मंगलवार, 3 जुलाई 2018

किन्नर - 32 (4)

गतांक से आगे...                                                                                                                                            
वहाँ पहुंचने के बाद सेवक गाड़ी लेकर वापस लौट आया । इसके बाद हीबानी सूकर को अपने कांधों में लाद कर मूल निवासियों के घरों के सामने से गुज़रा । यह गांव उरुक जैसा शक्तिशाली शहर नहीं था । यहां किले की कोई प्राचीरें नहीं थी, जहां से सैनिक, निगरानी कर सकते हों, ठीक वैसे ही जैसे कि पक्षी ऊपर घोसले में बैठ कर करते हों । यहां वैभवशाली महल, ठाठ बाट वाले सामंत नहीं थे । यहां निचले दर्जे की गंदी बस्तियां, अस्वच्छ बच्चे, कुत्तों की तरह के छोटे छोटे घर थे । यहां कोई मंदिर नहीं था जहां, कोई हीबानी देवी इन्नाना को पूजता हो । कोई अट्टालिकाएं नहीं, बल्कि मिट्टी के ऊबड़ खाबड टीले तथा पत्थरों की बेढब रक्तरंजित वेदियाँ थीं ।  

जब स्थानीय मूल निवासियों ने सूकर को काँधे पर लादे हीबानी को देखा तो वे उसका उपहास करने लगे, वे चिल्लाये, ओ किन्नर तुम अपने अभ्यारण्य से बाहर कैसे निकले, क्या मादा पक्षी ने अपने अस्वस्थ चूजे को घोसले से बाहर फेंक दिया है, हीबानी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया । वह बलि वेदी तक सूकर को ले आया । तभी मूल निवासियों का मुखिया सामने आया, उसने कहा, यहां तुम्हारे द्वारा दी गई बलि अकारथ होगी । नीचे जल में बनी हुई, गुफाओं में जाओ । देवता आप्सू कभी वहाँ आये तो उसके सामने यह बलि चढ़ा देना । हीबानी ने वैसा ही किया जैसा कि मुखिया ने बोला था । वो दिलमुन समुद्र के किनारे, पानी में स्थित गुफाओं में जा पहुंचा । 

गुफा के द्वार पर खड़े होकर, उसने समुद्र की ओर देखा, जहां सुमेर गल्पों में वर्णित देव प्रहरी महाकाय ड्रेगन / सरीसृप मौजूद थे। वे अपने देवता के शक्तिशाली रक्षक थे । वे देवता की अनुपस्थिति में उक्त कन्दरा की देखभाल करते थे । हीबानी ने सूकर को जमीन में रख कर कहा, यह तुम्हारे देव आप्सू के लिये । सरीसृप फुफकारते हुए बोले, नहीं सुमेरियन मनुष्य नहीं । रसातल का देवता तुम लोगों के उपहारों की परवाह नहीं करता क्योंकि उन्होंने, उसके प्रिय, स्थानीय मूल निवासियों का दमन किया है । वो तुम लोगों से घृणा करता है, यहां तुम्हें केवल मृत्यु मिल सकती है । अगर आप्सू तुम्हें यहां पर देख लेगा तो सूकर के साथ तुम्हें भी खा जाएगा...                                                                                                                                                                                                                                                                             ...क्रमशः