बुधवार, 25 जुलाई 2018

किन्नर -36-5

गतांक से आगे...

नि:संदेह यह व्यापार अमानवीय था पर धन लोभी मनुष्य / व्यापारी क्या क्या कर सकता है, इसका ये सर्वाधिक महत्वपूर्ण उदाहरण है । इन मानव मंडियों में, सामान्यतः पराजित युद्ध क्षेत्रों के बच्चे, निर्धन परिवारों के बच्चे तथा वयस्क सैनिक, यदि वे स्व-पक्ष की पराजय के उपरान्त, बंदी बना लिये गये हों तो, विक्रय हेतु प्रस्तुत किये जाते और व्यापारी गण, उनमें अपने मुनाफे की संभावनाएं देख कर दांव लगाते । अक्सर इन क्रीत दासों को प्रथम विक्रय के समय ही बंध्याकृत कर दिया जाता था, इसका अर्थ ये हुआ कि ज्यादातर बचपन, क्रय विक्रय की प्रथम पायदान पर ही पौरुष हीन कर दिया जाता । यह एक तरह से उन बच्चों  के आगत यौन जीवन / यौनाचार पर प्रतिबन्ध लगाये जाने की तरह था । इस व्यापारिक दंड प्रक्रिया में बच्चों की इच्छा, अनिच्छा का कोई मोल नहीं था । इसी तरह से पराजित युद्ध बंदी सैनिकों के किन्नर बनाए जाने की पीड़ा सहज ही समझी जा सकती है । हालांकि हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि किन्नर बनाए जाने की प्रक्रिया के पीछे, धार्मिक अथवा यौन संभावनाओं जैसे कारण भी हो सकते हैं। धार्मिक इसलिए कि विषय वासनाओं / यौन लालसाओं से मुक्त हुआ अथवा मुक्त कर दिया गया व्यक्ति ईश्वरीय, विधि विधानों के निष्पादन के लिये सर्वथा उपयुक्त माना जाएगा, क्योंकि उसके पास स्वयं की सांसारिक अभिलाषाओं की कोई सूची मौजूद नहीं होती और वह ईश्वर के लिये समर्पित भाव से कार्य कर सकता है, यानि कि छीन ली गई सांसारिकता के बदले कथित पारलौकिकता की सच्ची सेवा के भ्रम । बहरहाल किन्नर बनाए जाने की पृष्ठभूमि में यौन संभावनाओं की चर्चा नहीं करना अनुचित होगा । हम यह मानते हैं कि पुरुष, केवल भिन्न लिंगीय सहवास से संतुष्ट होने वाला प्राणी नहीं है सो उसकी समलैंगिक यौन कामनाओं की तुष्टि के लिये, उसे किसी ना किसी रूप में किन्नर सहचर की आवश्यकता हो सकती है । इसका एक अर्थ ये हुआ कि समलैंगिकता का तोष किन्नर बनाये जाने की घटनाओं का एक महती कारक हो सकता है । हमारे इस अभिमत की पुष्टि इस तथ्य से हो जाती है कि ज्यादातर मानव व्यापारी, मानव मंडियों से खूबसूरत बच्चों तथा पुरुषों के क्रय को प्राथमिकता दिया करते थे ।

जिन प्रकरणों में धार्मिकता अथवा समलैंगिकता, बंध्याकरण का कारक नहीं होती होगी, वहाँ तत्कालीन कृषक और पशुपालक अर्थव्यवस्था में सहायता के लिये दासों की आवश्यकता एक कारण हो सकती है । इसके अतिरिक्त सैन्यबलों में संख्या वृद्धि को भी इसका कारण माना जा सकता है क्यों सैन्य बलों के स्वामी, सम्राट / सामंत / सेनानायक किन्नर दासों के क्रय विक्रय के सिलसिले पर पूर्ण विराम लगा देते थे तो अपमानजनक प्रक्रिया से छुटकारा दिलवाने वाले अंतिम स्वामी के प्रति विश्वसनीय स्वामीभक्ति की संभावनाएं बढ़ जाती होंगी । कदाचित इसीलिए हमने अपने अध्ययन के दौरान, अनेकों किन्नरों को साधारण सैनिक से सेना नायक / महा नायक बनते देखा है । किन्नर होने के नाते यौन अभिलाषाओं से मुक्त व्यक्ति, सम्राटों / शाहों / सामंतों की पत्नियों, उप पत्नियों, यौन दासियों आदि से लदे फंदे रनिवासों / हरमों में सुरक्षा के लिये सर्वाधिक उपयोगी माना गया होगा क्योंकि विशुद्ध पुरुष रक्षक से यौन विश्वासघात के खतरे और महिला रक्षकों से षड्यंत्रकारिता जैसी खतरे उठाने की बजाये रनिवासों के स्वामियों को किन्नरों की सेवायें ज्यादा निरापद लगती होंगी सो हम रनिवासों की पहरेदारियों वाले कारक तत्व को, बंध्याकरण के प्रमुख कारणों में से एक मान सकते हैं । ऐतिहासिक विवरण किन्नरों के प्रति हमारी इस समझ को जायज़ भी ठहराते हैं । किन्नर बनाये जाने के कुछ प्रकरण भारतीय जाट बहुल क्षेत्रों की खाप पंचायतों से प्रेरित, प्रकरणों जैसे हो सकते हैं यानि कि प्रेम प्रसंगों में शिश्न मुक्त अथवा अंडकोष कुचल देने जैसे दंड । हालांकि इन प्रकरणों में जाति पंचायतों के नाम / कुल नाम, विश्व परिदृश्य में देशों की आंचलिक विशिष्टताओं के अनुरूप हो सकते हैं किन्तु किन्नरों के सम्बन्ध में प्रेम के दंड भुगतने जैसी आयाम भी जोड़े जा सकते हैं ।
...क्रमशः