मंगलवार, 10 जुलाई 2018

किन्नर -35-2

गतांक से आगे... 

ग्रीक-ओ-रोमन समाज में किन्नरों की तीन श्रेणियों का उल्लेख मिलता है, प्रथम स्पेडोनेस जो जन्मजात स्त्रैण हो सकते हैं अथवा पौरुष हीन व्यक्ति या जिनके अंडकोष, जैविक विरूपण का शिकार हों, दूसरा थिलिबियाये, जिनके अंडकोष कुचल दिये गये हों यानि कि जोर से दबा दिये गये हों और तीसरा थिलाडियाये, जिनके अंडकोष चूर चूर कर दिये गये हों ।  ये तीनो श्रेणियाँ, पुरुषों के अंडकोष के दबाये जाने, अंशतः उन्मूलन अथवा अंडकोष को पूर्णतः चूर चूर कर देने से सम्बन्धित है । कथनाशय ये है कि शिश्न उन्मूलन करते हुए गल्ली पुरोहित बनाए जाने का प्रचलन सामान्यतः ग्रीक-ओ-रोमन समाज में नहीं है, संभवतः लिंग उन्मोचित करने के उपरान्त किन्नर पुरोहित बनाये जाने की परम्परा प्राचीन मिस्र का हिस्सा रही हो ? बहरहाल  ग्रीक-ओ-रोमन समाज में शिश्न-हीन पुरोहितों का निषेध भी नहीं है । यानि कि ग्रीक-ओ-रोमन समाज में गल्ली पुरोहित अंडकोष उन्मूलित व्यक्ति है तो सही...पर उन्हें शिश्न-हीन गल्ली भी स्वीकार्य है, भले ही शिश्न उन्मूलन उनके समाज में नैतिक रूप से प्रचलित ना भी हो तो ।

रोमन साम्राज्य को धार्मिक आध्यात्मिक कार्यों, पवित्र अनुष्ठानों के संपादन के लिये पवित्र पुरुष पुरोहितों की आवश्यकता थी और पवित्रता की धारणा सहवास, यौन लालसाओं से मुक्ति के विचार पर आधारित थी । अतः अपने सामाजिक निषेधों का सम्मान करते हुए वे निकटवर्ती क्षेत्रों से बंध्याकरण के उपयुक्त लोगों की व्यवस्था किया करते हालांकि रोमन समाज के बरक्स मिस्री समाज में पुरोहितों के लिये स्त्रियों के त्याज्य होने का विचार व्यवहृत नहीं था। वहाँ पुरोहित स्त्रियों को आज्ञा देता कि वे मंदिर की दासी बन जायें । स्मरण रहे कि मंदिरों की दासी बनाए जाने का चलन, दक्षिण भारतीय मंदिरों की देवदासियों की परम्परा से सातत्य रखता है । इसी तर्ज़ पर ग्रीक-ओ-रोमन समाजों में अक्सर देवी देवता के संयुक्त रूप से माता पिता होने की धारणा, भारत के लिंग भेद हीन ईश्वर की धारणा से साम्य रखती है जहां ईश्वर, त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव, अथवा अर्धनारीश्वर हो सकता है ।

फ्रीजियंस को एशिया माइनर की सर्वाधिक पुरातन प्रजाति माना जाता है जोकि देव एट्टिस की बतौर संरक्षक उपासना करते थे । एट्टिस का महानायकत्व, क्रेटे द्वीप से होकर मुख्य भूमि तक पहुंचा, पवित्र द्वीप क्रेटे, जहां देवता एट्टिस को देवी यूरोपा के साथ पूजा जाता था जोकि धरती की मातृ देवी थी और सायबेले, रिया, डायना तथा मैग्ना मेटर आदि आदि नामों से भी जानी जाती थी । हेरोडोटस के मतानुसार, एट्टिस अर्वाचीन ग्रीक देव है जिसे ईश्वर के पुत्र के तौर पर जाना जाता है यद्यपि उसे एक पापात्मा देव / गुनहगार देव भी कहा जाता है । कहते हैं कि उसे देवी सायबेले द्वारा मनोविक्षिप्त / बावला कर दिया गया था क्योंकि उसने पवित्रता का व्रत तोड़ दिया था । मनोविक्षिप्तता की दशा में एट्टिस ने स्वयं को पौरुषहीन कर लिया था और आत्म घात करने की चेष्टा भी की थी जिसके उपरान्त देवी सायबेले ने उसे फर का वृक्ष बना दिया था और यह अनुज्ञा जारी की, कि उसके पुरोहित किन्नर / गल्ली हुआ करेंगे ।

इस मिथक को बदलती ऋतुओं के आलोक में प्रकृति की मृत्यु और उसके पुनर्जन्म की निरंतरता का मिथक कहा जा सकता है । कहने का मंतव्य ये है कि एट्टिस, फ्रीजिया के गडरियों / चरवाहों और वनस्पतियों का देव है, जिसके द्वारा स्वयं का अंग भंग, आत्म घात और फिर से जी उठना, धरती में, शरद ऋतु में फलों फूलों की अनिवार्य मृत्यु और वसंत ऋतु में उनके फिर से जी उठने का प्रतीक है। इसी तरह से हमें यह मान लेना चाहिए कि प्राचीन समय में देवी देवताओं के किन्नर पुजारियों द्वारा अपने आराध्य को सांकेतिक तौर पर अपनी उर्वरता का बलिदान दिया जाता था ताकि दिये गये पौरुष के खोने और पाने का चक्र सतत चलता रहे । संभवतः इसी कारण से गल्ली / किन्नर बनाए जाने की प्रक्रिया भी अनुष्ठान पूर्वक संपन्न की जाती थी । ग्रीक-ओ-रोमन समुदाय की परम्पराओं से अलग हट कर मिस्री समाज में रंगीन मिजाजी के देवता, शराब, नाटक, अभिनय अनुष्ठान के अहम हिस्से होते हैं जिसके उपरान्त बंध्याकरण की प्रक्रिया पूर्ण की जाती है और समाज को एक नया पुरोहित मिल जाता है ।

...क्रमशः