गतांक से आगे...
प्राचीन समय में,
किन्नर / गल्ली शब्द के प्रसरित होने का लोक व्युत्पत्तिशास्त्र संकेत देता है कि,
गल्ली / गल्लू, सुमेरियन शब्द, ‘गल’ यानि कि महान और ‘लू’ अर्थात मनुष्य के,
समेकित स्वरुप / शब्द संधि से उपजा है । यह
शब्द सामान्यतः अधोलोक की देवी इन्नाना द्वारा मनुष्य अथवा यौनिकता की दृष्टि से
उभयलिंगी दैत्यों को मुक्त किये जाने को संबोधित है जोकि मूलतः देवता एनकी की
पवित्रता से संबधित माने जा सकते हैं ।इसी तरह से गल्लू, मेसोपोटामियन पुरोहितों
की एक श्रेणी, कालू के समान ध्वनित होते हैं, ये पुरोहित टिम्पनम नामित एक खेल,
खेलते हैं जोकि सांडों की बलि से सम्बंधित है, कहन ये है कि सुमेरियन देवी इन्नाना के
पुरोहित, गाला (अकेडियन कालू) मंदिरों और राज प्रासादों में बहुतायत से मिलते हैं
। ना तो पुरुष और ना ही स्त्री के गुणधर्म वाले, यह लोग, मेसोपोटामियाई शहरों और
केन्द्रीय संस्थानों में सतत मौजूद रहे हैं ।
ई.पू. तीसरी
शताब्दी के मध्य में, मंदिरों में, आलाप / विलाप / आर्तनाद गायकी के विशेषज्ञ,
गाला लोगों का उल्लेख मिलता है। प्राचीन बेबीलोनियन सन्दर्भों के अनुसार, गाला
लोग, देवता एनकी द्वारा, विशेष रूप से सृजित किये गये ताकि वे देवी इन्नाना के
लिये हृदय सुखकारी, आलाप / विलाप गायकी कर सकें । संभव है कि यह मूलतः स्त्रियों
की विशेज्ञता का क्षेत्र रहा हो और इसे कालान्तर में स्त्रियों जैसे पुरुषों ने
अपने आधिपत्य में ले लिया हो । सुमेरियन बोली में इस तरह के भजनों को इमे-साल कहते
हैं जोकि सामान्यत देवियों (स्त्रियों) की वाणी में गाये जाते यहां तक कि कुछ गाला
स्वयं का स्त्री नाम भी रख लेते । सुमेरियन बोली में दो तरह के सुर/ ध्वनि अभिकथन
मिलते हैं एक तो इमे-साल जोकि तीव्र ध्वनि सुर है और स्त्रैण सुर हैं जबकि दूसरा
इमे-गिर मानक सुर हैं सुमेरियन कहावतों
में, समलैंगिक झुकाव वाले गाला, देवी इन्नाना के सम्मान में गुदा और शिश्न के सफाए
की बात करते दिखाई देते हैं ।
मेसोपोटामियन
किन्नर पुरोहित, अस्सिन्नु, गालातुर, कुरगर्रू, रहस्यमयी पवित्र आयोजनों में,
विशिष्ट वेशभूषा और मुखौटे धारण करते देवी ईश्तर ( कदाचित देवी इन्नाना की बहन या
स्वयं इन्नाना) के अनुष्ठानिक सम्मान में नृत्य करते, गीत गाते और वाद्यवृन्दों से
खेलते, ठीक वैसे ही जैसे कि रोमन किन्नर एट्टिस देवी सायबेले के लिये किया करता था
। बहरहाल हमें स्मरण रखना चाहिए कि बेबोलियन, असीरियन मिथकों में गल्लू / गल्लुस /
गल्लास शब्द अधोलोक के महा-दैत्यों / दानवों को भी संबोधित था । इस हवाले से
किन्नर दुर्भाग्यशाली माने जायेंगे जो कि उन्हें, अधोलोक के दैत्यों के समतुल्य
माना गया । कहा गया कि वे नरक की संतान हैं । हालांकि बेबीलोनियन देवियों /
देवताओं के अनुयाइयों को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए था कि गल्लुस, उनकी वेदियों
पर भेड़ों की बलि देने वाले लोग थे और यह भी स्मरण रखा जाना चाहिए कि देवता एनकी
द्वारा भेजे गये दैत्य गल्लू ने देवी इन्नाना / ईश्तर को अधोलोक जाते समय सहायता
प्रदान की थी ।
सामान्यतः अंडकोषों का उन्मूलन और शिश्न भंग
करने का एक ही आशय है बंध्याकरण अथवा किन्नर बनाना जबकि कतिपय इस्लामिक विद्वान इन
दोनों घटनाओं को पृथक पृथक कर के देखते हैं वे मानते हैं कि अंडकोषों का उन्मूलन
केवल किन्नर बनाना है और शिश्न भंग करना
नपुंसक बनाना । बहरहाल वे सभी इस बात पर एकमत हैं कि इस्लाम में जानबूझकर नपुंसक
अथवा किन्नर बनाना/ बंध्याकरण हराम है । अल- मावसूआह अल-फिकियाह (19/120,121) कहती
है कि इस्लाम में बच्चे अथवा प्रौढ़ का बंध्याकरण हराम है क्योंकि ऐसा करना निषिद्ध
है । इब्न हजर कहते हैं कि, ऐसा इसलिए कि हम, आदम की संतान हैं । इब्न मसूद, कहते
हैं कि हमारे पास स्त्रियां नहीं हैं क्यों ना हम बंध्याकृत हो जायें तो पैगम्बर
ने उन्हें ऐसा करने से रोका । साद इब्न अबी वकास, उस्मान इब्न माजून, अल बुखारी
(4787) मुस्लिम (1404) के हवाले से कहते हैं कि यदि पैगम्बर अनुमति देते तो हम
स्वयं को बंध्याकृत कर लेते ।
...क्रमशः