गतांक से आगे...
इसके दूसरी तरफ वे किन्नर थे जिन्होंने कोरियाई गोरियो की अस्मिता बनाये रखने में सहायता की, भले ही वे स्वयं नजराने के तौर पर युआन सम्राट को सौंपे गये लोग थे । दरअसल युआन सम्राट कोरियाई गोरियो की पहचान मिटाना चाहता था और गोरियो क्षेत्र को युआन साम्राज्य में शामिल करना चाहता था जिससे कि गोरियो की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती । ऐसे समय में युआन दरबार में मौजूद कोरियाई मूल के कुछ किन्नरों ने युआन सम्राट की इस योजना का विरोध किया । इसमें से किन्नर बेंग शिनवू का नाम सबसे प्रमुख है यद्यपि वो स्वयं भी युआन सम्राट को नजराने में प्राप्त हुआ था । इस कथन का मंतव्य यह है कि युआन सम्राट की जिस योजना को गोरियो अधिकारी नहीं रोक पाए उसे कोरियाई मूल के किन्नर बेंग शिनबू जैसे लोगों ने ध्वस्त कर दिया । युआन सम्राट को गोरियो के आधिपत्य ग्रहण की योजना को स्थगित करना पड़ा । बहरहाल इस प्रकरण के बाद सम्राट के दरबार और कोरियाई गोरियो प्रशासन में किन्नरों की भूमिकाओं में कई नकारात्मक और सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले । युआन साम्राज्य के पतन के बाद भ्रष्ट किन्नरों को नागरिक अधिकारियों ने हाशिए पर डालना प्राम्भ कर दिया खासकर नये सम्राट यू (1374-1388) किन्नरों के लिये निर्धारित विभाग ही समाप्त कर दिया गया जिसके कारण से किन्नरों की भूमिका और प्रतिष्ठा में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिले । गौर तलब है कि अवनति के इस समय में गोरियो प्रशासन भी किन्नरों की कोई सहायता नहीं कर पाया । सम्राट गोंगमिन (1351-1374) से पहले गोरियो प्रशासन किन्नरों के लिये सैम जुन नाम का विभाग चलाता था जिसके तीन उप विभाग भी होते थे एक दाई जुन यानि कि महा-कक्ष / दरबार हाल , दूसरा नाई जुन अर्थात आंतरिक गोपनीय शाही कक्ष और तीसरा ते हु जुन जो कि रानी का आवास परिसर हुआ करता था । कोरियाई उद्धरण के इतर चीन में किन्नरों के विभाग को नेईशिफु के नाम से जाना जाता था और इस विभाग में तैनात किन्नरों पर सम्राट गण अत्यधिक विश्वास करते थे। उल्लेखनीय है कि इस विभाग में जन्मना और बलपूर्वक बनाये गये किन्नरों की तैनाती में कोई भेदभाव नहीं था । एशिया के अधिकाँश देश किन्नरों को लेकर चीनी माडल का अनुसरण करते थे ।
इसके दूसरी तरफ वे किन्नर थे जिन्होंने कोरियाई गोरियो की अस्मिता बनाये रखने में सहायता की, भले ही वे स्वयं नजराने के तौर पर युआन सम्राट को सौंपे गये लोग थे । दरअसल युआन सम्राट कोरियाई गोरियो की पहचान मिटाना चाहता था और गोरियो क्षेत्र को युआन साम्राज्य में शामिल करना चाहता था जिससे कि गोरियो की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती । ऐसे समय में युआन दरबार में मौजूद कोरियाई मूल के कुछ किन्नरों ने युआन सम्राट की इस योजना का विरोध किया । इसमें से किन्नर बेंग शिनवू का नाम सबसे प्रमुख है यद्यपि वो स्वयं भी युआन सम्राट को नजराने में प्राप्त हुआ था । इस कथन का मंतव्य यह है कि युआन सम्राट की जिस योजना को गोरियो अधिकारी नहीं रोक पाए उसे कोरियाई मूल के किन्नर बेंग शिनबू जैसे लोगों ने ध्वस्त कर दिया । युआन सम्राट को गोरियो के आधिपत्य ग्रहण की योजना को स्थगित करना पड़ा । बहरहाल इस प्रकरण के बाद सम्राट के दरबार और कोरियाई गोरियो प्रशासन में किन्नरों की भूमिकाओं में कई नकारात्मक और सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले । युआन साम्राज्य के पतन के बाद भ्रष्ट किन्नरों को नागरिक अधिकारियों ने हाशिए पर डालना प्राम्भ कर दिया खासकर नये सम्राट यू (1374-1388) किन्नरों के लिये निर्धारित विभाग ही समाप्त कर दिया गया जिसके कारण से किन्नरों की भूमिका और प्रतिष्ठा में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिले । गौर तलब है कि अवनति के इस समय में गोरियो प्रशासन भी किन्नरों की कोई सहायता नहीं कर पाया । सम्राट गोंगमिन (1351-1374) से पहले गोरियो प्रशासन किन्नरों के लिये सैम जुन नाम का विभाग चलाता था जिसके तीन उप विभाग भी होते थे एक दाई जुन यानि कि महा-कक्ष / दरबार हाल , दूसरा नाई जुन अर्थात आंतरिक गोपनीय शाही कक्ष और तीसरा ते हु जुन जो कि रानी का आवास परिसर हुआ करता था । कोरियाई उद्धरण के इतर चीन में किन्नरों के विभाग को नेईशिफु के नाम से जाना जाता था और इस विभाग में तैनात किन्नरों पर सम्राट गण अत्यधिक विश्वास करते थे। उल्लेखनीय है कि इस विभाग में जन्मना और बलपूर्वक बनाये गये किन्नरों की तैनाती में कोई भेदभाव नहीं था । एशिया के अधिकाँश देश किन्नरों को लेकर चीनी माडल का अनुसरण करते थे ।
गोरियो
प्रशासन के क्षय के समय में किन्नरों का महत्व घटने लगा था किन्तु सम्राट तेइ जो
(1392-1398) राज शाही में किन्नरीय विभाग को बंद नहीं होने दिया । उसे लगता था कि
किन्नर भिन्न कारणों से राज शाही के लिये उपयोगी हैं । मसलन विविध कार्यों के अतिरिक्त, शाही परिवार
की रानियों/ स्त्रियों के लिये विश्वस्त सेवकों के तौर पर किन्नरों की आवश्यकता
उसे महसूस होती थी। कई प्रकरणों में सम्राट की निज सुरक्षा और शाही भोजन के पूर्व
परीक्षण / चखने के लिये किन्नरों की तैनाती के उद्धरण रोमन किन्नरों की भूमिका से
साम्य रखते हैं । शाही भोजन का प्रबंधन
यानि कि रसोई की व्यवस्था, जिसमें भोजन तैयार करना और मेन्यू का चयन भी किन्नरों
के हाथ में होता था । शाही रसोइये
किन्नरों की निगरानी में ही सारे कार्य किया करते । कहते हैं कि एक बार सम्राट को फ़ूड पाइजनिंग हो गई थी सो उसकी सजा सम्बंधित
किन्नरों को दी गई । किन्नर जुंग दुक
क्युंग को 60 बेंतों की सजा के साथ ही जेल में भेज दिया गया था क्योंकि उसने
सम्राट के भोजन को पहले नहीं चखा था ।
रसोई के प्रबंधन से सम्बंधित किन्नरों को सुल्ली कहा जाता था । उल्लेख मिलता है कि
सम्राट यियोंसांगून (1494-1506) को हिरणों की दुम और जीभ खाने का शौक था किन्तु यह
सामग्री बाजार में सर्वसुलभ नहीं होती थी
। अतः बेचारे सुल्ली पूरे देश के जंगलों में इसका जुगाड़ करने के लिये मारे
मारे फिरते थे । समस्या यह थी कि उन
दिनों, इस तरह के खाद्य पदार्थों को संरक्षित करने की तकनीक उपलब्ध नहीं थी तो
मांस, मछलियों और अन्यान्य समुद्री खाद्य पदार्थों के ताजेपन को बनाये रखना दूभर
था । उस पर तुर्रा ये कि सम्राट को यही
भोजन प्रिय था...इसके अतिरिक्त प्रति दिन ताजे खाद्य पदार्थों की मांग अलग से, सो
किन्नरों के लिये यह व्यवस्था बनाये रखना कठिनतम होता जा रहा था । अक्सर ऐसा भी
होता कि शाही भोज / उत्सवों के लिये भी ताजे मांस / अन्य पदार्थों की व्यवस्था भी
किन्नरों को ही करना । अतः शाही भोजन का प्रबंधन तलवार की नंगी धार पर चलने जैसा
कार्य था जिसमें दण्डित होने / सम्राट का कोप भाजन होने की संभावनाएं बनी ही रहती
थीं ।
...क्रमशः