मुद्दतों पहले की बात है, जब नॉर्स देवताओं के दो कुनबे
होते थे । एक तो वे जो, एसर यानि कि, पुराने नॉर्स देवता थे, जिनमें, विली, वे और ओडिन
प्रमुख थे, जबकि दूसरा कुनबा वनीर देवताओं का था, जिनमें समुद्रों के देवता नजोर और
उसकी दो बेटियां, फ्रेया और फ्रीयर शामिल थे । सामान्यत: यह माना जाता है कि, वनीर
समूह के देवता, खेती और उर्वरता के देव थे जबकि एसर देवता, शक्ति और युद्ध के देवता
थे । इन दोनों समूहों में अक्सर युद्ध होता रहता और वे एक दूसरे को बंदी बनाते फिर
संधि होने पर छोड़ते रहते । एक बार फ्रेया और फ्रीयर के बंदी बनने का उल्लेख भी
मिलता है । कहते हैं कि, एक पुरातन नॉर्स देव मिमिर जोकि, अपने ज्ञान के लिए
प्रसिद्ध था । उसने दोनों कुलों के मध्य युद्ध
रोकने के लिए एक सुझाव दिया कि, वनीर देवताओं में से फ्रेया, एसर देवता ओडिन से
ब्याह करे, तो दोनों कुलों में स्थाई युद्ध बंदी हो जाएगी । हालांकि फ्रेया ने मजबूरी
में ही सही, यह ब्याह कर लिया, लेकिन उसने कभी भी इस समाधान को पेश करने वाले मिमिर
को क्षमा नहीं किया ।
उसे मालूम था कि, युद्ध और रक्तपात रोकने के लिए यह समाधान,
दोनों पक्षों के दरम्यान, स्थाई शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है । वो अपने कुल के
परंपरागत शत्रु ओडिन से प्रेम नहीं करती थी लेकिन वो, ज्ञान के देवता मिमिर के
सुझाव पर हिंसा और रक्तपात को रोकने के लिए ओडिन से ब्याह करने के लिए राजी हो गई,
भले ही उसके मन में मिमिर के प्रति दुर्भावना बनी रही । उसका, ओडिन से ब्याह युद्ध
टालने वाले समझौते के तहत किया गया था, अतः नवदंपत्ति के आपसी संबंधों में प्रेम
और आसक्ति की खोज करना व्यर्थ है । बहरहाल ओडिन और फ्रेया के समागम से बालदुर नाम के, बहादुर
राजकुमार का जन्म हुआ, लेकिन फ्रेया इस शादी से अब भी, संतुष्ट नहीं थी । वो अपने पति
की लालसाओं के कारण से तनाव में आ गई थी और जैसे ही उसे यह पता चला कि, भविष्य में
उसके बेटे की जान खतरे में पड़ सकती है, तो उसने बालदुर को अजेय बनाने के लिए उस
पर जादू करने का फैसला किया । उसके जादू से बालदुर को कोई दर्द नहीं हुआ, लेकिन वो
चाहता था कि, उसे इस जादू से मुक्त रखा जाए ।
उसकी मां फ्रेया ने उसके अक्षय जीवन को ध्यान में रखकर उससे
यह झूठ बोला था कि, वह कालांतर में इस जादू से मुक्त हो सकता है । कहते हैं कि, बालदुर
लंबे समय तक जादू तोड़ने का तरीका खोजता रहा जोकि, उसे कभी मिला ही नहीं । इधर शादी के बाद फ्रेया वल्क्रीज कही जाने वाली अप्सराओं
की मुखिया बन गई जोकि ओडिन की सेवकायें थीं और जो युद्ध के समय मारे गए योद्धाओं
की आत्मा को दिशा दिखाने का कार्य करती थीं । चूंकि फ्रेया तनाव में थी और अपने
ब्याह के प्रति उसमें गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था तो उसने ओडिन से अपनी शादी तोड़
दी । जिसके कारण एसर समूह के देवता नाराज हो गए, खासकर थोर ने वनीर पक्ष के अनेकों
दिग्गजों को बेरहमी से मार डाला । उसने देवी फ्रेया को श्राप दिया कि, वह कभी भी
अपनी ससुराल को छोड़ नहीं पाएगी तथा किसी जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुंचा
पाएगी । थोर ने सभी अप्सराओं को छोड़कर फ्रेया के पंख छीन लिए ।
उस समय ज्यादातर लोग यह मानने लगे थे कि, फ्रेया में उसके
कुनबे की खेती और उर्वरता जैसे देवत्व की भावना के स्थान पर एक योद्धा जैसी भावना
निहित हो गई हैं । थोर की बंदिशों के बावजूद फ्रेया जानती थी कि, उसकी ससुराल की अभेद्य
दीवारों में एक गुप्त कमजोरी भी है, इसलिए वो वहां से निकल भागी और उसने एक विशाल
कछुए के साथ नाइन झील में निवास करना प्रारंभ कर दिया । उसी समय उसने एक शूकर देवता
से भी मित्रता की, जो ये भूल गया था कि, वह वास्तव में शूकर नहीं है । दरअसल यह
कथा प्रेम कथा नहीं है बल्कि ओडिन और फ्रेया
के मध्य एक संधि तथा संधि के एवज में फ्रेया के साथ ओडिन के सहवास की कथा है ।
फ्रेया इस संधि और दाम्पत्य सम्बन्ध से मुक्ति चाहती थी, क्योंकि वह इस ब्याह के
लिए पहले ही अनिच्छुक थी । ससुराल से मुक्त हुई, फ्रेया को बाद में पकड़कर ससुराल
वापस ले जाया गया । उसे फिर कभी, किसी ने नहीं देखा और चिंता यह है कि, वह मर खप
गयी होगी ।
यह आख्यान जर्मन मूल के लोगों में प्रचलित है । इसके
मुताबिक नॉर्स देवताओं के दो अलग-अलग वैचारिक समूह थे, एक खेती और उर्वरता का तथा दूसरा
युद्ध और शक्ति का । उनमें युद्धों की निरंतरता थी, जिनके कारण से रक्तपात और मृत्यु की अपरिहार्यता के संकेत यह
कथा देती है । इस कथा में एक ही मूल के देवताओं में पारंपरिक दुश्मनी का विचार नया
नहीं है, क्योंकि यह पूरी दुनिया में दृष्टव्य सह प्रचलित सत्य है । ज्ञान के नॉर्स
देवता मिमिर इस रक्तपात से मुक्ति चाहते हैं और वे इसके लिए संधि का प्रस्ताव देते
हैं, जिसके तहत एक पक्ष दूसरे पक्ष के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर लेता है और फिर
उभय पक्ष शांति के साथ रह सकते हैं । कथा में वनीर देवता समूह में से फ्रेया इस
संधि से प्रसन्न नहीं है, लेकिन उसके पास अन्य कोई मार्ग भी नहीं है । अतः वह दुश्मन
पक्ष के देवता ऑडिन से विवाह करने के लिए सहमत तो होती है, लेकिन इसमें उसकी
अनिच्छा भी सम्मिलित है । वह इस तरह का सुझाव देने वाले देवता मिमिर से अप्रसन्न
है । संभवत इसका कारण यह हो कि, एक युवती के रूप में उसकी अपनी अस्मिता, अपनी
पहचान है और वो अपने अनुकूल वर या प्रेमी की कामना करती होगी, लेकिन युद्ध ने उसके
ऊपर एक नई तरह की संधि आरोपित कर दी ।
जिसमें उसे न केवल अनिच्छा से, पति का चयन करना पड़ा बल्कि उसके
साथ अनेकों वर्ष तक दैहिक संबंध भी स्थापित करना पड़े । क्या यह उचित है कि, किसी
युवती की अनिच्छा के बावजूद, उस पर कोई वर थोप दिया जाए, जोकि उसके ना चाहने पर भी उसकी देह का,
इस्तेमाल करे । बहरहाल इस विवाह में प्रेम नहीं था, किंतु अनचाहे सहवास से एक बहादुर
बच्चे का जन्म होता है । जिसकी मृत्यु की भविष्यवाणी को ध्यान में रखकर फ्रेया,
अपने पुत्र पर जादू करती है, ताकि वह अनश्वर और अजेय बना रहे, जबकि बच्चा अपनी
बहादुरी के चलते, इस जादू से मुक्त होना चाहता है । यह कथा असल में युद्ध रोकने और
शांति की कथा तो है, लेकिन इसमें एक युवती की अस्मिता का सौदा भी सम्मिलित है । युद्ध
रोकने के लिए उसका इस्तेमाल होता है, भले ही वह इस संबंध को पसंद नहीं करती । पूरी
दुनिया का इतिहास, ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहां स्त्रियों देह की बर्बर लूट किया
जाना अथवा युद्ध को रोकने के लिए वैवाहिक संबंधों की स्थापना किया जाना हो । इस
अर्थ में यह आख्यान धरती के इतिहास का पुनः प्रकटीकरण करता है । स्पष्ट तथ्य ये
कि, पुरुष युद्ध तो लड़ते हैं पर उनके युद्धों का अंत, स्त्रियों की देह पर बलात
कब्जे और सहवास पर निहित होता है ।
यह अजीब बात है कि, वे लोग, युद्ध के स्थान पर शांति के
लिए, भूखंडों और अन्य किसी वैकल्पिक उपाय की तुलना में स्त्रियों देह की गारंटी को
प्राथमिकता क्रम में रखते हैं । संभव है कि, स्त्रियों में निहित प्रेम तत्व या
सामर्थ्य के आधार पर यह विश्वास किया जाता
हो कि, आगे चलकर हिंसा नहीं होगी ? क्या
यह उचित है कि, शांति और अहिंसा के नाम पर स्त्रियों की इच्छाओं का दमन कर दिया
जाए । फ्रेया व्यक्तिगत रूप से ऑडिन के प्रेम में नहीं थी, किंतु अपने देश के
सम्मुख आन पड़ी, विपत्ति के निवारण के लिए उसे समझौता करना पड़ा । चूंकि वो समझौते
के पति ओडिन की लालसाओं से विरक्त थी । इसलिए उसने एक विशिष्ट समय में संधि के
मार्ग को त्याग कर, वैवाहिक सम्बन्ध को तोड़ने का मार्ग चुना और ओडिन से अपने
ब्याह को तोड़ दिया । हालांकि उसका यह निर्णय विलंब से लिया गया निर्णय था, अगर वह
चाहती तो ब्याह से पहले भी यह निर्णय ले सकती थी । संभव है कि, उस समय वह और उसकी
बहन, एसर कुनबे के देवताओं की बंदिनी थीं और बंदिनी के तौर पर जीवन जीने के बजाय
स्वयं की मुक्ति चाहती हो । हो सकता है कि, उसने संधि के समय, स्वयं के कुनबे की
सुरक्षा के लिए, अपनी इच्छाओं को हाशिए पर डाल दिया हो ?
आख्यान से स्पष्ट संकेत मिलता है कि, ब्याह टूटने और संधि टूटने में कोई अंतर नहीं था । अतः एसर समूह के देवताओं ने सम्बन्ध टूटने के बाद काफी हिंसा की और देवी फ्रेया को बंदी बनाए रखने का जतन किया । उन्होंने चाहा कि, वह अपनी ससुराल का परित्याग ना कर सके । यहां तक कि, एसर समूह के देवता ओडिन की सेविका, अप्सराओं को छोड़कर उसके पंख भी छीन लिए गए, किंतु फ्रेया उस परिवार की निर्बलताओं को जानती थी, अतः वो वहां से भाग निकली और जल में रहने वाले विशाल कछुए के साथ निवास करने लगी । स्मरण रहे कि, उसके पिता नेजोर स्वयं, जल के देवता थे । इस कथा में एक दिलचस्प उल्लेख यह है कि, एक भुलक्कड़ देवता जो यह भूल गया है कि, वह शूकर नहीं है किन्तु स्वयं को शूकर समझता है । उसकी मित्रता फ्रेया से हो जाती है । दुर्भाग्यवश फ्रेया पकड़ी जाती है और उसे पुनः ससुराल में बंदी बना लिया जाता है । मुमकिन है कि उसे मृत्यु का मुख देखना पड़ा हो क्योंकि बाद में उसे किसी ने देखा नहीं । इस आख्यान में देवताओं के संघर्ष लगभग वैसे ही है जैसे वास्तव में नश्वर मनुष्यों और राजाओं के संघर्ष हो सकते हैं । जमीनों के लिए । स्त्रियों के लिए । उनकी संधियां भी वैसी ही है, जिनमें स्त्रियों की अस्मिता का कोई मोल नहीं होता...