सोमवार, 19 अप्रैल 2021

तिसायक...

बरसों बरस देवी तिसायकयूसेमिते की खूबसूरत घाटी की अदृश्य संरक्षक बतौरलोक मानस में बहती फिरती । एक दिन उसने गांव में टूटोकनुला को देखासुंदर सुगठित देहयष्टि और लोक प्रिय युवाइसके बाद घाटी में तिसायक की आमद-ओ-रफ्त बढ़ गई ताकि वो टूटोकनुला को फिर, फिर देख पाये । एक दिन टूटोकनुला शिकार के लिए करीब के जंगल में गया था जहां उसनेपहली बार तिसायक को दरख्त के नीचे आराम करता हुआ पाया । अनिंद्य सौंदर्य की स्वामिनी तिसायक के सुनहले बाल और कमनीय काया देख कर टूटोकनुलाउसके इश्क में गिरफ्तार हो गया ।

हालांकि उसे महसूस हो गया था कि तिसायक ही यूसेमिते घाटी की संरक्षक देवी आत्मा है फिर भी उसनेतिसायक को उसके नाम से पुकाराउसे छूने की कोशिश कीइधर अपने अंतर की भावनाओं से भ्रमित तिसायक अंतर्ध्यान हो गई । हताश और निराश टूटोकनुला अगले कई दिनों तक तिसायक को ढूंढता रहा । उसमें दिल के टूटने की कसक थी सो वो, घाटी के लोगों को निराश छोड़ कर कहीं दूर देस चला गया । कुछ अरसे बाद तिसायकयूसेमिते लौटी तो हैरान रह गई, घाटी उजड़ चुकी थी । वो जान गई कि टूटोकनुलायूसेमिते छोड़ कर चला गया है और घाटी उसके बुद्धि कौशल से वंचित होकर बियाबान हो गई है ।

तिसायक निराशा में चिल्लाईअब उसेटूटोकनुला की तलाश थीउसने महा-पाषाण के ऊपर घुटनों के बल बैठ कर महान देवता से प्रार्थना कीवो चाहती थी कि घाटी एक बार फिर से हरियाये । तिसायक की प्रार्थना पर महान देवता को दया आ गईउन्होने घाटी के ऊपर अपना कृपा पूर्ण हाथ लहरायादेखते ही देखते दरख्त हरियाने लगेफूल खिलखिलाने लगेचिड़ियां चहकने लगींझरने बहने लगेझीलें मुस्कराईंखेतों में मक्के के भुट्टे अपने सुनहले केशों की आभा के साथ सीधे तन कर खड़े हो गयेयूसेमिते में एक बार फिर से जीवन पसर गया ।   

घाटी में तिसायक की वापसी की खबर पाकर टूटोकनुला वापस लौटा और पाषाण खंडों पर उस कथा को उकेरने लगा जबकि उसने अपनी पितृ-भूमि छोड़ी थीउसकी कामना थी कि पीढ़ियों तक घाटी उसे याद रखेकाम खत्म होने के बाद, उसने वर की तरह से परिधान पहने और महान देवता के झरने में जा पंहुचा ताकिअपनी प्यारी घाटी और स्वजनों को अलविदा कह सके । उसने देखा तिसायकझरने मेंजलधारा बन कर बह रही हैवो आनंदातिरेक में चिल्लाया और ऊपर से नीचे की ओर कूद पड़ा । अंततः उसने अपनी प्रियतमा को अपनी बांहों में भर लिया था ।

यूसेमिते में सबने देखाआसमान में दो इन्द्र धनुष बन गये थे । देवी तिसायक अपने साथ टूटोकनुला को ले गई सुदूर बादलों में और फिर सूरज डूब गया...

विवेचनाधीन आख्यान प्रथम दृष्टया, प्रणय की अनुभूति के प्रकटन से लेकर, उसकी अस्वीकार्यता, कदाचित संकोच / झिझक अथवा दैवीय अहम और अंततः स्वीकार्यता के घटनाक्रम के दरम्यान  झूलता दिखाई देता है । कथा लोक प्रिय देवी तिसायक की कमनीय काया, सुनहले बालों और अनिन्द्य सौन्दर्य के कथन से शुरू होती है जोकि, यूसेमिते घाटी की अदृश्य संरक्षक है । इस कथा को भारतीय सन्दर्भों में देखें / पढ़ें तो, तिसायक यानि कि एक अप्सरा, जो, स्वर्गलोक / देवलोक की निवासिनी है और इहलोक / भू-लोक की यूसेमिते घाटी पर मेहरबान है । यूसेमिते घाटी, तिसायक की कृपा से ख़ूबसूरत है । तिसायक, जो घाटी के जंगल में दरख्तों के नीचे आराम भी करती है ।   

तिसायक अप्सरा है, किन्तु गांव के युवा नायक टूटोकनुला की सुगठित देहयष्टि, उसकी बुद्धिमत्ता, लोक प्रियता और संभवतः जनप्रिय स्वभाव पर आसक्त है । वो नश्वर देह धारी / भूलोक वासी को देखने, घाटी में फिर फिर लौट आती है । आख्यान संकेत देता है कि टूटोकनुला शिकार के लिए जाता है, यानि कि कथा विवरण आखेटक युगीन समाज का है । अप्सरा तिसायक जानती है कि टूटोकनुला नश्वर देह धारी है किन्तु टूटोकनुला यह नहीं जानता कि वो अनजाने में ही जिस युवती पर अनुरक्त हो चुका है वो वास्तव में उसकी घाटी की संरक्षक देवी तिसायक है , उसने नायिका को छूने की कोशिश जोकि नश्वरता और अमरत्व के गठबंधन को लेकर भ्रमित थी, सो अंतर्ध्यान हुई ।            

अब तक टूटोकनुला जान चुका है कि वो अनजाने में ही सही, अपने लिए पारलौकिक नायिका का चयन कर बैठा है । वो नायिका को ढूंढता है और असफल रहता है । उसके लिए बिछोह का समय अत्यंत कष्टकर है । वो दु:खी है, संभव है उसमें, जीवनदायिनी यूसेमिते घाटी की संरक्षक देवी से प्रेम कर बैठने का अपराध बोध भी हो ? वो घाटी छोड़ देता है, अपने लोगों / अपने समाज से विमुख हो जाता है । घाटी के लोग निराश हैं, उनका नायक गुमशुदा है, घाटी, प्रेम को खो बैठी है और बियाबान हो गई है । कहना ये कि प्रेम के बिना नायक दु:खी, गांव के लोग दु:खी और घाटी उजाड़ है । उधर तिसायक, नश्वर देह युवा से प्रेम को लेकर भ्रमित है । बहरहाल वो अपनी वापसी के समय में, बिन प्रेम, उपजे शून्य को देख कर, निराश है ।

तिसायक को आगत जीवन के लिए समुचित निर्णय संकेत / भ्रम से मुक्ति के लिए महान देवता का आशीष चाहिये, वो घाटी को हरियाते हुए देखना चाहती है । जबकि टूटोकनुला की अनुपस्थिति, घाटी का उजाड़पन, उसका अपना किया धरा था ।  वो टूटोकनुला पर तबसे अनुरक्त थी, जबकि टूटोकनुला ने उसे देखा तक नहीं था । सो प्रेम और अप्रेम, दोनों ही, स्थितियां / पूर्णता और रिक्तियां, उसके अपने कृत्य का परिणाम थीं । वो देवी थी, उसकी जिम्मेदारियों के बोझ, टूटोकनुला से ज्यादा बड़े थे । अंततः वो पराजित प्रेमिका / निराश स्त्री के समान घुटनों के बल बैठ कर महान देवता से कृपा चाहती है ।  

आख्यान कहता है कि महान देवता प्रेम के लिए सुहृदय है, सो घाटी फिर से हरियाती है, वहां फूल खिलते हैं, चिड़ियां चहकती हैं और जीवन फिर से पसर जाता है । नायक टूटोकनुला के लिए, ये घाटी में, तिसायक की वापसी का संकेत है, इसलिए वो, पितृ भूमि में वापस लौट कर, भित्ति चित्रों / पाषाण खण्डों में स्वयं के पलायन के कारणों / आत्मकथा / इतिहास को दर्ज करता है । उसे अपने लोगों, पूर्वजों की घाटी से अंतिम विदा चाहिये, उसे, किसी और लोक / कदाचित भावी वधु तिसायक के लोक में जाने की कामना है । वो नये परिधान में सज धज कर महान देवता के झरने में, मृत्यु का आलिंगन करता है । मृत्यु के समय उसके चहुं दिश केवल और केवल तिसायक ही तिसायक है ।

फिर यूसेमिते के लोगों ने महान देवता के झरने के ऊपर दो इंद्र धनुष देखे और सूरज डूब गया...