गतांक से आगे...
महाभारत के तमिल
संस्करण के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने अरावान से ब्याह करने
के लिये मोहिनी रूप धारण किया था, वे अरावान को उसकी मृत्यु के पूर्व प्रणय का
अनुभव / अनुभूति देना चाहते थे क्योंकि उसने स्वयं को बलिदान के लिये प्रस्तुत
किया था । इस प्रकरण में उल्लेख मिलता है
कि भगवान श्रीकृष्ण मोहिनी रूप में अरावान की मृत्यु उपरान्त शोक समय तक मौजूद रहे
। गौर तलब है कि आजकल, अरावान के ब्याह और
उसकी मृत्यु के घटना क्रम को वार्षिक आयोजन के तौर पर मनाया जाता है । इस अनुष्ठान को थाली कहते हैं, अनुष्ठान के
दौरान तृतीय लिंग / किन्नर लोग, कृष्ण मोहिनी दृश्य अभिनीत करते हैं और विधिवत
अरावान से ब्याह का स्वांग रचाते हैं ।
अनुष्ठान कुल 18 दिनों तक चलता है और अरावान की मृत्यु के विधि विधानों /
रस्मों के साथ समाप्त होता है । इस समय
किन्नर गण, अपनी छातियों को पीटते हुए / स्यापा करते हुए, (इसे हम विधवा विलाप भी
कह सकते हैं ) तमिल शैली में अनुष्ठानिक शोक नृत्य करते हैं तथा तथा अपनी चूडियां
फोड़ते हुए श्वेत वर्ण शोक वस्त्र धारण करते हैं ।
इसी तरह से अर्जुन
का वृहन्नला अवतार तथा अम्बा का शिखंडी अवतार भी विचारणीय होगा जिनका उल्लेख हम
लैंगिक परिवर्तन / तरलता के तौर पर करना चाहेंगे । पवित्र पद्म पुराण में उल्लेख है
कि भगवान श्री कृष्ण के रहस्मयी नृत्य में सम्मिलित होने के लिये अर्जुन शारीरिक
रूप से एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हुआ था, चूंकि वहाँ के आयोजन में सम्मिलित
होने की अनुमति एक ही स्त्री को मिलनी थी सो अर्जुन ने यह अनुमति स्वयं के लिये
हासिल की । इसके इतर किन्नरों की आराध्य देवी बतौर माता बहुचरा का
उल्लेख भी हम, शिखंडी और वृहन्नला के साथ पृथक से कर चुके है सो उसे यहां पर
दोहराने की आवश्यकता नहीं है । भारतीय मिथक वांग्मय के संक्षिप्त उल्लेख का
उद्देश्य केवल इतना है कि हम जान सकें कि स्त्री पुरुष भेद, लैंगिकता की सीमा
रेखाओं से इतर / परे भारतीय जनमानस, लैंगिक तरलता / लैंगिक परिवर्तन और किसी भी
लिंग की गरिमा को आश्रय देता है ।
माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब भी
किन्नरों के संरक्षक थे वे स्त्रियों की तरह से कपड़े पहनते ताकि वे लोगों को छल
सकें, उनकी नक़ल उतार सकें और स्त्रियों के समूह में सरलता से प्रविष्ट हो सकें
उन्हें छेड़ सकें । कहते हैं कि स्त्रियों के वस्त्र धारण करने के कारण से साम्ब
अभिशापित हुए थे और इसके परिणाम स्वरुप उन्हें मूसल और ओखली को जन्म देना पड़ा ।
इतना ही नहीं हमें देवताओं के मध्य भी समलैंगिक और उभयलिंगी यौन क्रियाओं के
उद्धरण मिलते हैं, कदाचित इसका कारण, यौन सुख हो या फिर केवल अनुष्ठानिक । अग्नि
देव, धन, रचनात्मक ऊर्जा और अग्नि के स्वामी माने जाते हैं पर उन्हें सम-लिंगी
गतिविधियों के अतिरिक्त अन्य देवताओं के वीर्य को स्वीकार करने वाला भी कहा गया है
। देवी स्वाहा से विवाहित होने के बावजूद उनके सम-लिंगी सम्बन्ध सोम यानि कि
चन्द्र देव से बताए गये हैं । इस सम्बन्ध में अग्नि कि भूमिका स्वीकार करने वाले पक्ष
की है वे सोम के वीर्य को अपने मुख से स्वीकार करते हैं इसी के समानांतर वे, धरती
से स्वर्ग तक बलि / उपहारों को स्वीकार करते हैं । जबकि अन्य गल्पों में इसे मिथुन
अनुष्ठान कहा गया है जहां अग्नि का मुख स्त्री की भूमिका में है ।
...क्रमशः