पिरामस और थिस्बे पड़ोसी थे और बचपन से ही एक दूसरे को
जानते थे, हालांकि उनके परिवारों में दुश्मनी थी और उन दोनों परिवारों ने अहाते के
बीच में एक दीवार खड़ी कर दी थी, ताकि वे एक दूसरे के संपर्क में ना रहें । बहरहाल
पिरामस और थिस्बे बचपन से ही, एक दूसरे के
प्रति आकर्षित थे और जवान होते होते, उनका आकर्षण, प्रेम में बदल गया । वे एक
दूसरे के साथ इशारों में बात करते, लेकिन किसी सार्वजनिक स्थान पर बात करने से
डरते, क्योंकि उनकी जग हंसाई का खतरा था । उन्हीं दिनों, उनके कस्बे में एक हल्का
सा भूकंप आया, जिसकी वजह से उनके घर की विभाजन रेखा पर खड़ी दीवार में एक हल्की सी
दरार पैदा हो गई, जिसमें एक नन्हा सा छेद भी था । भूकंप भले ही प्राकृतिक आपदा था,
लेकिन इन दोनों प्रेमियों के लिए संपर्क का द्वार खोल गया । उन्होंने दीवार के छेद
का इस्तेमाल आपसी बातचीत के लिए किया । वे जानते थे कि, उनके परिवार एक दूसरे के
लिए नफरत के भाव रखते हैं, इसलिए उन्हें यह पक्का पता था कि, दोनों परिवार उनके
प्रेम संबंध को किसी भी तरह से स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए उनके दरम्यान जो भी
बातचीत थी, वह छुप छुपाकर थी और परिजनों को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था, कि पिरामस और थिस्बे एक दूसरे से प्यार करने लगे हैं ।
जल्द ही उन दोनों को यह एहसास हो गया कि, पारिवारिक दुश्मनी
के चलते उनका विवाह संभव नहीं है, अतः उन्होंने भागकर शादी करने की ठान ली । उन्होंने
तय किया कि, कस्बे की सीमा रेखा पर बह रही नदी को एक सुनिश्चित समय में पार करके वो,
एक दूसरे के साथ, कहीं दूर पलायन कर जाएंगे और ब्याह कर लेंगे, उन्हें यह भी उम्मीद
थी कि, विवाह के बाद जैसे-जैसे समय बीतेगा, उनके परिजन, उनके संबंधों को स्वीकार
कर लेंगे, बस इसी उम्मीद के सहारे उन दोनों ने किसी से बताए बिना पलायन करने की योजना
बना ली । अब हुआ यह कि थिस्बे तयशुदा दिन
को, नदी के किनारे पहुंच गई, उसने सबसे छुपने के लिए अपने सिर पर एक बड़ा सा आंचल
डाला हुआ था, तभी उसने देखा कि, एक शेरनी जोकि शिकार करके नदी में पानी पीने आई थी
और जिसके पंजे और मुंह पर खून लगा हुआ था । उसे देखकर थिस्बे, डर गई और छुपने के
लिए पास की गुफा में भागी । उसकी बदहवासी के चलते, उसका आंचल वहीं पर गिर गया और पानी
पीकर लौट रही शेरनी ने उस आंचल को देख कर उसे टुकड़े-टुकड़े कर दिया, जिससे आंचल
के टुकड़ों पर खून के दाग लग गए फिर थोड़ी
देर बाद, शेरनी उकता कर जंगल में वापस चली गई ।
इसी दौरान पिरामस वहां पहुंचा और आंचल के खून लगे टुकड़े
देखकर वह स्तब्ध रह गया । उसे कुछ सूझा ही नहीं, उसे लगा, कि किसी जंगली जानवर ने थिस्बे
के प्राण ले लिए हैं और उसकी निशानी बतौर आंचल तार तार होकर, जेमीन पर पर पड़ा हुआ
है । वह बहुत दुखी था और घटनाक्रम के लिए स्वयं को जिम्मेदार मान रहा था,क्योंकि
वह थिस्बे के मुकाबले, वहां पर देर से पहुंचा था । उसने अपनी ही तलवार से
आत्महत्या कर ली । उसे लगा कि, मृत्यु के बाद वो अपनी प्रेयसी के पास पहुंच जाएगा ।
तभी निरापद समय जानकर थिस्बे भी गुफा से बाहर आई और उसने देखा पिरामस मर चुका है ।
वह गहन दुख और अवसाद से घिर गई । उसे अपने आंचल के टुकड़े और प्रेमी की मृत देह के
सिवा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । उसने तय किया कि, यदि नियति को यही मंजूर है,
तो यही सही । उसने देवताओं से प्रार्थना की, कि, उन दोनों के परिजन मृत्यु के
उपरांत उन्हें क्षमा कर दें और दुश्मनी भुलाकर एक ही कब्र में दफन कर दें ।
इसके बाद उसने खुद भी पिरामस की तलवार से आत्महत्या कर ली ।
दोनों प्रेमियों के शव जिस दरख़्त के नीचे गिरे थे, उसमें सफेद फल लगते थे, लेकिन
प्रेमियों के खून से उसकी जड़ें लाल हो गई और उसमें लाल रंग के फल आने लगे । कालांतर
में, इस दरख्त को शहतूत के नाम से जाना गया। प्रेमियों की मृत्यु के बाद उनके
परिजनों को आघात पहुंचा और उन्होंने पारस्परिक शत्रुता को भुला कर पिरामस और
थिस्बे के मृत शरीर को एक ही कब्र में दफना दिया तथा अपने घरों के बीच की दीवार
तोड़ दी । उन्होंने तय किया कि, प्रेमी युगल की मृत देह, जिस वृक्ष के नीचे मौजूद थी
। वे उसे सदा जीवित रखेंगे ।
यह आख्यान, पड़ोस में रहने वाले, किंतु दिलों में दूरियां
बनाए हुए दो परिवारों के, मासूम बच्चों से जवान हो चुके और एक दूसरे के प्रति
अनुरक्त हो गए, जोड़े की कथा कहता है । उन युवाओं को समाज की निंदा का भय है और
अपने परिवार के लोगों से यह उम्मीद नहीं है कि, वह परस्पर समझौता करते हुए उन
दोनों को क्षमा कर देंगे । बहरहाल प्रकृति ने उनके ऊपर एक उपकार किया कि, दुश्मन
परिवारों के दरम्यान जो दीवार बनी हुई थी, उसमें आई दरार और उस दरार में मौजूद एक
नन्हे से छेद ने उन्हें पारस्परिक संवाद का अवसर दिया । दोनों बहुत दिनों तक
छुप-छुपकर मिलते रहे । संकेतों में बात
करते किंतु अपने परिवार और समाज से भयभीत बने रहे । उन्होंने तय किया कि, उन्हें
अपने प्रेम को ब्याह की दिशा में ले जाना चाहिए और इसके लिए उन्होंने सह पलायन का
मार्ग खोजा । कथा कहती है कि, सह पलायन की पृष्ठभूमि में एक नन्हीं सी उम्मीद की
किरण भी छुपी थी कि, शायद उनके परिजन ब्याह के पश्चात उन्हें और उनके संबंध को
स्वीकार कर लेंगे और पारस्परिक शत्रुता का त्याग कर देंगे ।
उन्होंने यह तय किया कि, शहर के छोर से बहती हुई नदी को पार
करके, वे अपना लक्ष्य पूरा करेंगे और एक निश्चित समय पर दोनों ने नदी के तट पर
मिलने का वादा किया, लेकिन निर्धारित दिन, थिस्बे समय से थोड़ा पहले नदी तट पर पहुंच
गई । उसने अपनी पहचान छुपाने के लिए, अपने ऊपर एक आंचल डाल रखा था । यह माना जाना
चाहिए कि, उनका प्रेम भी इसी तरह से अदृश्य था, जिसकी जानकारी समाज और परिवार को
नहीं थी, यानि कि, उनके प्रेम पर भी एक आंचल पड़ा हुआ था । नदी के तट पर शेरनी को
देखकर थिस्बे डर जाती है और अपनी जान बचाने के लिए पास की गुफा में छुप जाती है । इसी
आपा धापी में उसका आंचल वहां पर छूट जाता है, जिससे, पानी पीने के बाद लौट रही
शेरनी, खिलवाड़ करती है और अपने खून आलूदा मुंह और पंजों से, उस आंचल के
टुकड़े-टुकड़े कर देती है तथा उकताकर जंगल वापस लौट जाती है । उसी समय पिरामस नदी के
तट पर पहुंचता है और अपनी प्रेमिका का आंचल देख कर गहन अवसाद से घिर जाता है ।
वह सोचता है कि, यह उसकी भूल थी कि, वह अपनी प्रेमिका से
पहले तट पर नहीं पहुंचा और उसकी देरी की वजह से उसकी प्रेमिका को अपने प्राणों की
आहुति देना पड़ी । उसमें एक अपराध गहरा गया था कि, अपनी प्रेमिका की मृत्यु का
कारण वह स्वयं है । वह अपनी प्रेमिका से इतना अधिक प्रेम करता था कि, उसे वहां ना
पाकर, उसे कुछ और सूझा ही नहीं, उसने यह भी नहीं सोचा कि, अगर आंचल के खून आलूदा टुकड़े
यहां पर हैं, तो थिस्बे की कुछ हड्डियां और मांस के कुछ टुकड़े भी वहां पर होना
चाहिए, यानि कि, उसे अपनी प्रेमिका के जीवित होने की संभावना पर भी विचार करना
चाहिए था, किंतु वह प्रेम में अंधा, विवेकहीन होने की कहावत को पूरा करने वाला
इंसान लगता है । उसने उस वृक्ष के नीचे आत्महत्या कर ली, जहां पर उसकी प्रेमिका के
आंचल के टुकड़े बिखरे पड़े थे । कुछ समय बाद उसकी प्रेमिका यह मानकर कि, शेरनी
वापस चली गई होगी, गुफा से बाहर निकलती है और देखती है कि उसका प्रेमी उसके खून
आलूदा, आंचल के टुकड़ों के पास मृत पड़ा हुआ है ।
वह स्तब्ध हो जाती है और गहन दु:ख के क्षण में, देवताओं का
आह्वान करती है कि, वह अपने प्रेमी के बिना जीवित नहीं रहना चाहती, अतः देवता आशीष
दें कि, उन दोनों की मृत्यु के बाद उनके परिजनों की शत्रुता समाप्त हो जाए और उन
दोनों को एक ही कब्र में दफना दिया जाए ।
हुआ भी यही, कि, उनकी मृत्यु की खबर पाते ही, उनके परिजन अत्यंत विचलित हो
गए और उन्होंने पिरामस और थिस्बे को एक ही कब्र में दफना दिया तथा उस दरख़्त को
जीवित रखने की बात अपने मन में ठान ली, क्योंकि उनकी जवान संतानों का खून उस दरख़्त
की जड़ों में समा गया था और वे उसका रक्षण भी अपने बच्चों की तरह से करना चाहते थे
। उन्होंने उस पेड़ को जीवित रखने और अपने घरों के बीच की दीवार को नष्ट करने की
बात तय कर ली । हमें इस कथा के दु:खांत होने का प्रमाण मिलता है, किंतु इस कथा का प्रेमी
जोड़ा, सबसे छुपकर अपने प्रेम को पाना चाहता था । वे दोनों छुपकर नदी तट पर पहुंचे
थे ।
जहां उन्हें समझने बूझने का अवसर भी नहीं मिला और अपने
प्राण त्यागना पड़े, जिसके कारणवश सफेद फलों वाला वृक्ष लाल फलों वाले वृक्ष में
कायांतरित हुआ और उनका अप्रकट प्रेम सब पर प्रकट हो गया । उस प्रेम ने परिवारों की
दुश्मनी को खत्म कर दिया । यह कथा इस अर्थ में अप्रकट प्रेम होने पर शत्रुता के
जीवित रहने और प्रेम के प्रकट होने पर शत्रुता के मर जाने की कथा है । यहां प्रकृति
उस जोड़े की आहुति लेती है और एक फल लदे पेड़ के रूप में, उनके जीवन का प्रतीक बन कर
अस्तित्वमान बनी रहती है । यही नहीं, शिकारी शेरनी और देवतागण इस घटनाक्रम के मुख्य
किन्तु प्रतीकात्मक किरदार हैं । जिन्होंने प्रेमियों की मृत्यु को दुश्मनी की
मृत्यु के रूप में बदल कर रख दिया...