सोमवार, 3 जुलाई 2023

ईस्टर


ईस्टर, प्रेम, कामुकता, राजनीति, सामाजिक न्याय, पर्यावरण, उर्वरता, अन्न भण्डार और युद्ध की देवी है जोकि, मेसोपोटामिया की बहुदेववादी  सभ्यता की सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवी है । उसे शुक्र तारे की देवी भी कहते हैं । वह चंद्रमा के देवता नन्ना और नरकट, सरकंडों की देवी निंगाल की पुत्री है । देवता के रूप में पूज्य तम्मुज़ से उसका विवाह हुआ था । खूबसूरत और युवा तम्मुज उर्वरता, प्रकृति में नवजीवन, वसंत और चरवाहों का देवता है । शुक्र की देवी और वसंत के देवता के मध्य यह विवाह स्वभाविक था, किन्तु पति तम्मुज़ के साथ आनंदमय समय गुजारते हुए, ईस्टर के दाम्पत्य जीवन में ग्रहण सा लग गया जबकि, उसके पति तम्मुज को डाकुओं ने मार डाला और उसके निधन पर गहन शोक व्यक्त करते हुए जब ईस्टर, पाताल लोक जाती है तो उसे, उसकी बहन देवी इरिश्कगाल द्वारा मार दिया जाता है । ईस्टर और तम्मुज़ के दरम्यान गहरी मुहब्बत तो थी, लेकिन तम्मुज़ के अनुयायियों का मानना था कि, ईस्टर, अपनी बहन इरिश्कगाल के द्वारा मारी नहीं गयी थी बल्कि, वो सहज ही पाताल लोक गयी थी, जहां उसकी युद्ध आकांक्षा, राजनीतिक चातुर्य सह अन्यान्य कारणों से सशंकित, इरिश्कगाल ने उसे बंदी बना लिया था । 

ईस्टर लम्बे समय तक बंदिनी की स्थिति में नहीं रहना चाहती थी, इसलिए पाताल लोक से, देव लोक में आने से पहले, अपनी सकुशल वापसी और पुनरुत्थान के नाम पर, अपने पति तम्मुज़ को बलि के रूप में पेश करती है । इन हालात में वह या तो डाकुओं द्वारा मारे गए तम्मुज़ की विधवा है या स्वयं की रिहाई की ख्वाहिश के लिए, अपने पति तम्मुज का बलिदान करने वाली स्त्री । तम्मुज की मृत्यु के फ़ौरन बाद वह मेसोपोटामिया के नायक तुल्य गिलगमेश से अपने ब्याह की पेशकश करती है, लेकिन गिलगमेश, उसकी बेइज्जती करता हुआ, उससे ब्याह करने से इंकार कर देता है । अपनी बेइज्जती और तिरस्कार से तिलमिलाई हुई ईस्टर, गिलगमेश की हत्या के लिए स्वर्ग के बैल को भेजती है, जिससे गिलगमेश का प्रिय साथी, एन्किडु मारा जाता है । कथानुसार ईस्टर झंझावात की देवी भी है, जिसे प्यार करने में उतना ही आनंद आता है, जितना कि युद्ध करने में, उसके पास सभी महान दिव्य शक्तियां हैं और वह स्वयं को, स्वर्ग के पवित्र सिंहासन के योग्य मानती है ।

वो अपने सौंदर्य से अभिभूत करने वाली किन्तु असहमति या क्रोध के समय,भयंकर देवी है,जो सात शेरों पर चढ़कर युद्ध करती है । वह बुद्धिमान भी है और राजनीतिक तौर तरीकों से अपने विरोधियों को पछाड़ने में सक्षम भी । वो जानती है कि, शताब्दियों के बाद दुनिया में उसका वर्चस्व क्षीण हो जाएगा, लेकिन प्रेम की देवी के रूप में वह दुनिया की स्त्रियों और पुरुषों के दिलों और देहों में हमेशा हमेशा राज करेगी । एक सामर्थ्यशील देवी के रूप में मेसोपोटामिया में उसके अनेकों मंदिर हैं, जहां पर पुजारी, विवाह संस्कार के लिए ईस्टर की पूजा करते हैं और संतानहीन लोग, उसका आशीर्वाद लेने आते हैं, भले ही और वो स्वयं एक अच्छी पत्नी सिद्ध नहीं हुई किंतु उसे प्रेम और सहवास की प्रथम देवी माना जाता है । जो तम्मुज़ की मृत्यु के फ़ौरन बाद गिलगमेश से नए तरीके से ब्याह करने तैयार हो जाती है ।

यह आख्यान वर्तमान इराक की दजला और फरात नदियों की भूमि पर हजारों साल पहले मौजूद सभ्यता के बहुदेवता वाद की कथा है । जिसकी नायिका ईस्टर, चांद के देवता और धरती पर सरकंडों की देवी की संतान है । वो एक ही समय में भयंकर, युद्ध पिपासु और क्रूर दिखने वाली देवी है तो उसके समानांतर प्रेम, सहवास और उर्वरता की बेहद खूबसूरत देवी है । इस आख्यान से ईस्टर के दैवीय रूपों की विविधता आश्चर्य चकित करती है, जहां वो अपने सुन्दर पति तम्मुज़ से अटूट प्रेम करती है, वहीं पाताल लोक से अपनी मुक्ति के नाम पर तम्मुज़ की बलि चढाने से भी नहीं चूकती । सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि, ईस्टर के पास केवल प्रेम और कामुकता सह उर्वरता मात्र की शक्तियां थीं किन्तु समय के साथ जन मानस में यह विश्वास गहरा गया कि, उसके पास युद्ध, राजनीतिक चातुर्य, पर्यावरण, न्याय और अन्न भंडारण की शक्तियां भी मौजूद हैं । आख्यान से यह धारणा प्रबल होती है कि, प्रेम की देवी कालांतर में युद्ध और संहार की देवी भी बन जाती है । उसके सामर्थ्य का विस्तार मानव जीवन को प्रभावित करने वाले बहुआयामों में दिखाई देने लगता है ।

जन समुदाय उसे, प्रथम दृष्टया, प्रेम और संतानों के लिए, पूजता है तथा उसकी अन्यान्य शक्तियों से भयभीत भी रहता है। इस कथा का एक दिलचस्प पहलू ये है कि, प्रेम, सहवास और उर्वरता को लेकर वो ग्रीक देवी अफरोडाइट जैसी दिखती है। अफरोडाइट की तरह से वो भी शुक्र तारे की देवी गोया वीनस है । कथा में देवताओं और देवियों के मध्य ईर्ष्या द्वेष और एक दूसरे को पीछे छोड़कर, ज्यादा से ज्यादा अधिकार पा लेने की होड़ दिखाई देती है, जिसका उदाहरण ये है कि, स्वयं ईस्टर की बहन इरिश्कगाल उससे सशंकित है और उसे सहज मिलन के दौरान बंदी बना लेती है और उसे तब मुक्त करती है, जब वो अपने पति तम्मुज़ के प्राण वहां गिरवी रख देती है । तम्मुज़ से उसे प्रेम था लेकिन तम्मुज़ की याद में विरह के लम्बे समय को गुज़ारने के बजाय, वो दूसरे ब्याह आकांक्षा रखती है और मेसोपोटामिया के नायक गिलगमेश द्वारा उसका प्रणय निवेदन ठुकराए जाने से इतना क्रुद्ध हो जाती है कि, वह उसकी हत्या का प्रयास भी करती है । 

स्पष्ट है कि, बतौर देवी उसका व्यक्तित्व, चिंतन और व्यवहार धरती के साधारण नश्वर मनुष्यों के जैसा है, लगभग यही स्थिति इरिश्कगाल की भी है । अतः देवी देवताओं को मनुष्यों की मानस संतान माने जाने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है । कम-ओ-बेश यही बात देवी अफरोडाइट के प्रकरण से भी मुखरित हुई थी । कहने का आशय यह है कि, चाहे ग्रीक देवी देवता हों या मेसोपोटामियाई देवी देवता वे सभी आचरण और चिंतन में नश्वर मनुष्यों से भिन्न नहीं है । इस आख्यान में युद्ध की देवी के रूप में, युद्ध के समय, ईस्टर का रौद्र रूप और सात बड़े शेरों की सवारी का कथन, भारतीय परिदृश्य में सिंहों पर आरूढ़ देवी की छवि से अद्भुत साम्य रखता है । यानि कि मेसोपोटामियाई देवी का उल्लेख भारतीय दृष्टान्तों के जैसा । यह कथा देवी ईस्टर के बढ़ते, सामर्थ्य विस्तार, प्रभाव, समानांतर सुन्दरता और रौद्र रूप , प्रेम और हिंसा, स्वयं की मुक्ति के लिए पति की बलि, दूसरे ब्याह की तत्परता, अवसरवादिता, संसार में अन्न और पर्यावरण की बेहतर स्थिति, जैसे विरोधाभासी, कथनों से भरी पड़ी है ।

कहते हैं कि, देवी ईस्टर को यह भान था कि, देर सवेर जनमानस पर उसका प्रभाव, क्षीण होता जाएगा, किन्तु वह प्रेम, कामुकता, उर्वरता और युद्ध प्रियता के हवाले से धरती पर हमेशा मौजूद रहेगी और धरती पर धर्म और संस्कृति को सदैव प्रभावित करती रहेगी । फिलहाल दुनिया के हर छोर में प्रेम है, बलात्कार भी, युद्ध और घृणा सह धर्म और संस्कृति नामित, भयावह पुनरुत्थानवाद भी, जो समय के कैनवास को नूर से बेनूर करता चलता है, और धरती के लोग देखते हैं, मुड़ मुड़ कर...