गतांक से आगे...
वैश्विक इतिहास में चीन को मानव सभ्यता के बड़े केन्द्र के रूप में स्वीकार किया गया है । यहां किन्नरों की उपस्थिति विश्व के अनेकों देशों की तुलना में अधिक रही है, लेकिन चीन में किन्नरों की संख्या के आधिक्य का एक कारण यह भी है कि यह देश अन्य पड़ोसियों की तुलना में शक्तिशाली था और अपेक्षाकृत निर्बल पड़ोसी देशों की जनसँख्या में से, उन लोगों को स्वीकार करने में रूचि रखता था जिनका कि बंध्याकरण कर दिया गया हो । हमें चीन के इतिहास में ई.पू. आठवी शताब्दी के आस पास, किन्नरों का उल्लेख मिलता है । कहते हैं कि जब झोउ साम्राज्य (1045 -256 ई.पू.) ने पूर्वी क्षेत्र में सीमा का विस्तार किया था, तब झोउ सम्राट के पास अनेकों किन्नर सेवक मौजूद थे । इसके अतिरिक्त एक अस्पष्ट विचार / संभावना यह भी है कि शेंग साम्राज्य (1600-1046 ई.पू.) के समय में भी किन्नर अस्तित्वमान थे । इसके पश्चात सामान्य काल 1611-1911 के किंग साम्राज्य, 1368-1662 के मिंग साम्राज्य, में किन्नरों की उपलब्धता के बयान मिलते हैं । जैसा कि हम पहले ही उल्लेख कर चुके हैं कि चीनी राजवंशों ने पड़ोसी देशों के किशोर किन्नरों को बतौर नजराना स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया था सो चीन की अपनी जनसँख्या के बंध्याकृत होने / बनाए जाने की संभावनाएं, तुलनात्मक रूप से न्यूनतम हो गईं थीं । इस कहन का मंतव्य ये है कि चीन की देशज जनसँख्या के मुकाबिले में, पड़ोसी देशों से, कर बतौर प्राप्त किन्नर तथा पराजित सैनिकों के रूप में उपलब्ध किन्नर चीन की किन्नर संख्या का बड़ा हिस्सा बन गये थे । चूंकि उन दिनों सर्जरी की तकनीक पिछड़ी हुई थी सो बंध्याकृत किये जाने वाले लोगों में से अनेकों लोगों की मृत्यु भी हो जाया करती थी । तब बंध्याकृत किये जाने वाले व्यक्ति को पीठ के बल लिटा दिया जाता और सर्जरी के प्रशिक्षुगण, उस व्यक्ति के हाथ पैर कस कर पकड़ लेते और मुख्य आपरेशन-कर्ता चाकू लेकर तैयार हो जाता इसके बाद, सम्बंधित व्यक्ति से यह पूछा जाता था कि वो बंध्याकरण के लिये तैयार है अथवा नहीं । यदि सम्बंधित व्यक्ति झिझकता और उत्तर देने में थोड़ी भी देर करता तो बंध्याकरण की प्रक्रिया तत्काल स्थगित कर दी जाती और यह मान लिया जाता कि सम्बंधित व्यक्ति नर्वस है ।
इसके
बरक्स यदि सम्बंधित व्यक्ति बंध्याकृत होने के लिये अपनी सहमति दे देता तो फिर
चाकू अथवा हंसिये की सहायता से उसका लिंग अथवा लिंग के साथ अंडकोष भी एक झटके से
काट दिये जाते । तत्पश्चात बंध्याकृत
व्यक्ति के मूत्राशय में लकड़ी के कीलें डाल दी जातीं और शल्य क्रिया वाले स्थान को
ठंडे पानी में डूबे हुए सोखता कागज से ढांक दिया जाता । सर्जरी के प्रशिक्षु गण बंध्याकृत व्यक्ति की
बांहे पकड़ कर दो तीन घंटे तक पैदल चलाया करते ।
बंध्याकृत व्यक्ति अगले तीन दिनों पानी नहीं पी सकता था क्योंकि पानी पीने
के बाद उसे पेशाब करने की आवश्यकता पड़ सकती थी, जोकि
उसके लिये उचित नहीं था। तीन दिनों के
बाद बंध्याकृत व्यक्ति अपने मूत्राशय से लकड़ी की कीलें निकाल सकता था । यह माना जाता है कि कीलें हटाने के बाद यदि
बंध्याकृत व्यक्ति ठीक से पेशाब कर पाता तो उसे स्वस्थ मान लिया जाता अन्यथा उसकी
मृत्यु को निश्चित समझा जाता हालांकि युद्ध बंदियों के साथ बंध्याकरण से पूर्व पूछ
ताछ की आवश्यकता नहीं समझी जाती थी । युद्ध बंदियों के अतिरिक्त दोष सिद्ध अपराधियों को भी बंध्याकृत कर दिया
जाता था । हम जानते हैं कि बंध्याकरण चीन
के प्रमुख पांच दण्डों में से एक था।
अपराधियों के अतिरिक्त उन लोगों को भी बंध्याकृत कर दिया जाता था जिन्हें
सम्राट समलैंगिक संबंधों के लिये चुन लेता था । सामान्यतः इन चयनित लोगों में सुंदर पुरुषों और सुंदर किशोरों की संख्या
अधिक हुआ करती थी । सुई साम्राज्य
(581-618) के समय में बंध्याकरण को दंड की परिधि से बाहर कर दिया गया था । दुनिया में शायद ही ऐसा कोई मनुष्य हो जो
बंध्याकरण की क्रूरता / बर्बरता को देख / जानकर व्यथित ना हो । चीनी इतिहास में (770-403ई.पू.) के वसंत काल में हुआंगओंग नाम के व्यक्ति का
उल्लेख मिलता है, जोकि स्वेच्छा से बंध्याकरण के लिये तैयार
हो गया था । इसके बाद तेंग साम्राज्य
(सामान्य काल 618-1279) और सुंग साम्राज्य
(960-1279) के समय में अनेकों ऐसे व्यक्तियों के हवाले मिलते हैं जोकि
स्वेच्छा से किन्नर बनने के लिये सहमत हो
गये थे । संभव है कि इसकी पृष्ठभूमि में
किन्नरों को मिलने वाली उच्च पद स्थितियों तथा सम्राट की निकटता हासिल करने जैसे कारक तत्व भी उत्तरदायी रहे
हों। कथनाशय यह कि धन की प्राप्ति,
समृद्धता पूर्ण जीवन और
प्रतिष्ठित लोगों का नैकट्य इसका कारण रहा हो ।
...क्रमशः