उन दिनों
जबकि धरती एकदम नई नकोर बनी थी, नानाबोझो ने अपने घर की खिड़की से बहते झरने की ओर देखा । वही सफ़ेद रंगत, हर शय सिर्फ सफ़ेद स्याह, वो हर रोज दिखते हुए, इन रंगों से उकता गया था । उसने कुछ नया करने की ठानी, सो अपने घर से अलग अलग रंगों की डिबिया और ब्रश लेकर घास के मैदान की ओर
चल पड़ा । जमीन पर बैठकर उसने सबसे पहले घास को हरी रंगत में रंग दिया फिर वायलेट
को गहरी नील रंगत, टाइगर लिली को भूरे डाट्स के साथ
नारंगी रंग में और गुलाबों को लाल, गुलाबी, पीले, बैगनी रंग, डाला, डेफ़ोडिल को पीले रंगों में रंग डाला और कुछेक फूल सफ़ेद भी छोड़े ।
यानि कि
नानाबोझो की कल्पना जहां तक, जिस रंगत में उड़ती फिरी, फूलों की रंगत भी
बदलती गई । इस काम में उसका भाई सूरज, चमकदार धूप के
साथ उसकी मदद कर रहा था । उसने देखा कि दो ब्ल्यू बर्ड्स आसमान में ऊपर नीचे, दायें बायें, जिक जैग मंडरा रहीं थी, वो दूसरे के आगे पीछे उड़ती हुई नानाबोझो के करीब से गुज़रीं, उनमें से पहली का दायां पंख लाल रंग और दूसरी का बायां पंख नारंगी रंग में
डूब गया । नानाबोझो ने उन्हें डांट लगाई पर वो पहले की तरह से खेलती रहीं, जल्द ही उनके पंख और पैर अनेकों रंगों में रंग गये । नानाबोझो ने अपने दोनों
हाथों को ऊपर उठाकर उन्हें दूर भगाने की कोशिश की ।
बेपरवाह
ब्ल्यू बर्ड्स उड़ती हुई झरने की ओर जा पहुंचीं । पहली ब्ल्यू बर्ड झरने के ऊपर की
धुंध में से गुज़री उसके ठीक पीछे दूसरी भी, नीचे ऊपर नीचे, झरने के एक
छोर से दूसरे छोर तक, उनके ओस में भीगे पंखों से रंग
बिखर रहे थे, इधर सूरज की रौशनी भी चमकदार थी ।
नानाबोझो पहले मुस्कराया, फिर बुदबुदाया, तुम दोनों ने खेल ही खेल में इन्द्र धनुष बना डाला । तब से आज तक नानाबोझो
के घर के पास वाले झरने के ऐन ऊपर इन्द्र धनुष का स्थायी ठिकाना है और उसकी दुनिया
खूबसूरत, रंगत वाले फूल पौधों, जानवरों, परिंदों से सज गई है...
आख्यान में उल्लिखित नानाबोझो सिरजन-हारा है । वो धरती के सृजन के आरंभिक समय में उपस्थित रचयिता है, जिसे अपने घर की खिड़की से बहते हुए झरने और
धरती में व्यापित सफेद स्याह रंगत ने उदास कर दिया है । वो श्वेत श्याम को बहु-रंगत में बदलने का सामर्थ्य रखता है, इसलिए वो अपने घर से विविध रंगों की डिबिया और ब्रश लेकर बाहर निकलता है
ताकि धरती में नए रंग बिखेर सके । वो मैदान की घास को हरी
रंगत, वायलेट को गहरी नील रंगत, दीगर
फूलों को लाल, गुलाबी, बैगनी, पीले रंगों में रंगता है और कुछेक फूलों के रंग सफेद भी रहने देता है।
कथा कहती है कि नानाबोझो की कल्पनाशीलता धरती
में रंग बिखेर रही थी और उसे, इस काम में सूरज जोकि उसका भाई है, अपनी चमकदार धूप
के साथ, उसकी मदद करता है । कथा के इस अंश से हम यह संकेत पाते हैं
कि नानाबोझो में देवत्व है, क्योंकि वो सूरज का भाई है । हम सभी जानते है कि जीव जगत और वनस्पतियों के जीवन में, सूरज की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए आख्यान का
ये दृष्टान्त रोचक है कि, सूरज अपनी धूप सहित नानाबोझो की
कल्पनाशीलता की श्रीवृद्धि में सहायक है । रंगों से धरती का श्रृंगार
कर रहे नानाबोझो के इर्द गिर्द दो परिंदों का ऊपर नीचे,दाहिने
बायें,जिक जैग, मंडराना और परिंदों के
पंखों सह अन्यान्य अंगों का नानाबोझो के रंगों में रंग जाना उल्लेखनीय बयान है।
परिंदों को नानाबोझो की झिड़की की फ़िक्र नहीं,वे अपनी धुन में है,अपने
ही खेल में मगन। वे चमकदार धूप में,झरने की धुंध / कुहासे से होकर गुज़रते हैं और फिर उनके जिस्म में मौजूद
ताजा कच्चे रंग, जिन्हें सूखने का अवसर ही नहीं मिला,
इंद्रधनुष हो जाते हैं। नानाबोझो,
परिंदों के अन-सोचे, अनियोजित कारनामे से खुश
है। बहरहाल, ये आख्यान कहता है कि
उसी दिन से इंद्र धनुष, नमी / धुंध / धूप-जीवी हुआ और
नानाबोझो के घर की खिड़की के ऐन पास, धरती / आकाश,
प्रतीकात्मक रूप से कहें तो, झरने का, स्थायी डेरे-दार भी...