गतांक से आगे...
महाभारत कालीन बहुचर्चित, अस्थायी किन्नरत्व धारण-कर्ता उद्धरणों के इतर, मुगलों के आगमन से पूर्व सल्तनत काल की हरम व्यवस्थाओं के आईने में, हमें मालिक काफूर जैसा शक्तिशाली किन्नर नाम परिलक्षित होता है, कहते हैं कि उस समय लगभग दस हज़ार युवकों को बंदी बनाया गया था और सत्तागत / लालसा गत कारणों से उनका बंध्याकरण किया गया था । युद्ध बंदियों के अतिरिक्त क्रीत दासों के विवरण भी हमें मिलते हैं जिनमें से काफूर सर्वाधिक चर्चित नाम था । मुगलों के हरम / कथित सामाजिक अभिजात्यों / प्रतिष्ठित / संभ्रात / कुलीन वर्ग के प्रासादों में किन्नर दासों के संस्तरणात्मक कर्मचारी तंत्र हुआ करते और किन्नर दास श्रेष्ठता से निचले क्रम की ओर आदेश पालन के लिये अभिशापित । मुगल काल में किन्नर मुखिया ख्वाजासरा कहलाते थे । राजतान्त्रिक व्यवस्था में किन्नरों की विश्वसनीयता, उन्हें उच्चता और निम्नता वाले वर्ग क्रम में बांट देतीं, वे उच्चाधिकारी होते, दरबार के सलाहकार होते, महलों के पहरेदार होते, साधारण सैनिक होते, सामान्य सन्देश वाहक होते। छोटे मोटे दायित्वों का निर्वहन करने वाले मजदूर होते । दरअसल यह समय सामर्थ्यवान आदमजात द्वारा सामान्य आदम अवाम को पशु बनाने का समय था । क्रूरता और शोषण का समय । समलैंगिकता की आकाँक्षाओं की बलात पूर्ति का समय । दैहिक कुंठाओं के सार्वजानिक विसर्जन का समय ।
( ये आलेख श्रृंखला फिलहाल यहीं पर विराम लेगी, अभी तक जो लिखा, वो कहीं ना कहीं, पहले से लिखा हुआ था, सो मौलिकता का कोई दावा नहीं, बहरहाल प्रस्तुतिकरण, विवरण व्याख्या में कोई अंतर हो तो उसे हमारे हिस्से में डाल दिया जाए, इस विषय में लिखने की संभावनाएं अनंत हैं, मसलन वर्तमान को हमने छुआ तक नहीं...)
मिथकीय दृष्टान्तों से हट कर, अगर हम
राजतान्त्रिक भारत के सम्राटों / सुल्तानों / शहंशाहों के दिन प्रति दिन की
जीवनचर्या पर निगाह डालें, तो पायेंगे कि
वे सभी कम-ओ-बेश यौनिकताओं, विलासिताओं, कामुक लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति के
लिये,अपने राज प्रासादों / महलों में कम-उम्र स्त्रैण प्रकृति पुरुष सेवक, हसीन
लौंडों, कमसिन लड़कियों, एकाधिक रानियों / बेगमों की व्यवस्था पर अत्यधिक ध्यान
देते थे । उनकी जायज़, नाजायज़ यौन कामनाओं की पूर्ति के लिये स्वैच्छिक अथवा बल छल
पूर्वक जुटाई गई किशोरियों / युवतियों / स्त्रियों और युवा किन्नरों को महलों में
रनिवास / हरम कहे जाने वाले कक्षों में रखा जाता था और यह बात निश्चित है कि इनमें
से ज्यादातर का सम्बन्ध, जनगण के अर्थहीन / निर्धन तबके अथवा पराजित पक्ष से होता
था । इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि, राज्य की सीमाओं के विस्तार / राज शक्ति, धन सामर्थ्य
वृद्धि हेतु की गई संधियों अथवा कामुक सम्राटों
/ शहंशाहों / सामंतों को पसंद आ जाने वाली राजकन्याओं / सामान्य युवतियों /
किशोर वय लड़कों की प्राप्ति के लिये लड़े
गये युद्धों से भारतीय इतिहास पहले ही लथपथ है / रक्त रंजित है । उन दिनों हरेक
गांव गली की सीमा क्षेत्रों वाले लघु राज्यों से लेकर विस्तृत भूभागों में स्थापित
बड़े साम्राज्यों में यही प्रचलन आम था । जन्मना किन्नरों के अतिरिक्त, बंध्याकृत
किये किन्नरों के समलैंगिक साहचर्य वाले उपयोग के इतर, प्रतिशोध-गत, मान, अपमान
जैसी मनः स्थितियों / धारणाओं के अंतर्गत, विजित क्षेत्रों के जनगण के पौरुष हरण
को भी हमें ध्यान में रखना होगा ।
महाभारत कालीन बहुचर्चित, अस्थायी किन्नरत्व धारण-कर्ता उद्धरणों के इतर, मुगलों के आगमन से पूर्व सल्तनत काल की हरम व्यवस्थाओं के आईने में, हमें मालिक काफूर जैसा शक्तिशाली किन्नर नाम परिलक्षित होता है, कहते हैं कि उस समय लगभग दस हज़ार युवकों को बंदी बनाया गया था और सत्तागत / लालसा गत कारणों से उनका बंध्याकरण किया गया था । युद्ध बंदियों के अतिरिक्त क्रीत दासों के विवरण भी हमें मिलते हैं जिनमें से काफूर सर्वाधिक चर्चित नाम था । मुगलों के हरम / कथित सामाजिक अभिजात्यों / प्रतिष्ठित / संभ्रात / कुलीन वर्ग के प्रासादों में किन्नर दासों के संस्तरणात्मक कर्मचारी तंत्र हुआ करते और किन्नर दास श्रेष्ठता से निचले क्रम की ओर आदेश पालन के लिये अभिशापित । मुगल काल में किन्नर मुखिया ख्वाजासरा कहलाते थे । राजतान्त्रिक व्यवस्था में किन्नरों की विश्वसनीयता, उन्हें उच्चता और निम्नता वाले वर्ग क्रम में बांट देतीं, वे उच्चाधिकारी होते, दरबार के सलाहकार होते, महलों के पहरेदार होते, साधारण सैनिक होते, सामान्य सन्देश वाहक होते। छोटे मोटे दायित्वों का निर्वहन करने वाले मजदूर होते । दरअसल यह समय सामर्थ्यवान आदमजात द्वारा सामान्य आदम अवाम को पशु बनाने का समय था । क्रूरता और शोषण का समय । समलैंगिकता की आकाँक्षाओं की बलात पूर्ति का समय । दैहिक कुंठाओं के सार्वजानिक विसर्जन का समय ।