गुरुवार, 12 जुलाई 2018

किन्नर-35-4

गतांक से आगे...

प्रश्न उठता है कि इस्लाम में किन्नरों की स्थिति  क्या है ? तो इसके उत्तर में हमें दो तरह के दृष्टिकोणों का सामना करना पडेगा , एक तो ये कि शारीरिक रूप से उस व्यक्ति में प्रबल तत्व क्या हैं ? स्त्री अथवा पुरुष तत्व ? यानि कि वे स्त्रैण अथवा पुरुष गुण आधिक्य के हिसाब से समाज में स्त्री अथवा पुरुष माने जायेंगे । दूसरा दृष्टिकोण ये है कि अगर कोई व्यक्ति पौरुष हीन है चाहे उसके कारण आनुवांशिक हों अथवा कृत्रिम रूप से बंध्याकृत हों याकि किसी बीमारी / विकृति  के कारण उन्हें इस श्रेणी में रखा जाना हो तो हमें उन्हें इस बात का अहसास नहीं करना चाहिए कि हम जागतिक सुखों के आनंद ले रहे हैं और वे उससे वंचित हैं ।

हालांकि इस तरह के प्रकरणों में किन्नरों के अभिभावक भी द्वैध भाव अपनाते हैं और किन्नरों को हेय दृष्टि से देखते हैं जिसके कारण से वे लोग अवांछित जीवन शैली अपनाने के लिये बाध्य हो जाते हैं । हमें उन्हें समान जीवन अवसर प्रदान करना चाहिए, क्योंकि किन्नर भी ईश्वर के मार्ग का अनुगमन करने में उतने ही सक्षम हैं जितने की हम । यानि कि पौरुष तत्वों की कमीं आध्यात्मिक उपलब्धियों का निषेध नहीं करती । वास्तव में इस प्रकार की शारीरिक विकृति से उनके उचित अनुचित विचरण  पर कोई फर्क नहीं पड़ता । अतः उन्हें समाज में भी सम्मान जनक स्थान मिलना चाहिए । हालांकि स्त्री पुरुष बतौर सामाजिक आचरण संहिता उन पर भी लागू होती है ।

पवित्र कुरआन कहता है (3.6) कि ईश्वर ने तुम्हें गर्भ में गढा, सभी आकारों, समस्त शारीरिक लक्षणों में । सूरह 42:49-42:50 कहती है ईश्वर धरती और आकाश / स्वर्ग का स्वामी है वो जैसा चाहे वैसा सृजन करे । इस सन्दर्भ में हम  सूरह नूर (24 :31) का उल्लेख कर सकते हैं कि पुरुष सेवक जो पौरुष हीन हैं अथवा ईश्वर ने (82:8) जैसा चाहा, तुम्हे वैसा बनाया, स्त्री, पुरुष या अनुर्वर / बंजर / अप्रभावी । अगर हम पवित्र कुरआन में सीधे सीधे हिजड़ा अथवा किन्नर शब्द संबोधन ढूंढना चाहें, तो नहीं मिलेगा बल्कि वहां, जन्म के पश्चात बंध्याकरण बतौर पाप, उद्धृत मिलेगा । विशिष्ट कथन ये कि ईश्वर ने हर एक को उसका विषमलिंगी जोड़ा दिया है, लेकिन बंध्याकरण, स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की लालसा में आगे बढ़ने के, हवाले जैसा है ।

पवित्र कुरआन, 7:81 में कहता है कि तुम स्त्रियों के स्थान पर, पुरुषों की लालसा में पुरुषों तक पहुँचते हो । इसी तरह से 26:165-166 में कहता है कि क्या, तुम उन्हें त्याग कर, दुनिया में पुरुषों के पीछे भागते हो, जिन्हें, ईश्वर ने तुम्हारे लिये पैदा किया है, तुम्हारा जोड़ा बनाया है । ठीक ऐसे ही 27:55 में कहता है कि, क्या तुम स्त्रियों के स्थान पर पुरुषों की लालसा करते हो। इसके आगे पवित्र कुरआन 29:28-29 में कहता है कि तुम निश्चित रूप से दोषी हो, उस अभद्रता के लिये जो किसी भी देश ने तुमसे पहले कभी नहीं की, क्या तुम पुरुषों के, गर्भाशय / मूत्रमार्ग के रास्ते, को काट कर उत्पन्न हुए हो ? और अपने समूह में शैतानी / दुष्टता  करोगे ? 

हज़रत आयशा कहती हैं कि एक पौरुषहीन / स्त्रैण व्यक्ति पैगम्बर की पत्नियों के पास, जिसके बारे में यह माना जाता था कि उसकी वासनायें समाप्त  हो चुकी हैं, अक्सर आया करता था । एक दिन उसने पैगम्बर की एक पत्नि से स्त्रियों के गुणों की चर्चा प्रारम्भ कर दी । उसने कहा कि सामने से स्त्रियां चौगुनी और पीछे से आठ गुनी दिखाई देती हैं । इस पर पैगम्बर ने कहा कि कि वो व्यक्ति इन बातों को जानता है, इसलिए उसके सामने मत आओ, सो वे उस किन्नर के सामने हिजाब पहनने लगीं । अतः ये माना जा सकता है कि इस्लाम में स्त्रियों को किन्नरों से पर्दा करने की सलाह दी गई है । हालांकि पैगम्बर किन्नरों से अच्छा बर्ताव करने के हिमायती थे, उन्होंने, इनसे बुरे बर्ताव की मुमानियत की थी । पवित्र कुरआन,  सूरह बक्रह  2,5-233 और अन्य कई आयत में निर्देश देता है कि असामान्य / अक्षम सहित सभी लोगों से न्यायपूर्ण, भेदभाव रहित व्यवहार करो ।
...क्रमशः