शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

किन्नर-35-5

गतांक से आगे...

पवित्र कुरआन, सूरह नूर 24, 5-31 में कहता है कि युवा सेवक जिनमें पौरुष शक्ति का अभाव होगा, सूरह वाकियाह  56,5-61 में कहता है, तुम नहीं जानते, हम तुम्हें बदल सकते हैं नये सिरे से । इसके ठीक बाद आयत 63 कहती है, तुम क्या पैदा करते हो ? स्पष्टतः यहां पर उर्वरता और अनुर्वरता का संकेत है, जिसे पौरुष अथवा अपौरुष की तुलनात्मक बहस में आधार सूत्र बतौर सम्मिलित किया जा सकता है वर्ना प्रत्यक्ष रूप से अनुर्वर पुरुष / किन्नर का कोई उल्लेख पवित्र कुरआन में नहीं है । पवित्र कुरआन में गिलमां शब्द का प्रयोग हसीन लौंडों के लिये किया गया है, जोकि जन्नत में सेवक रहेंगे (52:24, 56:22-23,76:19) काली आंखों वाले, छुपे हुए मोतियों जैसे, अक्षत / अनश्वर पौरुष ओज हीन लौंडे, शुद्ध बासंती कटोरियाँ लिये हुए। यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि भले ही इन हसीन लौंडों को सेवक बताया गया है पर समलैंगिक साथी के तौर पर इनका उल्लेख नहीं मिलता । ये बात अलग है कि आप सेवक को अपनी सुविधानुसार समलैंगिक साथी / सहचर मान लें ।

हमें यह स्वीकार करना होगा कि पवित्र कुरआन के नाजिल होने के समय में दैहिकताओं की जटिल श्रेणियाँ अथवा लैंगिक विभाजन इतना मुखर / स्पष्ट नहीं था अतः सरल समाजों के सरल लैंगिक विभाजनों से सम्बंधित निर्देशों के अतिरिक्त हमें समलैंगिक अथवा गे या फिर किन्नर श्रेणी, जन्मजात अथवा बलात बंध्याकृत आदि के विस्तृत विवरण / उल्लेख हमें वहाँ मिलेंगे ऐसा सोचना भी व्यर्थ है । बहरहाल पवित्र कुरआन में हिजडा / खस्सी शब्दों का प्रयोग मिलता भी नहीं है, भले ही पवित्र कुरआन 24:31 में, इस बात का संज्ञान लेता दिखाई दे कि, कुछ पुरुषों में, बालिग़ पुरुष होने के बावजूद लालसाएं / इच्छाएं / दक्षता नहीं होती । अस्तु स्पष्ट तथ्य यह कि पवित्र कुरआन आधुनिक समाजों की जटिलताओं के तकनीकी और विस्तृत ब्योरे इसलिए नहीं देता क्यों कि वह सरल समाजों की सरल विशिष्टताओं के समय में नाजिल हुआ था । बहरहाल इस वक्तव्य को, हम इस तरह से भी कह सकते हैं कि संभव है कि उक्त अरेबिक समाज में समलैंगिकता / तृतीय लिंग का अस्तित्व, अंतर्धारा / अन्तर्निहित / अंडरकरेंट रहा होगा अतः इस छुपे हुए / गोपनीय वैशिष्ट्य पर, धारा की सतह की मौजूदगी वाली प्रतिक्रिया अथवा हवाले ढूँढना, उचित नहीं है ।

किन्नरों पर चर्चा करते हुए हमें कुछ श्रेणियों को समझना ज़रुरी है मसलन पारलैंगिक अथवा परालैंगिक, ऐसे लोग जो, जैसे दिखते हैं उसके विपरीत होना चाहते हैं, वे लोग जो स्त्रैण हैं यानि कि पुरुष होकर भी महिलाओं की तरह का व्यवहार करते हैं उन्हें अरेबिक भाषा में मुखन्नतुम कहते हैं । मुखन्नतुम अर्थात जो मनसा वाचा कर्मणा स्त्रैण दिखें, लिंग अथवा अंडकोष से वंचित हों, हालांकि ये लोग काम इच्छाओं से मुक्त होकर भी ईश्वरीय / आध्यात्मिक उत्कृष्टता हासिल कर सकते हैं । यानि कि यौन लालसाओं से मुक्त व्यक्ति ईश्वर और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में बेहतर योगदान दे सकता है अगर हम गौर करें तो ग्रीक-ओ-रोमन समाजों तथा भूमध्यसागर तटीय सभ्यताओं यथा मिस्र आदि के प्राचीन समय में भी यही धारणा प्रभावशील थी कि यौन लालसाओं से मुक्त व्यक्ति देवी देवताओं का पुरोहित हो सकता है । 

जब हम किन्नरों को पवित्र बाइबिल के हवाले से जानने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि Matt 19:11-12 में जीसस कहते हैं कि इस शब्द को हर कोई स्वीकार नहीं कर सकता ।  कुछ के लिये किन्नर इसलिए कि, वे ऐसे ही जन्मे हैं, जबकि अन्य मनुष्यों द्वारा किन्नर बनाये गये हैं और अन्यान्य वे जिन्होंने स्वर्ग के राज्य के लिये शादियों का परित्याग कर दिया । जो इसे स्वीकार करना चाहे, स्वीकार कर ले । मैथ्यू का प्राचीनतम संस्करण जोकि अरामेक या हीब्रू से ग्रीक में अनूदित हुआ है उसमें किन्नरों के लिये शब्द Eunouchos प्रयुक्त हुआ है जिसमें Eune का अर्थ है शैय्या और Echein का अर्थ है पकडना, सो ज्यादातर विद्वान मानते हैं कि इसका आशय है, वो जो शैय्या की रक्षा करे / पहरा दे । चूंकि जीसस हीब्रू के बजाये  अरामेक बोलते थे तो वहाँ पर Eunuch का आशय है Saris यानि कि भरोसे का आदमी ।
...क्रमशः