिप्रायः, निराशा को फैलने से रोकना है। और संघर्ष को जीवित रखना है।

    एकांगी कथन :
    @कथा के समस्त प्रतीकात्मक साक्ष्य कथन / घटना स्थल पर देखे गये हालात के कथन स्वयं पति द्वारा किये गये हैं अतः उनपर आंख मूँद कर विश्वास कर पाना कठिन है
    --नायक के कथन में अपने लिए कोई अतिश्योक्ति प्रतीत नहीं होती न पत्नि के लिए भेद-भाव दृष्टिगोचर होता है कि उसकी बात पर विश्वास न किया जाय।

    यौन अतिशयता :
    @ “वैवाहिक जीवन में दस संतानों का उपहार उसे पत्नी से प्राप्त हुआ ,जैसा कथन एक ही अर्थ को ध्वनित करता है कि , गौर वर्ण स्त्री के प्रति उसकी मोहासक्ति अतिशयता की हद तक पहुंच गई थी ! हालांकि यह कहना कठिन है कि उसकी पत्नी उससे रुष्ट क्यों हुई और उसे छोड़ कर घर से बाहर क्यों चली गई ? शायद उसकी प्रेम अतिशयता ?”
    --कथा में कहीं भी काम अतिशयता के संकेत नहीं मिल रहे, मात्र दस संतानों का होना मोहासक्ति अति नहीं माना जा सकता। बहाना तो उसने वचन भंग को ही बनाया है, यह वह खल-आदत थी जिसे वह गुप्त रखना चाहती थी, इसे गुप्त रखने में किसी भौतिक स्त्री को क्या लाभ हो सकता है किन्तु एक अतिशीत को हो सकता है, वह अपनी मारक बुराई प्रकट नहीं करना चाहती।
    @ “कौन कह सकता है कि बर्फवारी के दौरान पति की मनः स्थिति का शिकार / गृह कलह का शिकार होकर घर से बाहर निकली पत्नी , गुरु की तरह से चरम शीत में काल के गाल नहीं समा गई होगी ? बहरहाल कथा की नायिका को कथा के नायक के कथन पर हिम वधु मानना कठिन प्रतीत होता है !”
    --हिम वधु के प्रतीक में वह प्रचंड़ शीतलहर ही थी जो जाते जाते चीखती / सिहरन पैदा करती हुई ताप व उष्णता से धुंए में बदलती हुई चिमनी मार्ग से बाहर हो गई। कथा में यह स्पष्ट है………
    “युकी- ओन्ना , बर्फ की स्त्री , सफ़ेद धुंध में बदल गई , चीखती / सिहरन पैदा करती हुई चिमनी के रास्ते बाहर निकल गई”

    आख्यान कथा का संदेश क्या है?
    यह स्त्री की व्यवहार कुशलता का संदेश तो नहीं हो सकता। क्योंकि व्यवहार कुशलता उभारना उद्देश्य होता तो एक लक्ष्यहीन (बस यह बात किसी को बताना मत) वचनबद्धता को आधार बनाकर व्यवहार कुशलता की जिम्मेदारी का परित्याग न करती। उसे अंदेशा तो था ही कि मेरे जाने से बच्चों के संरक्षण में कमीबेसी आ सकती है फिर भी उसने मात्र धमकी से सुनिश्चित कर लिया कि अब बच्चों का ख्याल रखा जाएगा।

    कथा का संदेश तो यही है :

    “जिजीविषा”

    कथा जब हिम वातावरण को केन्द्र में रख कर बुनी गई है तो संदेश साफ है, तीव्र जिजीविषा से विकट हिमप्रदेश के जीवन प्रतिकूल वातावरण को जीवन अनुकूल बनाने का संघर्ष संदेश है। विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है।

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    उत्तर
    1. (१)
      सलिल जी उनके साथ संतोष जी और सतीश भाई को इस बिंदु पर प्रतिक्रिया दे ही चुका हूं सो उसे दोहराने का औचित्य नहीं है !

      (२)
      उसके रूहानी आत्मा अथवा यौन अतृप्त होने का कथन मेरा नहीं है !

      (३)
      मैंने युकी को वास्तविक स्त्री और चरमशीत को कठिन मौसम माना है ! इस मौसम से मिनोकिची की बुरी यादें (गुरु की मृत्यु ) जुड़ी हैं सो मैंने चरमशीत को उसके इल्यूजन का कारण माना है ! आप इल्यूजन को अवसाद या कोई और नाम भी दे सकते हैं ! इस हिसाब से झगड़े का कारण गुरु की मृत्यु को लेकर हिम आत्मा से वचन भंग वाला कोई मुद्दा भी नहीं बनता ! झगड़ा चाहे जिस भी कारण से हुआ हो पति पत्नी में अलगाव स्पष्ट है ! कथा को कितना भी गौर से देखें , सारे कथन केवल पति के हैं , यहां तक कि पत्नी की ओर से भी पति ही कथन कर रहा है ! नैसर्गिक न्याय यह है कि जब तक पक्ष रखने का मौका ना मिले पक्षकार को गुनहगार नहीं ठहराया जाना चाहिए ! पत्नी के साथ भी यही व्यवहार अपेक्षित है !

      यौन अतिशयता के मसले में दस बच्चों की उत्पत्ति अपने आप में एक प्रमाण है ! वो चिमनी के रास्ते निकल गयी ! उसने पति को धमकी दी , यह सब कथन पुरुष के हैं !

      जैसा कि मैंने पहले भी कहा था कि युवती का सामजिक व्यवहार तारीफ पा गया तो एक बिंदु और देखिये कि उसने पति को दस 'अच्छे' बच्चे उपहार में दिये ,यानि कि वह बेहतर मां ,बेहतर पत्नी ,बेहतर बहू ,बेहतर शिक्षिका थी ! उस पर सारे इल्जाम केवल पुरुष के हैं , संभव है उसके गायब होने में पुरुष का ही हाथ हो ! जो बाद में ढेर सारे बहाने गढ़ रहा है ! एक बार फिर से कहना है कि झगड़ा चाहे जिस भी कारण से हुआ हो !

      सुज्ञ जी यह एक व्याख्या है जो पत्नी को वास्तविक और पति को बहानेबाज़ ठहराती है लेकिन दूसरी व्याख्या वह , जो आप कर रहे हैं कि वह अतिशीत थी / प्रतिकूल मौसम थी , भी अच्छी है ! मैं मानता हूं कि इस कथा कि दोहरी व्याख्या की जा सकती है और अगर तीसरा मुद्दा उठायें तो रूहानी शक्ति वाली भी ! अंतर केवल इतना है कि पाठक कथा और उसके प्रतीकों को किस नज़रिए से देखता है !

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  19. बाप रे! कमेंट पढ़ते-पढ़ते भूल गया किसने क्या कहा!

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