सोमवार, 16 जुलाई 2018

किन्नर-35-8

गतांक से आगे...

इसलिए प्राप्त वरदान के अनुसार उन्होंने पुत्री रूप में चन्द्र के पुत्र बुध से ब्याह किया और पुरुरवा नाम के पुत्र को जन्म दिया । इसके उपरान्त वे पुरुष रूप में सुद्युम्न बन गईं तथा मनु के कुल में तीन पुत्रों, उत्कल,गय और विन्ताश्व का पिता बन गईं । दूसरे गल्प के अनुसार जंगल की एक गुफा में इच्छाधारी यक्ष और यक्षिणी रहते थे, वे अक्सर मृग और मृगी के रूप में जंगल में घूमते रहते । उसी समय वैवस्वत कुलीन राजा इल शिकार करने के उद्देश्य से जंगल में आया और फिर जंगल की उसी गुफा में ही रहने लगा । चूंकि उसने यक्ष यक्षिणी की गुफा का परित्याग करने से इंकार कर दिया तो एक युक्ति के रूप में यक्षिणी ने उसे मृगया के लिये आकर्षित किया और उसे उमा वन ले गई जहां जो भी व्यक्ति प्रवेश करता, आदि देव शंकर के प्रताप से स्त्री बन जाता । सो इल भी इला बन गया तब यक्षिणी ने प्रकट होकर उसे स्त्रियोचित भाव भंगिमाएं, नृत्य संगीत आदि की शिक्षा दी और उसके स्त्री हो जाने का कारण भी बताया । कालान्तर में इला का ब्याह बुध से हो गया और उसने पुरुरवा को जन्म दिया । पुरुरवा के सुयोग्य होते ही, इला ने गौतमी नदी के किनारे आदि देव शंकर की उपासना की और फिर से इल का रूप प्राप्त किया ।

भारतीय वांग्मय में स्त्री और पुरुष लिंग के पृथक पृथक हवालों के समानान्तर उभयलिंगीय हवाले भी मिलते हैं, हालांकि इन हवालों को स्त्री पुरुष साम्य / समानता और सम गौरव / सम प्रतिष्ठा के दृष्टान्त बतौर देखा जाना उचित होगा ।  आदि देव शंकर और माता पार्वती का संयुक्त रूप अर्धनारीश्वर, जिसके माध्यम से आदि देव, सम्पूर्णता के, द्वैध / द्वि-लिंगीयता के, इतर / पार होने का सन्देश देते हैं, कथनाशय यह है कि सम्पूर्णता, लिंग भेद से ऊपर होती है ।हम यह मान सकते हैं कि यह सन्देश देवों और मनुष्यों को एक साथ / समेकित रूप से दिया गया है । क्या हम अर्धनारीश्वर की छवि में उभयलिंगीयता, समलैंगिकता अथवा भिन्न लिंगीयता के प्रतीकात्मक मूल्यों की उपस्थिति की कल्पना कर सकते हैं ? लगभग इसी तरह के अन्य उद्धरण का उल्लेख करना भी समीचीन होगा, जिसमें माता लक्ष्मी और उनके पति भगवान विष्णु के लिये समेकित / संयुक्त नामकरण है, लक्ष्मी नारायण । पवित्र भागवत पुराण में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने दैत्यों को अमृत से वंचित करने के लिये मोहिनी रूप धारण किया था ।

कहते हैं कि आदि देव शिव कालांतर में मोहिनी पर अनुरक्त हो गये और उनका वीर्य जिस चट्टान पर गिरा वह स्वर्ण बन गई, पवित्र ब्रह्मानंद पुराण कहता है कि मां पार्वती ने अपने पति को मोहिनी का अनुसरण करते देख, लज्जा से अपना शीश झुका लिया । कतिपय अन्य कथाएं कहती हैं कि, आदि देव ने भगवान विष्णु से कहा कि वे मोहिनी रूप पुनः धारण करें ताकि आदि देव स्वयं के लिये, वास्तविक परिवर्तन को देख सकें । अन्य गल्प / कथाओं में यह उल्लेख मिलता है कि आदि देव जानते थे कि यौन आकर्षणों में लिंगीय तरलता (सहज परिवर्तन शीलता) की व्याख्या / सुझाव मोहिनी की वास्तविक प्रकृति है । अगर हम मोहिनी के स्त्रैण तत्व को वास्तविकता के भौतिक पक्ष को व्याख्यायित करने वाला माने तो पायेंगे कि मोहिनी ने जागतिक मामलों में आदि देव की रूचि जागृत करने के लिये यह प्रयास किया ।

यहां पर हमें उस दृष्टान्त को भी ध्यान में रखना होगा जबकि एक दैत्य, स्त्री रूप धारण कर के (अपनी योनि में तीक्ष्ण दांत रख कर) आदि देव को मारने का यत्न कर रहा था और भगवान विष्णु ने अपनी शक्ति से आदि देव को सम्मोहित किया जिससे आदि देव, ढोंगी दैत्य को पहचान गये और उन्होंने प्रणय क्रियाओं के दौरान उसके पौरुष केन्द्र पर विद्युत प्रहार कर के उसका वध कर दिया । एक अन्य पौराणिक कथा कहती है कि भगवान अय्यप्पा की उत्पत्ति आदि देव शंकर के आलिंगन उपरान्त मोहिनी के गर्भवती हो जाने के फलस्वरूप हुई जिसे मोहिनी ने लज्जावश परित्यक्त कर दिया ।  कथा का एक अन्य संस्करण कहता है कि पांडयन राजा, राजशेखर ने उक्त नवजात शिशु को गोद ले लिया था हालांकि इस संस्करण में भगवान अय्यप्पा को अयोनि-जात यानि कि स्त्री जननांग से पैदा नहीं, कहा गया है और बाद में उन्हें हरिहर पुत्र अर्थात आदि देव और भगवान विष्णु का पुत्र भी कहा गया है ।
...क्रमशः