गतांक से आगे...
इसी तरह से सामान्य काल 826 से 836 के दौरान सम्राट हियेंगडियोक का इतिहास बांचते समय दिलचस्प जानकारी मिलती है की सम्राट सामान्य लोगों की तुलना में किन्नरों पर अधिक भरोसा करता था । हालांकि कोरिया में किन्नरों के बंध्याकरण के तौर तरीकों, उपकरणों की कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलते पर जोसियोन राजवंश के काल खंड में किन्नर बनने के लिये श्वानों / कुत्तों को उत्तरदाई बताया गया है यानि कि वे ही लोग किन्नर बनते थे जिनके लिंग कुत्तों द्वारा काटे गये हों । इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि कोरिया में किन्नर बनाये जाने की व्यवस्थित प्रणाली का अभाव रहा होगा और अनायास ही कुत्तों द्वारा लिंग पर काट लिये जाने के कारण, प्रभावित सामान्य लोग किन्नर बना दिये जाते होंगे । कथनाशय यह कि कोरिया में किन्नरों का वज़ूद कुत्तों द्वारा काटे जाने की आकस्मिकता पर निर्भर था । तो क्या हम यह मान लें कि कुत्तों से पीड़ित लोग, किन्नर बनाये जाकर, प्रबल पड़ोसी को बतौर नजराने सौंपे जाते थे ? क्या यह पीड़ित व्यक्ति को अनुपयोगी मानने के उपरान्त, शक्तिशाली किन्तु शत्रुवत पड़ोसी को घृणा वश सौंपा गया उपहार होता था ? क्या यह कृत्य उपहार देने के लिये बाध्य, कोरियाई विवशता में कोरियाई द्वेष की अभिव्यक्ति था ? या फिर किन्नर बनाये गये बच्चों के परिजनों के समक्ष परोसी गई कोई झूठी आश्वस्ति / दिलासा था कि उनके बच्चे कुत्तों द्वारा काटे जाने से, सामान्य जीवन व्यतीत करने योग्य नहीं रह गये हैं सो उन, विषाक्त का, शत्रुता पूर्ण इस्तेमाल किया जाना चाहिए ? बहरहाल हमें यह एक भ्रम लगता है कि निर्बल पड़ोसी अपने सबल पड़ोसी के साथ कोई छल कर पाए । इस लिये हमें लगता है कि किन्नर बनाये गये बच्चों के प्रति सामंती अपराध बोध के चलते, किन्नर बनाये गये बच्चों के प्रतिरोध को हाशिए पर डालने के लिये, इस तरह की श्वान कथाएं प्रसरित की गई होंगी । अभिजात्यता और सामंतवाद को संरक्षित रखने के लिये, बच्चों के प्रति किये गये दुर्भावना पूर्ण / आपराधिक कृत्य को न्यायोचित ठहराने के लिये, स्थानीय कोरियाई क्षत्रपों को मानवीयता का कसाई माना जा सकता है जोकि अपनी सत्ता और सम्मान के लिये किसी भी सीमा तक जा सकते थे । गिर सकते थे ।
इसी तरह से सामान्य काल 826 से 836 के दौरान सम्राट हियेंगडियोक का इतिहास बांचते समय दिलचस्प जानकारी मिलती है की सम्राट सामान्य लोगों की तुलना में किन्नरों पर अधिक भरोसा करता था । हालांकि कोरिया में किन्नरों के बंध्याकरण के तौर तरीकों, उपकरणों की कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलते पर जोसियोन राजवंश के काल खंड में किन्नर बनने के लिये श्वानों / कुत्तों को उत्तरदाई बताया गया है यानि कि वे ही लोग किन्नर बनते थे जिनके लिंग कुत्तों द्वारा काटे गये हों । इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि कोरिया में किन्नर बनाये जाने की व्यवस्थित प्रणाली का अभाव रहा होगा और अनायास ही कुत्तों द्वारा लिंग पर काट लिये जाने के कारण, प्रभावित सामान्य लोग किन्नर बना दिये जाते होंगे । कथनाशय यह कि कोरिया में किन्नरों का वज़ूद कुत्तों द्वारा काटे जाने की आकस्मिकता पर निर्भर था । तो क्या हम यह मान लें कि कुत्तों से पीड़ित लोग, किन्नर बनाये जाकर, प्रबल पड़ोसी को बतौर नजराने सौंपे जाते थे ? क्या यह पीड़ित व्यक्ति को अनुपयोगी मानने के उपरान्त, शक्तिशाली किन्तु शत्रुवत पड़ोसी को घृणा वश सौंपा गया उपहार होता था ? क्या यह कृत्य उपहार देने के लिये बाध्य, कोरियाई विवशता में कोरियाई द्वेष की अभिव्यक्ति था ? या फिर किन्नर बनाये गये बच्चों के परिजनों के समक्ष परोसी गई कोई झूठी आश्वस्ति / दिलासा था कि उनके बच्चे कुत्तों द्वारा काटे जाने से, सामान्य जीवन व्यतीत करने योग्य नहीं रह गये हैं सो उन, विषाक्त का, शत्रुता पूर्ण इस्तेमाल किया जाना चाहिए ? बहरहाल हमें यह एक भ्रम लगता है कि निर्बल पड़ोसी अपने सबल पड़ोसी के साथ कोई छल कर पाए । इस लिये हमें लगता है कि किन्नर बनाये गये बच्चों के प्रति सामंती अपराध बोध के चलते, किन्नर बनाये गये बच्चों के प्रतिरोध को हाशिए पर डालने के लिये, इस तरह की श्वान कथाएं प्रसरित की गई होंगी । अभिजात्यता और सामंतवाद को संरक्षित रखने के लिये, बच्चों के प्रति किये गये दुर्भावना पूर्ण / आपराधिक कृत्य को न्यायोचित ठहराने के लिये, स्थानीय कोरियाई क्षत्रपों को मानवीयता का कसाई माना जा सकता है जोकि अपनी सत्ता और सम्मान के लिये किसी भी सीमा तक जा सकते थे । गिर सकते थे ।
चीन
और अन्य देशों की तरह से कोरिया में भी जन्मना किन्नरों / नपुंसकों का विचार मौजूद
है । यानि कि जन्मना / बलपूर्वक और
आकस्मिक कारणों से बन गये किन्नरों की श्रेणियाँ अन्य देशों की तरह से कोरिया में
भी मौजूद हैं । सम्राट वोंजोंग के सत्ता में आने से पहले मंगोलियाई हस्तक्षेप के
कारण से किन्नरों के महत्व में कमी आती गई, तब साम्राज्य का सर्वोच्च आधिकारिक पद,
पुम, होता था, लेकिन किन्नर केवल सातवें दर्जे के पदों तक पहुंच पाते थे । जब
सम्राट वोंजोंग ने सत्ता सम्हाली तब उसने किन्नरों को नागरिक अधिकारियों के साथ
चर्चा / तर्क वितर्क का अधिकार दिया और किन्नरों को सातवे स्तर के पदों तक सीमित
रखने के नियम को हटा दिया, जिसके परिणाम स्वरुप
किन्नर भी सर्वोच्च पद, पुम तक उन्नति करने के हक़दार हो गये । उन दिनों
किन्नरों को सामान्य नागरिक अधिकारियों के दायित्व सौंपे जाने के अतिरिक्त उन्हें
विशेष दायित्व भी दिये जाने लगे मसलन युआन साम्राज्य के साथ राजनय का अधिकार भी
किन्नरों को मिल गया । यह समय किन्नरों के लिये महत्वपूर्ण था । इससे पहले
किन्नरों के साथ जो भेद भाव होता था वो धीरे धीरे तिरोहित होने लगा । यहां यह
उल्लेख करना आवश्यक है कि, जब गोरियो, मंगोलियाई शासकों को नजराना/ कर / उपहार
चुकाने के लिये बाध्य हो गये तब किन्नर ही उपहार बन गये थे । इसी तरह से चीन के
सम्राट को भेजे गये नजराने वाले किन्नरों से चीनी सम्राट का सम्बन्ध अक्सर राजनय
की प्रकृति का हो जाया करता, तब चीनी सम्राट अथवा उनके उच्चाधिकारी गण, कोरियाई
मूल के किन्नरों से उन मुद्दों पर चर्चा करते जो कि दोनों देशों के मध्य बेहतर
तालमेल का कारण बन सकते थे । कथनाशय यह है कि गोरियो जिन किन्नरों को चीनी शाही
दरबार को नजराने में सौंपता वही किन्नर अंततः चीन और कोरिया के मध्य सेतु बन जाया
करते । चीन जा बसे / बसाए गये, किन्नरों की इस भूमिका का परिणाम यह हुआ कि उनके
कोरियाई परिजन, राज शाही की कृपा से समृद्ध होने लगे । यहां तक कि कतिपय किन्नर,
इस स्थिति का फायदा उठा कर, अपने सगे सम्बन्धियों / परिजनों को, कोरियाई, शाही
अधिकारियों पर दबाब डाल कर, उच्च पदों पर तैनात करवाने लगे थे । हालांकि कुछ समय
बाद इस अनैतिक गतिविधि के कारण से, युआन को सौंपे गये किन्नरों से, कोरियाई लोग
वितृष्णा करने लगे थे लेकिन युआन शक्तिमत्ता के कारण से वे इसे रोक भी नहीं सकते
थे क्योंकि इन किन्नरों को युआन सम्राट का समर्थन प्राप्त हुआ करता था ।
...क्रमशः