गुरुवार, 26 जुलाई 2018

किन्नर -36-6

गतांक से आगे...

बंध्याकरण के बलात प्रकरणों के इतर अनेकों प्रकरण ऐसे भी मिलते हैं जहां स्वैच्छिक किन्नरत्व का, स्वीकरण / उद्धरण देखने को मिलता है  और इस तरह के प्रकरणों में वे सभी कारक मौजूद हो सकते हैं जोकि बलपूर्वक आरोपित किये गये किन्नरत्व के साथ जोड़ कर देखे गये हों यानि कि, स्वामी भक्ति, ईश्वरीयता, समलैंगिकता अथवा अन्यान्य महत्वाकांक्षाएं / आकांक्षाएं । बहरहाल बाध्यताकारी ढंग से किन्नर बनाये जाने या फिर स्वयमेव किन्नर बन जाने के परिणाम किन्नर बन चुके, व्यक्ति के आगत जीवन में स्पष्ट दिखाई देने चाहिए मसलन बाध्य किया गया बच्चा, प्रौढ़ होने पर, यौन वंचना की कुंठाएं, क्रूरता की शक्ल में प्रदर्शित कर करे या फिर उसकी उपलब्धियां किसी सामान्य मनुष्य की तुलना में सिर चढ़ कर बोलने लगें तो यह अंतर हमें स्पष्ट समझ में आ जाना चाहिए कि अमुक किन्नर के व्यक्तित्व पर किन्नरत्व का प्रभाव कितना सकारात्मक अथवा नकारात्मक है । हमारे कहने का आशय यह है कि किन्नर बनाए गये व्यक्ति और किन्नर बन गये व्यक्ति की अस्मिता के अंतर / पहचान के लक्षण आगत समय में अवश्य ही मुखरित होना चाहिए । महानायक हो जाने अथवा खलनायक बन जाने के सूत्र कारण, किन्नर बनाये जाने अथवा बन जाने की परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं । अच्छा या बुरा मनुष्य होने का प्रदर्शन उन हालातों से तय होगा जिन हालातों ने किन्नरत्व का सूत्रपात किया होगा / बीज बोया होगा । इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि किन्नरों द्वारा किये गये भयावह नरसंहार, लूट खसोट, विश्वासघात के कारण निश्चित रूप से किन्नर बनाये जाने में किये गये बाध्यतामूलक तत्व पर निर्भर होंगे जबकि किन्नरों की सृजनात्मक उपलब्धियों के कारण इससे भिन्न हो सकते हैं । बहरहाल अपवाद हर एक स्थिति में होते हैं सो किन्नर व्यक्तित्व  के निर्धारक तत्वों  के अपवाद भी अवश्य पाए जायेंगे । 

उपरोक्त चर्चाओं से किन्नरों के प्रति कुछ धारणाएं बनती हैं, जिनमें से एक यह कि किन्नर, समलैंगिकता में रूचि रखने वाले तो हो भी सकते हैं पर विषम लिंगीयता के प्रति उनकी रूचि की संभावनाएं शून्य ही मानी जायेंगी । या फिर ये कि किन्नर किसी भी लिंग के प्रति यौनाकर्षण नहीं रखते । इसके अतिरिक्त यह कि जन्मजात, जननिक दोषों / देह विकृतियों के कारण से उनके द्वारा संतानोत्पत्ति संभव नहीं हो सकती । इसके साथ ही किन्नरों के विषय में यह विचार भी जन्म लेता है कि वे विवाह करने में सक्षम हो सकते हैं किन्तु ईश्वर को साधने के लिये, वे स्वैच्छिक रूप से विवाह से दूर बने रहते हैं या कि नपुंसक हो जाते हैं । बहरहाल इतिहास और धार्मिक ग्रंथों में किन्नरों की छवि समलैंगिक व्यक्ति का बोध कराती है जोकि शत प्रतिशत सत्य नहीं है । किन्नर सामान्यतः अपने मूल परिवार को, जहां कि उनका जन्म हुआ हो, छोड़ देते हैं और अपनी पुरुष पहचान का परित्याग करके स्त्रियोचित परिचय, वेशभूषा और नाम का उपयोग करने लगते हैं, किसी समय में उनके लिये, परिहासात्मक कथन किया जाता था कि बीमार होने के समय में चिकित्सकों के लिये ये तय करना मुश्किल हो जाता था कि, बीमार किन्नर को पुरुष वार्ड में भरती किया जाए या कि स्त्री वार्ड में । 
...क्रमशः