वर्षों पहले पर्सिया में सैम नाम का एक बहादुर योद्धा रहता जोकि
संतानहीन था । उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि, वह उसे और उसकी सुन्दर पत्नी को संतान
का उपहार दे । कुछ अर्से के बाद उसकी पत्नी गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को
जन्म दिया जो स्वस्थ तो था, लेकिन उसकी त्वचा और बालों की रंगत दूध जैसी सफेद थी ।
जब सैम ने अपने पुत्र को देखा तो उसे ईश्वर के ऊपर बहुत गुस्सा आया । उसे लगा कि, ईश्वर
ने उसे पुत्र के बजाये दंड दिया है, इसलिए उसने ज़ाल नामित पुत्र से छुटकारा पाने
का निर्णय लिया और उसे अलबुर्ज नाम के पहाड़ की चोटी पर मरने के लिए छोड़ आया । वहां
पर सिमोर्घ का नाम का सुंदर, विशाल और बुद्धिमान पक्षी, घोंसला बनाकर रहता था । उसने
शिशु ज़ाल को उठाया और अपने घोंसले में ले जाकर अपने चूजों को खिलाने की बात सोची, लेकिन
उसे बच्चे की सूरत देखकर, उस पर दया आ गई और उसने ज़ाल को गोद ले लिया और अपने घोंसले
में रखकर पालने लगा ।
कुछ साल बीते और ज़ाल एक सुंदर युवक बन गया, अलबुर्ज पहाड़
पर जाने वाले लोगों ने उसकी एक झलक देखी थी, जिसकी खबरें सैम तक पहुंची, लेकिन
उसने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया । फिर एक रोज उसने सपना देखा कि कोई व्यक्ति
उससे कह रहा है कि, तुम्हारे घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ है । सैम ने जागते ही
बुद्धिमान सलाहकार से अपने सपने का अर्थ पूछा, तब सलाहकार ने बताया कि, दुनिया में
सभी तरह के जीव जंतु अपने बच्चों को प्यार करते हैं, चाहे वह कैसे भी दिखते हों, लेकिन
तुमने अपने पुत्र को इसलिए छोड़ दिया कि,उसके बाल और त्वचा की रंगत सफेद है । तुम
खुद के सफ़ेद बालों को देखो और कहो, क्या यह पाप है ? तब सैम को अपनी मूर्खता का अहसास
हुआ और वह अलबुर्ज पहाड़ पर जा पहुंचा, उसने सिमोर्घ से अनुरोध किया कि, वह उसे,
उसका पुत्र लौटा दे, हालांकि यह निर्णय उस
विशाल पक्षी के लिए दुखदाई था ।
सिमोर्घ को लगा कि अपने कृत्य पर पछता रहे, पिता को उसका पुत्र
सौंपना ही बेहतर होगा। हालांकि ज़ाल अपने पालक पिता के घर को नहीं छोड़ना चाहता था,
लेकिन सिमोर्घ ने उसे तीन पंख देकर विदा किया और कहा कि, अगर तुम्हारा पिता अगर
तुम्हें धोखा देता है, तो तुम मेरे पंखों में से, एक को पवित्र अग्नि में डाल देना,
मैं तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा । कुछ समय बाद पर्सिया में, ज़ाल को उसके सुडौल शरीर
के साथ ही साथ, एक कुशल योद्धा के रूप में विकसित होते हुए देखा गया, जिसकी ख्याति काबुल की राजकुमारी रुदाबा के
कानों तक जा पहुंची । ज़ाल के व्यक्तित्व के बारे में सुनकर उसे, ज़ाल से प्यार हो
गया और उसने शपथ ली कि, वह ज़ाल से ही ब्याह करेगी।इसके बाद उसने,अपनी नौकरानी को बहुत
सारा धन और उपहार देते हुए, एक पत्र दिया,जिसे ज़ाल तक पहुंचाया जाना था। जब ज़ाल ने
वो पत्र पढ़ा,तो वह बहुत प्रभावित हुआ, वैसे भी उसने काबुल की राजकुमारी की
सुंदरता की बहुत चर्चा सुनी थी,अतः वो स्वयं भी राजकुमारी रुदाबा से प्रेम करने
लगा था ।
उसने तय किया कि, वह रुदाबा तक पहुंचेगा और उससे मिलेगा । उसे
पता चला कि रूदाबा, महल के सबसे ऊपरी कक्ष में रहती है । सबसे छुपते छुपाते वो
रुदाबा के महल के नीचे पहुंच गया । कहते हैं कि, ज़ाल को अपने कमरे में लाने के लिए
रुदाबा ने अपने लंबे बाल नीचे लटका दिए थे । जिनके सहारे ज़ाल रुदाबा तक पहुंच गया
और उसे देख कर, उसने तय किया कि, वह रुदाबा से ही ब्याह करेगा । हालांकि यह काम
आसान ना था क्योंकि रुदाबा के पिता मूर्तिपूजक थे और पर्सिया के राजा भी इस विवाह
के लिए राजी नहीं थे, वैसे भी काबुल और पर्सिया परस्पर शत्रु राज्य थे । इसलिए
दोनों राज्य हमेशा युद्ध की स्थिति में बने रहते । लेकिन इस मामले को लेकर युद्ध
प्रारंभ होने से पहले ही ज्योतिषियों ने ग्रहों की चाल देखी और कहा कि, यह जोड़ी
बहुत शानदार होगी और इनके ब्याह का विरोध ना किया जाए, क्योंकि इन दोनों के संयोग से
एक अपराजेय पुत्र का जन्म होगा, जोकि दुनिया का सबसे बड़ा योद्धा होगा और उसकी ख्याति,
दुश्मनों में दहशत पैदा कर देगी ।
बहरहाल दोनों राजा उनके ब्याह के लिए तैयार हो गए और बड़ी
धूमधाम से रुदाबा और ज़ाल की शादी कर दी गई । कुछ महीने बाद रुदाबा को प्रसव पीड़ा
हुई और लगा कि, वह बच्चे को जन्म देने से पहले ही मर जाएगी । तब ज़ाल को याद आया कि,
सिमोर्घ ने उसे पंखों का उपहार दिया था । उसने आग जलाकर, तीन में से एक पंख को आग
की लपटों में डाल दिया तो आसमान में तूफ़ान सा छा गया इसके बाद सिमोर्घ ज़ाल के पास
पहुंच गया । सिमोर्घ ने दवा बनाने का सामान देते हुए राज्य के चिकित्सकों को जरूरी
निर्देश दिए, जिसके जादुई असर से रुदाबा ने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया । जिसका
नाम रुस्तम रखा गया और जो पर्सिया का सबसे महान योद्धा कहलाया ।
यह आख्यान वर्तमान समय में ईरान और अफगानिस्तान के, अतीत कालीन कुलीन वर्ग को संबोधित है और यह कुलीन वर्ग राजतांत्रिक समाज का हिस्सा है, भले ही वो, एक दूसरे का शत्रु है । यह शत्रुता उपासना पद्धति की विभिन्नता पर आधारित है। दोनों कुलीन समुदाय अपने अपने मतानुसार ईश्वर की आराधना पर विश्वास करते हैं । जो उनकी पारस्परिक शत्रुता का कारण है । धर्म पर विश्वास करने वाले इन दोनों अभिजात्य समुदायों में, जादू टोना अथवा ज्योतिषीय परामर्श या धार्मिक दक्षता प्राप्त सलाहकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है । कथा के अनुसार नायक, ज़ाल का पिता नि;संतान है और संतान के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है, लेकिन नवजात संतान की शारीरिक एवं केश धवलता, उसे, उसकी अपेक्षा के अनुसार संतुष्टि नहीं देते तथा वो उस ईश्वर से नाराज हो जाता है, जिसने उसे पुत्र का उपहार दिया है । वह योद्धा है । उसकी पत्नी सुंदर है लेकिन उसमें, अपनी श्वेत त्वचा और केश रचना वाली संतान के, प्रति घृणा का भाव है । वह अपने मनोनुकूल संतान नहीं पाकर दुखी है और अपनी नवजात संतान के नामकरण के साथ ही उसे एक पहाड़ की चोटी पर छोड़ देता है, ताकि उसकी मृत्यु हो जाए ।
यह एक कठोर निर्णय है जोकि, राजतांत्रिक समाजों की पहचान है
। जहां युद्ध और मृत्यु सामान्य तथा सहज घटना होते हैं । अतः स्वयं के नवजात शिशु
को मरने के लिए छोड़ देना, उस कुलीन समुदाय में कोई विशेष घटना नहीं मानी गई होगी,
ऐसा प्रतीत होता है । कथा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है कि,एक बुद्धिमान और
विशालकाय परिंदा पहाड़ की चोटी पर अपने चूजों के साथ घोंसला बनाकर रहता है तथा वह नवजात शिशु
के प्रति सहानुभूति का भाव रखते हुए उसे गोद ले लेता है । उसे पालता है । कहने का
आशय यह है कि, नायक का पिता, मनुष्य होकर भी अपनी संतान का परित्याग केवल इसलिए कर
देता है कि, वह देखने में उसकी इच्छाओं के जैसा नहीं है, जबकि परिंदा अपने कुल की
तुलना में विजातीय नवजात को गोद लेकर युवा होने तक पालता है । स्पष्ट कथन यह है कि,
राजतांत्रिक समाजों में, अभिजात्यों में क्रूरता के अंश बहुतायत से मिलते हैं जबकि
अन्य जीव जंतु या परिंदे अपेक्षाकृत सहृदय होते हैं ।
कथा के अनुसार नायक को अपने पिता की तरह से बलशाली, युद्ध प्रिय,
युद्ध निपुण होना चाहिए । बहरहाल जवान हो चुके नायक के बारे में पर्वतारोहियों से सुन
कर, पिता को अपने पूर्व निर्णय पर पछतावा होता है और वह उसे, उसके पालक पिता यानि
कि विशालकाय बुद्धिमान परिंदे से वापस मांगने पहुंच जाता है । नायक अपने पिता के
व्यवहार के प्रति सशंकित है, किंतु आख्यान में एक दिलचस्प और सांकेतिक कथन यह है कि,
पालक पिता पक्षी, नायक को आश्वस्त करता है कि, संकट के समय, याद किए जाने पर, वह उसकी
सहायता के लिए अवश्य पहुंचेगा । यानि कि, उसने जिस संतान का पालन पोषण किया है,
उसके भविष्य का संरक्षण भी वह करेगा । इस आशय की घोषणा वह करता है, भले ही कथा
में, इस घोषणा की गारंटी के तौर पर, जादुई पंखों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें नायक
की आश्वस्ति से जोड़कर देखा जाना चाहिए । इसके उपरांत नायक अपने जैविक पिता के साथ
रहता तो है, लेकिन उसकी उम्र रूमानियत की उम्र है और उसने काबुल की राजकुमारी रुदाबा
के सौंदर्य के विषय में बहुत कुछ सुन रखा है ।
वह रुदाबा के प्रति प्रेम का भाव रखता है, लगभग इसी तरह से,
उसकी युद्ध कला में दक्षता तथा शारीरिक सौष्ठव के किस्से सुनकर, कथा की नायिका भी,
उसके प्रति अनुरक्त है । नायिका और नायक के मध्य एक दूसरे की ख्याति को सुनकर, एक
दूसरे के प्रति प्रेम का भाव रखने का संकेत इस कथा में मिलता है । कथा में, नायिका
के सौंदर्य के प्रतीक के तौर पर उसके लंबे केशों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें वह,
नायक को अपने कक्ष तक पहुंचाने के, आशय से नीचे लटका देती है । इस आख्यान का
महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि, प्रेम की पहल नायिका स्वयं करती है । वो अपनी सेविका को
धन, उपहार आदि देकर, नायक को देने के लिए एक प्रेम पत्र सौंपती है । नायिका की यह
पहल कुलीन समाज में महत्वपूर्ण मानी जानी चाहिए । नायक दोनों राज्यों की शत्रुता
की परवाह किए बगैर अपनी नायिका से मिलने जा पहुंचता है और दोनों ही अपनी वैवाहिक
जिंदगी शुरू करने का निर्णय ले लेते हैं । आरंभिक तौर पर दोनों राज्य इस निर्णय के
विरुद्ध हैं, किंतु ज्योतिषीय परामर्श, विरोध के इस निर्णय को बदल कर दोनों राज्यों
में सहमति का माहौल बनाता है ।
अंततः नायक, नायिका पति, पत्नी हो जाते हैं । भले ही उनकी
पैतृक धार्मिक आस्थायें परस्पर भिन्न है, किंतु प्रेम प्रबल है और ज्योतिषीय
परामर्श, शत्रुता पर भारी है । लेकिन इस परामर्श का आधार बिंदु, पुनः शारीरिक
दक्षता वाले रुस्तम के जन्म पर आधारित है । जो दुनिया का सबसे पराक्रमी योद्धा
होने वाला है । अतः ज्योतिषीय परामर्श, प्रेम से अधिक योद्धा के जन्म के मार्ग को प्रशस्त
करता दिखाई देता है । कथा के अंत में उल्लेख है कि, नायिका गर्भवती है और उसे प्रसव
के समय में बहुत कष्ट हो रहा है । तब नायक अपने पालक पिता परिंदे को आहूत करता है
और उसकी मदद से, चिकित्सा लाभ लेकर नायिका, एक विश्व योद्धा संतान को जन्म देती है
। कुल मिलाकर कथा में सौंदर्य, युद्ध की निपुणता तथा कुलीनता को महत्वपूर्ण माना
गया है और इसके लिए, राजकुलों की निर्भरता, धार्मिक सलाहकारों पर आधारित है । कथा
के नायक नायिका परस्पर प्रेम करते हैं किंतु उनके प्रेम की सफलता का आधार
ज्योतिषियों की गणना और विजातीय पालक पिता परिंदे की बुद्धिमत्ता और चिकित्सकीय
परामर्श है अन्यथा यह कथा सुखद कथा नहीं हो सकती थी।