वो जानती हैं कि उनके पसंदीदा सीरियल्स मुझे पसंद नहीं ! उनकी कोशिश ये कि अगर ऐसे वक़्त में , मैं घर में होऊं तो स्टडी में बना रहूं ! नतीज़ा ये कि फायदे में हम दोनों...वो सुकून से सीरियल्स देख पाती हैं और मैं ब्लागिंग का शौक पूरा कर डालता हूं ! एक अलिखित सा करार हमारी परसोना के अलग रंगों में निबाह कर गुज़रता है ! अमूमन स्टडी तक टी.वी. की आवाज़ बहुत ही मद्धम सी आती है गोया मैं कोई अहम काम कर रहा होऊं और ज़रा से शोर से मेरा तप भंग हो जाने वाला है ! पिछले दो दिनों से एक धुन बार बार मुझे अपनी ओर खींच रही है, मैं बीबी को आवाज़ देता हूं सुन कर बताओ क्या है ये ? वो कहती है स्टार टी.वी. का एंथम बज रहा है ! मेरा ध्यान अब उधर ही है...दोबारा बजे तो मुझे बुलाना ! बेहद मानीखेज, शब्द शब्द आह्लाद भरता हुआ...तू ही तू...स्त्री गौरव को सलाम करता हुआ ये गीत, किसने गाया ? पता नहीं ?... कम्पोजर कौन ? मालूम नहीं ?...लिखा किसने ? क्या पता ?...मैं बस उसे सुनता हूं ! एक अलौकिक आनंद...अदभुत अहसास...पत्नी और पुत्री सामने हैं और दूर कहीं बैठी मां भी !
पहली बार किसी टी.वी. चैनल के लिए साफ्ट से ख्याल लिए सोचता हूं कि शिष्टाचार के तकाजों के इतर 'आप' से दूर' तू' भी अनिवर्चनीय आनंद का कारण हो सकता है ! शायद 'तू' शब्द के विविध व्यापक प्रयोग पे इससे पहले कभी विचार नहीं किया मैंने ! कबीर कब के कह गुजरे 'तू बाह्मण मैं काशी का जुलाहा'...'जो तू तुरक तुरक्क्नी जाया'...पर मैंने 'तू' को छोड़ कर सबका नोटिस लिया ! इतना ही नहीं...बिहारी की राधा भी कमोबेश इसी ट्रीटमेंट से गुजरीं...'तू मोहन के उर बसी, है उरबसी समान' ! सामाजिक / धार्मिक / जातिगत पाखंड में लिप्त इंसानों से लेकर कृष्ण प्रिया भी 'तू' से संबोधित ! पता नहीं क्यों ये लगता रहा कि उस ज़माने के रिश्तों में 'आप' का चलन / दस्तूर ना रहा होगा ? तू तड़ाक के ज़माने की पैदावार हम 'तू' को बोलचाल के गंवारु अर्थ में जीते रहे !
अभी कुछ ही रोज पहले ही कहीं पढ़ रहा था कि पोलीनेशियाई द्वीपों के वासी अपनी प्रार्थनाओं में जिस ईश्वर को पूजते हैं , उसका नाम ही 'तू' है ! वहां वार्षिक उत्सव की सुबह पुजारी वृक्षों में फलों की अच्छी उपज के लिए देवता का आह्वान करता है और उसे उत्सव में आमंत्रित करते हुए कहता है कि ...' देखो, यह है घोषणा...एक घोषणा , बहुत कुछ करने के लिए ! 'तू' के आह्वान के लिए ! बाहरी आकाश का 'तू', जन भक्षक 'तू' ! 'तू' जो जमीन के ऊपर तैरता है' ! सच कहूं तो भाषाई लिहाज़ से इस 'तू' को हमारी मातृभाषा के 'तू' से कोई लेना देना नहीं है पर उच्चारण की समानता और ईश्वर के लिए उसका अनुप्रयोग अनायास ही आकर्षित करता है ! एक अरसा गुज़रा जो सुना था कि 'तेरा जलवा दोनों जहां में है, तेरा नूर कौनोंमकां में है, यहां तू ही तू वहां तू ही तू , तेरी शान जल्लेजलालहू !
फिर नुसरत साहब को सुना, कभी यहां तुम्हें ढूंढा, कभी वहां पहुंचा, तुम्हारी दीद की खातिर, कहां कहां पहुंचा, यही नहीं अभी हाल की ही किसी फिल्म में राहत फ़तेह अली खान साहब गा गये...'तू ना जाने आस पास है खुदा' ! यहां तू का इस्तेमाल खुदा के लिए और वहां...'तू ही तू सतरंगी रे' एक खूबसूरत सी नायिका के लिए ! 'तू' एक आवारागर्द तबियत सा शब्द सामाजिक कुरूपताओं पे प्रहार करते वक़्त, कबीर को रास आया और उसने बिहारी के श्रृंगार में भी जान डाल दी ! आप की खाप से बाहर, विजातीय सा शब्द 'तू' खुदा के लिए और फिर आधी दुनिया के गौरव गान के तौर पर स्टार टी.वी. के एंथम बतौर बजता हुआ, कहीं भी खटकता नहीं ! ख्याल ये कि तू तड़ाक की रफ टफ कम्पोजीशन के अलावा उसे मुहब्बत की नर्मख्याल बंदिशों और अर्ज़-ओ-बंदगी की बहर में सहज ही शामिल देखना...अच्छा लगता है !
Gantantr Diwas bahut,bahut mubarak ho!
जवाब देंहटाएंसच है जी!!! सब जगह "तू" की ही तो शान है.
जवाब देंहटाएं"तू" जहां जहां चलेगा......
बहुत खूब अली जी!
"तारीफ़ उस खुदा की, जिसने आप का ज़हन बनाया "
तू ही तू, तू ही तू ..., तेरा तुझको सौंपता.
जवाब देंहटाएंतू-विमर्श पर सुन्दर पोस्ट !
जवाब देंहटाएंमैं तो देश-भाषा में तू ही पाता हूँ , 'आप'-फाप का झंझट ही नहीं !
माता जी दुर्गा आराधन में कहती हैं , आरती में हम भी साथ देते हैं :
'' 'तू' परधाम निवासिनि , महाविलासिनि 'तू' '' !!
'' कालातीता काली कमला 'तू' वरदे '' !!
तुलसीदास जी को भी तुम-तामड़ा की क्या जरूरत थी :)
'' जो जानै सो देहि जनाई |
जानहि 'तुम'हि तुमहि होइ जाई || ''
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अली जी , मुझे तो नवीन तू-बोध में कुछ अंगरेजी औपचारिकता का मामला दिखता है :) और हम उसी में अपनी नाक उचियाते हैं :)
तू तो बड़ा ज़ालिम निकला रे सीधे करेजे पर मार किया ....
जवाब देंहटाएंआपको नज़दीक से नज़दीकतर लाते गये,
जवाब देंहटाएंआप थे, फिर तुम हुए, फिर तू का उन्वाँ हो गए!!
बहुत समय तक इस मुगालते में रहे कि किसी को ’तू’ कहकर बुलाना असभ्यता है। बाद में समझ में आया, किसी किसी को ’तू’ संबोधित न करना एक बहुत बड़ी जाहिली है।
जवाब देंहटाएंरफ़्ता रफ़्ता वो 'आप' से 'तू' पे उतर गए....:)
जवाब देंहटाएंकुछ गीत:
तू मेरी ज़िन्दगी है
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमाँ बनेगा
तूने ओ रंगीले कैसा जादू किया
तू आशिकी है
तू प्यार है किसी और का
तू न मिली तो हम जोगी बन जायेंगे
तू पी और जी
तू प्यार का सागर है
तू प्यार करे या ठुकराए
तू प्यार तू प्रीत जीना मरना साथ
तू शायर है मैं तेरी शायरी
तू मेरी ज़िन्दगी है........इत्यादि..
आप से तुम , तुम से तू होने लगी ...
जवाब देंहटाएंतू को इस ग़ज़ल के बाद इससे बेहतर यही समझा गया ...
विजातीय सा शब्द 'तू'
जवाब देंहटाएंविजातीय?? ना...यहाँ तो 'आप' क्या किसी को 'तुम' भी कह दो...तो ऐसे देखेंगे जैसे कितना पराया कर दिया हो..:)
कई सारे सन्दर्भ पता चले..इस 'तू' के...
@ क्षमा जी ,
जवाब देंहटाएंआपको भी बहुत बहुत शुभकामनायें !
@ लोरी साहिबा ,
सब तारीफ उसी की है ! आपका शुक्रिया !
@ राहुल सिंह साहब ,
क्या आपने वो गीत सुना ?
@ अमरेन्द्र जी ,
आपकी प्रतिक्रिया देखते ही पहला ख्याल ये आया कि इसे पोस्ट से जोड़ दूं !
और ये अंगरेजी में नाक उंचियाने वाली बात भी खूब है :)
@ अरविन्द जी ,
प्रेम वाला ज़ुल्म करेजे पे ही सुहाता है :)
@ संवेदना के स्वर बंधुओ ,
ये सारा मामला नजदीकियों के दर्शन पर ही टिका हुआ है !
@ मो सम कौन ? जी ,
:) जबरदस्त !
@ अदा जी ,
आध्यात्मिकता से लेकर सांसारिकता वाले प्रेम तक पैठ है इसकी :)
@ वाणी जी ,
बेहद खूबसूरत , मेरी पसंदीदा गज़ल याद दिला दी आपने !
@ ज़ाकिर अली रजनीश साहब ,
आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें !
@ मुकेश अग्रवाल साहब ,
आपको भी बधाई , लिंक ज़रूर देखूंगा !
@ रश्मि जी ,
अपनेपन का ख्याल विजातीयता से परहेज़ नहीं करता आजकल :)
"त्वमेव माता च ..." से लेकर "... तूं है मेरा माता" तक चलकर "तेरे द्वार खड़ा एक जोगी..." सुनने के बाद लगा कि प्रेमभरी हिंदी में "आप" का तकल्लुफ कब और कहाँ से आया. शायद अजित वडनेरकर जी कुछ शोध करें.
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.
सच कहूँ तो अंग्रेजी कभी-कभी महज इसलिये बहुत भाती है... 'तू' या 'आप' का कोई झमेला ही नहीं... सीधा सादा 'You' हर किसी के लिये...
...
तू में बात ही कुछ और है ...कभी न कभी ...कहीं न कहीं हम घुटनों के बल बैठ ही जाते हैं इसके सामने !
जवाब देंहटाएंजहाँ तक शब्द का सवाल है अगर मेरा बस चले तो अली भाई , अरविन्द मिश्र आदि सबको तुम से ही संबोधित करूँ ..और तू जितना प्यार तो शायद परम पिता के लिए ही है ! शायद ही आदमी कभी इसे समझाने का प्रयत्न करे !
समय ही कहाँ है ???
तुम्हें समझाना अच्छा लगता है अली भाई .....
आप से तुम और तुम से तू तक आते-आते युवा वृद्ध हो जाते हैं मगर याद कीजिए बचपन को जहाँ दोस्ती की शुरूवात ही तू से होती है। शायद इसीलिए कहते हैं कि बच्चों में भगवान बसते हैं।
जवाब देंहटाएंत त त
जवाब देंहटाएं:)
बहुत खूब कहा! वाह! :)
जवाब देंहटाएंहमममममममममम क्या सोचा है आपने , तू ही तू हर जगह सच बात है । कितनी अजीब बात है कहीं हम तू का प्रयोग ईश्वर के लिए कर देते है वह भी सहजता से ,और कहीं-कहीं इस शब्द का प्रयोग करके ग्लानि भी होती है , शायद भावनाओं का हेर फेर होता है । बढिया पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंकृपया उपरोक्त कमेन्ट में समझाने / समझाने की जगह "समझाने " / "समझना" पढ़ें !
जवाब देंहटाएंबात चाहे तू-तड़ाक की हो या फिर अपनत्व की इन्तेहा की, दोनों जगह 'तू' ही छाया रहता है। कैसा अजीब सम्बंध है यह।
जवाब देंहटाएं---------
जीवन के लिए युद्ध जरूरी?
आखिर क्यों बंद हुईं तस्लीम पर चित्र पहेलियाँ ?
आप शिष्टाचार सही, पर तू के बिना तो निकटता अधूरी रहती है...
जवाब देंहटाएं"तू" दिल सबसे करीब होता है..तू में जो अधिकार और अपनत्व बोध है ,जिसके जीवन में यह किसी भी रूप में नहीं,वह अधूरा है..
बहुत ही सुन्दर पोस्ट...वाह !!!!
@ स्मार्ट इन्डियन जी ,
जवाब देंहटाएंमसला औपचारिकता या अनौपचारिकता के साथ अधिक नैकट्य का ही है !
@ प्रवीण शाह जी ,
'तू' को भी तो देशी अंगरेजी ही मानिए :)
@ सतीश भाई ,
ज़रूर संबोधित करिये मुझे खुशी होगी :)
@ देवेन्द्र भाई ,
बच्चों वाली मिसाल बहुत बढ़िया दी आपने !
@ काजल भाई ,
:)
@ अनूप भाई ,
स्वागत है :)
@ प्रिय मिथिलेश जी ,
अच्छी प्रतिक्रिया के लिए आभार !
@ सतीश भाई ,
जैसा आपने चाहा वैसा ही पढ़ा है टिप्पणी को :)
@ ज़ाकिर अली साहब ,
अपनेपन का ही ख्याल है :)
@ रंजना जी ,
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए आभार !
तू शब्द हृदय के निकट है,
जवाब देंहटाएंआप शब्द ओपरा पराया लगता है।
इसलिए प्रिय से प्रियतम तक
तू ही का प्रयोग हुआ है।
इस नश्वर लोक में आज तक तू ही तू था।
और आगे भी तू ही तू रहेगा।
जो चीज इकहरी थी वह दोहरी निकली
सुलझी हुई जो बात थी उलझी निकली
सीप तोड़ी तो उसमें से मोती निकला
मोती तोड़ा तो उसमें से सीप निकली।
'tu hi tu'......hu tu tu ......
जवाब देंहटाएंjeh-nasib..
salam.
आपकी लेखन शैली प्रभावशाली है ...
जवाब देंहटाएंवैसे .. तू से शुरू हुवा संबोधन (आवारगार्दी करते हुवे) धीरे धीरे जानपहचान के बाद आप ... आप से तुम और फिर अंत में तू पर ही आ के टिकता है .... तो तू की माया तो है ही ....
तू मेरी मंजिल ..तू मेरा ठिकाना ...अरे पगले समझ ले कहाँ तुझे जाना
जवाब देंहटाएंतू तो संस्कृत के त्वम से आया विशुद्ध भारतीय शब्द है.तू को विषय बनाकर इतना सुंदर लेख लिखा जा सकता है सोचा नहीं था.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा ,..
जवाब देंहटाएं@ ललित भाई ,
जवाब देंहटाएंबोल्ड लेटर्स में गज़ब की चार लाइन जोड़ी हैं :)
@ संजय झा जी
स्वागत है !
@ दिगंबर नासवा साहब ,
सकारात्मक प्रतिक्रिया रही आपकी ! बहुत आभार !
@ केवल राम जी ,
सब समझ का ही फेर है :)
@ घुघूती जी ,
शुक्रिया !
@ शरद भाई ,
सही !
अभी दो दशक पहले तक तो हम भी घर में तुम कह के बतिया लिया करते हैं ....पर अब तो बड़ा मुश्किल है जी ! कहिये तो अपने खूंटे की गाय से ही शुरू करें :) पर कहीं ??
जवाब देंहटाएं@ अपने खूंटे की गाय :)
जवाब देंहटाएंहां हां भाभी जी ही ठीक रहेंगी वहां रिस्क कम है :)
रिस्क तो वहाँ ...सबसे ज्यादा है ...पर थाप दूर तक सुनाई दे ..इसकी संभावना सबसे कम !
जवाब देंहटाएं:)
थाप की गूँज ही भंडाफोड करती है इसलिए यही मार्ग निरापद लग रहा है :)
हटाएंबेहतरीन आलेख
जवाब देंहटाएंइक ज़रा से लफ्ज़ में सारा जहां किस क़दर खूबसूरती से छिपा है, इस विमर्श के जरिए जानकर खुशी हुई।
बोलने में भी सीधे दिल की तलहटी से गूंज उठती है तू की , इसके मुकाबिल आप की अदायगी ऊपर गले से ही रस्म निभाती सी लगती है सो तू का तीर असर करता है