गतांक से आगे...
जहां
ग्रीक-ओ-रोमन, मिस्री सभ्यताओं तथा ईसाइयत और इस्लाम के अनुयाइयों में किन्नरों की
उपस्थिति के ब्योरे खोजते समय हमने यह जाना कि ये सभ्यताएं / धर्म, मूलतः
भूमध्यसागरीय देशों से सम्बंधित है और दुनिया के अन्य देशों / समाजों की तरह से
इनमें भी मानवीय द्वैध बेहद मुखर है, यानि कि धार्मिक / आध्यात्मिक कथनों में,
किन्नरों के ईश्वर प्रिय और पवित्र होने के उल्लेख हैं किन्तु राज प्रासादों, अमीर
लोगों के दरम्यान किन्नरों की वास्तविक भूमिका दासत्व की है, समलैंगिक सहचर की है,
जिनके पौरुष को, सत्तागत कारणों, जेता होने के दंभ की पूर्ति के लिये या
अप्राकृतिक यौन लालसाओं की पूर्ति, जैसे कारणों से, हर लिया गया है । वे जिस काल
खंड में आध्यात्मिक उन्नति के अग्रगामी / श्रेष्ठतम पात्र कहे / माने गये, ऐन उसी
समय, आर्थिक सम्पन्नता और यौन अभिलाषाओं
को लेकर, उनका स्थान रसातल-गामी होना स्वीकार किया जाएगा । अगर हम समता मूलक
समाजों की कामना करते हों और मानवीय गरिमा के पक्षधर हों तो, हमें यह मान लेना
होगा कि तत्कालीन समाज, किन्नरों के साथ न्याय पूर्ण व्यवहार नहीं कर सके ।
पिछले विवरणों की
तरह से यदि हम किन्नरों को हिंदू मिथकों में देखना चाहें तो पायेंगे कि,
इन्द्रदेव, प्रायोगि से कहते हैं कि, तुम ज्ञानी होकर भी शाप वश स्त्री बने हो, सो
अपनी दृष्टि नीचे की ओर रखो, ऊपर मत देखो,छोटे छोटे क़दमों से चलो, तुम्हारा मुख और
पिंडलियाँ दिखाई ना दें, वे वस्त्र से ढंकी रहें । यानि एक पुरुष शाप वश ? या किसी अन्य कारण से
स्त्री अथवा स्त्रैण हो सकता है । गुरु
बृहस्पति की पत्नि तारा और चन्द्र सहपलायन के प्रकरण में, घर वापस लौटी तारा के
गर्भ में चन्द्र का अंश होता है, जिस पर क्रुद्ध होकर ऋषि उसे शाप देते हैं कि
उसके गर्भ की संतान नपुंसक (लिंग) होगी, कालान्तर में यही संतान, बुध यानि कि
बुद्धि के देवता के रूप में प्रकटित होती है ।
अगर हम ज्योतिष को सन्दर्भ माने तो, हमें सूर्य, गुरु और मंगल में पुरुष
तत्व तथा चन्द्र, शुक्र और रहू में स्त्री
तत्व प्रबल दिखाई देगा जबकि शनि, केतु और बुध स्पष्ट रूप से नपुंसक लिंग, माने गये
हैं, यानि कि हम शनि, केतु और बुध को परा लैंगिक श्रेणी अथवा किन्नर श्रेणी में
गिन सकते हैं ।
इस सम्बन्ध में
इला की कथा बेहद रोचक है, उसे आदि देव शंकर
और माता पार्वती का शाप था कि वो एक माह स्त्री और दूसरे माह पुरुष बन जाया करेगी
सो जब वो स्त्री थी तब उसका विवाह चन्द्र देव के पुत्र बुध से हो गया । बुध को इला
के परिवर्तनीय लैंगिक अनुक्रम का ज्ञान था किन्तु इला स्वयं पुरुष या स्त्री होने की
दशा में अपना अतीत विस्मृत कर बैठती थी । कहते हैं कि इला और बुध, इला के स्त्री
रूप के दौरान ही पति पत्नि रहते और उनके एक पुत्र भी हुआ जिसके बाद उसका शाप
समाप्त हो गया । तब उसे पूर्णतः पुरुष का स्वरुप प्राप्त हो गया और उसने अपनी पत्नि
के साथ जीवन के शेष दिन गुज़ारे और उन दोनों के बच्चे भी हुए । ऋग्वेद में इला को
अन्न की अधिष्ठात्री माना गया है लेकिन सायण में उन्हें पृथ्वी की अधिष्ठात्री कहा
गया है तथा वैदिक साहित्य के अनुसार वे यज्ञ का नियमन करने वाली देवी हैं । उनके सम्बन्ध में दो अन्य गल्प भी प्रचलित हैं
जिनमें से प्रथम तो ये कि इला वैवस्वत मनु की पुत्री थीं जिन्होंने मित्रारूण यज्ञ
कर के दस पुत्रों और पुत्री इला को प्राप्त किया था । चूंकि अपने पिता के साथ वापस
जाने से पहले इला ने मित्रारूण की अनुमति की आवश्यकता निरुपित की थी अतः मित्रारूण
ने उन्हें अपने कुल की कन्या तथा मनु के पुत्र होने का वरदान दिया था ।
...क्रमशः